• No results found

HND : हिन्दी P 15 : साहित्य का इहििास दर्शन

N/A
N/A
Protected

Academic year: 2023

Share "HND : हिन्दी P 15 : साहित्य का इहििास दर्शन "

Copied!
7
0
0

Loading.... (view fulltext now)

Full text

(1)

HND : हिन्दी P 15 : साहित्य का इहििास दर्शन

M 20 : मध्ययुगीनिा की अवधारणा और हिन्दी साहित्य का इहििास

हवषय हिन्दी

प्रश्नपत्र सं. एवं र्ीषशक P15 : साहित्य का इहििास दर्शन

इकाई सं. एवं र्ीषशक M20 : मध्ययुगीनिा की अवधारणा और हिन्दी साहित्य का इहििास

इकाई टैग HND_P15_M20

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश्नपत्र-संयोजक प्रो. मैनेजर पाण्डेय इकाई-लेखक डॉ. गजेन्र पाठक इकाई समीक्षक प्रो. गोपेश्वर ससि

भाषा सम्पादक प्रो. देवर्ंकर नवीन पाठ का प्रारूप

1. पाठ का उद्देश्य 2. प्रस्िावना

3. मध्यकालीनिा की अवधारणा

4. मध्यकाल और हिन्दी साहित्य

5. यूरोपीय मध्यकालीनिा बनाम भारिीय मध्यकालीनिा

6. हिन्दी साहित्य के इहििास में मध्यकाल

7. हनष्कषश

(2)

HND : हिन्दी P 15 : साहित्य का इहििास दर्शन

M 20 : मध्ययुगीनिा की अवधारणा और हिन्दी साहित्य का इहििास 1. पाठ का उद्देश्य

इस पाठ के अध्ययन के उपरान्ि आप –

 मध्यकालीनिा र्ब्द की अवधारणा से पररहिि िो सकेंगे।

 भारिीय मध्यकालीनिा और यूरोपीय मध्यकालीनिा की अवधारणा के अन्िर को समझ सकेंगे।

 हिन्दी साहित्य के इहििास में मध्यकाल के वाद-हववाद जान पाएँगे।

2. प्रस्िावना

हिन्दी साहित्य के इहििास के सन्दभश में आददकालीनिा, मध्यकालीनिा, आधुहनकिा और समकालीनिा की अवधारणाएँ

इहििास के अध्ययन में सिायक िैं और कई बार अवरोधक भी। साहित्य का नया हवद्यार्थी जब ‘आददकालीन साहित्य का

इहििास’ नाम सुनिा िै िो उसे प्रिीि िोिा िै दक यि उन आददमानवों के समय का साहित्य िै जब आदमी जंगलों या

गुफाओं में रििा र्था। मध्यकालीनिा से ऐसा लगिा िै जैसे वि दकसी हपछड़े हुए समाज का साहित्य िै। आधुहनकिा और समकालीनिा की पररहध को लेकर खींि-िान आज िक जारी िै, उससे िम सब पररहिि िैं। यिाँ िूँदक मध्यकालीनिा की

अवधारणा पर बाि करनी िै, इसीहलए िम अपने को यिीं िक सीहमि रखेंगे।

3. मध्यकालीनिा की अवधारणा

प्रहसद्ध इहििासकार हनिार रंजन राय ने सामाहजक इहििास के सन्दभश में मध्यकालीनिा पर हविार दकया िै। उन्िोंने

मध्यकालीनिा के कुछ लक्षण इस प्रकार बिाए िैं–

 समस्ि राजवंर्ों का स्र्थानीय िो जाना (ये यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों से िुलनीय िैं)।

 मौदरक अर्थशव्यवस्र्था का प्राकृहिक अर्थशव्यवस्र्था में रूपान्िरण।

 सामाहजक सम्प्रेषण के माध्यमों (हलहप, भाषा व साहित्य) का स्र्थानीय िररत्र उभरना।

 धमश के भीिर सम्प्रदायों एवं उप-सम्प्रदायों का प्रादुभाशव।

 कला के क्षेत्र में भी स्र्थानीय र्ैहलयों का हवकास। (हिस्री ऑफ बंगाली पीपुल, अली पीररयड)

हनिार रंजन राय द्वारा हनरूहपि मध्यकालीनिा के लक्षण, उनके उद्भव की व्याख्या एवं इनके सन्दभश में दकए गए व्यापक सामान्यीकरण के बाद मध्यकाल के स्वरूप एवं संरिना पर बहुि र्ोध-कायश हुए। रामर्रण र्माश ने हलखा िै दक

“भारिीय इहििास लेखन का एक प्रधान दृहिकोण यि िै दक ददल्ली सल्िनि की स्र्थापना के पिले की र्िाहब्दयों में

‘मध्यकालीनिा’ के लक्षण हवद्यमान र्थे िर्था मध्यकालीनिा के आरहम्भक िरण को ‘भारिीय-सामन्िवाद’ नाम ददया जा

सकिा िै। (भारिीय सामन्िवाद)” मध्यकाल की अवधारणा के सामाहजक, राजनीहिक एवं आर्थर्थक ित्त्वों के हवषय में

पयाशप्त हववादों के बावजूद अहधकांर् इहििासकारों ने राजनीहिक हवकेन्रीकरण, भूहबिौहलयों का उदय, मौदरक अर्थशव्यवस्र्था का आत्महनभशर ्ामीण अर्थशव्यवस्र्था में रूपान्िरण, उत्पादन के साधनों का हवकास, जाहियों की वृहद्ध, संस्कृहि एवं हविारधारा का सामन्िी आयाम आदद ित्त्वों को मध्यकालीनिा की प्रमुख हवर्ेषिा के रूप में स्वीकार दकया

िै।

आिायश िजारीप्रसाद हद्ववेदी ने अपनी प्रहसद्ध पुस्िक ‘मध्यकालीन बोध का स्वरूप’ में मध्ययुगीनिा की अवधारणा को

अपनी िरि से समझने का प्रयास दकया िै। उन्िोंने हलखा िै दक, 'मध्ययुग’ या ‘मध्यकाल’ र्ब्द भारिीय भाषाओं में नया

िी िै। ...इस देर् के प्रािीन साहित्य में इस प्रकार के दकसी र्ब्द का प्रयोग निीं हमलिा। आजकल इस र्ब्द का प्रयोग एक ऐसे काल के अर्थश में िोने लगा िै, हजसमें सामूहिक रूप से मनुष्य एक जबदी हुई स्िब्ध मनोवृहि का हर्कार िो जािा िै

(मध्यकालीन बोध का स्वरूप : पृ.12)।' आिायश हद्ववेदी ने मध्यकाल का िात्पयश स्पि करिे हुए यि बिाया िै दक इसका

(3)

HND : हिन्दी P 15 : साहित्य का इहििास दर्शन

M 20 : मध्ययुगीनिा की अवधारणा और हिन्दी साहित्य का इहििास

एक ‘स्पि अर्थश आधुहनक युग का पूवशविी काल िै और दूसरा स्पि अर्थश िै

प्रािीन काल के बाद का समय’, हजसे वे अंगरेजी के ‘हमहडल ऐजेज’ के अनुकरण पर बना हुआ मानिे िैं। इसके सार्थ िी वे

इस हनष्कषश पर पहुँििे िैं दक इस र्ब्द का उपयोग समय सूिक र्ब्द के रूप में कम और मनोवृहि सूिक र्ब्द के रूप में

ज्यादा िोिा िै। उन्िोंने हलखा िै दक “मध्ययुग र्ब्द का प्रयोग काल के अर्थश में उिना निीं िोिा हजिना एक खास प्रकार की ‘पिनोन्मुख और जबदी हुई मनोवृहि’ के अर्थश में िोिा िै। ऐसा माना जािा िै दक मध्ययुग का मनुष्य धीरे-धीरे हवर्ाल और असीम ज्ञान के प्रहि हजज्ञासा का भाव छोड़िा जािा िै िर्था धार्थमक आिारों और स्विः प्रमाण माने जाने वाले आप्त वाक्यों का अनुयायी िोिा जािा िै (विी : पृ.18)।”

समय-सूिक र्ब्दों का मनोवृहि-सूिक र्ब्दों में कायान्िरण एक ददलिस्प हवषय िै। बहुि पुराने लगने वाले कहवयों में

आधुहनकिा का दर्शन और कई नए लगने वाले कहवयों एवं लेखकों में मध्ययुगीनिा की उपहस्र्थहि कोई आ्चरयश का हवषय निीं िै। हिन्दी साहित्य के इहििास में ऐसे कई रिनाकार हमल सकिे िैं, जो अपने समय से बहुि आगे ददखाई पड़िे िैं िो

कुछ ऐसे रिनाकार भी हमल सकिे िैं जो अपने समय से बहुि पीछे ददखाई पड़िे िैं।

4. मध्यकाल और हिन्दी साहित्य

समय-सूिक और मनोवृहि-सूिक मध्ययुगीनिा पर हविार करिे हुए आिायश हद्ववेदी ने इसका अहिक्रमण करने वाले

भहि साहित्य पर हविार दकया िै। उन्िोंने हलखा िै दक, “स्िब्ध या कुहण्ठि मनोवृहि क्या िै? कई प्रकार से इस बाि को

स्पि दकया गया िै। आधुहनक युग में यि हवश्वास दकया जाने लगा िै दक साहित्यकार जब हलखिा िै िो उसके द्वारा कुछ बदलना िाििा िै। वि अपने इदश-हगदश की पररहस्र्थहियों में कुछ असुन्दर या अर्ोभन देखिा िै और उसे सुन्दर-र्ोभन में

पररवर्थिि करने के हलए व्याकुल िो उठिा िै। वि केवल बँधी-बँधाई पररपारटयों से िाहलि िोकर हलखने से यि उद्देश्य निीं पूरा कर सकिा।... उसका उद्देश्य जैसा िै, उसकी व्याख्या करना निीं िोिा और न यि िोिा िै दक जो कुछ पुराने

ज़माने से किा जािा आया िै उसे दुिराए। यि अिेि पररविशनेच्छा आधुहनक युग की हवर्ेषिा बिाई जािी िै। इस दृहि

से देखा जाए िो िमारे आलोच्य काल (मध्यकाल) के भहि साहित्य में इस प्रकार की व्याकुलिा प्रिुर मात्रा में हमलिी िै।

पर दफर भी वि आधुहनक इसहलए निीं किी जािी दक उसका अनुध्याि आदर्श परलोक में मनुष्य को मुि करना िै। इसी

लोक, इसी मत्यशजगि को सुन्दर और र्ोभन बनाने के उद्देश्य से वि निीं हलखा गया। भहि साहित्य संसार के बाह्यरूप को

यर्थाहस्र्थि छोड़कर व्यहि-मानव के हिि में पररविशन लाने पर ज्यादा जोर देिा िै। दफर भी वि लौदकक रस के कहवयों

की रिनाओं की िुलना में अहधक मुि और अहधक कुण्ठािीन िै, इसमें कोई सन्देि निीं। भहि साहित्य अपने आप में

स्िब्ध और कुहण्ठि साहित्य निीं िै, पर पररविशन का लक्ष्य अदृि िोने के कारण वि पूणश मुि निीं िै (विी : पृ.18-19)।"

भहि साहित्य संवेदना के धरािल पर मध्ययुगीनिा की अवधारणा का अहिक्रमण करिे हुए कैसे समय के धरािल पर उसका अहिक्रमण करने में िूक जािा िै, इस पर हविार करिे हुए हद्ववेदी जी ने साहित्य इहििास लेखन की पेिीदहगयों

की ओर संकेि दकया िै।

5. यूरोपीय मध्यकालीनिा बनाम भारिीय मध्यकालीनिा

यूरोपीय इहििास में मध्यकाल अन्धकार युग के नाम से रूढ़ िो गया िै। भारिीय इहििास की हवकास यात्रा यूरोपीय इहििास के अनुरूप निीं िै। यूरोपीय इहििास और भारिीय इहििास में इस अन्िर का हवश्लेषण करिे हुए हद्ववेदी जी ने

हलखा िै दक, “वस्िुिः यूरोप के इहििास में हजस समय मध्ययुग का प्रारम्भ हुआ उस समय भारिीय इहििास में नवीन उत्साि और नवीन जोर् का उदय हुआ र्था। संस्कृि भाषा ने नई र्हि प्राप्त की और समूिे देर् में एक नए ढंग की

राष्ट्रीयिा की लिर दौड़ गई। इस काल में राज-काज से लेकर साहित्य, धमश और सामाहजक हवहध-व्यवस्र्था िक में एक हवहित्र प्रकार की क्राहन्ि का पिा िलिा िै। आज के भारिीय धमश, समाज आिार-हविार, दक्रया-काण्ड सभी हवषयों पर

(4)

HND : हिन्दी P 15 : साहित्य का इहििास दर्शन

M 20 : मध्ययुगीनिा की अवधारणा और हिन्दी साहित्य का इहििास

इस युग की अहमट छाप िै।... जो पुराण और स्मृहियाँ आजकल

असहन्दग्ध रूप में प्रामाहणक मानी जािी िैं, उनका सम्पादन अहन्िम रूप से इस काल में िी हुआ र्था। जो काव्य, कर्था, नाटक, आख्याहयकाएँ उन ददनों हलखी गईं, वे आज िक श्रद्धा और सम्मान पा रिी िैं। जो र्ास्त्र उन ददनों प्रहिहिि हुए वे

सैकड़ो वषों बाद आज भी भारिीय मनीषा को प्रेरणा दे रिे िैं। इस काल को, भारिीय उन्नहि के स्िब्ध िो जाने का काल निीं किा जा सकिा (विी : पृ. 22)।"

रामहवलास र्माश ने भहि आन्दोलन को ‘लोकजागरण काल’ किा र्था। इस लोक जागरण के मूल में उन्िोंने लोक-भाषाओं

में हलखे जाने वाले साहित्य और नई श्रहमक जाहियों के उदय को देखा र्था। जाहिर िै रामहवलास जी इस मध्यकाल को

यूरोप की जबदी हुई मनोदर्ा के सार्थ जोड़कर निीं देखिे। आिायश र्ुक्ल और आिायश हद्ववेदी ने जब भहि आन्दोलन के

सन्दभश में धार्थमक कारणों की अलग-अलग िरि से प्रस्िावना की र्थी, िब उसके हवरोध में रामहवलास जी ने माक्सशवादी

समाजर्ास्त्र का उपयोग करिे हुए भहि आन्दोलन का हवश्लेषण दकया र्था। यिी निीं, वे भहि कहविा को लेकर अन्य माक्सशवाददयों से भी असिमि र्थे। िुलसीदास के सन्दभश में उन्िोंने अपनी साहिहत्यक परम्परा का प्रगहिर्ील मूल्यांकन दकया। मुहिबोध के सगुण और हनगुशण सम्बन्धी दृहिकोण का यि कििे हुए प्रत्याख्यान दकया दक सगुण भिों और हनगुशण सन्िों के सामाहजक आधार में कोई फकश निीं र्था। कुल हमलाकर उन्िोंने भहि आन्दोलन और कहविा की हजस िरि से

व्याख्या की वि व्याख्या मध्यकालीन सामाहजक, सांस्कृहिक गहिर्ीलिा और जीवन्ििा का प्रमाण िै। मैनेजर पाण्डेय ने

सूरदास पर रामहवलास जी से अलग राय रखिे हुए उन्िें दकसान जीवन का प्रहिहनहध कहव हसद्ध दकया। िुलसीदास की

कहविा में मौजूद कहलयुग के हजिने हित्र िैं, वे अकाल के हित्र िैं। दरअसल, हिन्दी में अकाल पर हलखी जाने वाली आधी

से अहधक कहविाओं के कहव िुलसीदास िैं। हवश्वनार्थ हत्रपाठी ने िुलसी के रामराज्य को इसी अकाल जहनि कहलयुग के

पेट से हनकली हुई कल्पना माना िै। रैदास और दादू की कहविा में मौजूद दहलि जीवन के हित्र, कबीर की कहविा में

मौजूद सामाहजक हवडम्बना के हित्र और मीराबाई की कहविा में मौजूद स्त्री यािना के हित्र भी इस बाि के प्रमाण िैं दक हिन्दी या भारि की मध्यकालीनिा यूरोपीय मध्यकालीनिा से हबल्कुल अलग िै।

6. हिन्दी साहित्य के इहििास में मध्यकाल

आिायश र्ुक्ल के नामकरण और उससे जुड़ी समय सीमा पर सवाल उठािे हुए हद्ववेदी जी ने आठवीं सदी से मध्यकाल की

प्रस्िावना की र्थी। हद्ववेदी जी की कई मान्यिाओं से असिमि रामहवलास जी भी हद्ववेदी जी की इस मान्यिा के पक्ष में िैं।

उन्िोंने हलखा िै दक “र्ुक्ल जी का आददकाल वास्िहवक मध्यकाल िै, हिन्दी जनपदों के इहििास का सामन्ि काल िै

(हिन्दी जाहि का इहििास : पृ.122)।" राहुल सांकृत्यायन के हसद्ध सामन्ि काल नामकरण के पीछे भी यिी इहििास बोध काम कर रिा र्था। दरअसल, हिन्दी में सारी समस्या की जड़ आददकाल नामकरण में हछपी हुई िै। र्ुक्ल जी ने इस से

बािर हनकलने की कोहर्र् जरूर की र्थी लेदकन उस कोहर्र् के आधार और िकश दोनों उिने मजबूि निीं र्थे हजससे यि

कोहर्र् उिनी ऐहििाहसक निीं िो सकी, हजिना उसे िोना िाहिए र्था।

हिन्दी में मध्यकालीन बोध के स्वरूप पर हविार करके आिायश हद्ववेदी ने साहित्यबोध और इहििासबोध की एक हववादस्पद समस्या पर हविार दकया र्था। इस समस्या पर हविार का एक बहुि बड़ा कारण यि र्था दक भारि का

सामाहजक और राजनीहिक इहििास हलखने वाले कई इहििासकारों के इहििासबोध और कालबोध पर यूरोप की स्पि

छाया र्थी। हिन्दी साहित्य का इहििास हलखने वाले कुछ इहििासकारों पर भी यि छाया र्थी। िजारीप्रसाद हद्ववेदी का

मध्यकालीन इहििासबोध ऐसे सभी नए पुराने इहििासकारों के हलए इस छाया और प्रेि को भगाने का एक ऐहििाहसक प्रयत्न िै। उनका मध्यकालीन इहििासबोध हसफश मध्यकालीन इहििास को समझने के हलए निीं बहल्क उसके सार्थ-सार्थ

(5)

HND : हिन्दी P 15 : साहित्य का इहििास दर्शन

M 20 : मध्ययुगीनिा की अवधारणा और हिन्दी साहित्य का इहििास

आददकालीन और आधुहनक इहििास को समझने के हलए भी बेिद जरूरी

िै। जो लोग समकालीन बोध को मध्यकालीन बोध की िरि देखने की इच्छा रखिे िैं उनके हलए भी यि इहििासबोध जरूरी िै।

हिन्दी साहित्य के मध्यकालीन इहििास पर हविार करिे हुए भहि आन्दोलन और भहि साहित्य की िाकि का एिसास प्रायः सभी बड़े आलोिकों को िै। ऐहििाहसक रूप से इसका श्रेय आिायश र्ुक्ल को िै हजनकी आलोिना दृहि और इहििासबोध का यि सुफल माना जाएगा दक उन्िोंने स्वाधीनिा आन्दोलन के िेिना के अनुरूप भहिकाल के लोकवादी

साहित्य को अपनी हिन्िा और आलोिना का हवषय बनािे हुए जनिा की िेिना के सार्थ जोड़ने का काम दकया। हजस दौर में िुलसीदास की कहविा के आधार पर अवध का दकसान आन्दोलन सम्भव िो और स्वाधीनिा आन्दोलन के सबसे

बड़े अगुआ गाँधी के रामराज्य की पररकल्पना अवलहम्बि िो उस दौर में हिन्दी आलोिना में रीहिकाल के कहवयों के कद को लेकर, उनकी छोटाई और बड़ाई की बिस िले, यि बाि र्ुक्ल जी को पसन्द निीं र्थी। बिरिाल, र्ुक्ल जी ने हजन कारणों से भहि कहविा को लेकर अपनी अच्छी राय बनाई र्थी, लगभग उन्िीं कारणों से रीहि कहविा के बारे में एक ख़राब राय बनाई र्थी। र्ुक्ल जी के बाद के साहित्य इहििास लेखन और आलोिना दृहि पर र्ुक्ल जी का इिना गिरा

असर िै दक उनकी राय को र्थोड़े बहुि दकन्िु परन्िु के सार्थ प्रायः सभी लोगों ने स्वीकार कर हलया। रीहि कहविा को

लेकर िो इस दकन्िु-परन्िु की सम्भावना भी हबल्कुल क्षीण रिी। सवाल यि उठिा िै दक रीहिकालीन कहवयों के काव्य- कौर्ल और उनकी कला सम्बन्धी समझ के अलावा क्या कोई और भी ऐसा हबन्दु िो सकिा िै हजसके आधार पर उनके

मित्त्व पर या पुनमूशल्यांकन या पुनर्थविार की सम्भावना बन सकिी िै?

आिायश र्ुक्ल की रीहि-काव्य सम्बन्धी समझ पर मैनेजर पाण्डेय को एिराज िै। िदनुसार “आिायश र्ुक्ल ने हलखा िै दक कहविा बँधी नाहलयों में बिने लगी। लेदकन इसका एक दुष्पररणाम यि हुआ दक हिन्दी के बाद के आलोिकों ने रीहिकाल की कहविा को सम्िा में पढ़ने-समझने और मूल्यांकन करने के बदले रामिन्र र्ुक्ल की पैटनश में दुिराना र्ुरू दकया

(रीहिकाल हमर्थक और यर्थार्थश, पृ. 3)।" रीहि कहवयों के इहििासबोध पर उन्िोंने किा िै दक, “रीहिकाल के बारे में मेरी

पिली बाि यि िै दक अपने समय के समाज और इहििास से जैसा सम्बन्ध रीहिकाल की कहविा का िै वैसा सम्बन्ध भहिकाल में भी निीं िै (विी)।" प्रमाण के िौर पर उन्िोंने रीहिकाल के सबसे मित्त्वपूणश कहव केर्वदास की दो रिनाओं

का उल्लेख दकया िै। पिली रिना िै ‘वीरससि देविररि’। वीर ससि ओरछा के राजा र्थे। सलीम (जिाँगीर) ने उन्िीं की

मदद से अबुल फज़ल की ित्या करवाई र्थी। ‘वीरससि देविररि’ में इन सारी घटनाओं का उल्लेख िै। आिायश केर्वदास स्वयं अकबर के समकालीन र्थे और अपने समय की राजनीहिक घटनाओं को हसफश अपनी हिन्िा िी निीं बहल्क अपनी

रिनार्ीलिा का हवषय बनाने का भी सािस रखिे र्थे। मैनेजर पाण्डेय के हलए रीहिकाल की यि हवर्ेषिा बेिद उल्लेखनीय िै 'िमारे हिन्दी साहित्य का स्वणशयुग माना जािा िै भहिकाल।' केर्वदास और िुलसीदास बहुि दूर िक समकालीन र्थे। मिलब दोनों अकबर के ज़माने में जीहवि र्थे। भहिकाल के दकस कहव ने मुगल र्ासन के बारे में हलखा िै?

िमारे जो परम आदरणीय बाबा िुलसीदास िैं उन्िोंने िो यि घोहषि कर ददया– ‘दकन्िें प्राकृि जान गुन गाना/हसर धुहन हगरा लागी पछिाना, यानी अपने समय के दकसी मनुष्य की कहविा में ििाश करना सरस्विी का अपमान िै। िो, राम का

गुणगान करेंगे।' सारा भहि-काव्य परलोकवाद की हिन्िा से हलखा गया िै। सारा रीहिकाल अपने समय और अपने समाज की हिन्िा से हलखा गया िै। उसमें कोई परलोकवाद निीं िै और जो परलोकवादी िैं उनके बारे में रीहिकाल के कहव ने िी

किा दक ‘राधा कन्िाई को सुहमरन को बिानो िै’, वास्िहवक भहि निीं िै, बिाना िै।'

मैनेजर पाण्डेय ने केर्वदास की एक और दकिाब ‘जिाँगीर जसिहन्रका’ का इसी सन्दभश में उल्लेख दकया िै हजसका सीधा

सम्बन्ध मुगलकालीन इहििास से िै। इसी क्रम में उन्िोंने भूषण के ‘हर्वराज भूषण’, ‘हर्वाबावनी’ और ‘छत्रसाल प्रकार्’

(6)

HND : हिन्दी P 15 : साहित्य का इहििास दर्शन

M 20 : मध्ययुगीनिा की अवधारणा और हिन्दी साहित्य का इहििास

का उल्लेख दकया िै। इनमें पिली दो दकिाबों का सम्बन्ध हर्वाजी से िै,

िो िीसरी दकिाब का सम्बन्ध मध्यप्रदेर् के बिादुर राजा छत्रसाल से िै। इसी सन्दभश में उन्िोंने रीहिकाल के आहखरी

कहव पद्माकर का उल्लेख दकया िै, हजनकी कहविा में हिरटर् साम्राज्य के आगमन की ििाश िी निीं िै बहल्क हसहन्धया

जैसे राजाओं का उल्लेख कर उन्िोंने यि बिाने का प्रयास दकया िै दक हिरटर् र्ासन की जड़ें किाँ-किाँ मजबूि िो िुकी िैं

:

“बाका नृप दौलि अलीजा मिराज कभौ, साहज दल पकड़ दफरंहगन भागोगे।

ददल्ली दह्पहि, पटना िो कर झपरट कर, कबहँ लिा कलकिा की उड़ाओगे।।"

इसी कड़ी में उन्िोंने छिीसगढ़ के कहव घासीदास की उस मर्हर कहविा को उद्धृि दकया िै, हजसमें उन्िोंने सन् 1834 में िी हलखा र्था :

“छाँहड़ के दफरंहगन को राज में सुधमश काज जिाँ पुन्य िोि आज िलो उस देर् को।"

इस कहविा में दफरंहगयों के राज को छोड़कर विाँ िलने का आह्वान िै, जिाँ पुण्य का काम िोिा िो। पाण्डेय जी ने इसी

क्रम में दीनदयाल हगरर का उल्लेख दकया िै, हजनकी मर्हर कहविा िै– ‘पराधीनिा दुःख मिाँ, सुखी जगि स्वाधीन।' राजस्र्थान के कहव सूयशमल हमश्रण के मर्हर ्न्र्थ ‘वंर् भास्कर’ का उल्लेख भी उन्िोंने दकया िै। इस दकिाब में जिाँ बूँदी

राजघराने का इहििास िै विीं औरंगजेब और दाराहर्कोि के बीि बादर्ािि को लेकर जो लड़ाई हुई उसका भी हजक्र िै।

कुल हमलाकर, इन सभी रीहिकालीन कहवयों, उनकी दकिाबों और उनकी कहविाओं के आधार पर मैनेजर पाण्डेय इस हनष्कषश पर पहुँििे िैं दक, “यि जो प्रवृहि िै उससे लगिा िै दक रीहिकाल के कहव अपने समय के इहििास से दो िरि से

जुड़े र्थे। पिला िो यि दक सीधे उनका काल मुग़ल काल र्था, उससे जुड़े हुए र्थे, उसका हित्रण-वणशन अपने साहित्य में कर रिे र्थे और दूसरे आने वाली आफि अंगरेजी राज की भी आपहियों-हवपहियों को पििानिे र्थे, उसकी भी ििाश कर रिे र्थे

(विी : पृ. 5)।"

रीहिकालीन साहित्य के अपेक्षाकृि अिर्थिि अध्याय को अपनी हिन्िा का हवषय बनाकर मैनेजर पाण्डेय ने हिन्दी

साहित्य के इहििास और उसके अध्ययन एवं लेखन पर पुनर्थविार की पेर्कर् की िै। लीक में बँधकर िलने वाली दृहि से

िर बार वास्िहवक मुकाम िाहसल िो, यि कोई जरूरी निीं िोिा। इसी क्रम में, सामाहजक और राजनीहिक इहििास लेखन में साहित्य की भूहमका और जरूरि पर हविार करिे हुए उन्िोंने िमारा ध्यान एक बेिद जरूरी सवाल की ओर आकृि दकया िै। 'जो पुराने मित्त्वपूणश इहििासकार र्थे वे साहित्य भी पढ़िे र्थे। मान लीहजए दक आप वैददक काल के समाज का इहििास खोजने िहलए िो ऋगवेद के अलावा कुछ निीं हमलेगा आपको। ऋगवेद िी पढ़कर काम करेंगे। रोहमला

र्थापर भी यिी करिी िैं और उनके हवरोधी भी यिी करिे िैं। जब एक जगि आप साहित्य का उपयोग करिे िैं िो बाद के

ददनों में क्यों निीं करिे? मध्यकाल का इहििास हलखने वालों को केर्वदास को पढ़ना िाहिए, पर कौन समझाए उनको

जब हिन्दी वाले निीं पढ़िे िो इहििासकार क्यों पढ़ें।' रीहि कहविा के मित्त्व का आकलन करिे हुए वे उसे हसफश साहित्य के इहििास लेखन िक सीहमि न मानकर उसे देर् के राजनीहिक इहििास लेखन के हलए जरूरी मानिे िैं। लेदकन ऐसा

िभी सम्भव िै जब पिल िमारी िरफ से िो। ज्ञान के अन्य अनुर्ासन िमारी िरफ सम्मान से िभी देखेंगे जब िम अपने

अनुर्ासन के मित्त्व को समझिे हुए उसे उस ऊँिाई और गिराई से जोड़ेंगे हजससे जुड़कर िमारी भाषा में हलखा जाने

वाला साहित्य देर् की िर जनिा का साहित्य बनेगा।

(7)

HND : हिन्दी P 15 : साहित्य का इहििास दर्शन

M 20 : मध्ययुगीनिा की अवधारणा और हिन्दी साहित्य का इहििास 7. हनष्कषश

प्रायः मध्यकालीनिा र्ब्द का प्रयोग समय-सूिक र्ब्द के रूप में कम और मनोवृहि-सूिक र्ब्द के रूप में अहधक िोिा िै।

यि मनोवृहि पिनोन्मुख और जबदी हुई मनोवृहि िै। ये सारे भ्रम यूरोपीय अनुकरण के कारण िैं। भारि में िो इस काल में स्वणश साहित्य हलखे गए िैं। रामहवलास र्माश के अनुसार यि काल लोक जागरण का काल िै। यिाँ इससे उलट मनोवृहि

ददखाई देिी िै। जिाँ िक हिन्दी साहित्य के इहििास के मध्यकाल की बािें करें िो यि भहि काल और रीहिकाल में

हवभि िै। भहिकाल को स्वणश युग और रीहिकाल को अन्धकार युग किा जािा िै। रीहिकाल के प्रहि ऐसा दृहिकोण अपनाना अपने दृहि को संकुहिि करना िै।

References