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HND : हहन्दी P6: हहन्दी गद्य साहहत्य : कथा साहहत्य M31: दोपहर का भोजन

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HND : हहन्दी P6: हहन्दी गद्य साहहत्य : कथा साहहत्य M31: दोपहर का भोजन

हिषय हहन्दी

प्रश् नपत्र सं. एिं शीषषक P6 : हहन्दी गद्य साहहत्य : कथा साहहत्य आकाइ सं. एिं शीषषक M31 : दोपहर का भोजन

आकाइ टैग HND_P6_M31

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश् नपत्र-संयोजक प्रो. ए. ऄरहिन्दाक्षन आकाइ-लेखक डॉ. हममता चतुिेदी

आकाइ-समीक्षक प्रो. गंगाप्रसाद हिमल भाषा-सम्पादक ओम प्रकाश साह

पाठ का प्रारूप

1. पाठ का ईद्धेश्य 2. प्रमतािना

3. दोपहर का भोजन का कथासार 4. कहानी की ऄन्तिषमतु

5. हशल्प

6.

हनष्कषष

(2)

HND : हहन्दी P6: हहन्दी गद्य साहहत्य : कथा साहहत्य M31: दोपहर का भोजन

1.

पाठ का ईद्धेश्य

आस पाठ के ऄध्ययन के ईपरान्त अप–

 दोपहर का भोजन कहानी के मूल कथ्य को समझ पाएँगे।

 दोपहर का भोजन कहानी के प्रमुख पात्रं से पररहचत हो पाएँगे।

 हसद्धेश् िरी के माध्यम से अर्थथक सममया से जूझते पररिार के प्रहत एक गृहहणी की हचन्ता को समझ पाएँगे।

 हहन्दी अलोचना मं दोपहर का भोजन कहानी के मूल्यांकन से पररहचत हो पाएँगे।

2. प्रमतािना

ऄमरकान्त नइ कहानी के दौर के कहानीकार है। ईन्हंने मध्यिगष को केन्र मं रख कर ऄपनी ऄहधकांश कहाहनयाँ हलखी है।

ऄपनी कहाहनयं मं ईन्हंने एक तरफ मध्यिगष के दुःख और तकलीफं का हचत्रण ककया है तो दूसरी तरफ मध्यिगष मं व्याप् त ऄन्तर्थिरोधं की ओर भी आशारा ककया है। दोपहर का भोजन ऄमरकान्त की ऄत्यन्त चर्थचत कहानी है। आस कहानी का

प्रकाशन सन् 1956 मं कहानी पहत्रका मं हुअ है। ऄमरकान्त ने आस कहानी मं हनम् न मध्यिगष की हताशा, पीड़ा को हचहन्हत ककया है। यह कहानी नाहयका प्रधान है। आस कहानी मं हनम् न मध्यिगीय पररिार की कदनचयाष का हचत्रण करते हुए ऄमरकान्त ने हसद्धेश् िरी की हचन्ता, दुःख एिं मनोभाि को हचहत्रत ककया है।

3. कथासार

दोपहर का भोजन एक रोजगार हिहीन हनम् नमध्यिगीय पररिार की कहानी है। कहानी की केन्रीय पात्र हसद्धेश् िरी है।

पररिार मं कुल हमलाकर कर पाँच सदमय हं। पहत मुंशी चहन्रका प्रसाद पुत्र रामचन्र, मोहन और प्रमोद। रामचन्र घर का

बड़ा लड़का है, जो आक् कीस िषष का हो चुका है, आण्टर पास होने के बािजूद बेरोजगार है। नौकरी नहं हमलने के कारण रामचन्र मथानीय दैहनक समाचार-पत्र के दफ्तर मं प्रूफरीडरी का काम सीखता है। हजसे ऄमरकान्त ने हलखा है कक ऄपनी

मजी से प्रूफरीडरी सीख रहा है। ऄथाषत् ईसे कोइ िेतन नहं हमलता। ऄट्ठारह िषीय मोहन हसद्धेश् िरी का मँझला लड़का है

और हाइ मकूल का प्राआिेट आहम्तहान देने की तैयारी कर रहा है। मुंशी चहन्रका प्रसाद आस पररिार के मुहखया है, हजन्हं डेढ़ महीने पहले नौकरी से हनकाल कदया गया है। कहानी की शुरुअत दोपहर के भोजन से होती है। अर्थथक तंगी के कारण हसद्देश् िरी ऄपने पहत एिं पुत्रं को भरपेट खाना नहं हखला पाती, अलम यह है कक खुद अधी रोटी खा कर बची हुइ रोटी

ऄपने छोटे बेटे प्रमोद के हलए रख देती है। घर मं भोजन की सामग्री कम होने के बािजूद ऄपने पहत या पुत्र के सामने

ईसका रोना नहं रोती बहल्क ईस ऄभाि मं भी एक व्यिमथा कायम रखने का प्रयास करती रहती है। घर की दशा का

हचत्रण करते हुए ऄमरकान्त हलखते है – “लड़का नंग-धड़ंग पड़ा था। ईसके गले तथा छाती की हहियाँ साफ कदखाइ देती

थं। ईसके हाथ-पैर बासी ककहड़यं की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और ईसका पेट हँहड़या की तरह फूला हुअ था।” (सं.

रिीन्र काहलया, ऄमरकान्त की सम्पूणष कहाहनयाँ भाग-1, भारतीय ज्ञानपीठ, नइ कदल्ली, पृष्ट सं. 62)

आस हिषम पररहमथहत से पररिार के लोगं मं संिादहीनता का माहौल बन जाता है और न चाहते हुए भी सभी लोग एक दूसरे से कटे-कटे से रहते हं। आस संिादहीनता के माहौल मं हसद्धेश् िरी की हचन्ता ऄपने पररिार को बचाए रखने की है।

आसहलए िह ऄपने ही पहत एिं बेटं से ऄकारण एक दूसरे की तारीफ करती है। िह आसी प्रयास मं रहती है कक कैसे भी घर के सभी सदमयं मं प्रेम भाि बना रहे। िह ईनके सामने अर्थथक तंगी को प्रकट नहं होने देना चाहती। आसके बािजूद सभी

लोगं को ईस तंगी का एहसास है। भूख और ऄभाि के कारण घर का माहौल हमेशा बोहझल (ईदासीन) सा रहता है।

कहानी का ऄन्त भी आसी ईदासी के साथ होता है कक “सारा घर महक्खयं से हभन-हभन कर रहा था। अँगन की ऄलगनी पर एक गन्दी साड़ी टंगी थी, हजसमे पैबन्द लगे हुए थे। दोनं बड़े लड़कं का कहं पता नहं था। बाहर की कोठरी मं मुंशीजी

(3)

HND : हहन्दी P6: हहन्दी गद्य साहहत्य : कथा साहहत्य M31: दोपहर का भोजन

औन्धे मुँह होकर हनहश् च न्तता के साथ सो रहे थे, जैसे डेढ़ महीने पूिष

मकान-ककराया-हनयन्त्रक हिभाग की क्लकी से ईनकी छँटनी न हुइ हो और शाम को ईनको काम की तलाश मं कहं जाना

न हो।” (सं. रिीन्र काहलया, ऄमरकान्त की सम्पूणष कहाहनयाँ भाग -1, पृष्ट सं. 68)

4. कहानी की ऄन्तिषमतु

हनम् न मध्यिगीय पररिार की महहला हसद्धेश् िरी को घरिालं को दोपहर का भोजन करिाना है। भोजन परोसने की

हजम्मेदारी ईसकी है। भारतीय परम्परा के ऄनुसार गृहमिाहमनी ऄन् नपूणाष होती है। यह सही है कक कमाने की हजम्मेदारी

ईसकी नहं है, कमाने का दाहयत्ि घर के पुरुष सदमयं का है। रामचन्र आण्टर पास होकर भी बेरोजगार है। दूसरी तरफ चहन्रका प्रसाद को नौकरी से हनकाल कदया गया है। चूँकक पुरुष सदमय कमा कर नहं ला रहे है, आसकी हचन्ता ईन पुरुषं

को भी है। िे भी प्रयास कर ही रहे हं लेककन सफलता नहं हमल रही है। हसद्धेश् िरी चाहे तो घर के पुरुष पात्रं पर भोजन की हजम्मेदारी डालकर मुक्त हो सकती है। परन्तु िह ऐसा नहं करती है, िह ऄपने पहत और बेटे के दुःख को समझती है, महसूस करती है। आसीहलए ईसका सबसे ऄहधक प्रयास यह रहता है कक घर के ईस हिषादपूणष िातािरण को कम कर सके।

िह जानती है और मानती है कक िह ऄन् नपूणाष है। सबको खाना हखलाना ईसी का दाहयत्ि है। खाना कम है, थोड़ा-थोड़ा ही

सही लेककन हखलाना सबको है। थोड़ा देते हुए भी ररश्तं की डोर को बचाए रखना है। साथ ही यह भी भ्रम बनाए रखना है

कक सब को भरपेट हखला रही है। घर के सदमय भी आस अभास को बनाए रखने की से भरपूर कोहशश करते है। यहाँ

हसद्धेश् िरी, ईसके पहत और बेटं का ऄहभनय ऄत्यन्त मार्थमक है। यहाँ बहुत ही कलात्मक बारीकी से ऄमरकान्त ने ररश्तं

की आस डोर को बनाए रखा हं। आस कहानी की चचाष करते हुए ऄशोक कुमार सुमन ने हलखा है कक “अजादी के बाद भी

हिकास के पूँजीिादी पथ पर लगातार बढ़ते रहने के कारण अज भारतीय पररिार की जो हमथहत है ईसका ऄत्यन्त ही

सजीि, मार्थमक और यथाथषिादी हचत्रण दोपहर का भोजन मं प्रमतुत हुअ है।” (सं. रिीन्र काहलया, ऄमरकान्त एक मूल्यांकन, सामहयक बुक्स, नइ कदल्ली, पृष्ठ सं.- 29)।” हमथहत आतनी ख़राब है कक रामचन्र बेगारी करने को मजबूर हो

जाता है। प्रूफ रीडिडग का काम िह ऄपने मन से करता है ईसे लगता है भहिष्य मं ईसे ये काम हमल जाये! आसीहलए हबना

पैसे भी िह काम करता है। चहन्रका प्रसाद भी डेढ़ महीने से नौकरी की तलाश कर रहे है लेककन ईन्हं भी नौकरी नहं

हमलती है। कहानी मं पररिार की हमथहत आतनी दारुण है कक भरपेट खाना भी नसीब नहं हो रहा है। पैबन्द लगी साड़ी आस बात की गिाह है कक तन ढकने को कपड़ा भी मयमसर नहं है। ऄमरकान्त की खाहसयत आस बात मं है कक ईन्हंने घर की

बदहाली को दशाषने के हलए लम्बे-लम्बे िाक्य खचष नहं ककये है। बासी ककहड़यं की तरह सूखे बेजान हाथ-पैर और पैबन्द लगी साड़ी घर की बदहाली को दशाषने के हलए काफी है। कहानी मं हसद्धेश् िरी की हचन्ता दोहरी है। एक तरफ तो ईस हिकट अर्थथक ऄभाि मं घर चलाना है और दूसरी तरफ पररिार के सभी सदमयं को जोड़े रखना। आस हिषय पर सोचते

हुए ईसकी अँखं से अँसू हनकल पड़ना ईसकी हचन्ता को व्यक्त करता है। कहानी मं कहानीकार ने ऄनेक मार्थमक क्षण प्रमतुत ककए हं। जैसे खाली पेट पानी पीने पर ईसके कलेजे मं लग जाना और हाय राम कह कर जमीन पर लेट जाना, जली

हुइ रोटी भी अधी तोड़ कर ऄपने छोटे बेटे के हलए रख देना, ऄपने ही बच्चों से झूठ बोलना अकद। हसद्धेश् िरी को ऄपने

पररिार के भहिष्य की हचन्ता खाए जा रही है। ईसे हमेशा ककसी ऄहनष्ट की अशंका रहती है। रामचन्र को अिाज देने पर भी जब िह कोइ जिाब नहं देता तो हसद्धेश् िरी ईसकी नाक पर हाथ रख कर ये देखती है कक ईसकी साँस चल रही है कक नहं। आतना ही नहं; ईसे ऄपने ही बेटं से डर लगता है, यह डर गृहमथी के हबखरने का डर है हजसे ईसने ऄपनी मेहनत से

खड़ा ककया है।

आस कहानी के बारे मं यदुनाथ डिसह हलखते है –“दोपहर का भोजन के सीधे-सपाट घटनाक्रम मं एक गृहमिाहमनी, हसद्धेश् िरी

के भय, दुःख की जो ऄन्तधाषरा प्रिाहहत होती है, िह अज के हनम् नमध्यिगीय पररिार की जीिनचयाष के मूल मं प्रिाहहत

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HND : हहन्दी P6: हहन्दी गद्य साहहत्य : कथा साहहत्य M31: दोपहर का भोजन

भय और दुःख की िह ऄन्तधाषरा है, हजसमे बहते हुए ऄनहगनत पररिारं

के ऄसंख्य प्राणी, एक-दूसरे से ऄपररहचत, अशंककत, िर्त्षमान के ऄभािं से पूरी तरह टूटे, भहिष्य को लेकर दहशत से भरे

न केिल पाररिाररक मतर पर हबखरते बहल्क सामाहजक मतर पर भािात्मक दृहष्ट से टूटते सम्बन्ध सूत्रं को सन्दर्थभत करते

हं। परम्परा प्राप् त सम्बन्ध सूत्रं और ईनके माध्यम से हबखरने-हबखरने को अ रहे ढाँचे को कायम रखने की एक हनष्फल चेष्टा पूरे सन्दभष को बेहद कारुहणक बना जाती है।” (सं. रिीन्र काहलया, ऄमरकान्त एक मूल्यांकन, पृष्ठ सं.-222)भूख और ऄभाि की ईस पररहमथहत मं हसद्धेश् िरी की छोटी-छोटी चेष्टाएँ भी कहानी को मार्थमक बनाती है। कहानी मं कहानीकार ने

यह भी संकेत कदए हं हसद्धेश् िरी ऄब पहले की तरह ककसी बात पर खुल कर नहं बोल पा रही है। िह खाना हखलाते समय बातचीत करना चाहती है, ईसके मन मं कइ प्रश् न ईठते है, आसहलए िह सोचती रहती है। खाना हखलाते समय िह डरी

रहती है, भयभीत हहरणी की भाहन्त सबको ताकती रहती है, ताकना भी मपष्ट नहं है, घर के पुरुष सदमयं को पता नहं

चलता कक िह क्या सोच रही है। ऄपनी पीड़ा को साझा नहं कर पा रही है, घर के ऄन्य सदमय भी ऄपनी पीड़ा का बयान नहं कर पाते है। ऄथाषत् पहले जब घर की अर्थथक दशा ठीक थी तो संिादहीनता का जो माहौल ऄब बना हुअ है, िैसा

पहले नहं था। जब चहन्रका प्रसाद की नौकरी थी तब घर मं खुशहाली थी। लेककन ऄब नौकरी के हछन जाने पर भूख और ऄभाि के कारण घर के लोगं मं मनहूहसयत-सी छा गइ है, हजसे दूर करने का प्रयास हसद्धेश् िरी करती है। िह यह महसूस करती है कक ईसके लड़के घर से कटे-कटे से रहते हं। रामचन्र नौकरी की तलाश मं घर से बाहर रहता है और मँझला लड़का

मोहन हबना कारण ही घर से बाहर रहता है। हपता चहन्रका प्रसाद के घर अने पर मोहन हबना कुछ कहे घर से बाहर चला

जाता है। हपता-पुत्र-भाइ के बीच एक-दूसरे के बारे मं जानकारी हसद्धेश् िरी से हमलती है। हसद्धेश् िरी ईन सब से एक-दूसरे

के बारे मं झूठ कहती है। एक माँ के रूप मं हसद्धेश् िरी यह प्रयास करती है कक ईसके बेटं के बीच प्रेम भाि बना रहे। िह मोहन से झूठ बोलती है कक “बड़का तुम्हारी बड़ी तारीफ कर रहा था। कह रहा था, मोहन बड़ा कदमागी होगा, ईसकी

तबीयत चौबीसं घण्टे पढ़ने मं लगी रहती है। यह कह कर ईसने ऄपने मँझले लड़के की तरफ आस तरह देखा जैसे ईसने कोइ चोरी की हो। मोहन ऄपनी माँ की ओर देखकर फीकी हँसी हँस पड़ा और कफर खाने मं जुट गया।” (सं. रिीन्र काहलया, ऄमरकान्त की सम्पूणष कहाहनयाँ भाग -1, पृष्ट सं.-65) मोहन की हँसी ये साहबत करती है कक िह जानता है कक माँ झूठ बोल रही है। मोहन जानते हुए भी माँ के भ्रम को नहं तोड़ता है। चहन्रका प्रसाद हसद्धेश् िरी से ऄपने तीनं बेटं की तारीफ करते हुए जोर से हँस पड़ते हं। िे सभी जानते है कक यह तारीफ सच की बुहनयाद पर नहं रटकी है; आसके बािजूद सभी एक दूसरे से झूठ बोलते हं ताकक घर मं एक-दूसरे के प्रहत प्रेम बना रहे। हसद्धेश् िरी का सच नहं बोलना यह दशाषता है कक िह ककसी भी कीमत पर ऄपने पररिार को हबखरने नहं देना चाहती है। यह पूरी घटना कहानी को और मार्थमक बनाती है।

हसद्धेश् िरी की दूसरी हचन्ता है कक कैसे िह ऄपने पररिार जनं का पेट भरे। पैसं की तंगी के कारण घर मं खाने की पयाषप् त सामग्री नहं है। खुद अधी जली रोटी खा कर िह दूसरं को भरपेट हखलाना चाहती है। रामचन्र, मोहन, चहन्रका प्रसाद सभी यह ऄच्छी तरह जानते हं कक घर मं खाना कम है, आसहलए हसद्धेश् िरी द्वारा हिनती करने पर भी दो रोटी से ज्यादा

कोइ नहं लेता। बाकी जनं को तो दो रोटी और दाल, सब्जी हमल जाती है, लेककन हसद्धेश् िरी को िो भी नसीब नहं होती।

यहाँ तक कक एक रोटी बचने पर अधी रोटी िह ऄपने छोटे बेटे प्रमोद के हलए रख देती है। अधी जली रोटी, अधी कटोरी

दाल और थोड़ी सी चने की सब्जी और एक लोटा पानी पी कर सन्तोष कर लेती है। खाते िक्त ईसके अँखं से अँसू टप-टप चूने लगते हं। शायद ईसे भहिष्य की हचन्ता सताने लगती है कक कल िह ऄपने पररिार जनं को क्या हखलायेगी? पूरी

कहानी मं हसद्धेश् िरी आसी दोहरी हचन्ता मं घुलती रहती है। जरा सी खरंच से यह िातािरण भािुकता मं बदल सकता है, पररिार का कोइ सदमय रूठ सकता है या अत्महत्या कर सकता है, कहं ऄनैहतक कमष मं संहलप् त हो सकता है। कुछ भी

गड़बड़ न हो पररिार मं आसहलए हसद्धेश् िरी आस ऄन्तहीन हिपहर्त् को सहती रहती है। ऄमरकान्त ने हसद्धेश् िरी के

मनोभािं को पूरी तन्मयता के साथ हचहत्रत ककया है। आस कहानी के बारे मं ऄब्दुल हबहममल्लाह ने हलखा है कक दोपहर का

भोजन कहानी पढ़ते समय प्रेमचन्द की याद ताजा हो ईठती है। समाज की हजन हिरूप हमथहतयं का हचत्रण प्रेमचन्द ने

(5)

HND : हहन्दी P6: हहन्दी गद्य साहहत्य : कथा साहहत्य M31: दोपहर का भोजन

ककया, ईन्हं जैसी ऄन्य हिरूपताओं पर ऄमरकान्त ने कटाक्ष ककया।

दोपहर का भोजन कहानी का ढहता हुअ जजषर पररिार बार-बार मन को झकझोर देता है और सोचने पर मजबूर कर देता

है कक जीिन की यह ऄसमानता कब तक बनी रहेगी?” (सं. रिीन्र काहलया, ऄमरकान्त एक मूल्यांकन, पृष्ठ सं.-250)

5. हशल्प

ऄमरकान्त की भाषा सहज, सरल और सादगी भरी है। ईनमं न तो ककसी प्रकार का अिरण है और न ही भाषा को ऄलंकृत करने की प्रिृहर्त्। भाषा की सहजता के कारण आनकी कहाहनयं मं सम्प्रेषणीयता ज्यादा है।ऄमरकान्त की भाषा के बारे मं

नामिर डिसह ने हलखा है कक “ऄमरकान्त की भाषा प्रेमचन्द की भाषा का ऄद्यतन हिकास है। िही सादगी और िही सफाइ है। पढ़ने पर गद्य की शहक्त मं हिश्वास जमता है।” (नामिर डिसह, कहानी : नयी कहानी, लोक भारती, आलाहबाद, पृष्ट सं.- 37) ऄमरकान्त कम शब्दं मं ज्यादा कहने की कला मं पारंगत है। जैसे िह हलखते है कक रामचन्र ऄपनी तहबयत से

प्रूफरीडरी का काम सीखता है। यहाँ ‘ऄपनी तहबयत से’ के कइ ऄथष ऄहभव्यंहजत होते हं। आस सन्दभष मं सुरेन्र चौधरी

हलखते हं की “दोपहर का भोजन जैसी कहाहनयाँ ऄमरकान्त की कहाहनयं मं एक खास मथान रखती है। ऐसी कहाहनयं के

हलए ऄमरकान्त को बुनािट की अिश्कयता नहं होती और ना ईन कोणं की अिश्यकता होती है जो मार्थमक बनाने के

काम मं लाये जाते है। िातािरण और व्यहक्त के सार का ऄन्तर्थिरोध सहज ही आस कथ्य को प्रभािकर बना जाता है।” (सं.

रिीन्र काहलया, ऄमरकान्त एक मूल्यांकन, पृष्ठ सं.-153) यह ऄमरकान्त की हिशेषता है कक सामाहजक जीिन की

हिसंगहतयं को भी हिनोद युक्त तरीके से ईद्घारटत करते हं। ऄमरकान्त ने कहानी को प्रभािशाली बनाने के हलए सांकेहतकता का सहारा हलया है। दोपहर का भोजन कहानी मं ऐसे संकेत हमलते हं हजससे कहानी के ऄनछुए पहलुओं का

पता चलता है, “हसद्धेश् िरी की समझ मं नहं अ रहा था कक क्या कहे? िह चाहती थी कक सभी चीजं ठीक से जान ले और दुहनया की हर चीज पर पहले की तरह धड़ल्ले से बात करे, पर ईसकी हहम्मत नहं होती थी। ईसके कदल मं न जाने कैसा

भय समाया हुअ था।” (सं. रिीन्र काहलया, ऄमरकान्त की सम्पूणष कहाहनयाँ भाग -1, पृष्ट सं. 67) यहाँ मपष्ट संकेत है कक हसद्धेश् िरी के पररिार की हमथहत पहले ऐसी नहं थी जो ऄब है। संिादहीनता का माहौल पहले नहं था। ऄब तो ईसे ऄपने

ही बेटं से बात करते हुए डर लगता है। हिश् िनाथ हत्रपाठी हलखते है “ऄमरकान्त के यहाँ सन्त्रास या एब्सर्थडटी हनरपेक्ष या

ककसी मूल्य के रूप मं नहं है, िह पात्र की हिहशष्ट हमथहत व्यंहजत करने के हलए जीिन का ऄंग बन कर ऄिाँछनीय तत्ि

रूप मं अती है। िह सतही तौर पर हामयामपदता और गहरे तौर पर करुणा ईत्पन् न करती है।” (सं. रिीन्र काहलया, ऄमरकान्त एक मूल्यांकन, पृष्ठ सं. 139) दोपहर का भोजन कहानी मं भी एब्सर्थडटी के तत्ि कदखते है जैसे हसद्धेश् िरी का

ऄचानक से ये पूछना की बाररश नहं होगी और आसके जिाब मं चहन्रका प्रसाद का यह कहना की महक्खयाँ बहुत हो गइ है। पात्रं का यह एब्सडष व्यव्हार िमतुहमथहत की तकषहीनता को व्यंहजत करता है। ऄमरकान्त की कहाहनयं की सबसे बड़ी

हिशेषता है – कथानक। आन्हंने हजन सामाहजक हिसंगहतयं, हिडम्बनाओं, ऄन्तर्थिरोधं को जैसा देखा ि महसूस ककया, ईन्हं ऄपनी कहाहनयं की घटनाओं ि पात्रं मं मूतष कर कदया। यही कारण है कक आनकी कहाहनयं को पढ़ने के पश्चात ऐसा

लगता है कक यह तो हमारा देखा हुअ है या समाज मं ऐसा ही होता है। परमानन्द श्रीिामति ऄमरकान्त के हशल्प के बारे

मं हलखते हं “ऄमरकान्त सामाहजक संलग् नता को रचना का खास ईद्देश्य मानते है और आसी ऄनुसार ऄपनी कहाहनयं का

हनमाषण करते हं। गैर महत्िपूणष साधारण सच् चाआयं के हनकट हमथत ऄमरकान्त की कहाहनयाँ एक खास सरल ऄन्दाज मं

कहं गइ हं, हजन पर रूपिादी हिहशष्टता का कोइ अतंक नहं है।” (सं. रिीन्र काहलया, ऄमरकान्त एक मूल्यांकन, पृष्ठ सं.

169)

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HND : हहन्दी P6: हहन्दी गद्य साहहत्य : कथा साहहत्य M31: दोपहर का भोजन

6. हनष्कषष

ऄमरकान्त ने दोपहर का भोजन कहानी का ताना-बाना हसद्धेश् िरी के चारं तरफ बुना है। कहानीकार की मंशा भी

हसद्धेश् िरी के दुःख, हचन्ता को कदखाना ही है। एक गृहणी के रूप मं हसद्धेश् िरी अर्थथक तंगी को झेलते हुए भी ऄपने

पररिार की भलाइ के बारे मं हचहन्तत रहती है। ईसे डर है कक आस ऄभाि मं ऄपने पररिार को टूटने से कैसे बचाए? माँ के

रूप मं हसद्धेश् िरी की हििशता आस कहानी मं साफ झलकती है। आसहलए िह ऄपने पहत एिं बच् चं से ही झूठ बोलती है।

अर्थथक तंगी और ऄभािं से जूझते पररिार को मानहसक रूप से जोड़ने के दाहयत्ि का एक मध्यिगीय म त्री ऄपने अप ककस तरह हनिषहन करने लगती है, जो सामान्य भारतीय समाज की हिहशष्टता है, आसे ऄमरकान्त ने बारीकी से आस कहानी मं

प्रमतुत ककया है। हबना ककसी हििरण के ईन्हंने हसद्धेश् िरी के माध्यम से एक म त्री की हििशता और एक माता की अहत भािनाओं और अशंकाओं को गहराइ से ईकेरा है।

References