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HND : हहन्दी P15 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र

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HND : हहन्दी P15 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र

M19 : टी.एस. आहियट का काव्य हसद्धान्त

हिषय हहन्दी

प्रश् नपर सं. एिं शीषषक P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र

आकाइ सं. एिं शीषषक M19 : टी.एस. आहियट का काव्य हसद्धान्त

आकाइ टैग HND_P14_M19

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश् नपर-संयोजक प्रो. ऄरुण होता

आकाइ-िेखक प्रो. रहि श्रीिास्‍तति

आकाइ-समीक्षक प्रो. एस.सी. कुमार भाषा-सम्पादक प्रो. देिशंकर निीन पाठ का प्रारूप

1.

पाठ का ईद्देश्य

2.

प्रस्‍ततािना

3.

हनिैयह‍ त कता का हसद्धान्त

4.

िस्‍ततुपरक सापेक्षता का हसद्धान्त

5.

हनष्कषष

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HND : हहन्दी P15 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र

M19 : टी.एस. आहियट का काव्य हसद्धान्त

1. पाठ का ईद्देश्य

आस पाठ को पढ़ने के ईपरान्त अप

 टी.एस. आहियट के काव्य हसद्धान्तं को समझ सकंगे।

 टी.एस. आहियट का हनिैहयक्तकता का हसद्धान्त जान सकंगे।

 टी.एस. आहियट का परम्परा का हसद्धान्त समझ सकंगे।

 टी.एस. आहियट का स्‍तिछन्दन्तािाद सम्बन्धी मत जान पाएँगे।

2. प्रस्‍ततािना

बीसिं सदी के ऄंग्रेजी साहहत्य मं आहियट का महत्त्िपूणष स्‍तथान है। आहियट मूितः कहि थे। ऄपने साहहत्य हचन्तन को

ईन्हंने ‘िकषशॉप क्रिटटहसज्म’ कायषशािाइ अिोचना कहा। ऄथाषत् काव्य सृजन के प्रसंग मं ईसे ऄपने हचन्तन का हिस्‍ततार कहा है। दूसरे शब्ददं मं ऄपनी कहिताओं की रचना प्रक्रिया के दौरान ईन्हं जो ऄनुभि हमिे ईसी अधार पर ईन्हंने

अिोचनात्मक हनबन्ध हिखे। हहन्दी मं ऄज्ञेय, साही अक्रद कहि िेखकं द्वारा हिखी गइ अिोचनाएँ आसी कोटट के

ऄन्तगषत अती हं। आहियट रूढ़ ऄथं मं अिोचक नहं हं। ईन्हंने हिस्‍ततृत और िमबद्ध रीहत से क्रकसी निीन हसद्धान्त की

स्‍तथापना भी नहं की है। ईनके हनबन्धं मं व्यािहाटरक समीक्षा के साथ घुिहमि कर ही हसद्धान्त सामने अए हं।

आहियट के अिोचनात्मक हिचारं का पहिा महत्त्िपूणष हनबन्ध परम्परा और व्यह‍ त गत प्रहतभा (ट्रेहडशन एण्ड आहण्डहिजुऄि टैिेण्ट) सन् 1919 मं प्रकाहशत हुअ। आसी िम मं ईनके दो हनबन्ध द परफे‍ट क्रिटटक और द आम्परफे‍ट क्रिटटक प्रकाहशत हुए। ये हनबन्ध सन् 1920 मं प्रकाहशत आहियट की पुस्‍ततक द सेिेड िुड (पहिर जंगि) मं संकहित है। ये

हनबन्ध आसहिए भी महत्त्िपूणष हं ‍यंक्रक आनमं न केिि काव्य की रचना प्रक्रिया को समझाया हं बहकक अिोचना प्रक्रिया

का रहस्‍तय भी बताया है। आन हनबन्धं की एक हिशेषता यह भी है की ईनसे ऄंग्रेजी काव्य मं एक नइ हचन्तन प्रक्रिया की

शुरुअत हुइ, हजसकी पटरणहत नइ अिोचना एंग्िो ऄमेटरकन न्यू क्रिटटहसज्म मं हुइ। ये हनबन्ध रोमैहण्टक काव्य के हिरुद्ध

‘‍िाहसकि’ शास्त्रीय काव्य-हसद्धान्तं की स्‍तथापना करते हं।

आहियट ने ऄरस्‍ततू को ऄपना अदशष माना है। आससे भी ईनके ‍िाहसकी हिश्वासं का पता चिता है। आहियट ने रेहमडी

गोमं का भी ऋण स्‍तिीकार क्रकया है। फ्रेंच प्रतीकिाक्रदयं का प्रभाि भी आहियट पर क्रदखाइ देता है। फ्रेंच प्रतीकिाक्रदयं की

यह धारणा थी क्रक कहिता का ऄथष-ग्रहण संकेत से होना चाहहए, क्रकसी हिस्‍ततृत सूचना द्वारा नहं। आहियट पर टी.इ. ह्यूम का प्रभाि महत्त्िपूणष है। दोनं हिचारकं के परम्परा सम्बन्धी हिचारं मं काफ़ी समानताएँ हं, क्रकन्तु आससे भी ऄहधक ध्यान देने योग्य है, ह्यूम की मूर्त्ष ऄहभव्यह‍ त सम्बन्धी धारणा। आहियट के ‘ऑब्दजेह‍टि कोटरिेटटि’ िस्‍ततुपरक सादृश्य से

हमिती जुिती ऄनेक बातं ह्यूम ने हिखं हं। िह भािनाओं और हिचारं को मूर्त्ष ऄहभव्यह‍ त प्रदान करने के पक्षपाती थे।

आहियट पर एजरा पाईण्ड का भी प्रभाि क्रदखता है, जो फ़्रांस मं हबम्बिादी अन्दोिन के जनक थे। ईन्हंने सन् 1910 मं

यह स्‍तिीकार क्रकया क्रक “कहिता ईस ऄंकगहणत की तरह है जो मानि संिेगं के हिए समीकरण प्रस्‍ततुत करता है।” बाद मं

सन् 1935 मं िे कहते हं क्रक “कहिता हसफष संकेत करती है, िस्‍ततुस्‍तथापना नहं।” आन्हं प्राचीन और निीन प्रभािं को

अत्मसात करके आहियट ने अधुहनक ‍िाहसहसजम का हनमाषण क्रकया।

पूिष की स्‍तथापनाओं को ध्िस्‍तत क्रकये हबना कोइ भी हचन्तक ऄपनी मान्यताओं को स्‍तिीकृहत नहं क्रदिा सकता। आहियट ने

मैथ्यू ऄनाषकड की साहहत्य की पटरभाषा क्रक िह ऄन्ततः जीिन की अिोचना है, को अधारहीन कहा ‍यंक्रक ऄनाषकड कहिता से नैहतकता की माँग करते थे और अधुहनक औद्योहगक सभ्यता द्वारा हनर्ममत िोकहप्रय संस्‍तकृहत के साहहत्य पर

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M19 : टी.एस. आहियट का काव्य हसद्धान्त

पड़ने िािे दुष्पटरणामं का अकिन कर साहहत्य सजषकं के ऄकपसंख्यकं

की संस्‍तकृहत के पक्षधर थे। सेण््सबरी की हहतहाहसक एिं जीिनीपरक अिोचना पद्धहत भी आहियट को दोषपूणष प्रतीत हुइ। िे ईसके खण्डन मं हिखते हं क्रक “इमानदार अिोचना और संिेदनशीि ऄनुशीिन का हिषय कहि नहं कहिता होती

है।” आसी तरह िाकटर पेटर और ऑस्‍तकर िाआकड की व्यह‍ त िादी प्रभािपरक अिोचना के खण्डन मं ईन्हंने तकष क्रदया क्रक पाठक पर रचना के पड़ने िािे प्रभाि की सत्यता को अिोचक कैसे बता सकता है? िह भी ईस हस्‍तथहत मं जबक्रक एक ही

रचना का ऄिग-ऄिग व्यह‍ त पर पड़ने िािा प्रभाि हभन् न हो। क्रकन्तु आहियट के अिमण का हशकार सबसे ज्यादा

रोमैहण्टक कहि-अिोचक हुए।

स्‍तिछन्दतािादी-रोमैहण्टक कहियं और अिोचकं ने काव्य को अत्माहभव्यह‍ त माना। अत्म से तात्पयष है िैयह‍ त कता

और ऄहभव्यह‍ त से ऄहभप्राय है स्‍तितःस्‍तफूतष ऄहभव्यंजना। िर्डसषिथष ने काव्य के सम्बन्ध मं स्‍तथापना दी क्रक िह एकान्त मं

जन्मे हुए शह‍ त शािी भािं और ऄनुभूहतयं का सहज स्‍तफुरण है। काव्य के हनयम कहियं की अकांक्षाओं और संिेदनाओं

से हनधाषटरत होते हं। आहियट ने स्‍तिछन्दतािादी काव्यदृहि के हिरुद्ध हिद्रोह क्रकया। स्‍तिछन्दतािाक्रदयं की यह धारणा क्रक मानि व्यह‍ त त्ि मं ऄसीम सम्भािनाएँ होती हं, आहियट ने हसरे से ख़ाटरज क्रकया। ह्यूम की तरह ईनका भी कहना था क्रक मनुष्य का व्यह‍ त त्ि सीहमत होता है। आहियट ने कहि-ईपन्यासकार डी.एच. िारंस के सम्बन्ध मं हिखा है क्रक ईनकी

अन्तटरक ज्योहत ईनका मागषदशषन कर रही थी क्रकन्तु यह अन्तटरक ज्योहत परम ऄहिश् िसनीय और धोखेबाज मागषदशषक है। ऄगर अिोचना का िक्ष्य ईन िस्‍ततुगत प्रहतमानं की खोज करना है हजसके अधार पर किा का मूकयांकन हो तो कहि

की अन्तटरक अिाज जैसी ऄमूर्त्ष शब्ददाििी को छोड़ना होगा।

आहियट से पूिष टी.इ. ह्यूम सन् 1913 मं रोमैहण्टक काव्यदृहि का हिरोध कर चुके थे और भािुकतापूणष रूमाहनयत और तरिता के स्‍तथान पर िस्‍ततुहनष्ठता और बौहद्धक रुखाइ को श्रेष्ठ काव्य की पहचान बतिा चुके थे। सन् 1928 मं आहियट ने

एक घोषणा की, “मं राजनीहत मं राज्सर्त्ािादी, धमष मं एंग्िोकैथोहिक तथा साहहत्य मं परम्परािादी हूँ।” रोमैहण्टक कहिता की पृष्ठभूहम मं प्रोटेस्‍तटेण्ट मत की भूहमका महत्त्िपूणष रही है। आहियट ने माना क्रक चूँक्रक रोमैहण्टक कहिता के मूि मं

प्रोटेस्‍तटेण्ट मत है, आसी कारण यह आतना िोकहप्रय हुअ। एंग्िोकैथोहिक होने की िजह से भी आहियट ईसके हिरोधी थे।

आसका ईकिेख ईन्हंने ऄपनी कहिता स्‍तट्रंज गॉड मं भी क्रकया है। ईन्हंने ऄन्यर भी हिखा है, “जब नैहतकता और नैहतक मानदण्ड परम्परा और मताग्रह के ऄधीन नहं रह जाते और जब प्रत्येक मनुष्य नैहतकता के हनजी हनयमं का हनयामक बन जाता है तो व्यह‍ त त्ि खतरनाक ढंग से महत्त्िपूणष हो जाता है।” प्रोटेस्‍तटेण्ट मत ने आस प्रकार की ऄराजकता को प्रारम्भ क्रकया। ईसके प्रभाि मं रोमैहण्टक कहि भी अये हजसके फिस्‍तिरूप कहिता िैयह‍ त कता से भरी जाने िगी। आहियट आसके

हिककप मं समूह के शरणागत हुए और िह समूह है 'परम्परा'।

आहियट ने हिखा है क्रक “किाकार की प्रगहत एक सतत अत्मदान की, सतत हतरोभाि की प्रक्रिया है।” ऄहम् का हिसजषन आहियट का महत्त्िपूणष काव्य हसद्धान्त है हजसे ‘हनिैयह‍ त कता का हसद्धान्त’ भी कहते हं। ईन्हंने काव्य की नइ पटरभाषा

दी। स्‍तिछन्दतािादी काव्य के समानान्तर और ईसके िजन पर ईन्हंने हिखा क्रक “कहिता भािं की ऄहभव्यह‍ त नहं, भािं से पिायन है; िह व्यह‍ त त्ि ऄथिा ऄहम् की ऄहभव्यह‍ त नहं, ईसका हनषेध है।” ऄहम् के हनषेध का ऄथष है क्रकसी

हिराट सर्त्ा मं स्‍तियं को घोि देना, िीन कर देना। यह हिराट सर्त्ा काव्य-परम्परा है। आस परम्परा से ऄपने को जोड़ देना, ऄपने ऄहम् को,व्यह‍ त त्ि को हििहयत करना ही सजषक को हनिैयह‍ त क बनाता है ‍यंक्रक परम्परा-परम्पराओं का हनमाषण एक सामूहहक प्रयास का पटरणाम है। किाकार के सीहमत व्यह‍ त त्ि का हतरोहन िृहर्त्र साहहत्य परम्परा मं हो तो यह कहि के हिकास का िक्षण है, ईसके ऄिरुद्ध सृजनशीिता का नहं। ऄतः परम्परािादी होना सदैि हपछड़ेपन का सूचक नहं है। दरऄसि एक जागरूक ितषमान ऄतीत की एक नए ढंग की और नए पटरणाम मं ऄनुभूहत का नाम है, जैसी और

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M19 : टी.एस. आहियट का काव्य हसद्धान्त

हजतनी ऄनुभूहत ऄतीत को स्‍तियं न थी। हजसे परम्परा का ज्ञान नहं, िह

ऄन्ध परम्परापूजक है। िह साधक नहं हो सकता ‍यंक्रक साधना की शह‍ त परम्परा से ही हमिती है। ऄज्ञेय ने ‘हरशंकु’ मं

संकहित ऄपने हनबन्ध रूक्रढ़ और मौहिकता' मं हिखा है “...परम्परा के हिरुद्ध हमारा कोइ हिरोध हो सकता है तो यही

क्रक हम ऄपने को परम्परा के अगे जोड़ दं।” यह ऄकारण नहं है क्रक आहियट ने ऄपने ऄत्यन्त महत्त्िपूणष हनबन्ध का नाम परम्परा और िैयह‍ त क प्रहतभा ट्रेहडशन एण्ड आहन्डहिसुऄि टैिेण्ट रखा हजसका स्‍तपि गुणधमष है। एक ईच् च स्‍ततर का

किाकार हनरन्तर ऄपने छोटे व्यह‍ त त्ि को, ऄपने तात्काहिक क्षहणक ऄहस्‍ततत्ि को एक महान और हिशाि ऄहस्‍ततत्ि पर न्योछािर करता है। ईसका यह सतत अत्मदान ईसके व्यह‍ त त्ि की मृत्यु का पटरचायक नहं है और न ही ईसकी

सजषनात्मक प्रहतभा का ऄन्त ही। आसके हिपरीत हहतहाहसक चेतना के सहारे िह िस्‍ततुतः ईस परम्परा को भी शोहधत और पटरिर्मधत करता है हजस पर िह स्‍तियं न्योछािर है। आस प्रकार किाकार छोटे व्यह‍ त त्ि से बड़े व्यह‍ त त्ि की ओर बढ़ता

है जो ईसकी प्रगहत का सूचक है।

आहियट ने परम्परा का व्यापक ऄथष क्रदया है। ईन्हंने हिखा है क्रक “व्यह‍ त परम्परा के साथ जन्म नहं िेता। ईसे सायास ग्रहण करना पड़ता है। ईसकी हसहद्ध के हिए मेहनत जरुरी है। यह िेखक को ईसके समय, स्‍तथान एिं समकािीनता का

पटरचय देती है... कोइ भी कहि या किाकार ऄकेिे ऄपना कोइ ऄथष नहं रखता है। ईसका महत्त्ि, ईसका सही मूकयांकन ईसके पीछे के कहि-किाकारं से ईसकी तुिना भेद अक्रद मं हनहहत होता है। हसे मं कहि व्यह‍ त त्ि के प्रकाशन हेतु शायद ही कोइ जगह हो...। आहियट का तकष है क्रक िैयह‍ त कता हजस पर रोमैहण्टक कहिता मं आतना बि है, कोइ शाश् ित प्रपंच नहं है। बहकक िह हाहनप्रद है। बड़ा कहि िह है जो िैयह‍ त कता के प्रदशषन का हनषेध करे, परम्परा को साधे। िैयह‍ त क ऄनुभूहत के प्रकाशन को िेकर चिने िािा बड़ा सजषक नहं हो सकता। परम्परा की जगह काव्य रचना मं सुरहक्षत होनी

चाहहए। कहि की प्रहतभा केिि मध्यस्‍तथ रूप मं ईसी को काव्य मं प्रहतफहित होने मं सहायक है। आहियट की यह धारणा

रोमैहण्टक काव्य के हिरुद्ध है।

‘परम्परा’ से आहियट का मतिब है, आहतहासबोध। परम्पराबोध का दूसरा नाम है आहतहासभािना, हजसमं ऄतीत की

ऄतीतता का नहं, ईसकी ितषमानता का ज्ञान भी समाहिि है। अशय यह है क्रक कोइ कृहत हजस समय मं हिखी गइ और अज हजस माहौि मं िह पढ़ी जा रही है, ईसके ऄिग-ऄिग क्रकन्तु समानान्तर युगबोध ही आहतहासबोध है। मसिन तुिसीदास को पढ़ते हुए ईनके समय और समाज की संिेदनशीिता, रचनाशीिता और अज के समय और समाज की

देश-कािगत सापेक्ष हभन् नता की ऄिग-ऄिग क्रकन्तु पारस्‍तपटरक ऄन्तःसम्बद्धता की युगपत पहचान ही िह आहतहासबोध है जो जन्म के साथ नहं हमिता, ईसे श्रमपूिषक हाहसि करना पड़ता है। दूसरे शब्ददं मं, अआना चेहरे के बहुत करीब हो

चेहरा नहं क्रदखेगा; िह बहुत दूर हो तब भी नहं क्रदखेगा। यह समझ हाहसि करनी पड़ती है। आहियट की दृहि मं यह हजतना सजषनात्मक स्‍ततर पर सही है, ईतना ही अिोचनात्मक स्‍ततर पर भी। यह कहकर आहियट ने परम्परा की नक़ि या

ऄनुकरण की कोइ गुंजाआश नहं छोड़ी है। ईनके तईं ऄतीत की ितषमानता का ऄथष है ईसमं हनहहत जीहित ऄंश की

पहचान और ईसके सजषनात्मक ईपयोग की दक्षता जो सजषनशीि प्रयास से हमिती है ऄथाषत् िैयह‍ त क प्रहतभा।

3. हनिैयह‍ त कता का हसद्धान्त

हनिैयह‍ त कता के पक्ष मं आहियट का एक दूसरा प्रभािी तकष है, “कहि के पास ऄहभव्यक्त करने के हिए कोइ व्यह‍ त त्ि नहं

होता, एक हिहशि माध्यम होता है... व्यह‍ त त्ि नहं। हजसमं मन पर पड़े हुए प्रभाि ऄजीब और ऄप्रत्याहशत ढंग से संयुक्त होते हं। ऄपने तकष के समथषन मं ईन्हंने हिज्ञान का सहारा हिया। हजस तरह प्िेटटनम की ईपहस्‍तथहत मं ऑ‍सीजन और सकफर डाइ अ‍साआड के योग से एक तीसरे यौहगक सक्युरस एहसड का हनमाषण होता है, क्रकन्तु प्िेटटनम क्रकसी भी

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M19 : टी.एस. आहियट का काव्य हसद्धान्त

रासायहनक प्रहतिया से ऄप्रभाहित रहता है ईसी तरह कहि का मन

हिहभन् न भािनाओं, हिचार और ऄनुभूहतयं के संयोग मं हसफष ईत्प्रेरक की भूहमका हनभाता है। आस संयोग से ही कहिता

का जन्म होता है क्रकन्तु कहि व्यह‍ त त्ि मन प्िेटटनम के टुकड़े की तरह ऄप्रभाहित रहता है। कहिता के ईपादानं से न तो

कहि प्रभाहित होता है, न ही कहि व्यह‍ त त्ि का कोइ ऄंश ही कहिता मं होता है। आहियट ने कहिता के मायािी

हन्द्रजाहिक प्रभा-मण्डि को तोड़ने के हिए सायास िैज्ञाहनक सादृश्य का सहारा हिया। ईन्हंने कहि व्यह‍ त त्ि को

ईत्प्रेरक माध्यम कहा तो हसफष ईसकी हनहष्ियता प्रमाहणत करने के हिए।

‘व्यह‍ त त्ि’ और ‘माध्यम’ शब्ददं से ही िैयह‍ त क और हनिैयह‍ त क कहिता का ऄन्तर स्‍तपि है। हजस तरह सृहि का कताष इश् िर है, क्रकन्तु िह क्रदखाइ नहं देता, ईसी तरह कहि कहिता की रचना ऄिश्य करता है क्रकन्तु िह पूरी रचना मं

ऄन्तधाषन बना रहता है। कहि मं ऄपनी सृहि मं हििुप् त होने की योग्यता और क्षमता होनी चाहहए ‍यंक्रक “िस्‍ततुतः िह हसा पटरष्कृत पूणष माध्यम होता है हजसमं हिशेष ऄथिा ऄत्यन्त िैहिध्यपूणष भािनाओं को नए संयोगं मं ढिने की

स्‍तितन्रता होती है।”

आस सन्दभष मं आहियट का तीसरा तकष है : भोक्ता मनुष्य है और रचता मन है और आन दोनं मं हजतना ऄन्तर होगा कहि

या किाकार ईतना ही महान होगा। किाकार हजतना हसद्धस्‍तत होगा ईतना ही ईसमं भोक्ता मानि और स्रिा मन परस्‍तपर पृथक रहंगे और ईतनी ही शुद्ध रीहत से मन ऄपने ईपादान रूप िासनाओं को अत्मसात और रूपान्तटरत करेगा।

यहाँ ऄनुभि और सृजन मं ऄन्तर क्रकया गया है। यह ऄन्तर ही कहि की महानता का अधार होता है। प्रत्यक्षानुभूहत और रसानुभूहत मं जो ऄन्तर होता है ईसी ऄन्तर को आस हसद्धान्त मं आहियट ने प्रकारान्तर से स्‍तपि क्रकया है। भोगने और रचने

मं हनहहत क्षमता का स्‍ततर एक जैसा नहं होता। पन्त ने हिखा है – “ऄपने मधु मं हिपटा भ्रमर/नहं कर सकता गुंजन।”

स्‍तियं आहियट ने िि सांग ऑफ़ ऄकफ्रेेड प्रूफाक मं हिखा है क्रक “हंठ तभी गुनगुनाते हं, जब चूम नहं पाते।” मधुपान और गुंजन, गुनगुनाना और चूमना, भोगना और रचना दो हभन् न क्रियाएँ हं। यह ऄन्तर न हो या कम हो तो कहिता या किा

कच्चा माि या ऄपटरपक्वािस्‍तथा होगी। हसी रचनाएँ प्रकृतिादी हंगी ऄथाषत् हनतान्त ऄनुकृहत। ईसमं रचनाकार के

ऄनुभिं का पटरष्कार नहं हो सकता। दोनं का ऄन्तर रचनाकार को पटरष्कृत-पटरपक्व बनाता है, सजषनात्मक बनाता है।

आहियट ने हिखा है क्रक “महत्त्ि भािं, घटक तत्त्िं की महानता या तीव्रता का नहं बहकक किात्मक प्रक्रिया की तीव्रता

का है हजसके कारण ये तत्त्ि घुिहमि कर एकात्म हो जाते हं। भाि के रूपान्तरण मं महान िैहिध्य सम्भि होता है।”

अशय यह है क्रक महान या तीव्र ऄनुभूहतयं ऄथिा भािं के ईद्रेक से कहिता नहं होती बहकक ये घटक तत्त्ि हजस प्रक्रिया

के द्वारा एकात्म होते हं, ईस प्रक्रिया की प्रभािशीिता कहिता को महान बनाती है। किात्मक प्रक्रिया की तीव्रता या

दबाि महत्त्िपूणष है, िही हनणाषयक होता है, स्‍तियं घटक तत्त्िं की तीव्रता या महानता महत्त्िपूणष नहं है। ईदाहरण के

हिए भिभूहत की महानता मानिीय करुणा के चुनाि मं नहं बहकक ईस चुनाि को किात्मक प्रक्रिया से गुजर कर ऄहभव्यह‍ त देने मं हं। ईसी से यह पुि होता है क्रक भोक्ता मानि और रचहयता मानस परस्‍तपर सम्बद्ध होते हुए भी पृथक हं। रोमैहण्टक कहिताएँ आसहिए महान नहं हुइ क्रक िहाँ भोक्ता मानि एिं रचना मानस हमि कर एक हो गए हं।

आहियट ने कहिता को हनिैयह‍ त क कहकर ईसे कहि से पूणषतः ऄिग कर क्रदया तथा कहिता को शुद्ध मनोरंजन की दृहि से

देखा – “कहिता ईच् च कोटट का मनोरंजन है, आसको मनोरंजन कहने का मतिब यह नहं है क्रक... हम आसकी कोइ नइ पटरभाषा दे रहं हं... आसके ऄहतटरक्त और कुछ कहंगे तो और बड़ा झूठ होगा।” कहिता को ईच् च कोटट का मनोरंजन मानकर आहियट ने साहहत्य को तमाम सामाहजक हजम्मेदाटरयं से मुक्त रखा और कहिता की शुद्धता पर बि क्रदया।

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HND : हहन्दी P15 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र

M19 : टी.एस. आहियट का काव्य हसद्धान्त

4. िस्‍ततुपरक सापेक्षता का हसद्धान्त

हनिैयह‍ त कता से सम्बहन्धत आहियट का एक ऄन्य हसद्धान्त है, ‘िस्‍ततुपरक सापेक्षता’। पाठक और कहिता का सम्बन्ध

‘िस्‍ततुपरक सादृश्य’ के द्वारा हनरूहपत होता है। ईसके हिषय मं आहियट का मत है क्रक “यक्रद क्रकसी भाि को किा के रूप मं

व्यक्त करना है तो िह है एक हसे सम्बद्ध िस्‍ततुगत तथ्य की खोज हजसके द्वारा दूसरे व्यह‍ त िैसे ही भाि ऄपने मन मं

ऄनुभि कर सकं। दूसरे शब्ददं मं, िस्‍ततुओं का एकीकरण, एकहस्‍तथहत, घटनाओं की शृंखिा का एक समीकरण के रूप मं हजि

होना चाहहए हजससे क्रक िही भाि तुरन्त ईद्बुद्ध हो जाएँ जो कहि का भी ऄपना है।”

ऄंग्रेज अिोचक फ्रेंक करमोड ने रोमैहण्टक आमेज नामक पुस्‍ततक मं िस्‍ततुपरक सादृश्य को कहि मन की ऄहभव्यह‍ त का

साधन कहा है और एजरा पाईण्ड ने ईसकी तुिना ऄंकगहणत के समीकरण से की है जो ऄमूर्त्ष भािं का मूर्मतकरण करते

हं। ईसी से कहिता मं हचरात्मक-हबम्ब हनर्ममत होता है और ऄमूर्त्षन की जगह िस्‍ततुपरकता िेती है। हेमिेट एण्ड हहज प्राब्दिम्स हनबन्ध मं आहियट ने हेमिेट नाटक को एक ऄसफि कृहत कहा ‍यंक्रक ईसमं शे‍सहपयर हेमिेट-नायक के

मनोहिज्ञान को व्यक्त करने मं ईपयुक्त िस्‍ततुपरक सादृश्य का चुनाि नहं क्रकया है। अचायष शु‍ि भी स्‍तिीकार करते हं क्रक

“कहिता मं हिभािन व्यापार होता है।” आसे हबम्ब हिधान भी कहा जा सकता है ‍यंक्रक कहिता मं काम ऄथष ग्रहण से नहं

चिता, हबम्ब हिधान जरुरी है। अशय क्रक काव्यभाषा हचरात्मक होनी चाहहए। ऄमूर्त्ष और ऄप्रत्यक्ष का प्रत्यक्षीकरण है,

िस्‍ततुपरक सादृश्य ‍यंक्रक जो ऄमूर्त्ष और ऄप्रत्यक्ष है िह पाठक के बोध का हिषय नहं हो सकता और जो बोध का हिषय नहं है, ईसका साधारणीकरण भी नहं हो सकता। आसहिए आहियट बि देकर कहते हं, ''जब हम कहिता पर हिचार करते हं तो सबसे पहिे ईस पर कहिता के रूप मं हिचार करना चाहहए, न क्रक क्रकसी ऄन्य रूप मं।''

आस प्रकार आहियट ने अिोचना के नाम पर फैिे गदिश्रु भािुकतापूणष रोमैहण्टक ईद्गारं और िक्तव्यं का हिरोध करते

हुए कहिता की अिोचना मं िैयह‍ त कता के स्‍तथान पर िस्‍ततुपरकता पर जोर क्रदया। साथ ही ऄपने पूिष समीक्षा के सभी

हसद्धान्तं की समीक्षा की और हजस नइ पद्धहत को सामने रखा ईसे ‘न्यू क्रिटटहसज्म’ के नाम से जाना जाता है। आस तरह ईन्हंने साहहत्य-सृजन और ईसके अस्‍तिाद-हिश् िेषण की िैज्ञाहनक समीक्षा-पद्धहत का सूरपात क्रकया।

5.

हनष्कषष

संक्षेप मं, बीसिं सदी की साहहहत्यक अिोचना मं आहियट ने साहहहत्यक समीक्षा के महत्त्िपूणष हसद्धान्तं का प्रणयन क्रकया। परम्परा पर अधुहनक दृहिकोण से हिचार करते हुए ईसने परम्परा को सिषथा त्याज्य नहं बताया। रचना मं

हनिैयह‍ त कता का समािेश कर ईसे गिदश्रु भािुकता ि अत्माहभव्यह‍ त के हचरण से परे हटाया, हजससे किाकृहत एक कहि से आतर महान स्‍तिरुप हनर्ममत हो सके।

References