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HND : हहन्दी P12: दहित साहहत्य M14 : सरहपा 1

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HND : हहन्दी P12: दहित साहहत्य M14 : सरहपा 1

हिषय हहन्दी

प्रश् नपत्र सं. एिं शीषषक P12 : दहित साहहत्य आकाइ सं. एिं शीषषक M14 : सरहपा 1

आकाइ टैग HND_P12_M14

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश् नपत्र-संयोजक प्रो. टी.िी. कट्टीमहण आकाइ-िेखक प्रो. रामबक्ष आकाइ-समीक्षक प्रो.ऄब्दुि ऄिीम भाषा-सम्पादक प्रो. देिशंकर निीन पाठ का प्रारूप

1. पाठ का ईद्देश्य 2. प्रस्तािना

3. जीिन

4. सरहपा की मान्यताएँ

5. सरहपा का दशषन

6. हनष्कषष

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HND : हहन्दी P12: दहित साहहत्य M14 : सरहपा 1

1. पाठ का ईद्देश्य

आस पाठ के ऄध्ययन के ईपरान्त अप–

 सरहपा के जीिन के बारे मं जो जानकाररयाँ ईपिब्ध हं ईनकी जानकारी पा सकंगे।

 बौद्ध दशषन और सरहपा के सम्बन्ध को समझ सकंगे।

 जीिन जगत के सन्दभष मं ईनकी मूि मान्यताओं से पररहचत हो सकंगे।

2. प्रस्तािना

सरहपा हहन्दी साहहत्य के अरहम्भक कहि हं। ईनकी कोइ भी रचना ऄपने मूि रूप मं ऄब ईपिब्ध नहं है।

ईनकी रचनाएँ ऄनुिाद के रूप मं ईपिब्ध हं। दोहाकोश का पुनरुनुिाद राहुि सांकृत्यायन ने ऄपभ्रंश मं ककया।

ईसी को मूिपाठ के रूप मं हम पहचानते हं। आस ऄनुिाद को ितषमान पाठकं द्वारा पढ़ा जाना मुहश्कि है। ईन्हं

खड़ी बोिी के ऄनुिाद के साथ पढ़ा जा सकता है।

सरहपा का समय 8िं शताब्दी माना जाता है। आस काि के रचनाकारं पर ऄनेक हिद्वानं ने शोध कायष ककया है, हजनके प्रयासं से हम सरहपा और ऄन्य कहियं के बारे मं जानकारी प्राप् त कर पाए हं। आन्हं के प्रयासं से आस प्राचीन साहहत्य का थोड़ा-बहुत ऄंश अज ईपिब्ध है। आनमं हपशेि, हरमन याकोबी, चन्रमोहन घोष, म. म.

पहडडत हिधुशेखर शास् त्री, महामहोपाध्याय पं. हरप्रसाद शास् त्री, डॉ. प्रबोध कुमार बागची, मुहन हजनहिजय, डॉ. शहीदुल्िा, महापहडडत राहुि सांकृत्यायन अकद मुख्य हं। आनके प्रयासं से ही अज आस काि का साहहत्य थोड़ा-बहुत ईपिब्ध है।

3. जीिन

हहन्दी के ऄन्य प्राचीन कहियं की तरह सरहपा के जीिन के बारे मं प्रमाहणक जानकारी बहुत कम है। जो

जानकाररयाँ ईपिब्ध हं, ईनकी प्रमाहणकता भी हनर्वििाद नहं है। ऄहधकतर बातं ऄनुमान पर अधाररत हं।

ईनका जन्म कब हुअ? मृत्यु कब हुइ? आसकी कोइ जानकारी नहं। राहुि सांकृत्यायन ने आनका समय 8िं

शताब्दी माना है। आनका बचपन का नाम राहुि भर था तथा आनका जन्म राज्ञी नामक गाँि मं हुअ। आस नाम का गाँि ऄब नहं है। हिद्वानं का हिचार है कक यह हबहार के भागिपुर के असपास कहं रहा होगा। िे ब्राह्मण थे तथा शास् त्र हनपुण थे। राहुि जी का ऄनुमान है कक "बाल्यकाि मं ईनकी हशक्षा-दीक्षा ऄपने नगर मं ही हुइ।

यकद ईनका कुि बौद्ध नहं था, तो ईनका ऄध्ययन ब्राह्मणं की तरह घर पर या ककसी ब्राह्मण गुरु के पास हुअ।

ईन्हंने ऄपने िेद के साथ व्याकरण, कोश, काव्य का ऄध्ययन ककया होगा। किर ईनकी न तृप् त होने िािी

हजज्ञासा ईन्हं ककसी बौद्ध हिद्वान के पास िे गइ होगी। " (दोहा कोश पृ. 11)

हसद्ध-साहहत्य के जानकार हिद्वानं का मत है कक िे िैकदक साहहत्य के जानकार थे। िैकदक साहहत्य से प्रभाहित भी थे। अगे चिकर िे बौद्ध साहहत्य और दशषन के सम्पकष मं अए तथा बौद्ध-दशषन का गम्भीर ऄध्ययन एिं मनन ककया। िे सामान्य मनुष्य नहं थे, थोड़े से ऄसमान्य थे। िे बहुपरठत और बहुश्रुत थे। ईन्हंने ऄपने युग के बौहद्धक हिचार-हिमशष मं हहस्सा हिया था। आसी क्रम मं ईन्हंने हीनयान, महायान, तन्त्र, मन्त्र और योग का गम्भीर ऄध्ययन ककया। शैि, शाक्त, कापाहिक, पाशुपत, िैष्णि सभी तरह के हिचारकं से ईनका बौहद्धक सम्पकष हुअ था। ऐसा हिश् िास ककया जा सकता है। ईनका यह हिशद ऄध्ययन ईनके िेखन मं ऄहभव्यक्त होता है।

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बौद्ध साहहत्य और दशषन के ऄध्ययन हेतु ईन्हंने नािन्दा हिश् िहिद्यािय

मं प्रिेश हिया। अजकि के प्रहतहित हिश् िहिद्याियं की तरह नािन्दा की भी प्रिेश परीक्षा होती थी। राहुि जी

का मत है कक "ऄत्यन्त कम ऄपिादं के साथ नािन्दा मं ईन्हं छात्रं को प्रिेश हमिता था, जो िहाँ की 'द्वार परीक्षा' मं ईत्तीणष होते थे। यह परीक्षा कािी करठन होती थी। "

सरहपा 'राहुिभर' के रूप मं कइ िषं तक नािन्दा मं रहे। यहाँ ईन्हंने ऄध्ययन ककया तथा ऄध्ययन के ईपरान्त यहं ऄध्यापक हो गए। ऄनुमान है कक िे यहाँ 'बौद्ध शास्त्रों को पढ़ाते' हंगे। आस तरह सम्पूणष शास्त्रों का ऄध्ययन करने के ईपरान्त ईन्हंने सब कुछ छोड़ कदया और 'शर-कार' बनाने िािी एक िड़की ऄपने साथ रख िी "और स्ियं भी सरकडडं का शर बनाने िगे, हजससे ईनका नाम सरह पड़ा। किर भक्त िोगं ने ऄपनी श्रद्धा के प्रतीक शब्द 'पाद' को जोड़कर ईन्हं 'सरहपाद' कहना शुरू ककया।"

आस तरह सरहपा ने ककसी ब्राह्मण कन्या से हििाह नहं ककया। ककसी ऄन्य स् त्री से भी हििाह नहं ककया। िह ककसी ऄन्य जाहत की स् त्री के साथ रहने िगे। यह सह-जीिन का ऄत्यन्त प्राचीन ईदहारण है, हजसका िणषन ऄज्ञेय ने नदी के द्वीप मं ककया है और अधुहनक महानगरं मं यह कािी होने िगा है। सरहपा के आस जीिन व्यिहार को तत्कािीन ब्राह्मण समाज ने पसन्द नहं ककया, िेककन सरहपा ने ककसी की परिाह नहं की और ऄपने हनणषय पर ऄहडग रहे। कहते हं कक तत्कािीन राजा ने ईन्हं कष्ट कदया, परन्तु ईन पर ईसका कोइ प्रभाि

नहं पड़ा। किर िे ईस कन्या के साथ िहाँ से चिे गए। कहाँ गए? अगे क्या हुअ? आसका कोइ ईल्िेख नहं

हमिता। दोनं के बीच बहुत अत्मीय ररश्ते थे। हसद्ध साहहत्य के जानकार हिद्वानं का कहना है कक एक बार सरहपा ने मूिी खाने की आच्छा प्रकट की। पत्नी ने मूिी की सब्जी बनाइ और हखिाने के हिए ईनके पास िे गइ।

तब तक सरहपा समाहधस्थ हो चुके। 12 िषष बाद जब ईनकी समाहध भंग हुइ तो ईन्हंने मूिी का शाक माँगा।

कहते हं कक ईस समय मूिी का शाक ईपिब्ध नहं था। पत्नी ने आस पर हँसते-हँसते रटप्पणी की कक क्यं ऄपने

शरीर को कष्ट देते हो। 12 िषं की तपस्या के बािजूद अप साधारण मूिी का स्िाद नहं भूि पाए। ईसी को

समाहध मं भी याद रखा? तब आस तपस्या का क्या िायदा। सरहपा को सहज जीिन की प्रेरणा सम्भितः आसी से

हमिी।

प्राप् त जानकारी के ऄनुसार सरहपा ने संस्कृत और ऄपभ्रंश मं कइ रचनाएँ की। राहुि सांकृत्यायन ने ईनकी सात संस्कृत रचनाओं की सूची दोहाकोश की भूहमका मं दी है। आनके ऄिािा सरहपा की 'ऄनुिाकदत 16 ऄपभ्रंश' की

रचनाओं का ईल्िेख भी राहुि जी ने ककया है। तभी सरहपाद की मूि रचना ईपिब्ध नहं हुइ है। "ईसके

हतब्बती ऄनुिाद से ही" राहुि जी ने ईन पर हिचार ककया है। (छात्रं को ऄहधक जानकारी प्राप् त करने के हिए राहुि सांकृत्यायन द्वारा सम्पाकदत दोहाकोश की भूहमका का ऄध्ययन करना चाहहए। )

राहुि जी का मत है कक सरह "अज की भाषा मं ऄबनामषि प्रहतभा के धनी थे। मूड अने पर िह कुछ गुनगुनाने

िगते। शायद ईन्हंने स्ियं आन पदं को िेखबद्ध नहं ककया। यह काम ईनके साथ रहने िािे सरह के भक्तं ने

ककया। यही कारण है, जो दोहाकोश के छन्दं के क्रम और संख्या मं आतना ऄन्तर हमिता है। सरह जैसे पुरुष से

यह अशा नहं रखनी चाहहए कक िह ऄपनी धमष की दुकान चिाएगा, पर, अगे िह चिी और खूब चिी, आसे

कहने की अिश्यकता नहं।"

भारत मं 84 हसद्ध प्रहसद्ध हं। सरहपा ईन्हं मं से एक थे। कुछ हिद्वानं का हिचार है कक सरहपा अकद हसद्ध थे।

हसद्धं का समय 800 से 1100 इस्िी के बीच माना जाता है। धमषिीर भारती के ऄनुसार साधना मं हनष्णात,

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ऄिौककक शहक्तयं से सम्पन् न, चमत्कारपूणष ऄहत प्राकृहतक शहक्तयं से

युक्त व्यहक्त हसद्ध कहिाता था। ये ऄजर-ऄमर माने जाते थे। जरा और मरण का आन्हं भय नहं था। ये देिं, यक्षं, डंककहनयं के स्िामी होते थे। ऄहधकांश हसद्ध पूिी भारत मं हुए। हिद्वानं ने आस पर भी हिचार ककया है कक हसद्ध 84 ही क्यं थे? 85 या 83 क्यं नहं थे? या बाद मं हसद्ध क्यं नहं हुए? आस पर कोइ तकष संगत ईत्तर नहं

हमिता। कुछ हिद्वानं ने ऄनुमान िगाया कक 12 राहशयं और 7 नक्षत्रं का गुणनिि 84 होता है। हसद्ध बौद्धधमष की िज्रयान शाखा मं हुए थे। हािाँकक नाथपन्थ मं भी 84 हसद्धं का ईल्िेख हमिता है, परन्तु सामान्य मान्यता है कक बौद्धधमष की सहजयानी शाखा के ऄनुयायी हसद्ध और शैि सम्प्रदाय ऄनुयायी के नाथ कहिाते हं।

ऄतः 9 नाथ और 84 हसद्ध प्रहसद्ध हुए। कौन कब पैदा हुअ? आनका काि क्रम क्या था? आसकी कोइ प्रमाहणक जानकारी ईपिब्ध नहं है।

अचायष हजारीप्रसाद हद्विेदी ने 84 सहजयानी की सूची दी है; जो आस प्रकार है-

1. िूहहपा 22. हतिोपा 43. मेकोपो 64. चिरर(जिरर)

2. िीिापा 23. क्षत्रपा

44. कुड़ाहिपा

(कुद्दहिपा)

65. महिभर (योहगनी)

3. हिरूपा 24. भरपा

45. कमररपा

(कम्मररपा)

66. मेखिपा

(योहगनी)

4. डोम्भीपा 25. दोखंहधपा (हद्वखंहडपा)

46. जािंधरपा

(जािन्धारक)

67. कनखिापा

(योहगनी)

5. शबरीपा 26. ऄजोहऄपा 47. राहुिपा 68. किकिपा

6. सरहपा 27. कािपा 48. धमषररपा (धमषरर)

69. कन्तािी

(कन्थािी) पा

7. कंकािीपा 28. धोहम्भपा 49. धोकररपा

70. धहुहिरररपा

(दबड़ीपा ?)

8. मीनपा 29. कंकड़पा

50. मेदनीपा

(हािीपा)

71. ईधहन(ईधाहि) पा

9. गोरक्षपा 30. कमररपा (कम्बिपा) 51. पंकजपा 72. कपाि(कमि)पा

10. चोरंगीपा 31. डंहगपा

52. घडटा

(िज्रघडटा)पा 73. ककिपा

11. िीणापा 32. भदेपा

53. जोहगपा

(ऄजोहगपा) 74. सागरपा

12. शाहन्तपा 33. तन्धेपा(तंहतपा) 54. चेिुकपा 75. सिषभक्षपा

13. संहतपा 34. कुकुररपा

55. गुडडररपा

(गोरुरपा) 76. नागबोहधपा

14. चमररपा 35. कुहचपा (कुसूहिपा) 56. िुहचकपा 77. दाररकपा

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15. खङग्पा 36. धमषपा 57. हनगुषणपा 78. पुतुहिपा

16. नागाजुषन 37. महीपा (महहिपा) 58. जयानन्त 79. पहनपा

17. कडहपा 38. ऄहचहन्तपा

59. चपषटीपा

(पचरीपा) 80. कोकाहिपा

18. कणषररपा (अयषदेि) 39. भिहपा (भिपा) 60. चम्पकपा 81. ऄनंगपा

19. थगनपा 40. नहिनपा 61. हभखनपा 82. िक्ष्मीकरा

20. नारोपा 41. भूसुकपा 62. भहिपा 83. समुदपा

21. शहिपा (शीिपा)

शृंगािीपाद 42. आंरभूहत 63. कुमररपा 84. भहि(व्याहि)पा

(हजारीप्रसाद हद्विेदी ग्रन्थाििी, खडड-3, पृ. 273-276) सरहपा के बारे मं और ऄहधक चचाष करने से पूिष बौद्धधमष और हसद्धं के बारे मं कुछ प्रारहम्भक तथ्य जान िेने

चाहहए। बुद्ध के हनिाषण के पश् चात् बौद्धधमष दो भागं मं बँट गया– हीनयान और महायान। हजारीप्रसाद हद्विेदी

ने आनको समझाते कहा है- महायान ऄथाषत बड़ी गाड़ी के अरोहहयं का दािा है कक िे उँचे-नीचे, छोटे-बड़े, सबको ऄपनी हिशाि गाड़ी मं बैठाकर हनिाषण तक पहुँचा सकते हं, जहाँ हीनयान (या सँकरी गाड़ी) िािे केिि

सन्याहसयं और हिरक्तं को को अश्रय दे सकते हं। बाद मं किर महायान के भी कइ टुकड़े हो गए। आनमं सबसे

ऄहन्तम टुकड़े हं िज्रयान और सहजयान।

आसी तरह महायान की भी दो शाखाएँ हं। हद्विेदी जी के ऄनुसार "एक मानती है कक संसार मं सब कुछ शून्य है, ककसी की भी सत्ता नहं और दूसरी शाखा िािे मानते हं कक जगत् के सभी पदाथष बाह्यतः ऄसत् है, पर हचत् के

हनकट सभी सत् है। एक को शून्यिाद कहते हं और दूसरी को हिज्ञानिाद।" आतने सारे मतभेदं के बीच यह हम कह सकते हं कक सरहपा का सम्बन्ध आसी सहजयान से है और हसद्ध आसी परम्परा मं अते हं।

नागरी प्रचाररणी सभा के शब्द-कोश के ऄनुसार हसद्ध िह होता है हजसने योग या तप द्वारा ऄिौककक िाभ या

हसहद्ध प्राप् त की हो। हसद्धं का हनिास स्थान भुििोक कहा गया है। िायु पुराण के ऄनुसार ईनकी संख्या

ऄठासी हजार हं और िे सूयष के ईत्तर और सप् तर्वष के दहक्षण ऄन्तररक्ष मं िास करते हं। िे ऄमर कहे गए हं पर केिि एक कल्प भर तक के हिए। कहं-कहं हसद्धं का हनिास गंधिष, ककन् नर अकद के समान हहमािय पिषत भी

कहा गया है।

ऄिौककक शहक्तयं से युक्त व्यहक्त को हसद्ध माना जाता था। आन हसद्धं को हसहद्धयाँ प्राप् त थी। हिचारकं ने आस पर भी हिचार ककया है कक हसहद्धयाँ क्या होती हं? तथा ककतनी होती हं। भारतीय हचन्तकं ने ऄनेक हसहद्धयं

का िणषन ककया है। ब्रह्मिैितष मं 34 हसहद्धयाँ बताइ गईं हं। कुछ हिचारकं ने 18 और कुछ ने 24 हसहद्धयं का

हजक्र ककया है; ककन्तु हठयोग साधना मं 8 प्रमुख हसहद्धयाँ मानी जाती थी– ऄहणमा, िहघमा, महहमा, प्राहप् त , प्रकाम्या, इहशत्ि, िहशत्ि तथा काम-िशाहयत्ि। शैि परम्परा मं 8 दूसरी हसहद्धयाँ हगनाइ गइ हं। कािान्तर मं 8 हसद्धयाँ प्रहसद्ध हो गइ। जो हसद्ध पुरुष आन हसहद्धयं को प्राप् त कर िे, िह ऄजर-ऄमर तथा ऄपराजेय हो जाता

है। चौरासी हसद्ध आन्हं हसहद्धयं के चमत्कार के हिए प्रहसद्ध थे।

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HND : हहन्दी P12: दहित साहहत्य M14 : सरहपा 1

आन हसहद्धयं के प्रभाि का िणषन करते हुए कहा गया है कक जैसे िषाष की

नदी की सभी कदशाएँ ऄिरुद्ध कर ईसकी एक ही कदशा ईद्घारटत कर दी जाए तो ईसमं ऄहपररहचत बि अ जाता

है, ईसी प्रकार सभी ओर से हचतिृहत्तयं का हनरोध करने से साधक मं ऄदम्य शहक्त अ जाती है। आन िौककक हसहद्धयं के ऄिािा कुछ िोकोत्तर हसहद्धयाँ भी होती है, हजन्हं ऄनुत्तर हसहद्ध, महामुरा हसहद्धयाँ, महासुख हसहद्ध कहा जाता है।

4. सरहपा की मान्यताएँ

यहाँ यह प्रश् न ईठ सकता है कक जब सरहपा ब्राह्मण थे और िेद-शास् त्र के ज्ञाता थे, िेदं को कुछ-कुछ मानते भी

थे, तब आनका हजक्र दहित रचनाकारं के साथ कैसे ककया जा सकता है। आस सम्बन्ध मं यह यह ध्यान रखना

चाहहए कक सरहपा ने ब्राह्मणं की तत्कािीन व्यिस्था को ऄंगीकार नहं ककया था। िे एक गैर ब्राह्मण कन्या के

साथ रहने िगे थे, हजसे ब्राह्मणं ने कभी स्िीकार नहं ककया। िैचाररक रूप से भी सरहपा ने जात-पाँत की

व्यिस्था का कभी समथषन नहं ककया तथा ब्राह्मणं की श्रेिता की धारणा का खंडन ही ककया है। िैकदक परम्परा

के ऄनुसार ब्राह्मणं की ईत्पहत्त ब्रह्मा के मुख से हुइ है। आसहिए जो कुछ भी आनके मुख मं जाता है िह देिता

ग्रहण करते हं। आसहिए तुिसीदास ने ब्राह्मणं को पृथ्िी का देिता कहा है। ये पहित्र हं तथा श्रेि हं। सरहपा ने

आस धारणा का खंडन ककया तथा कहा–

ब्रह्मणेहह म जानन्तहह भेई। एिी पकढ़ऄई ए च्चईिेई। । मरट्ट त्पाहण कुस िइ पढन्त। धरहिह बहसी ऄगहग हुणन्तं। । कज्जे हिरहहऄ हुऄिह हेम्मं। ऄहक्ख ड़हा हिऄ कुडुऄं घूमं। । एक दहडड हत्रदहडड भऄिै िेसं। हिणुअ होआऄइ हँस ईएसे। । हमच्छेहह जग िाहहऄ भुल्िं। धम्माधम्म ण जाहणऄ तुल्िे। ।

ऄथाषत िे ब्राह्मण हबना ज्ञान के चारं िेद पढ़ते हं। ये िोग िेद के भेद को तो जानते ही नहं। हमट्टी,पानी, हरी

दूब सामने रखकर तथा ऄहि प्रज्ज्िहित कर पूजा करने बैठ जाते हं।

ये िोग हबना मतिब के ऄहग् न मं हिन-सामग्री जिाते हं तथा ईससे ईत्पन् न धुँए से अखं से अँसू बहाए जाते हं।

कभी ये एक दडड पर खड़े होते हं तो कभी तीन दडड पर खड़े होते हं। भगिा िेश आनका अभूषण है। ऄपने को

हिद्वान समझकर हँस को ईपदेश देते हं। (दोहाकोश; भाषा िैज्ञाहनक ऄध्ययन- पृ. 29 और 41) सरहपा के आन हिचारं की गूँजे हमं कबीर और ऄन्य हनगुषण भक्त कहियं की रचनाओं मं भी हमिती हं। सरह ने चूँकक आनकी

कायष प्रणािी को स्ियं बारीकी से देखा था। ऄतः ईनकी रचनाओं मं ईपहस्थत िणषन यथाथष प्रतीत होता है।

सरहपा ने हसिष ब्राह्मणिाद का ही खडडन नहं ककया, ऄन्य सम्प्रदायं की भी अिोचना की है। आन अिोचनाओं

की ऄनुगूँजे अगे चिकर कबीर, दादू अकद हनगुषण सन्तं की िाहणयं मं सुनाइ पड़ती हं। पाशुपत मत के खडडन मं आन्होनं हिखा कक ये सर पर िम्बी-िम्बी जटाएँ धारण ककए रहते हं। (ऐसा िगता है मानो आसका भी कोइ ऄथष हो, जो कक नहं है)

घर ही बआसी दीिा जािी। कोणहिह बआसी घडटा चािी। ।

ऄहख्ख हणिेसी असण बन्धी। कडणेहिह खुसखुसाआ जण धन्धी। ।

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HND : हहन्दी P12: दहित साहहत्य M14 : सरहपा 1

ऄथाषत ये िोग घर मं बैठकर दीपक जिाते हं और एक कोने मं बैठकर

घडटी बजाते हं। किर अँखे बन्द करके असन िगा देते हं। यहाँ भी पता नहं यह ढंग क्यं करते हं? किर सरहपा

अगे कहते हं कक ये आस ऄन्धी (मूखष) जनता को ठगने के हिए कानं मं िुसिुसाते हं। सरहपा कहना चाहते हं कक आन ईपायं से ये ठग िोग 'जनता को भुिािे मं रखते हं। आन िोगं के ऐसे बाह्याचार आन्हं हिहशष्ट बनाते हं, ताकक आनके स्िाथष की हसहद्ध हो सके। जैहनयं के बारे मं सरहपा का मत है कक ये बड़े-बड़े नाखून िािे नंगे घूमते

रहते हं तथा सारे शरीर के बाि ईखड़िाते हं। सरहपा रटप्पणी करते हं कक–

जआ णग् गाहिऄ होआ मुहत्त, ता सुणह हसअिह

यकद नंगे रहने से मुहक्त हमिती है तो कुत्ते और हसयार को भी मुहक्त हमि ही जाती होगी। िे तो नंगे ही रहते है

हं। ऄपना शरीर नहं ढकते। सरहपा का मानना है कक आनसे मोक्ष प्राप् त नहं होता।

सरहपा ने पारम्पररक बौद्धं की भी अिोचना की है जो तपस्या करने के हिए जंगिं मं जाते हं। िे अगाह करते

हं, चेतािनी देते हं:

ककन्तहह हन्तत्थ तपोिण जाआ। मोक्ख कक िब्भआ (पाणीन्हाआ। । च्छड्डहु रे अिीका बंधा)। सो मुञ्चहु जो (ऄच्छहु धन्धा)। ।

मोक्ष जंगि मं तपस्या करने से नहं हमिता और न जि मं नहाने से हमिता है। सरहपा आन सबको पाखंडी

मानते हं और ईन्हं सिाह देते हं कक आन हमथ्या प्रपंचं को छोड़ दो और तुम्हारे भीतर मूढ़ता व्याप् त है, ईसे छोड़ दो।

आस तरह सरहपा ने ऄपने समय मं व्याप् त पाखडड और बाह्याचार का खडडन ककया। आस खडडन से पूिष सरहपा

ने आन पर गहन हिचार ककया होगा, तब हनष्कषष रूप मं ऄपनी बात कही होगी। यहाँ बहस की कोइ संभािना

नहं है। सरहपा ने ईनसे प्रश् न नहं पूछा, बहल्क ईनको बताया है। यह दृढ़ता ईनके अत्महचन्तन से अइ है, आसमं

कोइ सन्देह नहं।

सरहपा के युग मं दशषन की ऄनेक ईिझी हुइ गुहत्थयाँ देखने को हमिती हं। ईनकी बारीककयं को जानना बहुत मुहश्कि है। जीिन, जगत, माया, शरीर, तन्त्र-मन्त्र, अचार-हिचार, मुहक्त, गुरु सबके बारे मं ऄनेक अचायं के

हभन् न-हभन् न मत हमिते हं। ईन सबका ऄहत संहक्षप् त पररचय देना भी यहाँ सम्भि नहं है। आसहिए ईन सबको

स्थहगत करते हुए दोहाकोश मं कही गइ सरहपा की ईहक्तयं का सार-संक्षेप करने का प्रयास करते हं।

5. सरहपा का दशषन

सरहपा परमात्मा मं हिश् िास नहं करते, आसहिए िे अत्मा मं भी हिश् िास नहं करते। िे कहते हं कक परम् तत्त्ि

न एक है और न दो है। न ऄद्वैत है न द्वैत है न हिहशष्टाद्वैत है। िह ऄनेक भी नहं है। अगे ईन्हंने कहा कक आस परमपद का न अकद है और न ऄन्त है। न आसका कोइ मध्य है। न यह ईत्पन् न होता है और न ही हनिाषण होता है।

यह ककसी दूसरे का नहं है, तो ऄपना भी नहं है। िह तो बस है। आस तरह सरहपा आसको समझने का प्रयास करते हं। ऐसा िगता है कक जो समझाना चाह रहे हं, ईसे व्यक्त नहं कर पा रहे हं। िह ऄहभव्यहक्त से परे है।

हसद्धं के रहस्यिाद के मूि मं ईनकी परमतत्त्ि सम्बन्धी ऄिधारणा है।

(8)

HND : हहन्दी P12: दहित साहहत्य M14 : सरहपा 1

सरहपा कहते हं कक अत्मा शून्य है और संसार भी शून्य है। शून्य और

हनरंजन ही परम पद है। आसमं पाप और पुडय कुछ नहं होता। परमपद का ज्ञान प्राप् त होने पर ही अपको हसहद्ध हमि सकती है। परमपद महासुख की एक ऄिस्था का नाम है। यह महासुख देता कौन है? आस पर सरहपा ने

कहा कक महामुरा ही महासुख कदिाती है। आसको प्राप् त करने के हिए पहित्र या ऄपहित्र का हिचार नहं करना

चाहहए। महासुख की प्राहप् त के पश् चात हचत्त का भटकना बन्द हो जाता है। महामुरा का कोइ हिकल्प नहं है।

यहाँ सरहपा एक और दाशषहनक स्थापना करते हं। िे कहते हं कक हचत्त एक मूि बीज है। आसहिए हचत्त देिता है, मन और हचत्त ऄिग-ऄिग होता है। मन चंचि होता है, परन्तु हचत्त हस्थर होता है। आसहिए सरहपा कहते हं कक हचत्त से हचन्ता को हनकाि देना चाहहए। आस हचत्त को 'जबदषस्ती बाँधना' गित है और हबिकुि स्ितन्त्र छोड़ना

भी गित है। हचत्त की आस सहज ऄिस्था को न तो गुरु बता सकता है और न हशष्य समझ सकता है। यह सहज ऄमृत के समान है। जहाँ आहन्रयाँ समाहहत हो जाती हं, हिषय की आच्छा भी नष्ट हो जाती है, हचत्त का ऄन्तर भी

हमट जाता है : िहाँ जो अनन्द प्राप् त होता है, िही महासुख है। आसहिए सरहपा कहते हं कक घर मं रहहए, पत्नी

के साथ रहहए, साधुिेश और ध्यान सब छोड़ दीहजए। बािक की तरह रहहए। बच् चा जैसा चाहता है, िैसा ही

करता है। यकद हचत्त के हिपरीत कायष ककया तो दुःख ऄिश्य हमिेगा। आसहिए नाचो, गाओ और ऄच्छी तरह हििास करो। ईसी मं योग की ईपिहब्ध होगी।

आस प्रकरण मं सरहपा ईपदेश देते हं कक मनुष्य को सहज जीिन जीना चाहहए। कठोर हनयमं मं मन और शरीर को बाँधकर जीिन को कष्टमय नहं बनाना चाहहए। जो हचत्त को ऄच्छा िगे, िह कीहजए। हचत्त तो राजा है।

ईसका स्िभाि स्िछन्द है। यही मनुष्य का मुहक्तदाता है। सरहपा भोग का हिरोध नहं करते। िह कहते हं कक हनष्काम भाि से भोग करना चाहहए। आस प्रकरण मं िे कहते हं– यकद अपने मन के हिपरीत कायष ककया तो अप व्यिहस्थत नहं रह पाएँगे। ऄतः भोग करं परन्तु ईससे मुक्त हो जाएँ। यह सहज साधना है।

आस तरह सरहपा ऄन्त मं जीिन की स्िाभाहिक प्रकृहत का ईपदेश देते हं। िे हििाह का हिरोध नहं करते। अप हििाहहत रहकर सहज मागष ऄपना सकते हं। सहज मागष गुरु के ज्ञान से कदखाइ देता है, हचत्त की ऄपनी प्रकृहत से

सहज ही प्राप् त हो जाता है। और यह सब काया के भीतर हिद्यमान है।

6. हनष्कषष

सरहपा भारत के 84 हसद्धं मं से एक हं। िे ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मणं की तत्कािीन व्यिस्था को ऄंगीकार नहं करते थे। िे ब्राह्मणं की श्रेिता का खडडन करते हं। साथ ही जाहतभेद का भी समथषन नहं करते। दाशषहनक रूप मं िे मनुष्य को सहज जीिन जीने के हिए प्रेररत करते हं और कमषकाडड, बाह्याचार अकद का खडडन करते

हं।

References