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HND : हहन्दी P 14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M15 : कल्पना-हसद्धान्त

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HND : हहन्दी P 14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M15 : कल्पना-हसद्धान्त

हिषय हहन्दी

प्रश् नपर सं. एिं शीषषक P 14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र आकाइ सं. एिं शीषषक M 15 : कल्पना-हसद्धान्त

आकाइ टैग HND_P14_M15

प्रधान हनरीक्षक प्रो.रामबक्ष जाट प्रश् नपर-संयोजक प्रो. ऄरुण होता

आकाइ-लेखक डॉ. कृष्णदत्त शमाष आकाइ-समीक्षक प्रो. एस.सी. कुमार

भाषा-सम्पादक पूजा राधा

पाठ का प्रारूप

1. पाठ का ईद्देश्य 2. प्रस्‍ततािना

3. कल्पना : हिहिध धारणाएँ

4. कल्पना का स्‍तिरूप : मुख्य (प्राथहमक) कल्पना और गौण (हिधायक) कल्पना

5. हिधायक कल्पना के प्रकायष

6. हनष्कषष

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HND : हहन्दी P 14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M15 : कल्पना-हसद्धान्त

1. पाठ का ईद्देश्य

आस पाठ के ऄध्ययन के ईपरान्त अप –

 कल्पना की हिहिध धारणाओं से पररहचत हो सकंगे।

 कल्पना के सन्दभष मं कॉलररज के हिचारं से पररहचत हो सकंगे।

 कल्पना के स्‍तिरूप को समझ पाएँगे।

 हिधायक कल्पना के हिहिध कायं को जान पाएँगे।

2. प्रस्‍ततािना

कॉलररज की सैद्धाहन्तक अलोचना ईनकी एक महत्त्िपूणष ईपलहधध है। ईनका ‘कल्पना हसद्धान्त’ आस सैद्धाहन्तक अलोचना

का हशखर है। ईन्हंने सृजनशीलता को ‘कल्पना’ नाम ददया। ‘कल्पना’ के ऄपने अशय को स्‍तपष्ट करने मं ईन्हंने ऄपना पूरा

जीिन लगा ददया। आस ऄिधारणा के ऄन्तगषत ईन्हंने रचनाशीलता से जुड़ी पूरी संहश् ल ष्टता को समेटने का प्रयास दकया और

‘कल्पना’ को स्‍तिच्छन्दतािादी अलोचना के बीज शधद के रूप मं प्रहतहित दकया।

3. कल्पना : हिहिध धारणाएँ

कॉलररज से पहले आंग्लैण्ड और जमषनी मं ऄनेक साहहत्यकार-हिचारक कल्पना के स्‍तपरूप पर हिचार कर चुके थे। आनमं

ड्राआडन, एहडसन, हॉधस और काण्ट का हििेचन तो पयाषप् त प्रहसद्ध है। ऐसे मं सहज ही हमारे मन मं यह प्रश् न ईठता है दक कल्पना को लेकर आतने उहापोह के बािजूद कॉलररज ने ऐसा क्या कहा जो आस ऄिधारणा के साथ ईनका नाम ऄहभन् न रूप से जुड़ गया। आससे हमं आतना तो समझ ही लेना चाहहए दक ईन्हंने आस हिषय मं ऄिश्य ही ऐसा कुछ कहा होगा जो परिती

पीहऺढयं को सबसे ज्यादा ग्राह्य हुअ। सृजनशीलता एक ऐसा तत्त्ि है, जो केिल काव्य या साहहत्य तक सीहमत नहं है। ऄन्य ज्ञान-हनकायं से भी आसका सम्बन्ध है। हनश् चय ही ईनके हििेचन मं ऐसी सामर्थयष होगी दक िह ज्ञान के ऄन्य क्षेरं पर भी

लागू हो सके। आस पररकल्पना के साथ हम कॉलररज के ‘कल्पना हसद्धान्त’ पर हिचार कर सकते हं।

कॉलररज ने दाशषहनक हसद्धाऩ्ततं को ऄपनी साहहत्य-समीक्षा का अधार बनाया। िे अलोचना को एक व्यिहस्‍तथत प्रणाली का

रूप देना चाहते थे। रचना के गुण-दोष-हििेचन मं ईनकी ईतनी ददलचस्‍तपी नहं थी। ईन्हंने आस मूल प्रश् न पर हनगाह जमाइ दक सम्बद्ध रचना रची कैसे गइ। कॉलररज के ऄनुसार, “अलोचना का ईद्देश्य साहहत्य-रचना के हनयमं का पता लगाना है, दूसरं के हलखे हुए पर हनणषय देना नहं।” आन हसद्धान्तं को ईन्हंने ‘मानि-प्रकृहत’ मं खोजने की कोहशश की, क्यंदक मानि- अत्मा की सजषनात्मक शहियाँ ही ईसे जन्म देती हं। ईनके हचन्तन का केन्र िह सृजन-प्रदिया है, हजसके माध्यम से कहिता

रूप ग्रहण करती है। यही िजह है दक कहिता की व्याख्या पर ईनका ईतना बल नहं रहता, हजतना ईसकी सृजन-प्रदिया

पर। ईन्हंने ज्यादा बल आस बात पर ददया दक कलाकृहत का मूल्यांकन ईसी भािना से दकया जाना चाहहए, हजससे ईसकी

रचना की गइ थी। पररणामस्‍तिरूप सृजन-प्रदिया, कहि-प्रहतभा और हिशेष रूप से कल्पना का हििेचन-हिश् लेषण जरूरी हो

ईठा।

कॉलररज से पहले कल्पना के बारे मं कइ तरह की संगत-ऄसंगत धारणाएँ प्रचहलत थं। एक धारणा तो यह थी दक कल्पना

एक ददव्य या रहस्‍तयमय शहि है, हजसकी तकषसंगत व्याख्या सम्भि नहं है। यह ऄव्याख्येय है। ड्राआडन के ऄनुसार, ”ईहचत प्रहतभा प्रकृहत का िरदान है।... आसमं पररष्कार कैसे दकया जाए, यह ऄनेक ग्रन्थ बतला सकते हं, दकन्तु आसे प्राप् त कैसे करं,

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यह बताने िाला कोइ ग्रन्थ नहं है।’’ िर्डसषिथष ने ‘एक खास तरह की

ददव्य दृहष्ट’ के रूप मं आसका बार-बार ईल्लेख दकया है। यह दृहष्ट हमारे सामने या तो प्रकट होती है या दिर नहं होती।

आसहलए हमं ईसको खोजने का प्रयास नहं करना चाहहए। हमं तो बस ईसके प्रकट होने का आन्तजार करते रहना चाहहए;

ईस समय तक जब तक िह ऄचानक हमारे सामने ईद्भाहसत न हो ईठे। दूसरे, कहि-प्रहतभा का सम्बन्ध ईन्माद से जोड़ा

गया था। यह धारणा कािी पुरानी थी और आसे कइ प्रहतहित दाशषहनकं और रचनाकारं का समथषन प्राप् त था। प्लेटो ने कहा

ही था दक कहि हजस समय रचना करता है, िह एक प्रकार की अहिष्ट या ऄसामान्य मनोदशा मं होता है। शेक्सहपयर ने

‘पागल, प्रेमी और कहि’ को एक स्‍ततर पर रखा है, क्यंदक आन तीनं मं कल्पना का ऄहतरेक होता है। ड्राआडन ने यह मान्यता

व्यि की है दक ‘महान प्रहतभा का पागलपन से हनश् चय ही नजदीकी ररश्ता होता है।’ स्‍तियं स्‍तिच्छन्दतािादी युग मं

ऄसामान्य िेशभूषा, मद मं झूमते हुए चलने और हिशेष रूप से तुनकहमजाजी को कहि या प्रहतभासम्पन् न व्यहि का लक्षण माना जा रहा था और कइ कहि ऄपने-अपको प्रहतभािान हसद्ध करने के हलए आस तरह का अचरण करते ददखाइ देते थे।

तीसरी धारणा हॉधस, लॉक, ह्यूम, हाटषले अदद ऄनुभििादी-साहचयषिादी दाशषहनकं के माध्यम से सामने अइ थी; हजनके

ऄनुसार कल्पना एक हबम्बहिधाहयनी शहि है। आसका मुख्य काम है आहन्रय-संिेदन को मनहश् च रं मं रूपान्तररत करना। आस धारणा के ऄन्तगषत कल्पना, स्‍तमृहत की तरह, एक याहन्रक शहि भर बनकर रह गइ थी, हजसमं सृजन या निोन्मेष के हलए कोइ स्‍तथान नहं था। चौथे, जमषनी के भाििादी दशषन मं कल्पना के स्‍तिरूप पर हिचार दकया गया था, हिशेष रूप से काण्ट मं। काण्ट के ऄनुसार कल्पना एक मध्यिती शहि है, जो आहन्रयबोध को हिचार मं बदलती है। कल्पना के हबना न तो

आहन्रयबोध सम्भि है, न हिचार।

जाहहर है दक कल्पना के बारे मं ईि धारणाएँ कॉलररज को मान्य नहं थं। कल्पना को एक ‘ददव्य शहि’ मानते हुए भी िे

ईसे रहस्‍तयमय नहं मानते थे। कारण, ईसे रहस्‍तयमय मानने का ऄथष होगा ऄपनी ऄक्षमता पर परदा डालना। ईनके ऄनुसार कहि-प्रहतभा की व्याख्या ऐसी होनी चाहहए, जो सामान्य बुहद्ध को सहज ग्राह्य हो। कहि-प्रहतभा और ईन्माद के सम्बन्ध को

लेकर कॉलररज का मानना है दक यह धारणा ऄधषसत्य है, कल्पना के केिल एक पक्ष पर बल देने का पररणाम। सामान्य जन की संिेदना की तुलना मं कहि की संिेदना ऄहधक तीव्र और प्रखर होती है। यह संिेदनशीलता प्रहतभा की हिशेषता ही नहं, ईसका ऄहिभाज्य ऄंग है। यह तीव्र संिेदना हनश् चय ही कहि-प्रहतभा का ऄहनिायष घटक है। आससे यह सम्भािना बनती है

दक कहि ‘मानहसक ऄसन्तुलन की ददशा मं’ चला जाए। दकन्तु यह तो कहि-प्रहतभा का एक घटक है। आसके साथ कहि मं

‘सामान्य से ऄहधक गहत से िस्‍ततुओं मं सम्बन्ध-स्‍तथापन की योग्यता होती है; एक हिचार से दूसरे हिचार तक, और एक हबम्ब से दूसरे हबम्ब तक, जाने की सामान्य से ऄहधक योग्यता।’ यह घटक भी ईतना ही जरूरी है। सच् ची प्रहतभा आन दोनं घटकं

के परस्‍तपर संशोधन-सन्तुलन मं हनहहत है।’ हचड़हचड़ापन और तुनकहमजाजी भी, कॉलररज के ऄनुसार, छोटी या छद्म- प्रहतभाओं मं देखने मं अती है। जो िास्‍तति मं प्रहतभासम्पन् न हं, ईनकी तुलना मं ऐसे लोगं की संख्या कहं ज्यादा होती है, जो प्रहतभासम्पन् न समझे जाते हं। तुनकहमजाजी का नाटक ऐसे ही छद्म प्रहतभािान ऄहधक करते हं। बड़ा रचनाकार दूसरं

के दुख या पीड़ा से तो तत्काल रिीभूत हो ईठता है, दकन्तु ऄपनी पीड़ा के बारे मं प्रायः शान्त-संयत रहता है।

लॉक-हाटषले अदद ऄनुभििादी-साहचयषिादी दाशषहनकं से तो कॉलररज एकदम ऄसहमत थे। ईनके ऄनुसार मन की जो

शहि साहचयष-हसद्धान्त पर अधाररत है और जो हबम्ब हनमाषण मं सदिय रहती है, िह हनहष्िय और याहन्रक है। कल्पना की

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सृजनशीलता से ईसका कोइ सम्बन्ध नहं है। ईसका सम्बन्ध तो लहलत-

कल्पना (िंसी) और स्‍तमृहत से है। लहलत-कल्पना और स्‍तमृहत के बाद मानि-मन के जो काम शेष रहते हं, ईनका सम्बन्ध हििेक और कल्पना से है। यही नहं, आहन्रयबोध, प्रत्यक्षण अदद सभी स्‍ततरं पर आच्छाशहि और हििेक की हनणाषयक भूहमका रहती है। हम िही देखते हं, जो देखना चाहते हं। हर हस्‍तथहत मं और हर समय ‘आच्छाशहि और हििेक’ सदिय रहते

हं। िे पूरी तरह हनलहम्बत कभी नहं होते। जमषन दशषन के ऄन्तगषत काण्ट की आस धारणा से तो िे सहमत हं दक कल्पना

हमारे आहन्रयबोध का अधार है; कल्पना की ऄपनी प्रहसद्ध पररभाषा मं ईन्हंने आस हिचार को शाहमल भी दकया है; दकन्तु

काण्ट की आस मान्यता से िे सहमत नहं हं दक ‘आहन्रयबोध और हिचार के बीच’ कल्पना एक मध्यिती की भूहमका हनभाती

है। िे ईसे ऄहधक हनणाषयक और केन्रीय भूहमका देना चाहते हं, प्रायः इश् िर के समकक्ष। िे इश् िर, मानि-मन और कल्पना

को एक ही स्‍ततर पर रखने के पक्षधर हं।

कल्पना की परम्परागत धारणाओं से सन्तोष न होने पर कॉलररज ने ऄठारहिं सदी की ऄंग्रेजी काव्य-परम्परा मं आसका

साक्ष्य खोजने की कोहशश की। पोप और ईनके ऄनुयाहययं, ऄथिा फ्रांसीसी काव्य-परम्परा से ईन्हं कोइ सहानुभूहत नहं

थी। ईनके काव्य मं कृहरमता और जहाँ-तहाँ ‘महज निीनता’ की अकांक्षा थी। जीहित कहियं मं केिल कूपर और बाईल्स ही पहले ऐसे कहि हमले, हजनमं ईन्हं ‘हृदय और बुहद्ध का िह सामंजस्‍तय’ ददखाइ ददया, हजसे िे कल्पना की एक महत्त्िपूणष हिशेषता मानते थे। कल्पना को लेकर आसी उहापोह के दौर मं ईनकी पहली बार िर्डसषिथष से भंट हुइ। िर्डसषिथष ने ऄपनी

पाण्डुहलहप से एक कहिता पढ़कर कॉलररज को सुनाइ। कहिता सुनकर ईनके मन पर हबजली-जैसा ऄसर हुअ और ईन्हं ऐसा

लगा जैसे कल्पना स्‍तियं रूप धरकर ईनके सामने प्रत्यक्ष हो गइ हो। बायोग्रादिया हलटरेररया के चौथे ऄध्याय मं आस प्रत्यक्षीकरण का बड़ा ही जीिन्त हििरण कॉलररज ने ददया है। पूरी कहिता मं हिचार सहज, भाषा सहज। हबम्बं का कोइ ऄहतरंहजत जमाि नहं।... यह गहन भािं का गम्भीर हिचारं के साथ सामंजस्‍तय था। िहाँ भाि और हिचार मं कोइ भेद नहं था। कॉलररज से पहले ‘कल्पना’ और ‘लहलत कल्पना’ (िैन्सी) मं कोइ भेद नहं था। ईन्हं या तो एक-दूसरे का पयाषय माना जाता था, या दिर एक ही शहि का ईच् च और हनम् न स्‍ततर। िर्डसषिथष के मुख से कहिता सुनते-सुनते ऄचानक ईन्हं यह लगा दक कल्पना और लहलत कल्पना दो ऄलग-ऄलग और एक-दूसरे से हनतान्त हभन् न शहियाँ हं। बाद मं हचन्तन-मनन से

ईनकी यह धारणा पुष्ट भी हुइ। यहाँ महत्त्िपूणष बात यह है दक कॉलररज को कल्पना के बारे मं सबसे महत्त्िपूणष सूर समसामहयक रचनाशीलता से हमला।

4. कल्पना का स्‍तिरूप : मुख्य (प्राथहमक) कल्पना और गौण (हिधायक) कल्पना

कल्पना को पररभाहषत करते समय कइ समस्‍तयाएँ कॉलररज के ददमाग मं थं। कल्पना का एक स्‍ततर ऐसा है, हजसमं कहि और ऄन्य लोगं मं कोइ ऄन्तर नहं होता । िे दोनं एक-समान हं। यह कल्पना का व्यापक स्‍ततर है। दूसरे, कल्पना की सम्पूणष प्रदिया मं कुछ ऄंश हनहष्िय और याहन्रक भी होता है, जैसे आहन्रयबोध को हबम्बं या मनहश् च रं मं रूपान्तररत करना, स्‍तमृहत अदद। सृजनशीलता मं आनकी कुछ-न-कुछ भूहमका रहती है, बेशक यह भूहमका सृजनात्मक नहं होती। कल्पना के

स्‍तिरूप-हििेचन मं आस याहन्रक भूहमका की क्या हस्‍तथहत रहे? तीसरे, हनहष्िय तथा याहन्रक कायष के बाद जो ऄन्य भूहमकाएँ

बच रहती हं, िे दकसके हहस्‍तसे मं अएँ? सामान्य जन की कल्पना से हभन् न कहि-कल्पना के स्‍तिरूप और ईसके प्रकायष को कहाँ

स्‍तथान हमले? कल्पना या सृजनशीलता के हििेचन का मुख्य लक्ष्य तो कहि-कल्पना ही है। कहि-कल्पना करती क्या है, ईसके

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HND : हहन्दी P 14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M15 : कल्पना-हसद्धान्त

मुख्य प्रकायष क्या हं, आस बारे मं कहि के रूप मं स्‍तियं ईनके ऄनुभि भी

थे, हजनका सहन् न िेश िे कल्पना के स्‍तिरूप-हििेचन मं करना चाहते थे। बहल्क कहना चाहहए दक आन पर ईनका हिशेष बल था। दिर, कल्पना से हमलती-जुलती जो ऄन्य ऄिधारणाएँ हं, जैसे प्रज्ञा (Talent) और प्रहतभा (Genius),ईन्हं कहाँ रखा

जाए? कल्पना के सन्दभष मं ईनकी क्या हस्‍तथहत रहे? आन सारी समस्‍तयाओं को ध्यान मं रखकर िे कल्पना को आस रूप मं

पररभाहषत करना चाहते थे, हजसमं एक हद तक आन समस्‍तयाओं का समाधान हमले?

ऄपने हिचारं को ऄहिस्‍तमरणीय शधदािली मं ढालने की कॉलररज मं ऄद्भुत क्षमता थी। यही िजह है दक पूिष- स्‍तिच्छन्दतािादी और स्‍तिच्छन्दतािादी युगं मं कल्पना के स्‍तिरूप और प्रकायष को लेकर जो चचाष हुइ है, ईसमं कॉलररज की

चचाष की ओर पाठकं और अलोचकं का ध्यान सबसे पहले जाता है। ईनकी कल्पना-हिषयक पररभाषा को प्रहतहनहध स्‍तिच्छन्दतािादी पररभाषा माना जा सकता है। आसमं ईन्हंने स्‍तिच्छन्दतािादी दौर की रचनाशीलता की पूरी संहश् ल ष्टता को

समाहहत करने की कोहशश की। बायोग्रादिया हलटरेररया के तेरहिं ऄध्याय के ऄन्त मं ईन्हंने कल्पना को आन शधदं मं

पररभाहषत दकया– मेरे हिचार से कल्पना या तो मुख्य होती है या दिर गौण । मुख्य कल्पना एक जीिन्त शहि है और मानि के सम्पूणष आहन्रयज्ञान का प्रमुख साधन है। यह सीहमत मन मं ऄसीम सत्ता की सृजन-शहि की अिृहत्त है। गौण कल्पना को मं आसी मुख्य कल्पना की प्रहतध्िहन मानता हूँ। आसका ऄहस्‍ततत्ि चेतन आच्छा शहि के साथ होता है, दकन्तु दिर भी साधन के प्रकार की दृहष्ट से यह मुख्य कल्पना के समरूप ही होती है। आसमं जो भेद है िह केिल मार और कायष पद्धहत का है। यह पुनःसृजन के ईद्देश्य से, मुख्य कल्पना से, प्राप् त सम्पूणष सामग्री का, हिलयन करती रहती है, ईसे गलाती- हपघलाती रहती है; ऄथिा जहाँ यह प्रदिया सम्भि नहं हो पाती िहाँ भी हर हाल मं यह अदशीकरण और एकीकरण के

हलए संघषष करती है। यह ऄहनिायष रूप से जीिन्त होती है, जबदक सभी िस्‍ततुएँ (िस्‍ततु के रूप मं) ऄहनिायषतः हस्‍तथर और जड़

होती हं। आसके हिपरीत लहलत-कल्पना मं हस्‍तथरता और सुहनहश् च तता के ऄलािा ऐसे कोइ साधन नहं होते, हजनको लेकर

िह व्यस्‍तत रहे। िास्‍तति मं लहलत-कल्पना देश काल के बन्धन से मुि-स्‍तमृहत का ही एक प्रकार है। यह आच्छा-शहि की ईस ऄनुभिमूलक दिया से हमहित और रूपान्तररत होती है, हजसे हम शधद चयन से व्यि करते हं, दकन्तु सामान्य स्‍तमृहत के साथ ही यह ऄपनी सम्पूणष सामग्री, जो पहले से बनी-बनाइ होती है, बराबर साहचयष-हनयम द्वारा ही ग्रहण करती है।

ईपयुषि पररभाषा के पहले ऄनुच्छेद मं कॉलररज ने कल्पना के दो भेद बताए हं और दोनं भेदं के स्‍तिरूप और कायं का

हनदेश दकया है। दूसरे ऄनुच्छेद मं लहलत कल्पना का हनरूपण है।

कॉलररज के ऄनुसार कल्पना के दो भेद हं – मुख्य और गौण। मुख्य कल्पना हमारे आहन्रयबोध का अधार है। मुख्य कल्पना के

सहयोग के हबना हमं आहन्रयं से जो कुछ प्राप् त होगा, िह एकदम ऄव्यिहस्‍तथत, खहण्डत और गड्ड-मड्ड होगा। मुख्य कल्पना

आहन्रयसंिेदन को आहन्रयबोध मं बदलती है। ईसकी यह दिया सृजनात्मक है। मन आच्छाशहि-सम्पन् न स्रष्टा है। मन की यह सृजनशीलता आहन्रयसंिेदन को याहन्रक प्रदिया भर नहं रहने देती। आहन्रयबोध की प्रदिया को ईन्हंने सृजनात्मक आसहलए कहा दक िे आसमं मन की सदिय भूहमका को रेखांदकत करना चाहते हं। यह प्रदिया न तो सीधा-सादा बाह्यीकरण है, न तटस्‍तथ भाि से आहन्रयसंिेदन का अभ्यन्तरीकरण। यह आन दोनं प्रदियाओं का ऄत्यन्त सूक्ष्म सन्तुलन है। कल्पना िह सामान्य अधार है, जहाँ से संिेदना और हििेक दोनं का ईदय होता है। आहन्रयसंिेदन के साथ मुख्य कल्पना का सहन् न कषष होने पर ही हमं दृश्य जगत का व्यिहस्‍तथत ज्ञान प्राप् त होता है। आहन्रयज्ञान का अधार होने की िजह से मुख्य कल्पना का

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सम्बन्ध सभी हचन्तनशील प्राहणयं से है। चूँदक आसका सम्बन्ध मानि-

मार से है, आसका अधार-िलक ऄत्यन्त व्यापक है, ऄतः आसे ‘मुख्य कल्पना’ कहना ईहचत ही है। यह ‘मन की सम्पूणष समहन्ित गहतहिहध’ की द्योतक है। यह हिचार फ्रांसीसी िाहन्त द्वारा प्रेररत लोकताहन्रक हिचारं के मेल मं भी है।

मुख्य कल्पना की दूसरी हिशेषता है जीिन्तता। यह एक जीिन्त शहि है। ‘जीिन्त’ से कॉलररज का अशय है सदिय और जैहिक, हनहष्िय और याहन्रक नहं। याहन्रक और जैहिक रूपहिधान मं कॉलररज ने ऄन्तर भी स्‍तपष्ट दकया, िह भी

ऄहिस्‍तमरणीय शधदािली मं। आहन्रयं से जो सामग्री प्राप् त होती है, ईसमं मुख्य कल्पना जीिन्तता का संचार करती है और ईसे जैहिक ऄहन्िहत मं ढालती है। सांसाररक ‘िस्‍ततुएँ, िस्‍ततु के रूप मं, हस्‍तथर और जड़’ हं। िे ऄहनिायष रूप से सीहमत हं, और ईनमं ऄपने-अप मं दियाशहि की योग्यता नहं है। दकन्तु जब दकसी जाने-पहचाने भूदृश्य पर ‘चाँदनी की दकरणं’ या ‘संध्या

के धूपछाँही रंग’ पड़ते हं, तो ईसका कायाकल्प हो जाता है, ईसी प्रकार स्‍तमृहत और लहलत-कल्पना से हमं जो सामग्री प्राप् त होती है िह याहन्रक और हनजीि होती है, दकन्तु प्रकृहत और मानि-अत्मा के परस्‍तपर सम्बद्ध होने से, और कल्पना के रंगं

से, ईसमं निजीिन का संचार हो जाता है। कल्पना ऐसी जादुइ शहि है, जो हमं हमर्थयात्ि का ऄहसास नहं होने देती।

आसके ऄहतररि, मुख्य कल्पना ‘सीहमत मन मं ऄसीम सत्ता की सजषना-शहि की अिृहत्त है।’ दूसरे शधदं मं, आहन्रयबोध के

दौरान मन की जो सृजन-शहि है, िह सृजन के दौरान इश् िरीय शहि की ही अिृहत्त है। यहाँ कॉलररज कहना चाहते हं दक मुख्य कल्पना मनुष्य मं इश् िर की प्रहतहनहध है। द फ्रेण्ड मं ईन्हंने हलखा – ‘हिधाता ने अत्मरूप मं ही मानि की सृहष्ट की।’

कॉलररज इश् िर, मानि-मन और कल्पना को एक ही स्‍ततर पर रखते हं, ऄतः जो हिशेषताएँ इश् िर मं हं, िे मानि-मन और कल्पना मं भी ददखाइ दंगी। मानि-मन इश् िर के मानस का सबसे सशि प्रतीक है। आसीहलए अत्महिश् लेषण मूल्यिान दिया

है। ऄपने-अपको जानने का प्रतीकात्मक ऄथष है, इश् िर को जानना। कल्पना ईस इश् िर को जानने की कुंजी है। बहल्क कल्पना

को िे इश् िर का ऄत्यन्त हिराट प्रहतरूप मानते हं। जैसे इश् िर संसार मं सिषर व्याप् त रहता है, दकन्तु कहं ददखाइ नहं देता

ईसी प्रकार शेक्सहपयर जैसे महान रचनाकार ऄपनी रचनाओं मं सिषर व्याप् त रहते हुए भी ऄलहक्षत रहते हं, ऄपने हनजी

व्यहित्ि को कहं अरोहपत नहं करते।

गौण (या हिधायक) कल्पना ‘मुख्य कल्पना की प्रहतध्िहन’ है; मुख्य कल्पना की सृजनशीलता की प्रहतध्िहन। आहन्रयबोध के

दौरान जो सृजन-शहि मुख्य कल्पना मं कायषरत रहती है, ईसी की प्रहतध्िहन गौण कल्पना है। ‘प्रहतध्िहन’ शधद से कॉलररज संकेत करना चाहते हं दक मुख्य कल्पना का पूिष-ऄहस्‍ततत्ि गौण कल्पना के ऄहस्‍ततत्ि की ऄहनिायष शतष है। आन दोनं मं

कॉलररज कोइ गुणात्मक ऄन्तर नहं मानते। कलात्मक सृजन हमारे दैनहन्दन आहन्रयबोध जैसा ही है। ईनमं जो ऄन्तर है िह

‘केिल मारा और कायष-पद्धहत’ का है, प्रकारगत या गुणात्मक नहं। हिधायक कल्पना के हलए संिेदनशीलता ऄहधक चाहहए, अियहिक आकाइ मं ढालने की योग्यता ऄहधक चाहहए। दोनं की कायष-पद्धहत मं ऄन्तर यह है दक मुख्य कल्पना जहाँ केिल हनमाषण करती है, िहाँ गौण कल्पना नाश और हनमाषण दोनं। यह ऄन्तर अगे के हििेचन से और स्‍तपष्ट होगा।

5. हिधायक कल्पना के प्रकायष

कल्पना के बारे मं कॉलररज के ईि हिचारं मं दाशषहनकता का पुट है। मुख्य कल्पना सीहमत मन मं ऄसीम सत्ता की सृजन- शहि की अिृहत्त है और गौण या हिधायक गौण कल्पना ईस अिृहत्त की प्रहतध्िहन। आससे हमं ऄद्वैतिाददयं के ब्रह्म और

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अत्मा का स्‍तमरण हो अता है। काण्ट, शेलिलग अदद जमषनी के भाििादी

हिचारकं का प्रभाि यहाँ प्रत्यक्ष है। मुख्य कल्पना का सम्बन्ध जहाँ मनुष्य-मार से है, िहाँ हिधायक गौण कल्पना कहि- कलाकार का हिशेष िरदान है। मुख्य कल्पना की तुलना मं सूक्ष्मता और गहराइ ऄहधक होने के बािजूद, आसका अधार-

िलक ऄपेक्षाकृत सीहमत है। आसका सीधा सम्बन्ध कहि-रचनाकारं से है, व्यापक जन-समुदाय से नहं। शायद आसीहलए कॉलररज ने आसे ‘गौण कल्पना’ कहा है। िास्‍तति मं कॉलररज की प्रहतभा का हनदशषन कल्पना के स्‍तिरूप-हििेचन मं ईतना

नहं ददखाइ देता, हजतना हिधायक कल्पना की कायषहिहध हनरूहपत करने मं; ऄथाषत् यह बताने मं दक काव्य-सृजन के दौरान

िह दियाशील कैसे होती है। स्‍तिच्छन्दतािादी कहि के रूप मं स्‍तियं ऄपने ऄनुभि से भी ईन्हं आसके हिश् लेषण मं मदद हमली

होगी। कॉलररज के ‘कल्पना-हसद्धान्त’ का सबसे शहिशाली पक्ष हिधायक कल्पना की कायषहिहध का हनरूपण ही है। यह हनरूपण ितषमान हिमशं के सन्दभष मं भी प्रासंहगक है।

हिधायक कल्पना का सिषप्रमुख कायष है मुख्य कल्पना से प्राप् त सामग्री का हिखण्डन और हिलयन। यह हिखण्डन या हिलयन हनरुद्देश्य नहं होता। आसके पीछे ईद्देश्य रहता है पुनःसृजन; पुरानी संरचनाएँ तोड़कर नइ संरचना बनाना। स्‍तियं कॉलररज के

शधदं मं ‘हिधायक कल्पना पुनःसृजन के ईद्देश्य से, मुख्य कल्पना से प्राप् त सम्पूणष सामग्री का, हिलयन करती रहती है, ईसे

गलाती-हपघलाती रहती है।’ िह नाश भी करती है और हनमाषण भी। कहना चाहहए दक नाश पुनःसृजन के ईद्देश्य से प्रेररत होता है। दकसका नाश? स्‍तपष्ट ही मुख्य कल्पना से प्राप् त सामग्री का। आस सामग्री को हिधायक कल्पना ज्यं-का-त्यं ईपयोग मं नहं लाती। पहले िह मुख्य कल्पना के हिन्यास को हिखहण्डत या हिस्‍तथाहपत करती है, दिर ईसे नया हिन्यास देती है, ईसे एक नइ संरचना मं ढालती है। हिखण्डन-हिस्‍तथापन का यह कायष, निीन हिश् ि-दृहष्ट के ऄनुरूप, कहिता की एक नइ दुहनया रचने के ईद्देश्य से प्रेररत होता है। कहिता की नइ दुहनया रचने के हलए पहले िह मुख्य कल्पना की दुहनया को भली- भाँहत हिखहण्डत करती है, ईसे तोड़ती-िोड़ती है, गलाती-हपघलाती है। पहले हिस्‍तथापन-हिखण्डन, दिर सृजन। नाश और हनमाषण की आस द्वन्द्वात्मक प्रदिया मं कॉलररज ने नाश या हिखण्डन पर पयाषप् त बल ददया है। नाश के हलए ईन्हंने नाश से

हमलते-जुलते ऄथष की सूचक तीन दियाओं का प्रयोग दकया है ‘हडजाल््स’, ‘हडफ्यूजेऺज़’ और ‘हडस्‍तसीपेट्स’। आन तीनं दियाओं

मं ‘हड’ की अिृहत्त से जो ध्िहन-हबम्ब बनता है, िह नाश के ऄथष को पुष्ट करता है, ईसे और गहराता है। सृजनशीलता के

सन्दभष मं हिखण्डन की यह दिया ऄपेक्षाकृत ऄहधक महत्त्िपूणष है और शायद ऄहधक करठन भी। हचन्तन के पुराने साँचं को

तोड़ना है भी ज़रा मुहश्कल। दकन्तु यह भी सच है दक ईन साँचं को तोड़े हबना कुछ भी नया रच पाना सम्भि नहं है।

हचन्तन की ये पुरानी सरहणयाँ अहखर टूटंगी कैसे? कॉलररज के ईि ईद्धरण मं ‘पुनःसृजन’ का ऄथष तो स्‍तपष्ट ही है, दकन्तु

‘हिलयन’ और ‘गलाने-हपघलाने’ से, ‘हिस्‍तथापन और हिखण्डन’ से, क्या अशय है? यहाँ महत्त्िपूणष बात है दक कॉलररज महज हसद्धान्त-हनरूपण मं ऄपने अलोचकीय दाहयत्ि की आहतिी नहं मान लेते। ऐसा करने पर िे हिमशषकार तो होते, अलोचक नहं। ईन्हंने हिधायक कल्पना की कायषहिहध से सम्बहन्धत ईि ऄिधारणा को व्यािहाररक अलोचना मं लागू

भी दकया। केिल हसद्धान्त-चचाष करके नहं रह गए। शेक्सहपयर की रचना-पद्धहत का हिश् लेषण करते समय ईन्हंने ईि

धारणा का रचनात्मक ईपयोग भी दकया। शेक्सहपयर की रचना-पद्धहत क्या थी? क्या िे दकसी दैिी-शहि से अहिष्ट थे?

कॉलररज यह प्रश् न पूछते हं और दिर ईत्तर भी देते हं – शेक्सहपयर न तो महज प्रकृहत की देन थे, न कोइ स्‍तितःस्‍तिूतष प्रहतभा

के प्रहतरूप, न दकसी दैिी अत्मा से अहिष्ट प्रेरणा के माध्यम।’ ईनका रास्‍तता तो एकदम सीधा-सादा था, सीधा-सादा और

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मानिीय–‘शेक्सहपयर ने...पहले धैयष से ऄध्ययन दकया, गहराइ से

हचन्तन-मनन दकया, रेशे-रेशे को समझा, जब तक दक िह ज्ञान ईनके व्यहित्ि का सहज ऄंग नहं बन गया... ।’ हनरन्तर ऄध्ययन-हचन्तन-मनन से मुख्य कल्पना की दुहनया को तोड़ा या हिखहण्डत दकया जा सकता है, ईसे गलाया-हपघलाया जा

सकता है। ऄन्ततः जब िह गल-हपघलकर व्यहित्ि का सहज ऄंग बन जाए, तभी ईसका रचनात्मक ईपयोग सम्भि है, ईससे पहले नहं। हिधायक कल्पना का सिषप्रमुख कायष यही है।

यहाँ कॉलररज और देरीदा की तुलना ददलचस्‍तप होगी। रचना/पाठ-हनमाषण के सन्दभष मं दोनं ही संरचना-हनर्ममहत के पक्षधर हं, दकन्तु रचनाशीलता (निनिोन्मेष) की ऄहनिायष शतष के रूप मं संरचना के हिखण्डन पर बल देते हं। ऄच्छी रचना या

पाठ मं ऄहन्िहत होना जरूरी है। यह ऄहन्िहत अएगी संरचना से। दकन्तु रचना/पाठ मं निीनता के ईन्मेष के हलए पुरानी

संरचनाओं को तोड़ना भी बेहद जरूरी है। संरचना बनाना रचना/पाठ-हनमाषण की ऄहनिायष शतष है, जबदक संरचना तोड़ना

रचनाशीलता की। आस प्रकार कॉलररज और देरीदा दोनं संरचना के पक्षधर भी हं और ईसे ऄहतिान्त भी करते हं। दोनं मं

ऄन्तर यह है दक देरीदा का हिखण्डनिादी हसद्धान्त पाठक-केहन्रत है, जबदक कॉलररज का कल्पना हसद्धान्त कहि-केहन्रत–

हालाँदक कॉलररज मं द्वन्द्वात्मकता है, हजसमं लेखक-पाठक दोनं का ऄन्तभाषि है। देरीदा मं कइ बार ऐसा लगता है दक आसमं

हिखण्डन के हलए हिखण्डन है। आसके हिपरीत कॉलररज हिखण्डन के पीछे पुनःसृजन की प्रेरणा मानते हं। रचनाशीलता के

हलए हिखण्डन जरूरी है आसमं सन्देह नहं। दकन्तु यह हिखण्डन निीन सृजन के ईद्देश्य से प्रेररत होना चाहहए।

पुनःसृजन की ईि प्रदिया जहाँ सम्भि नहं हो पाती, िहाँ कल्पना ‘अदशीकरण और एकीकरण’ के हलए संघषष करती है।

अदशीकरण एक मूल्यपरक प्रदिया है। अदशीकरण का कायष है साहहत्य को यथाथष की सतह से उपर ईठाना। केिल यथाथष कािी नहं है। जो बराबर सतह पर रहता है, िह क्षुरता का अभास देता है। ऄच्छी रचना के हलए सतह से थोड़ा उपर ईठना जरूरी है। मुहिबोध की एक कहानी है सतह से ईठता अदमी। आस शीषषक मं यही ऄथषगर्मभत है। यथाथष और कल्पना

(या अदशष) दोनं ऄलग-ऄलग क्षुरता का अभास देते हं। काव्य-प्रहतभा के हनदशषक िे तभी बनते हं, जब यथाथष मं कल्पना

का ईत्कषष हो और कल्पना के पीछे यथाथष का अधार रहे। जब ज्ञान संिेदनात्मक हो और संिेदना ज्ञानात्मक।

एकीकरण पर कॉलररज ने बहुत बल ददया है। कल्पना हिहिधता मं एकता खोजने की ऄन्तदृषहष्ट प्रदान करती है। सच्चा दशषन भी यही करता है। छन्द मं भी यही प्रिृहत्त ददखाइ देती है। हम जबरन दकसी मं आस दृहष्ट का ईन्मेष नहं करा सकते। ईसे

‘इश् िरीय िरदान’ कहने के पीछे यही अशय समझ अता है। खास तौर से औद्योहगक सभ्यता मं हजस तरह का मनुष्य ऄहस्‍ततत्ि मं अ रहा है, हजसका मानस ‘िस्‍ततुओं के ईपभोग और ईनका घात-प्रहतघात सहते-सहते’ संिेदनाशून्य हो गया है,

िह आस एकता को नहं देख सकता। कल्पना की कायषपद्धहत के सन्दभष मं कॉलररज ने एक नए शधद की ईद्भािना की –

‘एसेम्प्लैहस्‍तटक’ हजसका ऄथष ही है ‘हमलाकर एक करना’। यह प्रदिया संरचना-हनर्ममहत की सूचक है। यह एक प्रकार की

द्वन्द्वात्मक प्रदिया है। यह ऐसी शहि है, हजसके द्वारा दकसी हबम्ब या भाि को ऄन्य ऄनेक हबम्बं या भािं द्वारा स्‍तपष्ट दकया

जाता है। साथ ही ऄनेक हबम्बं या भािं को बलात् हमलाकर एक हबम्ब या भाि का ऄंग बना ददया जाता है। आसी हिशेषता

के अधार पर कहि संिेदना और हिचार का सामंजस्‍तय कराता है। ‘कल्पना और भाि की समन्ियकाररणी और हमलाकर एक करने की शहि’ द्वारा कहि संिेदना और गहन हिचार का सामंजस्‍तय कैसे कराता है, यह कॉलररज ने ऄन्यर िर्डसषिथष की

कहिता का एक ईदाहरण देकर स्‍तपष्ट दकया है। यहाँ ‘कल्पना’ और ‘भािािेग’ को साथ-साथ रखना सिषथा ईहचत है। भारतीय

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काव्य-हचन्तन मं कल्पना की ऄलग से चचाष नहं की गइ है। िहाँ आसे

भािािेग के ऄन्तगषत ही शाहमल दकया गया है। एकाहन्िहत और गहत द्वन्द्वात्मक रूप मं एक-दूसरे से सम्बद्ध हं। एकाहन्िहत है

संरचना, गहत है आहतहास। गहत के हबना संरचना जड़ है। संरचना के हबना गहत सीधी-सपाट है। ईसमं व्यापकता और गहराइ नहं है। संरचना के पीछे एक हिश् ि-दृहष्ट रहती है, जो युग और ऐहतहाहसक शहियं के दबाि से हनर्ममत होती है।

आहतहास के हिहनयोग से रचना के ददक् और काल व्यापक हो जाते हं। केिल शधद-हिन्यास से प्रेररत संरचना तो रूपिाद की

शक्ल ऄहख्तयार कर लेगी। आस प्रकार हिधायक कल्पना बाह्य जगत के आहन्रयबोध और ऄनुभिं को गला-हपघलाकर एक नए रूपाकार मं ढालती है, ईसे नया अकार देती है, हजससे ईसमं निीन पररचय की दीहि अ जाती है। ऄसम्बद्ध चीजं मं

सम्बद्धता की तलाश, हबखरी हुइ चीजं मं ऄहन्िहत की खोज, यह हिधायक कल्पना का दूसरा प्रमुख कायष है। मुख्य कल्पना

की तरह हिधायक कल्पना का यह कायष स्‍तितःस्‍तिूतष ढंग से नहं करती, बहल्क िह आच्छा और ज्ञान से पररचाहलत होती है।

आस प्रकार दृश्य जगत की सामान्य और ऄसम्बद्ध िस्‍ततुएँ, हिधायक कल्पना के स्‍तपशष से परस्‍तपर सम्बद्ध हो जाती है। साथ ही

िे हिहशष्ट और रमणीय ददखाइ देने लगती हं।

हिहलयम के हिमसैट और क्लीन्थ ब्रुक्स ने आन हिरोधी युग्मं को ताहलकाबद्ध कर रखा है, हजससे आन्हं समझने मं असानी हो

सकती है। कल्पना हनम् नहलहखत हिरोधी तत्त्िं (क-ख) के बीच सामंजस्‍तय (सन्तुलन या संगहत) स्‍तथाहपत करती है

(क) (ख)

1. साम्य िैषम्य

2. सामान्य हिशेष

3. प्रत्यय हबम्ब

4. प्राहतहनहधक िैयहिक

5. पररचय निीनता

6. संयम भािािेश

7. हििेक ईमंग

8. कृहरम प्रकृत या सहज

कल्पना नीचे ददए गए ‘ख’ िगष की तुलना मं ‘क’ िगष को गौण मानती है

(क) (ख)

1. कला प्रकृहत

2. रूप/शैली िस्‍ततु

3. कहि के प्रहत हमारा अदर-भाि कहिता के प्रहत हमारी सहानुभूहत

ये हिरोधी युग्म एक-दूसरे की सीमा को ऄहतिान्त करते हं, आसमं सन्देह नहं। दिर भी ये कल्पना की कायषहिहध का बखूबी

बयान करते हं। हमं यह भी ध्यान मं रखना चाहहए दक हिरोधी तत्त्िं के ऐसे जोड़े और भी हो सकते हं। हिधायक कल्पना

की यह कायषहिहध केिल साहहत्य तक सीहमत नहं है; यह कला मार पर लागू होती है। मन और प्रकृहत की कायषहिहध भी

यही है। द फ्रेण्ड मं ईन्हंने हलखा – “प्रकृहत और अत्मा की हर शहि ऄपनी हिरोधी शहि को जन्म देती है। ईसके व्यि होने

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की एकमार शतष और साधन यही है। और सभी हिरोधी तत्त्िं मं पुनः

सामंजस्‍तय की प्रिृहत्त पाइ जाती है। दो हिरोधी तत्त्िं की सहहस्‍तथहत का यही सािषभौम हनयम है।”

हिहभन् न हिरोधी तत्त्िं मं सामंजस्‍तय स्‍तथाहपत करते समय कल्पना ‘कला को प्रकृहत के, रूप को िस्‍ततु के, और कहि के प्रहत हमारे अदर-भाि को कहिता के प्रहत हमारी सहानुभूहत के ऄधीन रखती है।’ दूसरे शधदं मं, कला की तुलना मं प्रकृहत का, रूप की तुलना मं िस्‍ततु का और कहि की तुलना मं कहिता का महत्त्ि कहं ज्यादा है। प्रकृहत और कला मं सामंजस्‍तय करते

समय कहि प्रकृहत की तुलना मं कला को गौण स्‍तथान देता है। यहाँ कला से अशय हशल्प या तकनीक है, कलाकृहत नहं।

स्‍तिच्छन्दतािादी अलोचना की सामान्य प्रिृहत्त यह है दक ईसमं रचना से ध्यान हटाकर रचनाकार की ओर मोड़ ददया जाता

है। आसमं बाह्य जगत की तुलना मं मानि-मन को ऄहधक प्रमुखता दी जाती है। ऐसे मं कहि की ऄपेक्षा कहिता को ऄहधक महत्त्ि देना एक प्रकार से धारा के हिपरीत जाना है। कहने की अिश्यकता नहं दक यह रुझान अधुहनक अलोचना-दृहष्ट के

भी ऄनुकूल है।

कॉलररज से पहले लहलत-कल्पना (िंसी) और कल्पना (आमेहजनेशन) मं कोइ ऄन्तर नहं था। िे या तो परस्‍तपर पयाषय थे या

दिर एक ही शहि के ईच् च और हनम् न स्‍ततर। कॉलररज ने आनमं गुणात्मक ऄन्तर माना। दोनं मानहसक शहियाँ हं और सृजनशीलता मं दोनं की भूहमका रहती है। मन की जो शहि हबम्ब-हनमाषण मं सदिय रहती है, और जो हनहष्िय तथा

याहन्रक है, ईसे ईन्हंने लहलत-कल्पना कहा और मानि-मन के सृजनात्मक पक्ष को कल्पना नाम ददया। कल्पना और लहलत-कल्पना हजस सामग्री को अधार रूप मं ग्रहण करती हं, ईसकी प्रकृहत एक-जैसी (हस्‍तथर और जड़) होती है। दकन्तु

जहाँ कल्पना हजन पदाथं का स्‍तपशष करती है ईनमं जीिन्तता का संचार कर देती है; िहाँ लहलत-कल्पना ईनका याहन्रक रूप मं संयोजन भर करती है। कॉलररज के ऄनुसार, लहलत-कल्पना स्‍तमृहत का ही एक रूप है–‘लहलत-कल्पना देश काल के बन्धन से मुि स्‍तमृहत का ही एक प्रकार है।’ लहलत-कल्पना और स्‍तमृहत दोनं मानहसक शहियाँ हं। लहलत-कल्पना मं हनहष्ियता की

प्रधानता है और स्‍तमृहत मं याहन्रकता की। लहलत-कल्पना ऐसी स्‍तमृहत है, जो देशकाल के बन्धन से मुि हो। लहलत-कल्पना

और कल्पना दोनं मानहसक शहियां हं। एक का काम है यांहरक, दूसरी का सजषनात्मक। कल्पना और लहलत-कल्पना दोनं

को अधार-सामग्री स्‍तमृहत से हमलती है, दकन्तु दोनं के पररणाम मं ऄन्तर है–कल्पना जहाँ ईस सामग्री का कायाकल्प कर देती है, ईसमं गुणात्मक ऄन्तर ला देती है, िहाँ लहलत-कल्पना ईनका संयोजन भर करती है। कॉलररज के शधदं मं, ‘यह ऄपनी सम्पूणष सामग्री, जो पहले से बनी-बनाइ होती है, बराबर साहचयष हनयम द्वारा ग्रहण करती है।’ कहने की अिश्यकता

नहं दक लहलत-कल्पना का स्‍तिरूप-हनदेश करते समय कॉलररज के ददमाग मं नव्यशास्‍त रिादी काव्य है, जबदक कल्पना का

हििेचन करते समय ईनके मन मं समसामहयक स्‍तिच्छन्दतािादी काव्य का हबम्ब रहता है।

6. हनष्कषष

मुख्य कल्पना का स्‍तथान पहले है, गौण कल्पना का बाद मं। आहन्रयबोध का अधार होने की िजह से मुख्य कल्पना स्‍तितःस्‍तिूतष और ऄनैहच्छक होती है, जबदक गौण कल्पना चेतन और ऐहच्छक। मुख्य कल्पना मानि-मार मं पाइ जाती है, जबदक गौण या हिधायक कल्पना कहि का हिशेष िरदान है। मुख्य कल्पना केिल हनमाषण करती है, गौण कल्पना हनमाषण के साथ-साथ नाश भी।

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HND : हहन्दी P 14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M15 : कल्पना-हसद्धान्त

कल्पना और लहलत-कल्पना मं गुणात्मक ऄन्तर है। कॉलररज ने लहलत-

कल्पना को ‘देशकाल के बन्धन से मुि स्‍तमृहत का एक प्रकार“ माना है। लहलत-कल्पना प्रत्यक्ष बोध और स्‍तमृहत से ईच् चतर है, लेदकन कल्पना से हनम् नतर। िह हस्‍तथर िस्‍ततुओं का संयोजन मार करती है। दकन्तु कल्पना एक सृजनात्मक और रूपायन करने

िाली शहि है, जो ऄनेक का एक मं और एक का ऄनेक मं साक्षात्कार करती है। हिहिधता मं एकता और एकता मं हिहिधता

का साक्षात्कार। कॉलररज के शधदं मं, “बुहद्ध काव्य-अत्मा का शरीर है, लहलत-कल्पना ईसका प्रसाधन है, दकन्तु हिधायक कल्पना ईसकी अत्मा है जो सिषर व्याप् त रहते हुए प्रत्येक ऄंग को ऄनुप्राहणत करती है।”

प्रहतभा (जीहनयस) और प्रज्ञा (टेलेण्ट) मं भी कॉलररज ने ऄन्तर माना है। प्रहतभा जन्मजात होती है जबदक प्रज्ञा ऄर्मजत।

प्रहतभा कल्पना के समान है जबदक प्रज्ञा लहलत-कल्पना के। प्रहतभा मं सृजनशीलता है, निहनमाषण की क्षमता है, जबदक प्रज्ञा िस्‍ततुओं का संयोजन ऄथाषत् ईन्हं एक-साथ प्रस्‍ततुत भर करती है। प्रहतभा अत्महनभषर या मौहलक होती है जबदक प्रज्ञा

पराहित। प्रहतभा ऄचेतन या स्‍तितःस्‍तिूतष है जबदक प्रज्ञा चेतन और हििेक-हनयहन्रत। ‘स्‍तियं प्रहतभा मं एक ऄचेतन प्रदिया

चलती रहती है। बहल्क कहना चाहहए प्रहतभा सम्पन् न व्यहि मं िही सच् ची प्रहतभा है।’ प्रज्ञा प्रहतभा के ऄभाि मं भी

दियाशील हो सकती है, दकन्तु प्रहतभा प्रज्ञा के हबना ऄपने-अपको प्रकट नहं कर सकती।

References