• No results found

HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

N/A
N/A
Protected

Academic year: 2023

Share "HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा "

Copied!
9
0
0

Loading.... (view fulltext now)

Full text

(1)

HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

हिषय हहन्दी

प्रश् नपत्र सं किं शीषवक . P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास आकाइ सं किं शीषवक . M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

आकाइ टैग HND_P1_M3

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश् नपत्र संयोजक - डॉ. हममता चतुिेदी

आकाइ कखखक - डॉ. ओमप्रकाश सिसह आकाइ-समीक्षक प्रो. हररमोहन शमाव भाषा-सम्पादक प्रो. दखिशंकर निीन

पाठ का प्रारूप

1. पाठ का ईद्दखश्य 2. प्रमतािना

3. ईपदखशमूकक रासो ग्रन्थ

4. शृंगारमूकक रासो ग्रन्थ

5. िीररसात्मक रासो ग्रन्थ

6. हनष्कषव

(2)

HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

1. पाठ का ईद्दखश्य

आस पाठ कख ऄध्ययन कख ईपरान्त अप –

 हहन्दी कख अददकाकीन साहहत्य का पररचय प्राप् त कर सकंगख।

 रास, रासक या रासो कख मिरूप सख पररहचत हो सकंगख।

 प्रमुख रासो ग्रन्थं सख पररहचत हो सकंगख।

 रासो ग्रन्थं की हिशखषताकँ समझ सकंगख।

2. प्रमतािना

हहन्दी साहहत्य का अरहम्भक काक 'अददकाक' कख नाम सख जाना जाता है। साहहत्य कख ऄकग-ऄकग काकं मं ऄकग-ऄकग काव्य परम्पराकँ हिकहसत होती रहती हं। अददकाक भी आसका ऄपिाद नहं है। आस काकखण्ड मं ऄनखक साहहहत्यक परम्पराकँ हिकहसत हुईं, पर जो काव्य परम्परा हिशखष रूप सख चर्चचत हुइ, ईसख रासो काव्यधारा कख नाम सख जाना जाता

है। अचायव रामचन्र शुक्क नख रासो काव्य परम्परा कख कारण आस काक को िीरगाथा काक कख नाम सख भी ऄहभहहत दकया।

'रासो' शब्द का िामतहिक ऄथव क्या है, आसकख सम्बन्ध मं हिद्वानं मं मतभखद है। यह मतभखद नया नहं पुराना है। दकसी नख 'रासो' शब्द की ईत्पहि राजसूय सख मानी है, तो दकसी नख रसायन, रहमय, राजयश, रासक, रास अदद शब्दं सख। ऐसा

कगता है दक 'रासो' का सम्बन्ध 'रास' शब्द सख है। रास रचानख दक दिया का िणवन हमं श्रीमद्भागित सख ही हमकनख कगता

है। रास मं नृत्य और गीत प्रधान होतख हं। 'रासो' कक परम्परागत काव्य रूप है। ऐसा काव्यरूप हजसका सम्बन्ध नृत्य और गीत सख रहा है। आस परम्परा का हिकास संमकृत या ऄन्य दकसी परम्परा सख न होकर ऄपभ्रंश की परम्परा मं हुअ है।

अददकाकीन साहहत्य मं रासो ग्रन्थं की परम्परा दो रूपं मं हिकहसत हुइ है – 1. नृत्य-गीतपरक धारा

2. छन्द िैहिध्यपरक धारा

आन धाराओं मं ऄनखक रासो ग्रन्थ हकखख गक हं। रासो ग्रन्थं की परम्परा जैन कहियं सख हमकनख कगती है। आस धारा कख कहियं नख पयावप् त मात्रा मं रासो ग्रन्थं की रचना की। आसी कख साथ-साथ जैनखतर कहियं कख भी ऄनखक रासो ग्रन्थ हिशखष महत्त्िपूणव हं। काव्य हिषय की दृहि सख रासो ग्रन्थं को तीन िगं मं हिभक्त दकया जा सकता है –

1. ईपदखशमूकक रासो ग्रन्थ 2. शृंगारमूकक रासो ग्रन्थ 3. िीररसात्मक रासो ग्रन्थ

रासो ग्रन्थं की परम्परा कख ऄध्ययन कख हकक यही तीनं िगव सिावहधक ईपयोगी हं।

3. ईपदखशमूकक रासो ग्रन्थ

रासो काव्य मं पयावप् त संख् या मं ऐसख ग्रन्थं का सृजन हुअ है, जो धार्चमक भािनाओं सख ओत-प्रोत हं। आन ग्रन्थं मं

धमंपदखश की प्रधानता है। यख ग्रन्थ ऄहधकांशत: जैन कहियं द्वारा हकखख गक हं। आस परम्परा कख प्रमुख ग्रन्थ हनम् नहकहखत हं –

(3)

HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

3.1. ईपदखश रसायन

नृत्य-गीतपरक रास परम्परा की सबसख प्राचीन रचना ईपदखश रसायन है। आस ग्रन्थ कख रचहयता श्री हजनदि सूरर हं। आस रचना मं रचनाकाक का ईल्कखख नहं है, पर हजनदि सूरर की कक ऄन्य रचना संित् 1200 हि. कख असपास की है। आसी

अधार पर कुछ हिद्वानं नख आसका रचनाकाक भी संित् 1200 हि. कख असपास हनहश् च त दकया है। ईपदखश रसायन की

रचना ऄपभ्रंश भाषा मं हुइ है और आसमं काव्य तत्त्ि का हनतान्त ऄभाि है। आस रचना मं प्रयुक्त छन्द चईपइ है तथा

आसका हिषय धमोपदखश और धमव की मार्चमक हििखचना है। यह रचना बिीस छन्दं मं समाप् त हुइ है। यद्यहप आस ग्रन्थ मं

रास या रासो नाम का ईल्कखख नहं हुअ है, पर आसकख टीकाकार हजनपाक ईपाध्याय नख आसख रासक माना है।

3.2. बुहिरास

बुहिरास की रचना शाहकभर सूरर नख की है। आस ग्रन्थ मं भी रचनाकाक का ईल्कखख नहं है। ऄनुमान कख अधार पर कहा

जाता है दक आसकी रचना संित् 1241 हि. कख कगभग हुइ होगी। दरऄसक आसी कहि की कक रचना भरतखश् िर बाहुबकी

रास है। आस रचना का प्रणयन संित् 1241 हि. मं हुअ था। आसी अधार पर बुहिरास को भी ईसी कख असपास की

रचना मानतख हं। ईपदखश रसायन की भाँहत बुहिरास का हिषय भी धमोपदखश है। यह रचना 63 छन्दं मं समाप् त हुइ है।

भूकख हुक कोगं को धमव की हशक्षा दखना आस ग्रन्थ का मूक ईद्दखश्य है।

3.3. जीिदयारास

जीिदयारास की रचना अगसु कहि नख संित् 1257 हि. मं की थी। आस रचना कख नाम सख ही मपि है दक आसमं जीिं पर दया करनख का ईपदखश ददया गया है। माताप्रसाद गुप् त नख आस ग्रन्थ को दया-धमोपदखश कहा है। ईपदखश तत्त्ि की प्रधानता

होनख कख कारण आस ग्रन्थ मं काव्य-तत्त्ि का ऄभाि है।

3.4. चन्दनबाका रास

चन्दनबाका रास की रचना भी अगसु कहि नख की है। आस रचना मं भी रचना काक का ईल्कखख नहं है। अगसु कहि की

ही रचना जीिदया रास है और आसका प्रणयन सं. 1257 हि. मं हुअ था। आसी अधार पर यह ऄनुमान कगाया जाता है

दक चन्दनबाका रास की रचना भी संित् 1257 हि. कख असपास हुइ होगी। आस रचना मं कुक 35 छन्द हं। आसकी रचना

जाकौर मं हुइ थी। चन्दनबाका की धार्चमक कथा का प्रचार-प्रसार करना आस रचना का मूक प्रहतपाद्य है। आस ग्रन्थ मं

दोहा तथा चईपइ छन्द का प्रयोग दकया गया है।

3.5. रंितहगरर रासु

रंितहगरर रासु की रचना श्री हिजयसखन सूरर नख की है। आस ग्रन्थ का रचनाकाक सं. 1288 हि. है। रंितहगरर रासु मं

हगरनार कख जैन महन्दरं कख जीणोद्वार की कथा कही गइ है। यह ग्रन्थ 72 छन्दं मं समाप् त हुअ है और आसकी रचना

सौराष्ट्र मं हुइ है।

(4)

HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

3.6. सप् तक्षखहत्र रासु

सप् तक्षखहत्र रासु कख रचनाकार का नाम ऄब तक ऄज्ञात है। यह माना जाता है दक आस ग्रन्थ की रचना संित् 1327 हि. कख असपास हुइ थी। आस ग्रन्थ मं कुक 119 छन्द हं। ग्रन्थ का प्रहतपाद्य हिषय है – जैन धमव कख सप् त क्षखत्रं – हजन महन्दर, हजन प्रहतमा, ज्ञान, साध्िी, साधु, श्रािक और श्राहिका की ईपासना का िणवन।

3.7. कच्छूहक रास

कच्छूहक रास कख रचनाकार का नाम भी ऄज्ञात है। आस ग्रन्थ का प्रणयन संित् 1363 हि. मं हुअ है। आस ग्रन्थ का ईद्दखश्य भी धार्चमक है। कक जैन तीथव मथक कच्छूहक ग्राम कख नाम सख मशहूर है। आस तीथव मथान का िणवन करना रचना का मूक ईद्दखश्य है। आस ग्रन्थ मं कुक 35 छन्द हं।

ईपदखशमूकक रासो ग्रन्थं की संख्या काफी ऄहधक है। यहाँ सभी ग्रन्थं पर बात कर पाना न तो सम्भि है और न ही

प्रासंहगक। यहाँ कुछ खास ईपदखशमूकक रासो ग्रन्थं की ही चचाव हुइ है। आन ग्रन्थं कख हिश् कखषण सख जाहहर है दक आस कोरट की रासो रचनाओं मं काव्य गुण का ऄभाि है। आन रचनाओं कख माध्यम सख ऄहधकतर जैन धमव कख हसिान्तं का प्रहतपादन हुअ है। मपितः साहहहत्यक दृहि सख आन रचनाओं का हिशखष महत्त्ि नहं है।

4. शृंगारमूकक रासो ग्रन्थ

शृंगारमूकक रासो ग्रन्थं की श्रखणी मं अनख िाकी रचनाकँ शृंगार रस सख पररपूणव हं। नायक और नाहयका कख सौन्दयव का

िणवन करतख हुक हिरह की हमथहतयं का हिमतृत िणवन करना ऐसी रचनाओं का मूक ईद्दखश्य है। कुछ महत्त्िपूणव शृंगारमूकक रासो ग्रन्थं का संहक्षप् त पररचय यहाँ ददया जा रहा है –

4.1.

सन्दखश रासक

सन्दखश रासक की रचना हतहथ ज्ञात नहं है। यह हनहश् च त है दक सन्दखश रासक ग्यारहिं शताब्दी की रचना है और आसकख रचनाकार ऄद्दहमाण (ऄब्दुरवहमान) हं। ऄब्दुरवहमान म्कखच्छ दखश कख रहनख िाकख थख। आनकख हपता का नाम मीरहुसखन था।

सन्दखश रासक की रचना 223 छन्दं मं हुइ है। आसमं 22 प्रकार कख छन्द व्यिह्रत हुक हं। आस ग्रन्थ का हिषय हिप्रकम्भ शृंगार है हजसका ऄन्त हमकन मं होता है। हिजयनगर (जैसकमखर) की कक हिरहहणी नाहयका ऄपनख परदखशी पहत कख पास सन्दखश भखजना चाहती है। ईसख कक पहथक अता हुअ ददखाइ दखता है। ईस पहथक को रोककर िह ऄपनख पहत कख हकक सन्दखश दखती है। सन्दखश का हसकहसका आतना कम्बा है दक िह समाप् त ही नहं होता। ज्ययंही पहथक चकनख कख हकक ईद्यत होता है, िह कुछ कहनख कगती है। आसी िम मं कहि नख षट्ऊतु िणवन दकया गया है। षट्ऊतु िणवन समाप् त होतख ही पहथक चक पड़ता है और ईसी समय हिरहहणी को पहत अता हुअ ददखाइ पड़ता है। सन्दखश रासक मं हियोग शृंगार का सुन्दर

िणवन हुअ है।

4.2. मुंजरास

हसि हखम, प्रबन्ध हचन्तामहण, पुरातन प्रबन्ध संग्रह अदद ग्रन्थं मं ददक गक हिाकख सख यह साहबत होता है दक आन रचनाओं सख पूिव मुंजराज कख चररत्र को कखकर ऄपभ्रंश मं कोइ काव्य हकखा गया था। यह ऄनुमान दकया गया है दक आस काव्य का नाम मुंजरास या मुंजरासक रहा होगा। ऄब तक आस ग्रन्थ की कोइ प्रहत प्राप् त नहं हुइ है।

(5)

HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

मुंजरास का रचनाकाक सं. 1031 सख 1052 हि. कख बीच माना जाता है।

कनावटक कख राजा तैकप सख मुंज की घोर दुश्मनी थी। तैकप की ताकत का पता कगाक हबना जल्दबाजी मं मुंज नख ईस पर अिमण कर ददया। मुंज पराहजत हुअ। िह बन्दी बना हकया गया। ईसी बन्दीगृह मं तैकप की हिधिा बहहन मृणाकिती

भी कैदी थी। मुंज को ईससख प्रखम हो गया। मुंज नख बन्दीगृह सख भागनख की योजना बनाइ और मृणाकिती को ऄपनख साथ कख जाना चाहा। मृणाकिती भागना नहं चाहती थी और यह भी नहं चाहती थी दक ईसख मुंज सख ऄकग होना पड़ख। ईसनख आस योजना की जानकारी तैकप को दख दी। मुंज की योजना सफक नहं हुइ। तैकप नख ईसका घोर ऄपमान दकया और ईसख हाथी कख पैरं तकख कुचकिा ददया।

4.3. बीसकदखि रास

बीसकदखि रास मुख्यतः हिरह काव्य है। आसकख रचहयता नरपहत नाल्ह हं। आसका रचनाकाक हििाद का हिषय रहा है।

रचनाकार नख सं. 1212 हि. मं आस ग्रन्थ कख प्रणयन का संकखत दकया है। ईसनख हकखा है – बारह सै बहोिरां मझारर। जखठ बदी निमी बुधिारर।

‘नाल्ह’ रसायण अरम्भहह। सारदा तूठी ब्रह्मकुमारी।

अचायव रामचन्र शुक्क नख आस ग्रन्थ की रचना हतहथ सं. 1212 को सही ठहराया है, पर कथ्य की प्रामाहणकता और काकखण्ड पर सन्दखह व्यक्त दकया है। बीसकदखि रास की रचना कगभग सिा सौ छन्दं मं हुइ है। आस काव्य मं ऄजमखर कख चहुअन नरखश बीसकदखि (हिग्रहराज चतुथव ) कख परदखश जानख और ईसकी रानी राजमती कख हियोग और सन्दखश भखजनख तथा

बीसकदखि कख िापस कौटनख की कथा कही गइ है। यह कथा चार खण्डं मं हिभाहजत है – 1. माकिा कख भोज परमार की पुत्री राजमती का साम्भर नरखश बीसकदखि सख हििाह।

2. राजमती सख रूठकर बीसकदखि का ईड़ीसा जाना और िहाँ कक साक तक रहना।

3. राजमती का हिरह िणवन और बीसकदखि का ईड़ीसा सख कौटना।

4. भोज का ऄपनी पुत्री को माकिा काना तथा बीसकदखि द्वारा िहाँ जाकर राजमती को ऄपनख घर कख अना।

बीसकदखि कख प्रिास कख समय कहि नख रानी की हिरह व्यथा का बड़ा ही सुन्दर और हचिाकषवक िणवन दकया है। आस रचना

मं प्रारम्भ सख ऄन्त तक कक ही छन्द का प्रयोग हुअ है। सम्पूणव रचना गखय है।

4.4.

बुहि रासो

बुहि रासो कख रचहयता कहि जल्ह हं। कुछ हिद्वानं का ऄनुमान है दक कहि जल्ह चन्दबरदाइ का बखटा जल्हण है, हजसख पृथ्िीराज रासो की रचना का भार संपकर चन्द गोर दखश चका गया था। बुहिरासो कख रचनाकाक कख बारख मं प्रामाहणक तौर पर कुछ नहं कहा जा सकता। ऄब तक यह ग्रन्थ ऄप्रकाहशत है। आसकख ऄध्यखताओं नख जो कुछ हकखा है, ईसी कख अधार पर आस ग्रन्थ पर प्रकाश डाका जा सकता है। माताप्रसाद गुप् त कख ऄनुसार यह रचना 140 छन्दं मं समाप् त हुइ है

और आसमं दोहा, छप्पय, गाहा, पिहड़या, मुहडल्क अदद छन्द व्यिहृत हुक हं। यह कक प्रखमकथा है। चम्पािती नगरी का

राजकुमार राजधानी सख अकर कुछ ददनं कख हकक जकहधतरंहगनी कख साथ समुर कख दकनारख दकसी मथान पर रहता है। कुछ समय बाद कक मास मं कौटनख का िचन दखकर िह कहं चका जाता है। ऄिहध कख बाद भी कइ मास बीत जातख हं, दकन्तु

िह कौटता नहं, तब हिरहणी जकहधतरंहगनी जीिन सख हिरक्त हो जाती है और ऄपनख अभूषण अदद ईतार फंकती है।

(6)

HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

आस पर ईसकी माँ ईसकख समक्ष संसार कख हिकास-िैभि तथा शारीररक

सुखं की महिा का प्रहतपादन करनख कगती है। आतनख ही मं राजकुमार िापस अ पहुँचता है और दोनं का पुनर्चमकन हो

जाता है, हजसकख ऄनन्तर दोनं अनन्द और ईत्साह कख साथ जीिन व्यतीत करनख कगतख हं।

आन सभी रासो ग्रन्थं मं शृंगार (हिशखष रूप सख हियोग शृंगार) का सुन्दर िणवन हुअ है। काव्य की दृहि सख सन्दखशरासक और बीसकदखि रास को छोड़कर ऄन्य दकसी ग्रन्थ का कोइ हिशखष महत्त्ि नहं है।

5. िीररसात्मक रासो ग्रन्थ

रासो परम्परा कख ऄन्तगवत ऐसख भी रासो ग्रन्थं का प्रणयन हुअ है जो िीरता, शौयव और ओज सख पररपूणव हं। प्रमुख

िीररसात्मक रासो ग्रन्थं का संहक्षप् त पररचय नीचख ददया जा रहा है –

5.1. भरतखश् िर बाहुबकी रास

भरतखश् िर बाहुबकी रास की रचना शाहकभर सूरर नख सं. 1241 हि. मं की है। आसमं ऄयोध्या कख राज ऊषभदखि कख दो पुत्रं

भरतखश् िर और बाहुबकी कख बीच राज्यय कख हकक हुक संघषव की कथा है। भरतखश् िर राजा होकर ऄश् िमखध यज्ञ करता है, परन्तु बाहुबकी ईसकी ऄधीनता ऄमिीकार कर दखता है। दोनं भाआयं मं तखरह ददनं तक भयंकर युि हुअ। युि कख माध्यम सख कहि नख सैन्य-िणवन तथा युि िणवन पूरख मनोयोग सख दकया है। आसकी कथा 203 छन्दं मं समाप् त हुइ है। यह रचना गखय है।

5.2. पृथ्िीराज रासो

पृथ्िीराज रासो की रचना कहि चन्दबरदाइ नख की है। यह हहन्दी का प्रथम महाकाव्य है। माना जाता है दक ददल्की नरखश पृथ्िीराज और चन्दबरदाइ समकाकीन थख। कहा तो यह जाता है दक यख दोनं कक ही ददन पैदा हुक थख। जो भी हो, ऐसा

कगता है दक दोनं बाक सखा थख। पृथ्िीराज रासो कक हिशाक ग्रन्थ है। आसकख कइ संमकरण प्रकाहशत हं। पृथ्िीराज रासो

कख मूक अकार-प्रकार को कखकर हिद्वानं मं मतभखद है। काशी नागरी प्रचाररणी सभा द्वारा प्रकाहसत पृथ्िीराज रासो की

कथा 69 समयं (सगं) मं हिभक्त है। दो खण्डं कख आस ग्रन्थ मं कगभग 2400 पृष्ठ हं। माताप्रसाद गुप् त नख पृथ्िीराज रासई का सम्पादन कखिक बारह सगं मं दकया है। आसी तरह पृथ्िीराजरासो का संहक्षप् त संमकरण भी अचायव हजारीप्रसाद हद्विखदी और नामिर सिसह नख तैयार दकया है और कहा है दक मूक ग्रन्थ यही है। दरऄसक, पृथ्िीराज रासो

कक हिकसनशीक महाकाव्य है हजसका कखखन ऄकग-ऄकग काकं मं ऄकग-ऄकग व्यहक्तयं द्वारा हुअ है।

रासो काव्यधारा मं पृथ्िीराज रासो प्रकाश मतम्भ की भाँहत है। आसका कथानक राजपूत नरखशं और सामन्तं की िीरता, शौयव सम्पन् न हिजयं और परािमपूणव गौरिगाथा सख ऄनुमयूत है। पृथ्िीराज रासो कख नायक हहन्दू सम्राट पृथ्िीराज चौहान हं। कहि नख आस रचना मं पृथ्िीराज चौहान कख हििाह, हिजय, युिं और अखखट िणवनं का बड़ा ही सुन्दर हचत्र खंचा है। आस ग्रन्थ मं िीर और शृंगार रस का ऄद्भुत समन्िय हुअ है।

पृथ्िीराज रासो कख यृि िणवन, सखना िणवन और अखखट िणवन मं िीर रस की प्रधानता है और पृथ्िीराज कख हििाहं कख

िणवन मं शृंगार रस की प्रधानता है। पृथ्िीराज और संयोहगता कख प्रखमिणवन तथा हििाह िणवन मं कहि का मन खूब रमा

(7)

HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

है। भारत कख महान िीर, ऄदम्य ईत्साही और यशमिी सम्राट पृथ्िीराज

कख यश का गान आस कृहत का मूक ईद्दखश्य है। रासो काव्य परम्परा का यह सिवश्रखष्ठ और महत्त्िपूणव काव्य है।

आस ग्रन्थ की प्रामाहणकता, ऐहतहाहसकता, भाषा अदद ऄनखक पक्षं पर हिचार करतख हुक अचायव रामचन्र शुक्क नख हकखा

है – “भाषा की कसौटी पर यदद ग्रन्थ को कसतख हं, तो और भी हनराश होना पड़ता है, क्यंदक िह हबककुक बखरठकानख है – ईसमं व्याकरण अदद की कोइ व्यिमथा नहं है। दोहं की और कुछ-कुछ कहििं (छप्पयं) की भाषा तो रठकानख की है, पर त्रोटक अदद छोटख छन्दं मं तो कहं-कहं ऄनुमिारान्त शब्दं की ऐसी मनमानी भरमार है, जैसख दक संमकृत, प्राकृत दक नकक की हो। कहं कहं तो भाषा अधुहनक साँचख मं ढकी-सी ददखाइ पड़ती है, दियाकँ नक रूपं मं हमकती हं, पर साथ ही कहं कहं भाषा ऄपनख ऄसकी प्राचीन साहहहत्यक रूप मं भी पाइ जाती है, हजसमं प्राकृत और ऄपभ्रंश शब्दं कख साथ- साथ शब्दं कख रूपं और हिभहक्तयं कख हचह्न पुरानख ढंग कख हं। आस दशा मं भाटं कख आस िाग्जाक कख बीच कहाँ पर दकतना

ऄंश ऄसकी है, आसका हनणवय ऄसम्भि होनख कख कारण, यह ग्रन्थ न तो भाषा कख आहतहास कख और न साहहत्य कख हजज्ञासुओं

कख काम का है।” (हहन्दी साहहत्य का आहतहास, पृ. 31)

5.3. हिजयपाक रासो

हिजयपाक रासो की रचना संित् 1607 हि. कख असपास नल्ह सिसह भाट द्वारा हुइ। नल्ह सिसह भाट का प्रामाहणक जीिनिृि ईपकब्ध नहं हं। हिजयपाक रासो मं कहा गया है दक आसका कखखक हिजयगढ़ (करौकी) कख यदुिंशी शासक का

दरबारी था। यदद आस कथन को सत्य मानं तो हिजयपाक रासो का रचनाकाक सं. 1100 हि. कख असपास का ठहरखगा, जो ककदम ऄसम्भि है। रचना मं ईहल्कहखत तमाम िमतुओं सख यह साहबत हो जाता है दक आस ग्रन्थ का प्रणयन सं.

1600 हि कख असपास हुअ है। आस कृहत मं हिजयपाक की ददहग्िजय का काव्यमय िणवन हुअ है। रचना मं िीर रस की

प्रधानता है। ऄब तक आस कृहत कख 42 छन्द ही प्राप् त हो सकख हं।

5.4. परमाक रासो

परमाक रासो कक हििादामपद कृहत है। आसका मूक रूप क्या है, अज तक ऄज्ञात है। सं. 1976 हि. मं काशी नागरी

प्रचाररणी सभा सख परमाक रासो का प्रकाशन हुअ है। आसकख सम्पादक बाबू श्यामसुन्दर दास हं। श्यामसुन्दर दास नख हजन हमतहकहखत प्रहतयं कख अधार पर आसका सम्पादन दकया है, ईनकख नाम महोबा खण्ड (सन् 1868) तथा पृथ्िीराज रासो (सन् 1792) है। आस कृहत मं पृथ्िीराज चौहान तथा परमार्दददखि ‘परमाक’ कख बीच हुक युि का िणवन है। िैसख आस कृहत कख बारख मं आसकख सम्पादक का मत गौरतकब है। आसी सख रचना पर सम्यक प्रकाश पड़ जाता है। श्यामसुन्दरदास नख परमाक रासो की भूहमका मं हकखा है – ‘‘हजन प्रहतयं कख अधार पर यह संमकरण सम्पाददत हुअ है, ईनमं यह नाम नहं

है, ईनमं आसको चन्द कृत पृथ्िीराज रासो का महोबा खण्ड हकखा हुअ है,० दकन्तु िामति मं यह पृथ्िीराज रासो का

महोबा खण्ड नहं है िरन, ईसमं िर्चणत घटनाओं को कखकर मुख्यतः पृथ्िीराज रासो मं ददक हुक कक िणवन कख अधार पर हकखा हुअ मितन्त्र ग्रन्थ है। यद्यहप आस ग्रन्थ का नाम मूक प्रहतयं मं पृथ्िीराज रासो ददया हुअ है, पर आस नाम सख आसख प्रकाहशत करना कोगं को भ्रम मं डाकना होता है, ऄतकि मंनख आसख परमाक रासो यह नाम दखनख का साहस दकया है (प्रमुख

(8)

HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

हहन्दी कहि और काव्य, ओमप्रकाश सिसह, पृ. 53-54)।” सम्पादक कख आस

िक्तव्य सख ‘परमाक रासो’ की िामतहिकता मपि हो जाती है।

यह कृहत 36 खण्डं मं हिभाहजत है और महोबा कख दो िीरं अल्हा और उदक सख सम्बहन्धत प्रचहकत किकिदहन्तयं कख अधार पर हकखी गइ है। आस कृहत का न तो साहहहत्यक महत्त्ि है और न ही ऐहतहाहसक।

5.5. खुमाण रासो

खुमाण रासो कख रचहयता दकपहत हिजय हं। आसका रचनाकाक 17 िं शताब्दी माना जाता है। खुमाण रासो की कुछ प्रहतयाँ ऐसी हमकी हं हजनमं राणा संग्राम सिसह हद्वतीय तक का ईल्कखख है। संग्राम सिसह का शासनकाक (हि. 1767-90) माना जाता है। ऐसी दशा मं साफ जाहहर है दक यह रचना ऄठारहिं शताब्दी हि. कख ऄन्त की है। आस ग्रन्थ मं मखिाड़ कख सूयविंश की महिा का िणवन दकया गया है। कहि कहता है –

सूरहज बंस तणो सुजस िरणन करूँ हिगहि।

सूयविंशी सम्राटं की िीरता और हिजय का िणवन ही आस कृहत का ईद्दखश्य है।

5.6. शत्रुसाक रासो

छत्रसाक रासो कख रचहयता बूँदी कख राि डूंगरसी हं। ऐसा ऄनुमान दकया जाता है दक आस ग्रन्थ की रचना सं. 1710 कख असपास हुइ होगी। आस ग्रन्थ मं बूँदी नरखश छत्रसाक की िीरता, परािम और शौयव का िणवन दकया गया है। आसमं कुक 500 कख असपास छन्द हं। रचना िीर रस प्रधान है। कहा जाता है दक यह रचना पृथ्िीराज रासो कख ऄनुकरण पर हकखी

गइ है।

5.7. हम्मीर रासो

हहन्दी साहहत्य मं हम्मीर रासो नामक दो ग्रन्थं का ईल्कखख हमकता है। कक शारंगधर कृत और दूसरी जोधराज कृत।

यहाँ हम जोधराज कृत हम्मीर रासो की चचाव कर रहख हं। आस ग्रन्थ मं हम्मीर का िीर चररत्र हिमतार सख िर्चणत हुअ है।

आस ग्रन्थ मं िीर रस की प्रधानता है और ऄनखक ऄनैहतहाहसक तथ्यं का समािखश है। आसमं ईहल्कहखत है दक हम्मीर कख अत्मघात कख पश् चात ऄकाईद्दीन समुर मं कूदकर प्राण दख दखता है, यह आहतहास सम्मत नहं है। आस कृहत की छन्द संख्या

कगभग कक हजार है।

आन रासो ग्रन्थं कख ऄकािा कुछ ऄन्य रासो ग्रन्थ भी हं, जैसख – हगरधर चारण का सगत सिसह रासो (18िं शताब्दी हि.), सदानन्द का रासा भगित सिसह का (18िं शताब्दी हि.), श्रीधर का परीछत रायसा (19िं शताब्दी हि.) अदद।

6. हनष्कषव

आन रासो ग्रन्थं सख यह मपि है दक हहन्दी साहहत्य मं रासो ग्रन्थं की कक समृि परम्परा है। यह परम्परा अददकाक सख कखकर 19िं शताब्दी तक हिद्यमान थी। हहन्दी साहहत्य मं ईपदखशमूकक धार्चमक रासो काव्यं का महत्त्ि कम है पर

(9)

HND : हहन्दी P1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास M3 : रासो साहहत्य की परम्परा

शृंगारपरक और िीररसात्मक काव्यं का ऄहद्वतीय मथान है। रासो काव्य-

परम्परा मं पृथ्िीराज रासो सिवश्रखि रचना है। कहि नख िीर और शृंगार रस का जैसा मार्चमक िणवन आस ग्रन्थ मं दकया है, ऄन्यत्र दुकवभ है।

References