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HND : हहन्दी P3 : अधुहनक काव्य - 2 M12 : खबर और कहिता

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HND : हहन्दी P3 : अधुहनक काव्य - 2 M12 : खबर और कहिता

हिषय हहन्दी

प्रश् नपत्र सं. एिं शीषषक P3 : अधुहनक काव्य-2 आकाइ सं. एिं शीषषक M12 : खबर और कहिता

आकाइ टैग HND_P3_M12

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश् नपत्र-संयोजक डॉ. ओमप्रकाश सिसह आकाइ-लेखक प्रो. रामबक्ष जाट आकाइ-समीक्षक

प्रो. महेन्रपाल शमाष

भाषा-सम्पादक

प्रो. देिशंकर निीन

पाठ का प्रारूप

1. पाठ का ईद्देश्य 2. प्रस्तािना

3. खबर : हँसो हँसो जल्दी हँसो और लोग भूल गए हं

4. खबर और रामदास

5. नारी जीिन से जुड़ी ख़बरं और रघुिीर सहाय की कहिता

6. राजनीहतक ख़बरं और रघुिीर सहाय की कहिता

7. हहन्दी कहिता पर रघुिीर सहाय का प्रभाि

8. हनष्कषष

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HND : हहन्दी P3 : अधुहनक काव्य - 2 M12 : खबर और कहिता

1. पाठ का ईद्देश्य

आस पाठ के ऄध्ययन के ईपरान्त अप –

 खबर और कहिता का ऄन्त:सम्बन्ध जान सकंगे।

 सिहदी मं खबर को कहिता बना देने के चमत्काररक प्रारम्भ से पररहचत हंगे।

 रघुिीर सहाय की कहिता मं ख़बरं के ईपयोग समझ सकंगे।

 खबर के कहिता बन जाने की तरकीब समझ सकंगे।

2. प्रस्तािना

रघुिीर सहाय एक ऐसे कहि हं हजन्हंने ऄपनी कहिताओं मं ख़बरं का साथषक ईपयोग ककया है। ईनकी कहिताएँ जीिन हिरोधी हस्थहतयं की पहचान और पाठक को ईनसे मुठभेड़ के हलए तैयार करती हं। आस क्रम मं हमारे जीिन मं घरटत होने िाली घटनाओं, हस्थहतयं और पररहस्थहतयं से जुडी हुइ ख़बरं का साथषक आस्तेमाल करते हं और ईन्हं कहिता मं

तब्दील करते हं। आसहलए ईनकी कहिता के सौन्दयषशास् त्र को ‘खबर का सौन्दयषशास् त्र’ कहा जाता है। खबर को कहिता मं

तब्दील करने के कारण ईनकी ऄहधकांश कहिताओं की हिषयिस्तु और भाषा खबरधमी है। अज की व्यिस्था मं मनुष्य सुरहक्षत नहं है। ईनकी कहिताएँ आसी ऄरहक्षत-ऄसहाय व्यहि के जीिन की ख़बरं हं –

किर जाड़ा अया किर गमी अइ

किर अदहमयं के पाले से, लू से मरने की खबर अइ न जाड़ा ज्यादा था, न लू ज्यादा

तब कैसे मरे अदमी।

दरऄसल ये ऄखबार की ख़बरं हं। जाड़ा और लू से मरने िालं की खबर ऄखबार मं अम है। रघुिीर सहाय आस खबर को

कहिता का हिषय बनाते हं और खबर को केिल खबर नहं रहने देते। िे ऐसी ख़बरं के भीतर की खबर को तलाश करते

हं और कहिता मं ढाल देते हं। िे मानते हं– “पत्रकार और साहहत्यकार मं कोइ ऄन्तर है क्या? मं मानता हूँ कक नहं है।

आसहलए नहं कक साहहत्यकार रोजी के हलए ऄखबार मं नौकरी करते हं, बहल्क आसहलए कक पत्रकार और साहहत्यकार दोनं एक नए मानि सम्बन्ध की तलाश करते हं।”

हहन्दी मं ‘खबर’ से कहिता बनाने की साथषक शुरुअत रघुिीर सहाय ने की। ऄब तक खबर की दुहनया और कहिता की

दुहनया मं कोइ तालमेल बैठ नहं पाया था। पेशे से पत्रकार होने के कारण रघुिीर सहाय ने ऄपने पत्रकार जीिन के

ऄनुभि-हचन्तन को साहहहत्यक रूप देने का हनश् चय ककया। हहन्दी कहिता मं खबर की दुहनया से कहिता बनाने-रचने की

परम्परा का बहुत हिकास हुअ है। ऄब तो हहन्दी कहिता का बड़ा हहस्सा खबरं की दुहनया से खुराक ग्रहण करता है।

भारत जैसे देश मं, जहाँ अजादी और ऄत्याचार का सह-ऄहस्तत्ि है और जहाँ जनताहन्त्रक जीिन-मूल्य दाँि पर लगे हुए हं, िहाँ प्रेस और प्रेस की खबरं बहुत मूल्यिान हं। यहाँ पर ऄखबार को दुहरा दबाि िहन करना पड़ता है। ऄखबार ऄपने

ऄहस्तत्ि की रक्षा के हलए देश की हशहक्षत जनता पर हनभषर है। ईसे सरकारी कोप के साथ-साथ ऄलोकहप्रय बनते जाने का

भय भी बना रहता है। आस दुहरे भय के कारण आस हिशाल हिश् ि मं हबखरी हुइ दैहनक घटनाओं मं से क्या खबर है और क्या खबर नहं है, यह सिाल बहुत महत्त्िपूणष बन जाता है। यह सिाल समाचार पत्र के संपादक ि ईसके स्िामी के

सामने भी अता है। िे लोग ऄपने हाहन-लाभ का हहसाब करके ईनमं से खबर का चयन करते हं। आस चयन-प्रकक्रया मं से

ऄरुण कमल ने कहिता की गुंजाआश हनकाल ली। ऄखबारं मं खबर छपती हं, ‘केहलिोर्ननया की एक कुहतया ने तेरह बच् चे

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एक साथ जने’ या ‘हिश् िसुन्दरी का िजन 39 ककलो है’ या ‘प्याज बड़ा

गुणकारी होता है’ अकद। ऐसी ऄराजनीहतक एिं सनसनीखेज खबरं से अम अदमी का क्या लेना-देना हो सकता है? या

‘युिराज ने कंगालं मं कम्बल बाँटं ’, ‘राजनेता ने दाढ़ी मुँड़ाइ’ जैसी खबरं छपती हं। लेककन कइ घटनाएँ खबर नहं बन पाती। ऄरुण कमल की खबर शीषषक कहिता यही सीधा सिाल पूछती है कक यह हिहध की हिडम्बना है या आसके पीछे

कोइ दुष्चक्र है?

यह सही है कक ऄखबार मं खबर होने का हनणषय बहुत पेचीदा होता है और व्यिस्था हिरोधी खबरं को भरसक दबाने का

प्रयास ककया जाता है, लेककन लड़खडाती हुइ व्यिस्था की खबरं ईसके भीतरी खोखलेपन को व्यि कर ही देती हं। आससे

व्यिस्था का खोखलापन ि भयािहता प्रहतहबहम्बत होती रहती है। व्यिस्था हिरोधी रचनाकारं ने आस कारण खबर के

रचनात्मक ईपयोग को पयाषप्त महत्त्ि कदया है।

यहाँ आस प्रश् न पर हिचार करना अिश्यक प्रतीत होता है कक खबर को कहिता बनाने की प्रकक्रया से कहिता के स्िरूप मं

क्या-क्या पररितषन हो जाता है? या कहं कक खबर ककन शतं से कहिता मं बदल जाती है। खबर को कहिता बनाते ही

कहिता की भाषा मं सहज रूप से पररितषन हो जाता है। भाषा मं सरल बोलचाल के शब्द और प्रचहलत ईपमाएँ अने

लगती हं। काव्य-भाषा ऄलंकारं के लबादे और ऄप्रस्तुत हिधान के बोझ को परे हटा देती है। आसी के साथ-साथ प्रचहलत और सामाहजक ऄनुभि से कहिता की ‘िस्तु’ बनती है। यहाँ पर हिहशष्ट और िैयहिक ऄनुभिं को काट-छाँट कर ऄलग कर हलया जाता है। आन कहिताओं का ऄनुभि सािषजहनक ऄनुभि है। आसका कारण यह है कक जनसंचार के माध्यम, ऄखबार अकद सीधे ‘पहब्लक’ को सम्बोहधत होते हं। ईनकी खबरं ‘पहब्लक’ के अस्िाद के हलए होती हं। ऄतः खबर-प्रधान कहिताओं मं ऐसा कोइ हिचार, ऄनुभि या तथ्य नहं अता, हजसका सम्बन्ध सामान्यतः अम जनता से न हो। अम जनता के दैहनक जीिन से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होना आस कहिता की पहली शतष है। आस ऄनुभि के द्वारा लम्बी कहिता का

सृजन सम्भि नहं है। खबर ऄत्यन्त संहक्षप्त होती है और ईसका प्रभाि तीक्ष्ण होता है या कक होना चाहहए। खबर को

व्यि कर देने के बाद ईसकी ऄहभव्यहि का ‘ग्लैमर’ तुरन्त समाप्त हो जाता है। ऄतः खबर को कहिता मं लाते ही कहिता

का रूपिादी अग्रह समाप्त हो जाता है। यहाँ ‘बात’ मुख्य है, ‘ऄन्दाज-ए-बयाँ’ नहं। कहने का ढंग ऄत्यन्त स्पष्ट और सीधा

होना चाहहए। ऄतः ऐसी कहिताओं मं रूप और िस्तु का द्वन्द्व कदखाइ नहं देता। यहाँ रचनाकार को खबर मं से कहिता

को हनकालना होता है। खबर के ऄथष मं रचनाकार ऄपनी दृहष्ट का मेल करने का प्रयास करता है। यकद रचनाकार आसमं

सिल हो जाता है तो कहिता बन जाती है, ऄन्यथा मात्र ििव्य बन कर रह जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना ईपयोगी

होगा कक ‘कहि-हृदय’ के ऄभाि मं खबर को कहिता बनाने का प्रयास अत्मघाती साहबत होगा। यहाँ छद्म कहियं के पकड़े

जाने की सम्भािना सिाषहधक है। हालाँकक आस प्रकक्रया से हहन्दी मं सिाषहधक छद्म कहि पनपे।

3. खबर : हँसो हँसो जल्दी हँसो और लोग भूल गए हं

रघुिीर सहाय के कहिता संग्रह हँसो हँसो जल्दी हँसो (1975) और लोग भूल गए हं (1982) खबर की दृहष्ट से बहुत महत्त्िपूणष है। हँसो हँसो जल्दी हँसो मं देश के राजनीहतक भहिष्य के हलए हनराशा की हद तक अशंका की भािना व्यि

हुइ है। आस हस्थहत पर रघुिीर सहाय ने अत्महिश् िासपूिषक ऄचूक व्यंग्य ककया है। आस व्यंग्य को कहि ने ऄत्यन्त हल्का

बनाकर आस सरलता से ऄहभव्यि ककया है, हजसमं ईसका यह सृहजत हल्कापन मारक बन गया है। आन कहिताओं मं कहि

ने आस शासन तन्त्र के संचालकं की ऄभरता और ऄहशष्टता पर ज्यादा चोट की है। आनमं नौकरशाही की िूहड़ता और

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ईसके ऄज्ञान हमहित दम्भ के हमले-जुले हबम्ब हमलते हं। शासन के

सूत्रधार हजन गुणं को ऄपनी शान समझते हं, रघुिीर सहाय ईन्हं गुणं को ईनकी बेहूदगी समझते हं। आस सन्दभष मं

अपकी हँसी शीषषक कहिता का हिश् लेषण प्रासंहगक होगा।

हनधषन जनता का शोषण है

कह कर अप हँसे

लोकतन्त्र का ऄहन्तम क्षण है

कह कर अप हँसे

चारं ओर बड़ी लाचारी

कहकर अप हँसे

ककतने अप सुरहक्षत हंगे मं सोचने लगा

सहसा मुझे ऄकेला पाकर किर से अप हँसे।

आस कहिता के ‘अप’ शासन के संचालक हं। यह संचालक नौकरशाह भी है और राजनेता भी। यह छुट-भैया भी है औऱ शीषषस्थ भी। ‘अप’ की हँसी मं ऄश् लीलता, िूहड़ता, बेहयाइ, हनमषमता और धूतषता का हमिण है। कहि के सम्बोधन मं

‘अप’ के प्रहत एक हिशेष प्रकार के हिकषषण और ऄिहेलना हमहित दबी हुइ घृणा का भाि हुअ है। ‘हँसी’ सामान्यतः

हनमषल भाि हस्थहत है, लेककन ‘अपकी हँसी’ ऄश् लील है। ‘अप’ ऄपराजेय हं, लेककन घृहणत भी, क्यंकक ‘अप’ के हिरोधी

ऄसंगरठत और कमजोर हं। ‘अप’ आसे जानते हं। ‘अप’ हनहश् च त हं। आस हनहश् च न्तता ने ‘अप’ की गन्दगी और कमीनेपन को ईभार कर रख कदया है। ‘अप’ दूसरे को दुःख देकर खुश होते हं, क्यंकक ऄब ‘अप’ की ‘मनुष्यता’ मर चुकी है। ‘अप’ से

हमलना मेरी मजबूरी है, लेककन ‘अप’ ऄसह्य हं। ‘अप’ को मेरी भािनाओं की जानकारी नहं है, क्यंकक ‘अप’ की नजर मं

मं महत्त्िहीन हूँ और मेरी भािनाएँ ‘अप’ का कुछ भी नहं हबगाड़ सकतं; ऐसा ‘अप’ मानते हं। मं आसे जानता हूँ। पूरी

कहिता िणषन की शैली मं हलखी गइ है। आसमं ऐसे हििरण कदए गए हं, हजससे ‘अप’ का व्यहित्ि ईभरता है।

4. खबर और रामदास

रघुिीर सहाय की प्रहसद्ध कहिता रामदास का कथ्य खबर की बुहनयाद पर रटका हुअ है। रामदास के िणषन मं रचनाकार की हििशता हमहित करुणा व्यि हुइ है। यह कहिता ऄसहायता से ईत्पन् न मानिीय ददष को ऄत्यन्त सहज लेककन प्रभािशाली ढ़ंग से सामने लाती है। आसमं समकालीन मनुष्य के स्िाथी और तटस्थ होते चले जाने पर करारा व्यंग्य है।

आसमं रामदास के हलए करुणा है और मध्यिगीय व्यहि की ‘कायरता’ पर व्यंग्य है। लेककन यह व्यंग्य अत्म व्यंग्य के रूप मं अता है। यह कायरता हजतनी बाहर है, ईतनी ही भीतर भी। अज मनुष्य मं ऄिसरिाद और कायरता के साथ-साथ हनलषज्जता भी हमल गइ है। हचन्ता की बात यह है कक ऄपनी स्िाथषपरता पर हमं जो शमष अनी चाहहए, िह बन्द हो गइ है।

कायरता आस समाज व्यिस्था का ऄहभशाप है। यह िांछनीय नहं है, लेककन अश् चयषजनक भी नहं है। आसके हलए मनुष्य शर्नमन्दा होता है, ईसे शर्नमन्दा होना चाहहए। ऄपनी कायरता के हलए यह शर्नमन्दगी मनुष्य होने का एक प्रमाण है।

रघुिीर सहाय की हचन्ता यह है कक यह शर्नमन्दगी ऄब समाप्त हो गइ है।

रघुिीर सहाय ईस व्यहि के पक्षधर रचनाकार हं, जो पीड़ा सहता है, हपटता है और मर जाता है लेककन हिरोध नहं कर पाता। ऐसा नहं है कक िह हिरोध कर नहं सकता, बहल्क िह हिरोध की कक्रया से बेखबर है। िह आस बात से बेखबर हं

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कक आन हस्थहतयं से बचा जा सकता है, बचाने िाले लोग और संगठन आस

दुहनया मं हं। रघुिीर सहाय का रामदास चुपचाप मर जाने मं ही ऄपनी कुशलता समझता है। ऐसे रामदासं के प्रहत ऄत्यन्त ममत्ि और गहरा दुःख रघुिीर सहाय की कहिताओं मं हमलता है। हनम् न मध्यिगष के बेरोजगार युिक, हियां, हभखारी, ऄसहाय-ऄकेला मजदूर अकद आस तरह के पात्र ईनकी कहिताओं से सहानुभूहत बटोर ले जाते हं। रामदास जब मरता है तो ऄकेला होता है। कोइ ईसकी सहायता नहं करता। यही नहं, रामदास को ऄपने साहथयं से प्रभािशाली

सहायता हमलने की अशा भी नहं है, आसहलए िह सहायता लेने का प्रयास तक नहं करता। मरने से ठीक पहले (जबकक ईसे पता है) तक िह सामान्य कायषक्रम से चलता है।

5. नारी जीिन से जुड़ी ख़बरं और रघुिीर सहाय की कहिता

रघुिीर सहाय की कहिताओं मं नारी चेतनाहीन, पीहड़त, नष्ट होती हुइ, नीरस हजन्दगी जीती हुइ अती है। ईनकी आस हस्थहत के हलए कहि के मन का संहचत दुःख साथ-साथ अता है। ककले मं औरत कहिता मं ईनका हचत्रण यं है –

िे धोती थं िे मलती थं िे हँसती थं

िे घुसती और दुबकती थं

िे माँग हजस समय भरती थं

तब ककतना धीरज धरती थं

िे सब दोपहर मं एक ककले पर पहरा देती सोती थं िे

रठगनी थं िे दुबली थं िे

लम्बी थं िे गौरी थं

िे कभी सोचती थं चुपचाप न जाने क्या

िे कभी हससकती थं ऄपने सबके अगे।

रघुिीर सहाय ने िैयहिक ऄनुभि को कहिता का हिषय नहं बनाया है, बहल्क ईन्हंने हनरीक्षण को काव्य-सजषन का

अधार बनाया है। ईनके यहाँ हनरीक्षण हजतना सूक्ष्म और िृहत्तर सन्दभं से जुड़ा हुअ होता है, कहिता ईतनी ही

प्रभािशाली रूप मं ‘रच’ जाती है। ईनके हनरीक्षण की प्राथहमक कक्रया पत्रकार की है, ईसे रचना के रूप मं कहि ईपहस्थत करता है। रघुिीर सहाय की हिशेषता यह है कक ऄपने पत्रकार को कहि पर हािी नहं होने देते बहल्क ईनका कहि ऄपनी

शतं पर पत्रकार से सहायता लेता है।

6. राजनीहतक ख़बरं और रघुिीर सहाय की कहिता

रघुिीर सहाय की रचनाओं मं हिशेष प्रकार का राष्ट्रिाद हमलता है। ईनके द्वारा ककए गए पात्रं के चुनाि के पीछे िगीय दृहष्ट नहं रहती, बहल्क राष्ट्रीय दृहष्ट रहती है। समकालीन समाज का हचत्रण रघुिीर सहाय राष्ट्रिादी दृहष्टकोण से करते हं, जो ईत्पीहड़त देशं मं ऄब भी प्रगहतशील भूहमका हनभा रहा है। प्रगहतशील अलोचकं ने रघुिीर सहाय मं िगीय दृहष्ट के

ऄभाि जाने-ऄनजाने अलोचना की है।

लोग भूल गए हं की कहिताओं मं राजनीहतक हचन्ता का ‘बाहुल्य’ नहं है। हचन्ता यहाँ भी है, लेककन ईसका केन्र अज के

मनुष्य का सम्पूणष चररत्र है। राजनीहत आसका एक ऄंग है। हँसो हँसो जल्दी हँसो मं सत्ता पक्ष की हजतनी अलोचना है, लोग भूल गए हं मं लोगं की अलोचना ईससे ऄहधक है। िैसे देखा जाए तो हम हजससे कुछ ऄपेक्षा करते हं, ईसकी

अलोचना ऄहधक करते हं। हजससे कोइ अशा नहं, हजसके सुधरने की गुंजाआश नहं, ईसकी अलोचना का कोइ िायदा

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नहं। आसहलए रघुिीर सहाय ने ऄपनी कहि दृहष्ट को जनता की तरि

मोड़ा। सरकार तो जो है सो है, लेककन लोगं को तो ऄत्याचार याद रखना चाहहए था। िे क्यं भूल गए हं?

लोग भूल गए हं एक तरह के डर को हजसका कुछ ईपाय था

एक और तरह का डर ऄब सब जानते हं हजसका कारण भी नहं पता

सन् 1975 से 1982 के बीच की भारतीय राजनीहत पर कहि ने रटप्पणी की – दुहनया ऐसे दौर से गुजर रही है हजसमं

हर नया शासक पुराने के पापं को अदशष मानता।

हजसे जनता कहते हं, ईसकी पहल-कदमी पर कहि को यकीन नहं है, क्यंकक जनता तो लोग है और कहि ने देखा है कक लोग ईस अतंक को भूल गए हं, जो अपातकाल ने ईन्हं कदया था। लोगं ने ईन्हं को सन् 1980 मं किर चुन हलया है। िैसे

पाँच िषष का समय बहुत लम्बा होता है।

रघुिीर सहाय मानते हं कक दुःख है और बहुत कदनं तक रहेगा या कम से कम हनकट भहिष्य मं ककसी सुनहरे कल के अने

की सम्भािना क्षीण है। ऄतीत पर हम गिष नहं कर सकते क्यंकक िह तो ‘शोषण का आहतहास’ है, हमारा ितषमान दुःखद ही नहं लज्जाजनक भी है। रहा भहिष्य तो ईसमं और भी ऄहधक ऄत्याचार होने िाला है।

हनश् चय ही जो बड़े ऄनुभि को पाए हबना सब जानते हं खुश है

तुम ऄब भी आस दुहनया मं ईस बच् चे जैसे हो जो ऄपनी

बहन के जीिन मं खुशी खुशी देखता है पीड़ाएँ नहं जानता।

नादान, नासमझ या मूखष लोग आस हाल मं भी मगन हं। या हजसने आस व्यिस्था के साथ संगत ररश्ता बना हलया है, हजसके कारण िे प्रहतहित है, शहिशाली हं, िे ही प्रसन् न हं। धूतष और नादान दो ही लोग खुश हं। कहि की दृहष्ट मं अज का

अदशष मनुष्य िह है जो समझदार है और इमानदार भी। केिल समझदार हबक सकता है, मात्र इमानदार ठगा जा सकता

है। अज के युग मं दोनं चीजं एक साथ कम हमलती हं। किर हजसके पास ये दोनं चीजं हं, क्या िह आस व्यिस्था मं

जीहित रह पाएगा? सही सलामत रह सकेगा? कहि की दृहष्ट मं आसकी सम्भािना बहुत कम है। िह पागल हो सकता है, हभखमंगा हो सकता है या रामदास की तरह कहं भी मारा जा सकता है। आस तरह कहि ईन मानिीय गुणं का समथषक है

(कहि की दृहष्ट मं) जो अज धरती पर कम पाए जाते हं।

भयाक्रान्त ऄनुभि की अिेग रहहत ऄहभव्यहि रघुिीर सहाय की कहिताओं की प्रमुख हिशेषता है। ईनकी कहिता मं एक ठहराि, सजगता, पैनी दृहष्ट और धैयष मौजूद है, किर भी ईन्हंने लम्बी कहिताएँ नहं हलखं। ईनकी कहिताएँ संहक्षप्त ककन्तु प्रभािशाली हं।

7. हहन्दी कहिता पर रघुिीर सहाय का प्रभाि

रघुिीर सहाय के बाद हहन्दी मं ऄनेक कहियं ने खबर पर कहिताएँ हलखं। ऄरुण कमल, राजेश जोशी, हिष्णु नागर ने

ख़बरं पर कहिताएँ हलखं, हालाँकक आनकी कहिताओं मं रघुिीर सहाय जैसा पैनापन नहं है। ऄरुण कमल सामाहजक जीिन का िणषन करते हं, िहाँ ईनकी रचनाओं मं रुदनपूणष सहानुभूहत का स्िर मुखररत होता है। ऄरुण कमल की हिषय-

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िस्तु ऐसी है जो पाठक मं दया जगा सकती है। यहाँ िही पररहचत दृश्य

हं, हजनकी ओर ‘ईदार’ लोगं की कृपा दृहष्ट रही है। ईन पररहचत दृश्य हबन्दुओं को रचनाकार ईठाता है और ऄपने अपको

और आस तरह पाठक को भी दया करने से बचा ले जाता है। ईनकी कहिताओं मं डेली पैसंजर औरत, दर्नजन, बन्धुअ मजदूर, भीख माँगते हुए बच् चे, कुबडीऺ बुकढ़या जैसे िंहचत और ईपेहक्षत चररत्र अते हं। ईन िंहचत और ईपेहक्षत पात्रं को

कहि मानििादी दृहष्ट से ईपहस्थत करता है। आस दृहष्ट से देखा जाए तो ऄरुण कमल मध्यिगष के ईदार और मानितािादी

हहस्से के कहि हं, जो समाज के पीहड़त ईपेहक्षत और िंहचत लोगं के साथ ऄपने सम्बन्धं को महसूस करते हं। कहि ईन पात्रं की गररमा की रक्षा करते हुए ईनसे ऄपना नाता जोड़ता है। समाज के िंहचत-पीहड़त लोग ऄरुण कमल की

कहिताओं मं ऄपना पक्ष प्रस्तुत करते हं। कहि ईनका पक्ष प्रस्तुत नहं करते बहल्क िे स्ियं ऄपने जीिन का तकष प्रस्तुत करते हं। आससे कहिता की िस्तुगतता की रक्षा तो होती ही है, कहि भी दया करने से बच जाते हं। हाँ, ईनके ऄव्यि रुदन का धीमा संगीत सारी कहिता मं बजता रहता है।

हिष्णु नागर की कहिताओं मं भी खबर को कहिता मं रूपान्तररत करने की प्रकक्रया मौजूद है। आसके हलए िे खबर की नइ पृिभूहम तथा ईसके प्रभाि को नए ढंग से ईद्घारटत करते हं।

खबर है, ‘लड़के की मौत।’ लड़के का बाप दुःखी है और िह सोचता है (या कहता है) ‘18 साल मं लड़का जिान हुअ था

और 18 साल िह बूढ़ा नहं होता।’ यहाँ बाप की बेचैनी व्यि हुइ है लेककन बाप की बेचैनी का बड़ा भाग िे भािी 18 िषष हं जब िह जिान रहकर काम करके और ईपयोगी साहबत होता। यहाँ लड़का बाप का नुकसान करके मर गया था या मर कर बाप को नुकसान पहुँचा गया, यह हचन्ता है। कहि एक पूरी दुहनया के ईजड़ जाने से दुःखी है, क्यंकक ईसे पता है कक यह िह समय था जब एक लड़की ‘ईसे रूमाल देने िाली थी।’ यहाँ यह दृष्टव्य है कक रचनाकार का व्यंग्य बहुत दबा हुअ है

और िह ऄपने अपको छुपाने का भरसक प्रयास कर रहा है। रचनाकार ऄपने भाि का दमन कर, ईसे घोलकर सामान्य तथ्य के भीतर रख देता है। पात्रं की खीज मं, उब और गुस्से मं रचनाकार बोलता रहता है। उपर से लगता है कक रचनाकार कुछ नहं बोल रहा है, बात ही बोल रही है। लेककन नहं! बात भी यहाँ िही बोलती है जो रचनाकार बुलिाता

है।

आन कहिताओं से लगता है कक रचनाकार आस भांहत की घटनाओं और ईनकी सूचनाओं का ऄभ्यस्त हो चुका है। यह ऄभ्यस्तता ईसके भािािेग का दमन करती है। कहि यहाँ एक ‘समझदार’ लेककन हनहष्क्रय व्यहि के रूप मं सामने अते हं।

रचनाकार कहता है कक जो कुछ हो रहा है, िह ऄच्छा नहं है। गरीब अदमी कपड़ा धोने के साबुन से नहा रहा है, धीरे- धीरे िह भी ऄप्राप्य होता जा रहा है। लोग चाँद पर जाते हं और कान का मैल हनकालकर चले अते हं। कुछ लोग थे, जो

कदल्ली की सड़कं पर कदसम्बर मं कुत्ते की मौत मारे गए। अजकल हालत यह हो गइ है कक जंगल मं नहं बहल्क ‘सड़क पर खतरा’ है। ‘लो 1973 मं एक अदमी दरख्त देखने को कह रहा था।’ ऐसी ऄनेक कहिताएँ आस संग्रह मं हं, हजनमं

रचनाकार ने ितषमान हिभीहषका का िणषन ककया है। रचनाकार का मन ईन प्रसंगं से अन्दोहलत भी हुअ है। आस भािािेग की व्याकुलता के बाद कहि ने बहुत हचन्तन-मनन करके ऄपने हलए कुछ हनष्कषष हनकाल हलए हं। आस तरह से

आन भीषण खबरं की पृष्टभूहम और ईनके प्रभाि की कहि ने एक समझ प्राप्त कर ली है। यह ‘समझ’ ज्यं-ज्यं बढ़ती गइ है, त्यं-त्यं भािािेग कम होता गया है। और आस तरह कहिता की रचना कहि ईस मानहसक भूहम से करता है, जहाँ ऄनजाने

ही िह ितषमान व्यिस्था के स्थाहयत्ि को स्िीकार कर चुका होता है। यहाँ एक बार किर रघुिीर सहाय की कहिताएँ याद अती हं। ईनके यहाँ अततायी व्यिस्था ऄत्यन्त भयािह लेककन मरणासन् न है, ईसे ऄन्ततः नष्ट हो जाना है। लेककन हिष्णु

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HND : हहन्दी P3 : अधुहनक काव्य - 2 M12 : खबर और कहिता

नागर आस ‘व्यिस्था’ को न केिल शहिशाली बहल्क स्थायी भी कदखाते

हं। आस कारण आन कहिताओं का सामाहजक मूल्य कम हो जाता है। ये पाठक के मन मं कमष की प्रेरणा या बेचैनी नहं

जगातं बहल्क ईसे हनहष्क्रय समझ कदलाती हं। राजेश जोशी खबर का नाट्य रूपान्तरण करते हं। दरऄसल रघुिीर सहाय ने काव्य रचना के जादू को समाप्त कर कदया, हजसके कारण ऐसे लोगं ने भी कहिताएँ हलख दं, जो कहिता नहं हलख सकते थे। आस कारण हहन्दी मं कहिता के नाम पर ऄनेक गद्य रचनाएँ प्रकाहशत हो गईं।

4. हनष्कषष

आसमं कोइ दो राय नहं है कक रघुिीर सहाय खबरधमी कहि हं। िे ऄपने पत्रकार और साहहत्यकार व्यहित्ि को ऄलग- ऄलग नहं मानते थे। दोनं के कायं का ईद्देश्य भी िे एक समझते थे। यह एक ऐसा कारण है जो ईन्हं ख़बरं और कहिता

मं अिाजाही बनाए रखने की जमीन तैयार करता था। यह मान लेना कक ईनकी कहिताएँ केिल खबर हं, कहि के साथ ज्यादती होगी। िे ख़बरं के हनहहताथष को दूर तक ले जाते थे और ईसे ऄपनी कहिता का हिषय बनाते थे। यही कारण है

कक हजन तथ्यं, घटनाओं अकद को हम साधारण समझकर छोड़ देते हं, रघुिीर सहाय के हलए िे कहिता के हिषय बन जाते हं। रघुिीर सहाय के हिचारं और ईनकी कहिताओं की ऄनुगूँज हहन्दी कहिता मं दूर तक कदखाइ देती है। ईनके बाद के ऄनेक कहियं ने ईनकी शैली का प्रयोग करते हुए कहिताएँ हलखी हं।

References