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HND : हिन्दी P11 : स्‍त री लेखन M33 : आक एगारसी

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HND : हिन्दी P11 : स्‍त री लेखन M33 : आक एगारसी

हिषय हिन्दी

प्रश् नपर सं. एिं शीषषक P 11: स्‍त री लेखन इकाई सं. एिं शीषषक M 33: आक एगारसी

इकाई टैग HND_P11_M33

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश् नपर-संयोजक प्रो. रोहिणी अग्रिाल इकाई-लेखक प्रो. रोहिणी अग्रिाल इकाई-समीक्षक प्रो. कैलाश देिी ससंि

भाषा-सम्पादक प्रो. देिशंकर निीन पाठ का प्रारूप

1. पाठ का उद्देश्य 2. प्रस्‍ततािना

3. हिज्ञान के संिारक प्रभाि एिं मनुष्य की स्‍तिार्ष केहन्ित, उपभोक्तािादी दृहि के दुष्पररणाम 4. कन्या भ्रूण ित्या की बढ़ती समस्‍तया एिं दुष्पररणाम

5. हनष्कषष

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HND : हिन्दी P11 : स्‍त री लेखन M33 : आक एगारसी

1. पाठ का उद्देश्य

इस पाठ के अध्ययन के उपरान्त आप–

 हिज्ञान के सतकष एिं सकारात्मक प्रयोग की मित्ता स्‍तपि कर सकेंगे।

 कन्या भ्रूण ित्या के कारण उत्पन् न िोने िाली समस्‍तयाओं पर अपने हिचार रख सकेंगे।

 हिज्ञान के बढ़ते दुरुपयोग से भहिष्य में िोने िाली समस्‍तयाओं पर अपने हिचार अहभव्यक्त कर सकेंगे।

2. प्रस्‍ततािना

सन् 1998 में अपने पिले िी उपन्यास कहल कर्ा िाया बाइपास के कारण चचाष में आई कर्ाकार अलका सरािगी अपनी

रचनाओं में प्रायः स्‍त री-प्रश् नों पर हिचार निीं करतीं। उनके सरोकार बृित्तर सामाहजक सन्दभों से जु कर उन सब हिसंगहतयों की प ताल कर लेना चािते िैं, जो मनुष्य जीिन को करठनतर बनाती चलती िैं। सलंग, धमष, िगष, िणष, जाहत, सम्प्रदाय आवद हिभाजनों से परे िे मनुष्य को उसकी अखण्डता में देखती िैं। इसहलए मनुष्य रर मनुष्य के सम्बन्ध, मनुष्य रर समाज के सम्बन्ध तर्ा समाज रर समय के अन्तस्‍तसम्बन्ध पर हिचार करती िैं। अलका सरािगी की एक अन्य खाहसयत कर्ा- हशल्प के प्रचहलत ढााँचे को तो कर, उसे नया रूप देना भी िै। जिााँ िे न केिल अन्तिषस्‍ततु में हनहित सू्म अर्ाषहभव्यंजनाओं को गिराई से उकेरती िैं, बहल्क कर्ा के शैहल्पक ढााँचे को समृद्ध करते हुए उसे कभी आख्यान परम्परा

से जो ती िैं, तो कभी जातीय परम्परा की हशनाख्त में अधुनातन सूचना प्रौद्योहगकी का इस्‍ततेमाल करती िैं। िस्‍ततुतः

लेहखका पाठक से दो हबन्दुओं पर ध्यान केहन्ित करने की अपेक्षा करती िैं। एक, िमारी पीढ़ी ने ीसी कौन- सी भीषण गलहतयााँ की िैं हजनका खाहमयाजा अगली पीवढ़यााँ भुगत रिी िैं? रर क्या िम अपनी इन गलहतयों को जानते िैं। दूसरा, गलहतयों के सुधार की प्रविया में सौ िषष बाद की पीढ़ी हजन समाधानों तक पहुाँची िै, क्या िे हनदोष िैं? इस प्रकार किानी कपोल-कल्पना का सतिी मुखौटा हगरा कर धीरे-धीरे समय को सिाषहधक प्रभाहित करने िाले केन्िीय प्रश् न तक पहुाँचती िै वक अपने समय की संकटापन् न हस्‍तर्हतयों से जूझते हुए िम भहिष्य के समाज को क्या हिरासत दे रिे िैं? सााँसों

के िम को पूरा करना या उपभोग में आनन्द उठाना जीना निीं िै, प्रकृहत, समाज रर सृहि की हनरन्तरता के सार् अपने

सकारात्मक सम्बन्ध का तारतम्य बनाए रखना भी िै। दरअसल कर्ाकार के रूप में उनका मूल ल्य सभ्यता के हिकास की समीक्षा करते हुए समय रर समाज की पुनरषचना करना िै, तावक एक गिरे सन्तुलन रर सामंजस्‍तय के सार् मनुष्य रर प्रकृहत अपनी-अपनी मयाषदा में रि कर एक-दूसरे की गररमा बनाए रख सकें। ‘आक एगारसी’ किानी उनकी इसी

संिेदना की अकुलािट का पररणाम िै।

3. हिज्ञान के संिारक प्रभाि एिं मनुष्य की स्‍तिार्ष केहन्ित, उपभोक्तािादी दृहि के दुष्पररणाम

आक एगारसी सन् 2000 में प्रकाहशत अलका सरािगी के दूसरे किानी संग्रि में संकहलत िै। मोटे तौर पर यि किानी

कर्ानक हििीन किी जा सकती िै। घटना मार इतनी िै वक अपने हमर के सार् हुई दुघषटना रर अनिोनी का भयािि

स्‍तिप् न देखने के बाद कर्ािाचक अस्‍तत-व्यस्‍तत मनःहस्‍तर्हत में उसका कुशल क्षेम जानने रर भहिष्य के बारे में सतकष करने के

हलए उसके घर की ओर जाता िै। घर के समीप पहुाँचते िी उसे याद आता िै इस समय हमर दफ्तर में िोगा। इसहलए समय हबताने के हलए िि घर के समीप पाकष में चला जाता िै जिााँ उसे अपने पुराने मकानमाहलक का बेटा सुमन्त वदखाई देता िै। सुमन्त आत्मस्‍तर् िै रर पुराने पररचय की याद वदलाए जाने पर भी उसे निीं पिचानता। िि बताता िै वक उसका

नाम सुमन्त निीं, आक एगारसी िै। सम्भ्रम में प े कर्ािाचक को िि बताता िै वक उसे उसका नाम असामान्य इसहलए लग रिा िै, क्योंवक िि उसके समय से सौ साल आगे आने िाली ग्यारििीं पीढ़ी की सन्तान िै। शेष किानी में दोनों के

संिाद के माध्यम से सौ साल की अिहध में घटने िाले हिज्ञान के संिारक प्रभािों रर मनुष्य की स्‍तिार्ष केहन्ित उपभोक्तािादी दृहि के दुष्पररणामों को शब्दबद्ध वकया गया, िै जो दरअसल िमारे आज के समय का क िा यर्ार्ष िै।

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HND : हिन्दी P11 : स्‍त री लेखन M33 : आक एगारसी

जैसे-जैसे कर्ा आगे बढ़ती िै कर्ािाचक आक एगारसी के अहस्‍ततत्ि को

सच मानता हुआ उसे बेिद पररपक् ि संिेदनशील एिं हिचारशील भहिष्य-सन्तान के रूप में स्‍तिीकारने लगता िै। सौ बरस की अिहध में ग्यारि पीवढ़यों के जन्म लेने की असम्भाव्यता रर सौ िषष आगे भहिष्य से वकसी बच् चे का आना जैसी

अहिश् िसनीय युहक्तयों से बेपरिाि कर्ािाचक जैसे िी उसे अपने हृदय के रिस्‍तय सौंपने लगता िै। सुमन्त के हपता उसे

पुकारते हुए ििााँ आते िैं रर िि आक एगारसी के अहभनय को छो उनके सार् चला जाता िै।

सतिी तौर पर किानी अहिश् िसनीय रर अतार्कषक प्रतीत िोती िै। यर्ार्ष में कल्पना का हमश्रण कर जब कोई लेखक अपनी अन्तदृषहि के सिारे यर्ार्ष की पुनरषचना करता िै। तभी साहिहत्यक रचनाओं का जन्म िोता िै। कल्पना की प्रचुरता

के बािजूद किानी में कल्पना यर्ार्ष की तार्कषकता, कायष-कारण शृंखला, सम्भाव्यता रर आधारभूहम को नि निीं करती, बहल्क इन्िें िी सुदृढ़ करने के हलए िि हनरन्तर यर्ार्ष के दबािों रर हनयमों के अधीन रिती िैं। आक एगारसी किानी में

कल्पना यर्ार्ष के गुरुत्िाकषषण से मुक्त िो कर मानो वकसी दूसरे ग्रि-नक्षर में प्रहिि िो जाती िै, जिााँ न पढ़े-गुने तकष िैं, न हनयम। रिस्‍तयमय िातािरण को गिराते हुए किानी हजस स्‍तिप् न हचर की रचना करती िै। िि उसे फैण्टेसी का रूप देती

िै। फैण्टेसी सतिी तौर पर भले िी यर्ार्ष की भयाििता से घबरा कर पलायनिादी हतहलस्‍तमी लोक की रचना करती कोई हसरवफरी कोहशश वदखे, लेवकन गिराई में यि यर्ार्ष की अदृश्य कुरटलता का भयािि हिस्‍ततार करती िै, तावक आतंक रर रास की सृहि करती व्यिस्‍तर्ा को अनेक कोणों से देख कर िि उसका रर उसके सार् अपने अन्तस्‍तसम्बन्धों का रेशा- रेशा हिश् लेषण कर सके। इसहलए फैण्टेसी अपनी मूल संकल्पना में यर्ार्ष के आतंक से मुहक्त की स्‍तिप् न-कर्ा िै। जागती

आाँखों के इस स्‍तिप् न के हलए दो चीजों की भरपूर आिश्यकता िै - गिरी जीिन -दृहि रर आला दजे की सजषनात्मकता। ये

दोनों अिषताएाँ स्‍ति रर भौहतक जगत की संकीणषताओं से अहतिमण की क्षमता से उपजती िैं, जिााँ शेष रिती िै जीिन के

प्रहत उदात्त आस्‍तर्ा रर उद्दाम हजजीहिषा। कौतूिल, हजज्ञासा, चमत्कार, रोमांच, हिस्‍तमय जैसे मनोभािों के सार् कल्पना

के बीि में प्रिेश करते हुए फैण्टेसी पूरी तौर पर हजतनी ज्यादा यर्ार्ष से दूर जाती वदखती िै। उतनी िी गिरी तन्मयता

रर उत्कट व्यग्रता के सार् िि लुंजपुंज यर्ार्ष को बीनती-बुनती चलती िै। िि मोटे तौर पर हिघटन रर िचषस्‍तििादी

ताकतों से अटे साम्राज्य से दो-दो िार् करता सकारात्मक िस्‍ततक्षेप िै, हजसे मनुष्य रर जीिन के स्‍तिास्‍त्य के हलए सृजन की हनरन्तरता को बनाए रखना िै। इसहलए लेखक के हलए फैण्टेसी करना हजतना दुरूि िै, उतना िी करठन िै पाठक के

हलए फैण्टेसी के भीतर हछपी अर्षव्यंजनाओं को गुन-बुन कर पुनसृषहजत यर्ार्ष के सार् अपने सम्बन्ध को व्याख्याहयत करना।

भय, रिस्‍तय रर उनके तनाियुक्त रोमांचक प्रभाि से आन्दोहलत िोकर पुनः सामान्य िो जाने की आकांक्षा फैण्टेसी की

आधारभूहम का हनमाषण करती िै। फैण्टेसी में प्रहिि िोने से पिले अलका सरािगी किानी में भयहिगहलत कर्ािाचक की

मनःहस्‍तर्हत को रर भी उहिग् न बनाने के हलए कर्ा में रिस्‍तयात्मक िातािरण की सृहि करती िैं। कलकत्ता की मई मिीने

की हचरपररहचत पीली सााँझ पिली बार अपररहचत रूप धर कर कर्ािाचक के भीतर तनाि पैदा करती िै। वफर इस तनाि को गाढ़ा करते हुए लेहखका पीली रोशनी के िृत्त से हघरे कू े के ढेर के पास कर्ािाचक की ओर मुाँि वकए चुपचाप बैठे तीन कुत्तों का हचर उकेरती िैं। गली सुनसान िै। सााँझ का झुटपुटा पुराने पे ों के सघन साए की िजि से गली में

अन्धेरे की सृहि कर रिा िै रर अपनी आशंका रर उतािलापन के कारण रोजमराष के इस अभ्यस्‍तत दृश्य से कर्ािाचक पसीने-पसीने िो गया िै। सााँझ का झुटपुटा न अन्धेरे के जय की घोषणा िोता िै न प्रकाश के अन्त की। यि चीजों को

उनकी धुाँधली बाह्याकृहत में सजोता अिश्य िै, लेवकन भयािान्त मानहसकता के अनुरूप उनमें वकसी ‘अन्य’ के िोने की

सम्भािना अर्िा ििम को भी बढ़ािा देता िै। लेहखका ने बािरी िातािरण िी निीं उकेरा, बहल्क कर्ािाचक के भीतरी

िातािरण को भी बुना िै जो दुःस्‍तिप् न के झुटपुटे में चेतन रर संज्ञाशून्य िोने की हस्‍तर्हतयों के बीच हनरन्तर आिागमन कर रिा िै। इसहलए अधीरता से दौ कर हमर के घर तक आना रर घर पहुाँच कर याद आना वक यि समय तो हमर के घर में

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HND : हिन्दी P11 : स्‍त री लेखन M33 : आक एगारसी

न रिने का िोता िै। उसकी इस हिभ्रम हस्‍तर्हत को दशाषता िै। ठीक यिी

िातािरण की रिस्‍तयात्मकता में सुमन्त की भौहतक उपहस्‍तर्हत को घुला-हमला देने के हलए लेहखका सौ िषष आगे के समय को एक झील का रूप देकर सुमन्त रर कर्ािाचक दोनों के बीच उपहस्‍तर्त कर देती िैं। यि कर्ा-युहक्त पाठक को आश् चयष- लोक में ले जाने के हलए निीं िै, बहल्क घटनाओं की तार्कषक पररणहत के रूप में सौ िषष के दरम्यान िोने िाले िहमक पररितषनों रर पररणामों को गिरी हनस्‍तसंगता से जााँचने के हलए िै।

आक एगारसी के रूप में लेहखका ने ीसे अचल शान्त हचत्त वकशोर की कल्पना की िै,जो अपने हनजी अनुभिों से निीं, बहल्क इहतिास से सबक लेकर सबकी गलहतयों का प्रायहश् चत करने हनकला मसीिा िै। भुिनमोहिनी मुस्‍तकान हनश्छलता

रर आाँखों में गिरे तक उतरी हिश् िास करने की क्षमता उसे ईसा मसीि जैसा चुम्बकीय व्यहक्तत्ि देते िैं। अपनी मूल संकल्पना में िि हजतना अपने समय से बाँधा िै, उतना िी हनबषन्ध रर समयातीत िोकर पूरे ीहतिाहसक कालिम की

हििेचना करने िाला संिेदनशील बौहद्धक प्राणी िै। कर्ािाचक के सार् आक एगारसी के सम्बन्ध को बुनते हुए लेहखका ने

ध्यान रखा िै वक दोनों अपने-अपने युग का प्रहतहनहधत्ि करते हुए एक-दूसरे के हिलोम उभर कर आएाँ। किानी में

कर्ािाचक ‘एक तरि से हबल्कुल टूटा हुआ इन्सान’ िै जो उम्मीद की िल्की- सी रोशनी पाने के हलए ज्योहतहषयों रर भहिष्यिक्ताओं के चक्कर काटने िाली भारतीय िताश मनःहस्‍तर्हत का प्रहतहनहध िै,तो आक एगारसी िाणी रर स्‍तपशष के

माध्यम से भीतर तक हिदीणष हृदय को प्रेम-हिश् िास की हिग्ध तरलता से भर देने िाला अपना िी कोई लुप्त अंश या

देिदूत। "यवद उसकी जगि मेरा अपना बेटा मृदुल िोता तो इससे अहधक स्‍त नेि शायद उसके प्रहत भी मैं मिसूस निीं

करता।" दोनों के बीच िार्दषकता के आदान-प्रदान का गिरा ररश्ता बुन कर लेहखका के हलए, हिहचर आक एगारसी के

प्रहत पाठकीय कौतूिल रर हिश् िास पैदा करना करठन निीं रिता। इस आधारभूहम को तैयार करने के बाद उनके हलए आक एगारसी में अपनी दृहि, संिेदना, व्याकुलता रर हजजीहिषा का आरोपण करना सरल िो जाता िै। तब "िमने पुराने

लोगों की गलहतयों में सुधार कर हलया िै।"

4. कन्या भ्रूण ित्या की बढ़ती समस्‍तया एिं दुष्पररणाम

किानी में हिश् लेषण के दौरान िमारे आज के समाज के स्‍तिास्‍त्य रर उन् नत चररर को ग्रसने िाली अनेक गम्भीर बीमाररयााँ एक-एक कर लेहखका के सामने उपहस्‍तर्त िोती िैं। आक एगारसी मानो बीच की ग्यारि पीवढ़यों के जररए उनकी पररणहत की कर्ा किता िै। सबसे पिले िि सलंग जाहत धमष से परे अपनी मनुष्यगत पिचान की बात करता िै

रर अपने देश की नीहत का ीलान कर कर्ािाचक को सम्भ्रम की हस्‍तर्हत में डाल देता िै वक "िमारे देश में इस िक्त प्रहत ररत चार ल वकयााँ पैदा करने का हनयम िै।" एकाएक यिााँ आकर किानी की मूल संिेदना आकार लेने लगती िै। बेशक कर्ािाचक की तरि पाठक भी यि सुन कर चौंक गया िै, लेवकन जल्द िी हिभ्रम की हस्‍तर्हत से उबर कर िि अपने युगीन सत्य के भीतर गिरे उतरने लगता िै। कन्या भ्रूण ित्या के बढ़ते आाँक े हिषम सलंगानुपात रर ऑनर वकसलंग के नाम पर युिा ल वकयों की ित्या की खबरें उसे झकझोरने लगती िैं। भीतर िी भीतर उस आन्दोहलत अिस्‍तर्ा में िि हिश् लेषण भी

करने लगता िै वक हस्‍त रयों की िीन सामाहजक हस्‍तर्हत िी जन्म से अहभशप्त रर जीिन से संतप्त स्‍त री की दुरिस्‍तर्ा का मूल कारण िै। पाठक की हचन्ता एक हजम्मेदार नागररक की हचन्ता िै लेवकन िि उसे ितषमान के घनत्ि से मुक्त कर स्‍त री- हििीन भहिष्य की हिभीहषका को देखने की बेचैनी निीं देती। रोजमराष की हजन्दगी की क्षुिताओं में खोए पाठक के हलए कन्या भ्रूण ित्या समय की एक िीभत्स सचाई भर िै हजसके सार् व्यहक्तगत तौर पर टकराने रर लहूलुिान न िोने की

हनहश् चतता ने उसमें अनजाने िी सामाहजक दाहयत्िों के प्रहत बेपरिािी भर दी िै। किानी उसे उस हस्‍तर्हत की ओर धकेलती िै जिााँ उसे अपनी लापरिाहियों के गभष में हछपी संिेदनिीनता रर िूरता वदखने लगती िै वक कन्या भ्रूण ित्या

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HND : हिन्दी P11 : स्‍त री लेखन M33 : आक एगारसी

की साक्षी नई पीढ़ी संस्‍तकार में अपनी पूिषज पीढ़ी की बबषरता लेकर कैसी

स्‍त री हिरोधी िो उठी िै। आक एगारसी की आिाज उसके सामने एक-एक कर अपने दुष्कमों की पोटली खोलती जा रिी

िै। "आपकी पीढ़ी ने ल वकयों को भ्रूण में िी गभषपात करके हनकालना शुरु वकया। उसके बाद की पीढ़ी ने पुरुष िीयष की

छाँटाई करके हसफष एक ल का पैदा करना शुरु वकया रर वफर उन लोगों के बाद की पीवढ़यों में धीरे-धीरे लोगों में बच् चा

पैदा करने की इच्छा िी खत्म िोती गई। इसका कारण यि र्ा वक प्रायः इकलौते ल के मााँ-बाप से सोलि साल की उम्र के

बाद कोई सम्बन्ध निीं रखते र्े। वकसी न वकसी ल की का पहत िोने के हलए या उससे ररश्ता बनाने के हलए उन्िें बरसों

मेिनत करनी प ती र्ी। बहुत सारे युद्ध सुन्दर ल वकयों को पाने के हलए हुए। इसका नतीजा यि हुआ वक िमारे देश में

ल वकयों की िी निीं पे ों रर आदहमयों की संख्या भी बहुत कम िोती चली गई।" जरा सा आत्मस्‍तर् रर हिश् लेषणशील

िोते िी पाठक आक एगारसी के कर्न की हिभीहषका को अपने ितषमान में घरटत िोते देख पाता िै। हिषम सलंगानुपात के

कारण ल कों के हििाि की समस्‍तया समाधान िेतु जो हिकल्प देती िै िि गरीब पररिार की ल वकयों की खरीद-फरोख्त को िैध बनाने लगती िै। प्रहत िजार ल कों पर 877 ल वकयों के सलंगानुपात के कारण कुख्यात िररयाणा प्रदेश के कुछ ग्रामीण क्षेरों में िधुओं की खरीद की बात आम िै। दूसरे िि इस त्य का भी साक्षी िै वक मिानगरीय सभ्यता में निीन सूचना प्रौद्योहगकी के रंग में रंगे रर भौहतक मित्त्िाकांक्षाओं िारा तरंगाहयत युिा दम्पत्ती सन्तहत के प्रजनन रर पालन- पोषण जैसे गम्भीर रर बुहनयादी दाहयत्ि से कनी ी काटते जा रिे िैं। यि याहन्रक वदनचयाष रर उपभोक्तािादी संस्‍तकृहत के

प्रभािस्‍तिरूप उपजी दाहयत्ििीनता का प्रसार िै जो मनुष्य को समूची सृहि से काट कर अपनी िी लोभ की संकुहचत पररहध में ला बैठाती िै। आक एगारसी की तीसरी रटप्पणी - ‘सुन्दर दर स्‍त री को पाने के हलए युद्धोन्माद’ - उसे जरा भी

अहिश् िसनीय निीं लगती क्योंवक भारत का पौराहणक एिं मध्यकालीन इहतिास जर-जोरू-जमीन के इदष-हगदष युद्धों की

कर्ाएाँ गूाँर् कर समूचे पयाषिरण के हिनि िो जाने की रासवदयााँ किता रिा िै। यि हनश् चय िी भहिष्य की ओर पीठ करके

समय के चि को पीछे लौटा ले चलने की ज अिम्मन्यता िै जो िौपदी-सी हस्‍तर्हत में रख कर स्‍त री को हनरन्तर भोग की

सामग्री बनाए रखती िै। जाहिर िै लेहखका कन्या भ्रूण ित्या जैसी समस्‍तया को उसके समस्‍तत आयामों में देखते हुए इसे स्‍त री

की गररमा रर मनुष्यता के भहिष्य के सार् जो देती िैं।

आक एगारसी किानी कलात्मक सधाि के सार् अन्तिषस्‍ततु की संहश् लि परतों को खोलती चलती िै, िि िास्‍ततहिकता के

नए-नए स्‍ततरों का उद्घाटन िी तो िै। फैण्टेसी के चामत्काररक रर सम्मोिक प्रभाि को लेहखका ने किीं भी स्‍तखहलत निीं

िोने वदया िै। कन्या भ्रूण ित्या की जघन्य बबषरता के बीच िे आक एगारसी के पुरुष व्यहक्तत्ि को अहधकाहधक स्‍त री रूप वदए चलती िैं जिााँ स्‍त री-सुलभ कोमलताएाँ, लज्जा रर शालीनता उसका पररचय बन जाती िैं। सार् िी हस्‍त रयों की तरि

उसकी छठी इहन्िय भी अहधक सविय िै,जो कर्ािाचक के हृदय में उठने िाले भािों- सिालों का पूिाषनुमान लगा कर स्‍तियं िी उनका हनराकरण करने लगती िैं। दूसरे के मन की बात जानना रर वफर उसकी पी ा को आत्मसात् कर उसे

बााँटने के हलए व्यग्र िो उठना। ये ीसी हस्‍त रयोहचत हिशेषताएाँ िैं जो इधर तेजी से लुप्त िोती जा रिी िैं। लेहखका ने दो

अन्य हिघटनशील तत्त्िों ‘मीठी बोली’ रर शुद्ध हिन्दी ‘मातृभाषा’ की ओर संकेत करते हुए न केिल अपनी ज ों से कट कर अहधकाहधक आिामक रर असहिष्णु िोते समकालीन यर्ार्ष से आाँख हमलाने की ताकीद की िै, बहल्क इन्िें गुण बना

कर आक एगारसी के भीतर आरोहपत वकया िै। हनःसन्देि यिी आक एगारसी के इदष-हगदष बुना जादुई िलय िै वक कर्ािाचक उसकी अलौवकक संिेदनशीलता से अहभभूत िोकर अपना हृदय उ ेलने को बाध्य िो गया िै।

कन्या भ्रूण ित्या एिं स्‍त री के प्रहत बढ़ती असंिेदशीलता, सम्बन्धों के समीकरण बदल जाने रर बढ़ती सम्बन्धिीनता के

दबाि तले भािनात्मक असुरक्षा के गिराने की हनयहत की ओर भी संकेत करती िै। आक एगारसी इसका प्रमाण िै। प्रहत स्‍त री चार-चार ल वकयााँ पैदा करने के फरमान के कारण उस जैसे ल के सृहि में जैहिक सन्तुलन बनाए रखने के हलए पैदा

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HND : हिन्दी P11 : स्‍त री लेखन M33 : आक एगारसी

वकए जाते िैं। बेशक सौ साल का सफर स्‍त री-समय िोगा, लेवकन पुरुष की

सिंसा की आाँच सि कर यि हनखरी स्‍त री कत्ताष बनने के बाद पुरुष के सिंसक, िोधी रर स्‍तिार्ी रूप को अपने भीतर जज्ब निीं करेगी। "संसार के वकसी भी युद्ध की शुरुआत वकसी स्‍त री ने निीं की िै" - आक एगारसी अहभमानपूिषक किता िै।

सार् िी िि युद्ध के दािानल में धधक कर खत्म हुए हपता जैसे सम्बन्ध का भी साक्षी िै "िमारे यिााँ हपता का अर्ष हसफष

िि िीयष िै जो कोई ररत एक सुन्दर बुहद्धमान ल की पैदा करने के हलए बैंक से लेती िै।" यि सूचना आक एगारसी के

हलए हजतनी सिज िै, कर्ािाचक रर पाठक के हलए उतनी िी असिज। तो क्या समय के सार् हििाि संस्‍तर्ा का नाश िो

जाएगा जो अपनी तमाम अहधनायकिादी बुराइयों के बािजूद पररिार संस्‍तर्ा के भीतर सम्बन्धों रर मानिीय सम्भािनाओं को सुरहक्षत रखती िै? परम्परा से आज तक स्‍त री की सम्पूणषता को 'देि' तक सीहमत रखना हजतना

दुभाषग्यपूणष रिा िै, उतना िी हिडम्बना पूणष िोगा पुरुष का ‘िीयष बैंक’ में तब्दील िोना। ीसी जैि-िैज्ञाहनक शोधों के

सिारे हिज्ञान सृहि के िम को सुहनहश् चत कर सकता िै, लेवकन जीिन रर सम्बन्ध के बीच िार्दषकता रर स्‍तपन्दन का

भाि पैदा निीं कर सकता। मनुष्य को यन्र-मानि निीं बनाया जा सकता। लेहखका इस मान्यता को स्‍तिीकारती िैं, इसहलए याहन्रक जीिन-पररहस्‍तर्हतयों में जीते आक एगारसी को यन्र में हिघरटत निीं िोने देती। िे उसके स्‍तपन्दन रर मनुष्यता को बचाए रखने के हलए उसमें 'िताशा' रर 'भािनात्मक आघात' जैसी अनुभूहतयों को मिसूस करने रर इनसे

उबरने की इच्छाशहक्त तीव्रतर करती िै।

आक एगारसी के घनघोर अकेलेपन की कल्पना करना करठन निीं। िि हजस कम्प्यूटर-अनुशाहसत युग में जी रिा िै, ििााँ

जीने का आह्लाद ितषमान को उसकी नैसर्गषकता के सार् स्‍तिीकारने की हनहश् चतता बन कर निीं आता, अतीत की

गलहतयों के पररमाजषन का दाहयत्ि बोध बन कर आता िै। आपसी संिाद के जररए भीतर छटपटाती अभ्युहक्तयों को व्यक्त करने की बजाय ये कम्प्यूटर के प्रोग्राम से संचाहलत िो रिे िैं। न जीिन में कुछ भी गोपन िै न भहिष्य में कुछ भी अबूझ।

इसहलए एक्सप्लोर करने का आह्लाद सृजन की सम्भािनाओं को भी निीं पनपने देता। भािनाएाँ सम्बन्ध आकांक्षाएाँ रर स्‍तमृहतयााँ त्यात्मक सूचनाएाँ बन कर आती िैं। जैसे आक एगारसी के पास हपता निीं, हपता की कम्प्यूटर प्रदत्त स्‍तमृहतयााँ िैं

वक मेरे हपता मुझसे छि पीढ़ी पिले के एक मिान िैज्ञाहनक र्े हजन्िोंने हिज्ञान का इस्‍ततेमाल दुहनया को नि करने के हलए या लोगों में नई चीजों के प्रहत कभी न बुझने िाली तृष्णा जगाने के हलए निीं, बहल्क इस दुहनया को सुन्दर रर स्‍तिस्‍तर्

बनाने के हलए वकया र्ा। कर्ािाचक से हमलने के बाद आक एगारसी िारा िताशा का अनुभि करना अकारण निीं िै।

हजस प्रकार उसे देख कर कर्ािाचक को िठात् अपना बेटा याद आने लगता िै ठीक उसी प्रकार सम्भािना िै वक आक एगारसी को भी कर्ािाचक में अपने हपता नजर आएाँ िों। कर्ािाचक का िार् पक कर बेंच की ओर चलते समय िि

भी हनश् चय िी 'प्रेम से लबालब' भर गया िोगा रर क्षणांश बाद जब अपने में लौटा िोगा तो ीसे वकसी मानिीय सम्बन्ध को न जी पाने की िेदना में छटपटाया िोगा। इसहलए अपने उस स्‍तिगष जैसे अनुपम देश-काल का बखान करते हुए िि

अनायास अपने समय की गम्भीर समस्‍तया की ओर भी संकेत कर जाता िै। यि समस्‍तया िै दुःख बदाषश्त न कर पाने की

अक्षमता। "िमारे यिााँ एक मौत िोने पर वदल टूटने से मर जाने िालों की एक शृंखला बन जाती िै। िमारे हृदय इतने

कमजोर िो गए िैं वक िम वकसी की कोई तकलीफ निीं देख पाते।" स्‍तपि िै यि समस्‍तया ददष न बााँट पाने की अक्षमता का

िी पररणाम िै क्योंवक दुःख बााँटने की कला दो अलग-अलग इयत्ताओं में बाँटे व्यहक्तयों को जो ती िी निीं, उन्िें दुःख से

ल ने की नैहतक ताकत भी देती िै। "आप लोगों के समय में एक सुन्दरता भी िै - एक आाँच, एक गरमािट। अपने सारे

अध्ययन में मैं यि बात समझ निीं पाया र्ा। एक ल ाई अन्याय के हखलाफ! वकतनी सुन्दरता िै इसमें! कैसी अ्भुत! यि

िमारे जीिन में निीं िै। इतनी सारी उलझनों के बीच आप हजन्दा बने रिते िैं।"

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HND : हिन्दी P11 : स्‍त री लेखन M33 : आक एगारसी

5. हनष्कषष

लेहखका की हिशेषता िै वक आक एगारसी रर उसके समय को िमारे आज का हिलोम बनाने के बािजूद िे उन्िें एक िी

हस्‍तर्हतका हिस्‍ततार बनाती िैं। स्‍त री का उत्पी न, युद्ध की हिभीहषका, साम्प्रदाहयक दंगे, पयाषिरण प्रदूषण, ये सब अपने- अपने स्‍ततर पर अन्याय के िी उदािरण िैं। बेितर भहिष्य की कल्पना अन्याय का प्रहतकार वकए हबना सम्भि निीं। िमारा

आज का समय अन्याय से िैचाररक-नैहतक मुठभे की कोहशश में रर अहधक अहधनायकिादी रर कठमुल्ला हुआ जा रिा

िै। आक एगारसी के जररए हिश् लेषण करते हुए लेहखका इसका मूल कारण मनुष्य के स्‍तिभाि में हनहित मानती िैं।

'आदशष' रर 'भ्रि' दो मूल्य-चेतना िैं जो मनुष्य के हृदय में अगल-बगल हस्‍तर्त िैं। 'आदशष' तलिार की धार पर चलने की

हिकट साधना िै तो 'भ्रि' में रपटने का रोमांचक सुख िै। "मनुष्य चलना जानता िै, इसहलए िि कभी भी इस फासले को

माप सकता िै" - आक एगारसी मनुष्य की इस सीमा को जानता िै, इसहलए उसके समय ने हनिैयहक्तकता को मूल्य बना

कर मनुष्य की चेतना रर व्यििार विया रर संिेग को मशीनी हनयन्रण के अधीन कर वदया िै। िमने एक कम्प्यूटर मशीन को सरकार न्यायालय रर पुहलस का काम सौंप वदया िै। यि मशीन मनुष्यता के चरम हििेक से बनाई गई िै रर

िमारे सारे व्यहक्तगत कम्प्यूटरों से उसका स्‍त नेिपूणष सम्बन्ध िै। िि परम प्रेम का साकार रूप िै। िि स्‍तियं सत्य िै। िि

कभी गलत निीं िोती, कभी पक्षपात निीं करती। अन्याय शब्द तो उसके कोश में िी निीं िै। यिीं यि सिाल भी उठता िै

वक क्या मशीन मनुष्य का हिकल्प िो सकती िै खासतौर पर उन हस्‍तर्हतयों में जब हिज्ञान की अत्यन्त उन् नत अिस्‍तर्ा भी

मनुष्य के महस्‍ततष्क की संरचना रर कायष-प्रणाली को निीं समझ पाई िै, मनुष्य के जीिन में सम्बन्ध, संिेग, संिेदनाएाँ

रर सपने हजन भाि-लिररयों को उत्पन् न करते िैं िे तकाषतीत िोते हुए भी मनुष्य के सच को रचते िैं। मशीन के पास मनुष्य को मनुष्य से जो ने िाले इस भािनात्मक संसार को समझने का हििेक निीं पनप सकता। िताशा रर अकेलेपन की दुदाषन्त पी ा के बीच अपने को सुहस्‍तर्र रखने के प्रयास में दिा की पुह या हनगलता आक एगारसी िमारी ितषमान सभ्यता के निषस ब्रेक डाउन के हशकार वकसी भी व्यहक्त से हभन् न निीं िै। बेशक िि दािा करता िै वक "िमने जीिन की

कीमत को जान हलया िै इसहलए िम िर घ ी प्रसन् न रिना चािते िैं", लेवकन िास्‍ततहिकता यि िै वक उसकी पीढ़ी हिज्ञान के सतकष रर सकारात्मक प्रयोग के बािजूद सौिादषपूणष समाज की रचना निीं कर पाई। ठीक इसी समस्‍तया से ग्रस्‍तत िै

िमारा आज का समाज। संकीणष मनोिृहत्त रर संकुहचत सोच ने उसकी मित्िाकांक्षाओं को ििा अिश्य दी िै, लेवकन उसकी प्रगहत का रास्‍तता दूसरों के रास्‍तते अिरुद्ध करके िी खुलता िै। आक एगारसी की पीढ़ी में अपने पूिषजों के पाप धोने

का प्रायहश् चत बोध िै हजस कारण िि जीिन को उसकी समग्रता रर ितषमानता में निीं देख पा रिी िै। स्‍तपि िै वक संिादिीनता दोनों ओर िै। लेहखका मानो समय के अन्तराल को पाट कर पाठक को अपने समय की हिभीहषकाओं को

पिचानने रर उनकी सम्भाहित रासद पररणहतयों से बचने के हिकल्पों पर हिचार करने का आग्रि करती िैं। फैण्टेसी

कालानुिम को तो कर हजतनी उन्मुक्तता से अतीत रर भहिष्य के बीच संचरण करती वदखती िैं उतनी िी आतुरता से

िि ितषमान को बेितर बनाने के हलए मनुष्य की सकारात्मक भूहमका को रेखांवकत करती िै। संक्षेप में आक एगारसी

किानी सभ्यता की समीक्षा का आह्िान िै।

References