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HND : हिन्दी P3 : अधुहनक काव्य - 2 M1 : जनसंघर्ष और कहिता

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HND : हिन्दी P3 : अधुहनक काव्य - 2 M1 : जनसंघर्ष और कहिता

हिर्य हिन्दी

प्रश् नपत्र सं. एिं शीर्षक P3 : अधुहनक काव्य - 2 आकाइ सं. एिं शीर्षक M1 : जनसंघर्ष और कहिता

आकाइ टैग HND_P3_M1

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश् नपत्र-संयोजक डॉ. ओमप्रकाश सिसि

आकाइ-लेखक प्रो. रामबक्ष जाट आकाइ-समीक्षक

प्रो. मिेन्ापाल शमाष

भार्ा-सम्पादक

प्रो. देिशंकर निीन

आकाइ का प्रारूप 1. पाठ का ईद्देश्य 2. प्रस्तािना

3. क्राहन्त मं ऄटूट अस्था के कहि

4. िैचाररक अिेग 5. अक्रोश की ऄहभव्यहि

6. व्यिस्था पररितषन और व्यंग्य 7. हनष्कर्ष

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HND : हिन्दी P3 : अधुहनक काव्य - 2 M1 : जनसंघर्ष और कहिता

1. पाठ का ईद्देश्य

आस पाठ के ऄध्ययन के ईपरान्त अप–

 जन और जनसंघर्ष से कहिता का सम्बन्ध समझ सकंगे।

 जनकहि के रूप मं नागाजुषन की पिचान कर सकंगे।

 नागाजुषन को जनकहि बनाने िाली कहिता की हिशेर्ताएँ समझ सकंगे।

 व्यिस्था की कमजोररयं को ईजागर करने मं नागाजुषन की भूहमका समझ सकंगे।

2. प्रस्तािना

नागाजुषन प्रगहतशील साहित्य के सम्माहनत रचनाकार िं। िामपन्थी लेखकं और बुहिजीहियं के बीच नागाजुषन हजस सिजता से अज स्िीकार कर हलए जाते िं, हिरोधी लेखकं की दुहनया से ईतनी िी जल्दी बहिष्कृत कर ददए जाते िं। आस दृहि से िे शमशेर और यिाँ तक दक मुहिबोध से भी ऄलग िं।

नागाजुषन भारतीय साहित्य के सन्तं और भिं की परम्परा के कहि िं। सन्तं की तरि न ईन्िंने घर बसाया और न िी

व्यिहस्थत रूप से किं रिे। िमेशा आधर-ईधर भ्रमण करते रिे। ईन्िंने भाँहत-भाँहत के लोगं को हिहभन् न पररहस्थहतयं मं

देखा। िैचाररक धरातल पर ईन्िं मार्कसषिादी किा जाता िै। परन्तु मार्कसषिाद की पक्षधरता से पूिष िे ऄन्य मतं मं भी

दीहक्षत हुए थे। नागाजुषन की कहिता का केन्ा हबन्दु मनुष्य िै। मनुष्य की हनयहत मं पररितषन के िे अकांक्षी िं। पररितषन का एक िी रास्ता िै– क्राहन्त। िमारे देश मं क्राहन्त कब िोगी यि नागाजुषन की हचन्ता के मूल मं िै। आसके हलए िे जन संघर्ष को अिश्यक मानते िं। जनता ऄपनी िास्तहिक हस्थहत को समझे और ऄपने ऄहधकारं के हलए संघर्ष करे, यि

नागाजुषन की सतत हचन्ता िै।

3. क्राहन्त मं ऄटूट अस्था के कहि

नागाजुषन की कहिता के केन्ा मं जनक्राहन्त की ‘लौ’ जलती रिती िै। आस ‘लौ’ को जलाए रखने के हलए कहि को बहुत संघर्ष करना पड़ा िै। बड़ी मुहश्कल से ईन्िंने आस ‘लौ’ को बचाया िोगा। तेलंगाना के दकसान-अन्दोलन के समय कहि को

लगने लगा था दक ऄब तो बस क्राहन्त िोने िी िाली िै। ईसी समय के असपास की मनोदशा को प्रकट करती हुइ नागाजुषन की कहिता िै लाल भिानी ।

िोहशयार, कुछ देर निं िै लाल सिेरा अने मं, लाल भिानी प्रकट हुइ िै सुना दक तेलंगाने मं ! देश की अजादी पर भी आसी भाि-भूहम से कहि ने रटप्पणी की िै–

कागज की अजादी हमलती, ले लो दो-दो अने मं।

ऐसे ईत्साि और ईमंग मं जीते हुए कहि को ईस समय झटका लगा जब तेलंगाना का दकसान-अन्दोलन हिफल िो गया।

दफर ईस युग मं स्ताहलन की मृत्यु के बाद सोहियत संघ की राजनीहत मं अए बदलाि से सभी प्रगहतशील रचनाकारं के

सामने अस्था के संकट के रूप मं एक समस्या अइ। पिले स्ताहलन का गुणगान और मृत्यु के बाद ईनकी ईतनी िी हनन्दा।

दुहनया के कइ बड़े बुहिजीिी भी आस झटके को निं झेल पाए और क्राहन्तकारी परम्परा से खुद को ऄलग कर हलया।

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ईसके बाद भारतीय कम्युहनस्ट पाटी मं भी हिभाजन हुअ। बाद मं तो

और भी बड़े झटके प्रगहतशील कहियं एिं बुहिजीहियं को लगे। ज्ञान और हििेक की धहियाँ ईड़ाने िाली किप्रद घटनाएँ स्ियं मार्कसषिादी दुहनया मं हुईं। सबसे बड़ा झटका आस समझ ने ददया दक ऄब िमारे जीिन मं क्राहन्त निं िोगी–

बाद मं कभी भले िी िो। दफर भी नागाजुषन के मन मं क्राहन्तकारी अग की ‘लौ’ निं बुझी। िे िमेशा जनसंघर्ष के

क्राहन्तकारी ईभार के प्रहत अशाहन्ित रिे। िे कम्युहनस्ट पाटी के हिघटन जैसी घटना स से टूटे निं। िे हसिान्त पढ़कर जीिन जीने िाले निं थे, ईन्िंने जीिन को ऄपने ढंग से हजया, आसीहलए िे कम्युहनस्ट पार्टटयं तक की अलोचना करते

हुए किते िं–

प्रगहतशील पार्टटयं के दलपहत तक

िमसे ठकुर सुिाती चािते िं

ऄपनी नुिाचीनी सुनकर

िे ऄन्दर िी ऄन्दर बुरा मान जाते िं

नागाजुषन की प्रहतबिता दकसी पाटी के प्रहत निं, जनता के प्रहत िै। यिी कारण िै दक िे कम्युहनस्ट पार्टटयं के हिचलन की भी अलोचना करने मं निं हिचकते। नागाजुषन की अस्था िमेशा जनसंघर्ष मं और क्राहन्त के प्रहत आसीहलए बनी रिी

र्कयंदक िे जनता के प्रहत प्रहतबि थे–

प्रहतबि हूँ, जी िाँ प्रहतबि हूँ –

बहुजन समाज की ऄनुपल प्रगहत के हनहमत्त संकुहचत ‘स्ि’ की अपाधापी के हनर्ेधाथष...

ऄहििेकी भीड़ की ‘भेहड़या-धसान’ के हखलाफ...

ऄन्ध-बहधर ‘व्यहियं’ को सिी राि बतलाने के हलए...

ऄपने अपको भी ‘व्यामोि’ से बारम्बार ईबारने की खाहतर...

प्रहतबि हूँ, जी िाँ, शतदा प्रहतबि हूँ !

4. िैचाररक अिेग

यि सिी िै दक नागाजुषन दक कहिता स मं िैचाररक सन्तुलन का ऄभाि ददखाइ देता िै। ईनमं एक खास दकस्म की

‘अिेगधर्ममता’ हमलती िै, जो जनसंघर्ष की छोटी से छोटी घटना को भी ऄहतरंहजत करके देखती िै। ददनमान मं सुरेश शमाष ने सिाल ईठाया – ‘एक मार्कसषिादी कहि को ऐसे अिेग से किाँ तक हनयंहत्रत िोना चाहिए?’ कुछ अलोचक आसे

नागाजुषन का िैचाररक ऄन्तर्मिरोध किते िं और कुछ आसे ‘पॉपुलररज्म’ का एक रूप मानते िं। आस सिाल को मुहिबोध ि नागाजुषन की तुलना करते हुए भी ईठाया जाता िै। मुहिबोध ऄपने हिचारं मं संगत नैरन्तयष बनाए रखते िं, जबदक नागाजुषन का िर बार मोिभंग िोता िै। ऐसा र्कयं िै? र्कया नागाजुषन का ‘ज्ञानात्मक अधार’ कमजोर िै? या आसका कोइ और कारण भी िै? र्कया हसफष नागाजुषन का िी मोिभंग हुअ िै? र्कया आस दौर के दूसरे िामपन्थी बुहिजीिी आससे ऄछूते

रिे िं?

भारतीय कम्युहनस्ट पाटी का बार-बार हिभाजन हिददत िै। नागाजुषन का मोिभंग ईनकी अिेगधर्ममता से िी सम्बि निं

िै। आस मोिभंग के मूल मं यि हचन्ताजनक हस्थहत िै दक भारत मं ऄभी तक क्राहन्त निं िो पाइ िै और हनकट भहिष्य मं

आसके िोने की सम्भािना भी कम िी िै–

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काश,क्राहन्तयाँ ईतनी असानी से हुअ करतं ! काश, क्राहन्तयाँ ईतनी सरलता से सम्पाददत िो जातं!

काश, क्राहन्तयाँ योगी, ज्योहतर्ी या जादूगर के चमत्कार हुअ करतं!

काश, क्राहन्तयाँ ‘बैठे-ठाले सिनं’ के ददिा स्िप् नं-सी घरटत िो जातं!

ऐसी हस्थहत मं जनता से प्रेम करने िाले नागाजुषन जैसे कहियं मं ऄहस्थरता, बेचैनी और ईतािलापन ये तत्त्ि

अिेगधर्ममता के रूप मं अ िी जाते िं। हजन्िं क्राहन्त के िोने न िोने की हचन्ता निं िै, ईनमं यि अिेगधर्ममता अ िी निं

पाती िै। समाज की अम समझ से पररचाहलत बुहिजीिी को न आस संकट की ऄनुभूहत िोती, न तो ईसका मानहसक सन्तुलन कभी हबगड़ता। ऐसे लोग मजे मं िं। नागाजुषन की हचन्ता िै दक क्राहन्त कब िोगी? कब िोगी ईनकी ददिाली?

जिाँ जनसंघर्ष तीव्र िै, ििाँ नागाजुषन मौजूद िं। िे ििं भािुक िो जाते िं। भोजपुर शीर्षक कहिता मं कहि ने ऐसा िी

एक भाि-हिह्िल ििव्य ददया िै–

यिी धुअँ मं ढूंढ़ रिा था

यिी अग मं खोज रिा था

यिी गन्ध थी मुझे चाहिए बारुदी छरे की खुशबू...

जिाँ शाहन्त और व्यिस्था िै, ििाँ जनकहि की रुहच निं िै। जिाँ संघर्ष िै, ििं कहि िै और ििं कहिता िै। जब भी

जनसंघर्ष बढ़ता िै तो कहि को लगता िै दक यि क्राहन्त की ददशा मं अगे बढ़ने िाला कदम िै, भले िी िि कदम छोटा िी

र्कयं न िो। तब नागाजुषन की कहिता अिेगधमी िो जाती िै और ईनकी कहिता मं ऄहतरंजना पूणष िणषन हमलने लगता िै–

लेदकन र्कयं कर बुझने दूँ मं ऄपना िाहजब क्रोध बच्चों के ित्यारं से पहललक लेगी प्रहतशोध।

आस पहित्र प्रहतशोध-यज्ञ मं मं हूँ सबके साथ...

र्कयं गूँगा िोउँ, बतलाओ झुकने दूँ र्कयं माथ?

भािािेग का सन्तुलन ईन्िं के यिाँ िोता िै, जो न दकसी चीज पर मुग्ध िोते, न क्रुि। ऄतः ईनकी भार्ा भािािेग रहित

िोती िै – सन्तुहलत और हनहश् च त।

िैसे नागाजुषन की कहिता मं व्यि हिचारं की सैिाहन्तक समीक्षा की जाए तो ईनमं ऄनेक कहमयाँ ि भटकाि नजर अएँगे। मार्कसषिाद के सूत्रं की गहणतीय नाप-जोख से ईनमं ऄनेक ऄसंगहतयाँ और ऄन्तर्मिरोध हमल सकते िं, लेदकन मार्कसषिादी हसिान्त की ऄहधक जानकारी रखने िाले ऄनेक हचन्तकं से ऄहधक नागाजुषन ने मार्कसषिादी साहित्य का

हिकास दकया िै। ईन्िंने जनता से जुड़े साहित्य का एक मानक हनर्ममत दकया िै।

दफर भी यि सिी िै दक ईनकी रचना स मं भािना स का अिेग प्रकट िोता िै। कोइ घटना घरटत हुइ, कहि का मन ईद्वेहलत हुअ और ईन्िंने आस ईद्वेलन को कहिता मं व्यि कर ददया। आसे व्यि करके कहि भी ईससे मुि िो गया और यिं कहिता भी समाप्त िो गइ। कहिता हलखने के बाद कहि के पास ईस हिशेर् सन्दभष मं कुछ निं बचता, िि सब कुछ हनःशेर् कर चुका िोता िै। हजस ददन एक बात ठीक लगी, कि दी, दूसरे ददन दूसरी बात ठीक लगी, िि कि दी। आस तरि

ईनकी कहिता मं बाह्य संघर्ष तो खूब िै लेदकन अत्मसंघर्ष निं िै। ईनकी अत्मा पाक-साफ़ िै, मलाल तो कुछ िै िी निं।

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जब भी ईनको ऄपने अप मं गलती लगी, ईसे तुरन्त सुधार हलया। गलती

को स्िीकार करके ईसे िटा ददया, दफर अत्मसंघर्ष की अिश्यकता िी र्कया?

5. अक्रोश की ऄहभव्यहि

नागाजुषन की कहिता स मं ‘िाहजब क्रोध’ ददखाइ देता िै – िगष घृणा निं। घृणा और क्रोध की प्रकृहत मं ऄन्तर िोता िै।

क्रोध जब अता िै तो बहुत तेजी से अता िै, दफर धीरे-धीरे ईतरने लगता िै, और एकदम ईतर जाता िै। दफर ठण्डे

ददमाग से जब िि सोचता िै तो पात्र की हस्थहत, ईसकी सीमा और सामर्थयष को अँकता िै और तब िँसकर ईसे टाल देता

िै। कुछ-कुछ आस हिश् िास के साथ दक तुमसे और ईम्मीद िी र्कया की जा सकती िै ? क्रोध से ईत्पन् न हनराशा भी िास्य मं

बदल जाती िै। आहन्दरा गाँधी पर हलखी गइ नागाजुषन की ऄनेक कहिता स मं आस प्रदक्रया को स्पि रूप से देखा जा सकता

िै। घृणा की प्रदक्रया आससे ईल्टी िोती िै। ‘समझ’ के बाद क्रोध शान्त िो जाता िै, पर घृणा समझ के साथ-साथ बढ़ती

जाती िै। घृणा करने िाला ऄपने दुश्मन को कभी भी कमजोर मानकर निं चलता िै। ऐसा रचनाकार ऄपने दुश्मन का

िणषन िल्के िास्य से कभी निं करता िै। ऄहभव्यहि पक्ष की सिजता भी यिाँ घृणा के ऄसर को गिराने का काम करती

िै। घृणा मं समझौते की सम्भािना निं रिती। क्रोध ईदारतापूिषक क्षमा भी कर सकता िै, घृणा क्षमा करना निं जानती।

घृणा हिचारिान िोती िै, क्रोध भािुक िोता िै। घृणा ठण्डी लग सकती िै, लेदकन स्थायी िोती िै। क्रोध तीक्ष्ण िोता िै

लेदकन ऄस्थायी िोता िै। क्रोध प्रिाि मं बि सकता िै। क्रोधी को जब ‘ज्ञान’ िोता िै तो िि सन्त बन जाता िै। सन्त समझ सकता िै दक छोड़ो, दकस-दकस को तंग करते रिोगे, सब ठीक िो जाएँगे या कर ददए जाएँगे। िि संकट की घहड़यं मं भी

प्रसन् न रि सकता िै। भय और अशंका कभी ईसके पास निं फटकती। िि ऄपने हिरोधी को नगण्य और तुच्छ समझता िै, आसीहलए िि हनहश् च न्त िोता िै। ईसे ऄपने हिरोधी से सतकष रिने की अिश्यकता कभी मिसूस निं िोती। ईसे दकसी से

मोि निं िोता – यिाँ तक दक ऄपने यश से भी निं। ईसमं ग्लाहन और पश्चाताप जैसे भाि तो कभी अते िी निं। जो

दकया ठीक दकया और जो करंगे िि भी ठीक करंगे। आसके हिपरीत घृणा करने िाला अत्म-पररष्कार मं लगा रिता िै, बेचैन रिता िै, शत्रु से अतंदकत रिता िै तथा शत्रु से लड़ने के हलए ऄपने अप से लड़ता रिता िै। ईसका अत्मसंघर्ष

िमेशा चलता रिता िै। हिन्दी मं नागाजुषन की कहिता मं शासक िगष के प्रहत क्रोध और मुहिबोध की कहिता मं घृणा के

भाि प्रमुख रूप से हमलते िं। ऄतः नागाजुषन मं बाह्य संघर्ष ऄहधक िै तथा मुहिबोध मं अत्मसंघर्ष। नागाजुषन ने ऄनेक राजनेता स – आहन्दरा गाँधी, चरण सिसि, राजनारायण, मोरारजी अदद पर क्रोध के भाि से भरी हुइ कहिताएँ हलखी िं।

6. व्यिस्था पररितषन और व्यंग्य

नागाजुषन ऄपनी कहिता स के माध्यम से समाज मं बुहनयादी पररितषन की अिश्यकता पर बल देते िं। आतने लम्बे काव्य- जीिन मं ईन्िंने िमेशा, िर पल आस अिश्यकता को गम्भीरता से मिसूस दकया िै। व्यिस्था हिरोधी मानस के पाठक को

नागाजुषन का यि गुण अकर्मर्त करता िै। दफर नागाजुषन ने ऄपनी कहिता को यिाँ की सांस्कृहतक शलदािली मं व्यि दकया

िै। ईनकी कहिता के पात्र पूरे सांस्कृहतक पररिेश मं िमारे सामने अते िं। ये पात्र चािे शत्रु पक्ष के िं या जन पक्ष के।

बन्दी युिकं के समथषन मं नागाजुषन ने कहिता हलखी तो शीर्षक ददया कब िोगी आनकी ददिाली । कब िोगी आनकी क्राहन्त निं किा। कहि ने ददिाली की प्रसन् नता से क्राहन्त के ईल्लास की तुलना कर दी। रोजनबगष दम्पहत पर कहिता हलखते हुए ईन्िं रोहिताश् ि और िररश् चन्ा याद अए। आसी तरि ‘शलदिेधी बाण चला रिे हशकारी’ ‘हिहडम्बा की हिचकी’, ‘सुरसा की

जम्िाइ’, ‘छंक मार कर करो न ऄसगुन’ जैसी पंहियाँ हजस पररहचत काव्यलोक का हनमाषण करती िं, ईससे हिन्दी पाठक परायापन मिसूस निं करता। ईसे नागाजुषन की कहिता मं ऄपने देश की धड़कन, स्मृहत, परम्परा, संस्कृहत के दशषन िोते

िं।

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HND : हिन्दी P3 : अधुहनक काव्य - 2 M1 : जनसंघर्ष और कहिता

नागाजुषन कभी हनरथषक हसिान्त हचन्तन मं निं लगे रिे, बहल्क जीिन की जीिन्त धड़कन को ईन्िंने ऄपनी कहिता मं

लोकहप्रय ढंग से व्यि दकया। आस लोकहप्रय पिहत के कारण ईन्िंने ऄपने समय के नेता स की हनन्दा करने के हलए गाँधीजी के अदशषिाद का सिारा ले हलया। कांग्रेसी नेता स के भोगिाद से तो गाँधीजी की त्याग भािना ऄच्छी िी थी।

तीनं बन्दर बापू के कहिता मं नागाजुषन ने हलखा–

‘मुड़ रिे दुहनया जिान को तीनं बन्दर बापू के

हचढ़ा रिे िं असमान को, तीनं बन्दर बापू के

बदल-बदल कर चखं मलाइ, तीनं बन्दर बापू के

गाँधी-छाप झूल डाले िं तीनं बन्दर बापू के

ऄसली िै, सकषस िाले िं तीनं बन्दर बापू के’

आस कहिता को पढ़कर लग सकता िै दक आसमं गाँधीिादी दृहि से अज की राजनीहत की अलोचना की गइ िै। लेदकन नागाजुषन गाँधीिादी निं िं, ईन्िंने तो आस लोकहप्रय भाि का ईपयोग कर हलया।

नागाजुषन के व्यंग्य बड़े चुटीले िोते िं। ईनका व्यंग्य व्यिस्था की हिाूपता को ईघाड़कर िमारे सामने रख देता िै। नागाजुषन ऄपने प्रहत हजतने हनमषम िं ईतने िी दूसरं के प्रहत। ईनके व्यंग्य की जद मं कांग्रेसी नेता िं, हिटेन की मिारानी िं, सत्ता के

दलाल िं, घूस की कमाइ खाने िाले ऄफसर िं। नामिर सिसि का मत िै दक “कबीर के बाद हिन्दी कहिता मं नागाजुषन से

बड़ा व्यंग्यकार ऄभी तक निं हुअ िै।” नागाजुषन के काव्य मं व्यहियं के व्यंग्य का हचत्रण तो िै िी, व्यिस्था पर भी

करारा व्यंग्य िै–

कच् ची िज़म करोगे

पर्क की िज़म करोगे

बोफोसष की दलाली

गुपचुप िजम करोगे।

हनत राजघाट जाकर बापू भजन करोगे।

बापू के बन्दरं की करामात देहखए -

सेठं का हित साध रिे िं तीनं बन्दर बापू के

युग पर प्रिचन लाद रिे िं तीनं बन्दर बापू के।

हजस जिािरलाल नेिरू की िे लगातार अलोचना कर रिे िं, ईन्िं नेिरू का पक्ष लेकर ईन्िंने ्ीमती आहन्दरा गाँधी की

अलोचना कर डाला–

आन्दु जी, आन्दु जी

र्कया हुअ अपको

सत्ता की मस्ती मं

भूल गइ बाप को

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HND : हिन्दी P3 : अधुहनक काव्य - 2 M1 : जनसंघर्ष और कहिता

नागाजुषन आस भोगिाद की अलोचना आसहलए करते िं र्कयंदक यि

भोगिाद जनता के शोर्ण और ऄत्याचार पर कायम िै। लोकहप्रय पिहत से आस तरि की कहिताएँ हलखने के कारण रचना

और ऄन्ततः कहि की िैचाररक दृहि का सिाल भी ईठ खड़ा िोता िै र्कयंदक लोकहप्रयता ऄन्ततः दशषन के स्तर पर ितषमान व्यिस्था का िी समथषन करती िै। आसका साथषक ईपयोग बहुत करठन कायष िै। नागाजुषन ने जिाँ-जिाँ आस पिहत का

ईपयोग दकया िै, ििाँ-ििाँ ईनकी रचना का िैचाररक पररप्रेक्ष्य कमजोर पड़ गया िै। कहिता प्रभािशाली तो लगती िै, आससे रचना की प्रेर्णीयता तो बढ़ी िै, लेदकन िैचाररक दृहि धुँधली पड़ गइ िै।

नागाजुषन की कहिता मं शत्रु पक्ष के प्रहत एक िी भाि क्रोध निं िै और भी ऄनेक भाि ईनमं हमलते िं। िे सबसे ऄहधक पररिास मं अनन्द लेते िं। शासक िगष के लोग जब परेशान िोते िं, जब ईन्िं ईलझन िोती िै, हनणषय लेने मं करठनाइ मिसूस िोती िै, जब ईनका अत्महिश् िास डगमगाने लगता िै, तब नागाजुषन को पररिास सूझता िै। परेशान िं कांग्रेसी, जनता िाले परेशान िं,तीन ददन तीन रात जैसी ऄनेक कहिता स मं यि पररिासमय अनन्द की ऄनुभूहत ईत्कृि रूप मं

व्यि हुइ िै। आसी तरि ऄपनी एक कहिता शासन की बन्दूक मं ईन्िंने हलखा – जली ठूँठ पर बैठकर, गइ कोदकला कूक।

बाल न बाँका कर सकी, शासन की बन्दूक।

यि शासन, हजसकी शहि बन्दूक की नली मं िै, ईसके हिरूि यि कहिता गुररल्ला छेड़छाड़ का अनन्द देती िै।

ऄत्याचारी और शहिशाली मानी जाने िाली बन्दूक ऄसिाय िै। िि कोयल की कूक को दबा निं सकती। कोयल का िि

कुछ निं हबगाड़ सकती। योहगराज ऄरहिन्द को सम्बोहधत करते हुए कहि ने हलखा–

िम प्राणी िं, जले कपारं िाले

सूझ रिा िै

आसीहलए पररिास

जय जय िे अजाद हिन्द के

पोप

िम हिदग्ध, पर करना निं प्रकोप।

नागाजुषन को पररिास सूझ रिा िै, दफर भी हनिेदन कर रिे िं दक तुम कोप न करना। नागाजुषन पररिास करते समय ऄपने

कहि - व्यहित्ि को बहुत उपर ईठा लेते िं, आतना उपर दक पररिास पीहड़त व्यहि यदद ‘कोप’ भी करं तो भी ईनका कुछ हबगाड़ निं सकता।

नागाजुषन मं सम्बन्ध-िीन पररिास िृहत्त निं हमलती। िे दकसी का (भले िी िि शत्रु िो) हसफष मजाक निं ईड़ाते, बहल्क किं गिरे मं िे दकसी पक्ष से जुड़े हुए िोते िं, ईससे सम्बन्ध मिसूस करते िं। िे जनता का पक्ष लेकर जनहिरोधं, व्यहियं, ताकतं का मजाक ईड़ाते िं। आसहलए नागाजुषन जिाँ दुःखद घटना स और बातं को िास्य मं रूपान्तररत कर ऄहभव्यि करते िं, ििाँ िे िँसते निं, जनता की पीड़ा को ऄनुभि कर सोचते िं। ऐसा िास्य तनािमुि निं िोता। ऐसी

कहिताएँ पढ़ते हुए पाठक भी िँसते निं, सोचते िं। दफर प्रश् न ईठता िै दक नागाजुषन िास्य का, पररिास का आस्तेमाल करते िी र्कयं िं? आसका कारण यि िै दक पररिास मन को िल्का कर देता िै। डरािनी और दुःखद घटनाएँ मन को

अतंदकत न करं, डराएँ निं, आसहलए कहि िास्य द्वारा ईनके प्रभाि को िल्का कर देते िं। िैसे तो यि अतंककारी सत्ता

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HND : हिन्दी P3 : अधुहनक काव्य - 2 M1 : जनसंघर्ष और कहिता

स्ियं चािती िै दक लोग ईनसे डरं। िि जनता को भयभीत देखना

चािती िै। जनता के भय पर िी ईनकी सत्ता कायम िै। नागाजुषन ऄपनी रचना मं सत्ता के आस भय को िटा देते िं, ईसे

िास्यास्पद बना देते िं। सत्ता हजस बात को गम्भीरता से ले रिी िै, कहि ईसे ऄगम्भीरता से ले रिे िं। आसहलए नागाजुषन का पाठक डरता निं, अतंदकत निं िोता, मुि और सिज िो जाता िै। दकसी भी जन संघर्ष की सफलता के हलए अिश्यक िै दक जनता समझे दक शत्रु पक्ष ऄदना िै, िि शहिशाली प्रतीत िोते हुए भी ऄसमथष, कमजोर एिं लाचार

िोता जा रिा िै। िम ईसकी तुलना मं संगरठत एिं मजबूत िं। तभी जनता का मनोबल बना रिेगा। नागाजुषन जन-कहि

आसीहलए िै दक िे जनता के आस मनोबल को बनाए रखते िं। जनता के दुःख-ददष के साथ िे गिरी सम्बन्ध – भािना

मिसूस करते िं।

किा जा सकता िै दक नागाजुषन हसफष क्रोध निं करते, दुलार भी करते िं। हजतना क्रोध करते िं, ईससे कम दुलार निं

करते, बहल्क आस दुलार के कारण िी क्रोध करते िं। आस दुलार की ऄहभव्यहि नेिला कहिता मं हुइ िै,‘बन्धु डॉ. जगन् नाथ मं’ हुइ िै या दफर कब िोगी आनकी ददिाली जैसी कहिता मं हुइ िै। परन्तु सबसे ऄहधक सशि ऄहभव्यहि हुइ िै चन्दू

मंने सपना देखा मं।

चन्दू, मंने सपना देखा, कल परसं िी छूट रिे िो

चन्दू, मंने सपना देखा, खूब पतंगं लूट रिे िो

चन्दू, मंने सपना देखा, लाए िो तुम नया कैलण्डर चन्दू, मंने सपना देखा, तुम िो बािर, मं हूँ बािर

नागाजुषन ने ऄपनी कहिता स मं ‘अगामी युगं के मुहि सैहनक’ की तस्िीर भी दी िै। िररजन गाथा मं ऄछूत हशशु के

जन्म पर अशीिाषद देते हुए बाबा नागाजुषन किते िं–

ऄरे देखना आसके डर से

थर-थर काँपंगे ित्यारे

चोर-ईचर्क के, गुंडे-डाकू

सभी दफरंगं मारे-मारे

नागाजुषन की कहिता मं जनता के जीिन के प्रहत जो प्रेम भाि िै, जो सम्बन्ध-भािना िे मिसूस करते िं, जनता के सुख- दुःख से जो लगाि मिसूस करते िं, ईसके कारण नागाजुषन ‘नागाजुषन’ िं। हिरोध, हिाोि और क्राहन्त के गीत गाने िाले

कहि तो और भी हमल जाएँगे, लेदकन जनता से प्रेम करने िाले नागाजुषन जैसे कहि हबरले िी कभी िोते िं।

7. हनष्कर्ष

नागाजुषन एक ऐसे कहि िं हजन्िंने अम जनता के दुःख-ददष और ईसके संघर्ष को ऄपनी कहिता का हिर्य बनाया िै।

ईनकी प्रहतबिता अम जनता के प्रहत िै। जिाँ किं भी िे जनता की गाढ़ी कमाइ का दुरुपयोग देखते िं, क्रुि िो ईठते िं

और ईनकी लेखनी ऐसे शोर्कं के हखलाफ चल पड़ती िै। नागाजुषन ने कहिता के हलए हिशेर् प्रकार का ढाँचा तैयार दकया

िै और अम बोलचाल की भार्ा का प्रयोग दकया िै। ईनकी कहिता स मं प्रकृहत, प्रेम और सौन्दयष का भी हचत्रण हमलता िै

पर मूलतः िे जनसंघर्ष की ऄहभव्यहि करने िाले कहि िं।

References