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HND : हिन्दी P 6 : हिन्दी गद्य साहित्य : कथा साहित्य

M 14: हिन्दी आलोचना में मैला आँचल का मूलयाांकन

हिषय हिन्दी

प्रश्नपत्र सां एिां शीषषक P 6, हिन्दी गद्य साहित्य कथा साहित्य

इकाई सां. एिां शीषषक M 14: हिन्दी आलोचना में मैला आँचल का मूलयाांकन

इकाई टैग HND_P6_M14

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश्नपत्र- सांयोजक प्रो. ए. अरहिन्दाक्षन इकाई- लेखक

सि- लेखक

प्रो. सत्यकाम रीता दुबे

प्रश्नपत्र समीक्षक प्रो. गांगाप्रसाद हिमल भाषा सम्पादक रीता दुबे

पाठ का प्रारूप 1. उद्देश्य 2. प्रस्तािना

3. आलोचना और रचना का सम्बन्ध

4. हिन्दी आलोचना में मैला आँचल का मूलयाांकन

5. हनष्कषष

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HND : हिन्दी P 6 : हिन्दी गद्य साहित्य : कथा साहित्य

M 14: हिन्दी आलोचना में मैला आँचल का मूलयाांकन

1. पाठ का उद्देश्य

इस पाठ के अध्ययन के उपरान्त आप--

 आलोचना की समझ हिकहसत कर पाएँगे।

 रचना और आलोचना का सम्बन्ध समझ पाएँगे

 हिन्दी साहित्य जगत में मैला आँचल के मूलयाांकन का स्िरूप जान पाएँगे।

2.

प्र

स्तािना

फणीश्वरनाथ रेणु के प्रहसद्ध उपन्यास मैला आँचल का प्रकाशन सन् 1954 में हुआ। हिन्दी साहित्य के पाठकों ने इस कृहत को यथेष्ट प्रहतष्ठा दी। इसका कथाक्षेत्र हबिार के पूर्णणया हजले का एक हपछड़ा हुआ गाँि मेरीगांज िै। यिी मेरीगांज, इस कथा का नायक भी िै। इसकी नई आख्यान शैली, नई कथाभाषा और इसके नए कलेिर के कारण हिन्दी साहित्य जगत ने

इस पर तरि -तरि की प्रहतक्रिया दीं; कुछ आलोचकों को यि हिन्दी साहित्य की अमूलय हनहध लगी, तो कुछ को इस उपन्यास में ऐसा कुछ भी निीं क्रदखा, हजसे आने िाले साहित्य जगत के हलए रेखाांक्रकत क्रकया जा सके।

3. आलोचना और रचना का सम्बन्ध

‘हिन्दी आलोचना में मैला आँचल का स्थान हनरूपण करने से पिले जान लेना मित्त्िपूणष िै। साहित्य और आलोचना का

आपसी सम्बन्ध यि जानना भी आिश्यक िै क्रक दोनों क्रकस प्रकार एक दूसरे को प्रभाहित करते रिते िैं? साहित्य में

िस्तुत: मनुष्य की सृजन क्षमता रचनात्मक और आलोचनात्मक आकार लेती िै। रचनाकार रचना के माध्यम से नए-नए मूलयों का सृजन करता िै। आिश्कता हुई तो साथषक रचनाशीलता पुरानी मूलय व्यिस्था को तोड़कर नई मूलय व्यिस्था

हिकहसत करती िै; नए मूलयों के हिकास में अपना योगदान देती िै, और इस िम में रचना और आलोचना एक दूसरे को

प्रभाहित करती रिती िै। आलोचना करते समय सबसे बड़ी चुनौती रचना की तरफ से आती िै। कई बार तो सिी

मूलयाांकन, हिश्लेषण पद्धहत और व्यिहस्थत हिचारधारा के अभाि में रचना का उहचत मूलयाांकन निीं िो पाता िै। जैसे

चौरासी िैष्णिों की िाताष में िललभ सम्प्रदाय के भक्तों का गुणगान िै, लेक्रकन उसी में मीराबाई को बहुत भला-बुरा किा

गया िै। रचनाओं की व्याख्या और मूलयाांकन में इहतिासहििेक की बहुत बड़ी भूहमका िोती िै। इहतिास हििेक से परम्परा

बोध प्राप्त िोता िै, और यिी इहतिासहििेक रचना की व्याख्या में भी सिायक िोता िै। िर आलोचक अपने

इहतिासहििेक से रचना के सामाहजक, साांस्कृहतक और भाहषक सन्दभष का पुनहनमाषण करके रचना की व्याख्या करता िै।

िर समय की अपनी क्षमता से बेितर रचनाओं के आगमन के द्वार खोलती िै और पाठकों के साहित्यहििेक और उनकी

रचनाशीलता को हिकहसत करने का काम भी करती िै। साथषक आलोचना रचना को जीिन देती िै,उनमें नया अथष भरती

िै। हिजयदेि नारायण सािी की जायसी और मुहक्तबोध की कृहत कामायनी एक पुनर्णिचार इसी नए अथष की ओर इशारा

करती िै।

फणीश्वरनाथ रेणु ने ‘मैला आँचल’ के सृजन स्रोत की तरफ इशारा करते हुए एक साक्षात्कार में किा था क्रक “जब कोई क्रकसी पाटी का सदस्य िो, तो उसके अनुभि और हिचार भी उस पाटी के िोंगे। क्रकसान मजदूरों में काम करने से मुझे कम फायदे निीं, बहलक सच पूहछए तो राजनीहत ने मुझे बहुत क्रदया। अपने हजले के गाँि-गाँि घूमा, लोगों से हमला, उनके सुख दुुःख से पररहचत हुआ, चन्दे िसूले। अपनी सक्रियता के कारण साहथयों के साथ गाँिों में रात के िक्त भी डेरा डालना

पड़ता...रात में दूर से कभी ढोलक-झाँझ पर नाचगाने का स्िर-लिरी मँडराती आती और मैं अपने साहथयों को सोते छोड़

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ििाँ चल देता। कभी ‘हिदेहसया’, किीं ‘जाहलम ससि हसपहिया’ और

क्रकसी गाँि में ननदी भउहजया के नाच गान, मैं नाच देखने से ज्यादा नाच देखने िालों को देखकर अचरज से मुग्ध िो

जाता।”

4. हिन्दी आलोचना में मैला आँचल का मूलयाांकन

मैला आँचल के प्रकाशन के बाद दो मित्त्िपूणष घटनाएँ घटीं। पिली यि की रेणु पर मानिाहन का मुकदमा दायर क्रकया

गया और दूसरा उनके उपन्यास मैला आँचल को सतीनाथ भादुड़ी के उपन्यास ढोढ़ाई चररतमानस की नक़ल माना गया।

एक मिोदय ने तो इस सन्दभष में भादुड़ी जी से पत्राचार भी क्रकया। भादुड़ी ने उनके प्रश्न का जिाब भी क्रदया और बताया

की उनकी पुस्तक की हिषयिस्तु सन् 1905 से 1945 का समाज िै, जबक्रक रेणु की पुस्तक का हिषय िै सन् 1946 के बाद की सामाहजक हस्थहत िै। अन्यत्र भी एक पत्राचार में उन्िोंने अपना िक्तव्य क्रदया िै क्रक- “आपके पत्र के हलए धन्यिाद, मैं

समझता हँ आप में से क्रकसी ने भी मेरी पुस्तक ढोढ़ाई चररतमानस निीं पढ़ी िै। सन् 1905 से 1945 तक की तुलना से

एक हपछड़े हुए िगष में सामाहजक और राजहनहतक जागृहत को इस उपन्यास में अांक्रकत करने का प्रयत्न क्रकया गया िै।

जबक्रक मैला आँचल में सन् 1945 के बाद की घटनाओं के बारे में हलखा गया िै। दोनों की कथािस्तु हभन्न िै। दोनों की

कथ्य गाथा अलग-अलग िै। मैला आँचल एक मौहलक कृहत िै और इसके लेखक पर चोरी का आरोप लगाना हनतान्त अन्यायपूणष िोगा। परमानन्द श्रीिास्ति ने इन दोनों उपन्यासों की हिशेषताओं को रेखाांक्रकत करते हुए हलखा क्रक “ढोढ़ाई चररत मानस की बुनािट एक धार्णमक रूपक की तरि िै। ढोढ़ाई नगण्य िोकर भी नायकत्ि प्राप्त करता िै। मैला आँचल में

नायक की अिधारणा का िी हनषेध िै। इसको राष्ट्रीय रूपक की तरि पढ़ा जाए तो कुछ सूत्र हमलकर एक अथषलय प्राप्त जरूर करते िैं, पर नायकत्ि की अिधारणा को प्रायुः खाररज करते हुए। आँचहलक जीिन का रागरस, मानिीय स्िभाि

की गुणित्ता और क्षुद्रता दोनों कृहतयों में मौजूद िै। स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की बनािट में भी थोड़ी बहुत समानता िै। गीत, कथाएँ नाटकीय युहक्तयाँ कमोबेश एक जैसी िै। मैला आँचल में बालदेि को लगता िै क्रक लक्ष्मी के शरीर से बीजक की सी

गन्ध हनकलती िै। उधर ढ़ोंढाई रहमया के बारे में सोचता िै की िि इन्द्रासन की परी-सी िै- काँची कराची की तरि लचक

िै उसकी देि में। कथाभाषा की दृहष्ट से भी ऊपरी समानताएँ तत्काल क्रदखाई देती िैं, पर फणीश्वरनाथ रेणु का कथाहशलप और भाषाई हिन्यास अत्यन्त हिकहसत कला के रूप में कृहत को किीं अहधक मित्त्िपूणष बना जाता िै।” हिद्वानों ने मैला

आँचल पर तरि-तरि से आक्षेप लगाए। देिराज उपाध्याय ने हलखा क्रक- “आँचहलक उपन्यासों में स्थानीय बोहलयों के

शब्दों के प्रयोग में इस बात पर ध्यान रखना चाहिए की उपन्यास की रचना पात्रों के आन्तररक जीिन की झाँकी देने के

हलए िोती िै, बोहलयों की हिशेषताओं के प्रकटीकरण के हलए निीं शब्दों के अशुद्ध हििरण क्रदए जाएँ, िाक्य हिन्यास को

हिकृत क्रकया जाए...भला यि भी कोई बात िै क्रक नाहतलघु उपन्यास के चतुरशताहधक पृष्ठों को िम पढ़ जाएँ और उसमें

एक भी गम्भीर ताहत्त्िक हििेचन न हमले?...िमें मान लेना चाहिए की मैला आँचल में ज्ञान गररमा की कमी िै और जरा

से िायु के झोके के चलते िी अांचल उड़-उड़ जाता िै और शरीर हनरािृत िो जाता िै... इस पररहस्थहत को आप िी कहिए, आप भला पसन्द करेगें ?”

हिन्दी साहित्यजगत में रामहिलास शमाष अत्यन्त मित्िपूणष आलोचक िैं। ‘प्रेमचन्द की परम्परा और आँचहलकता’ नामक अपने लेख में उन्िोंने रेणु के उपन्यास मैला आँचल के कुछ अांशों की खुलकर तारीफ की िै, पर सम्पूणषता में उनकी

आलोचकीय कसौटी से कमजोर उपन्यास माना गया िै। उनकी िणषनपद्धहत और हचत्रणपद्धहत पर प्रश्नहचन्ि लगाते हुए, उसे यथाथषिादी मानने के बजाय प्रकृतिाद के हनकट मानते िैं और किाँ क्रकस प्रसांग का क्रकतना और क्रकस तरि का िणषन

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M 14: हिन्दी आलोचना में मैला आँचल का मूलयाांकन

करना चाहिए, रेणु में इस हििेक की भी कमी पाते िैं। उन्िोंने यिाँ तक

मूलय हनणषय क्रदया क्रक इस उपन्यास में उपन्यासकार की आस्था जनता और उसके राजनाहतक कायषिािी में निीं िै। िे

हलखते िैं क्रक आँचहलकता के नाम पर जो कुछ हलखा जाए िि सभी सच निीं िोता। जनता के अन्धहिश्वासों को बढ़ा- चढ़ाकर क्रदखाया गया िै,जमीन्दार के अत्याचारों को कम करके पेश क्रकया गया िै, राजनीहतक पार्टटयों के दोषों को

अहतरांहजत और गुण्डों को नजरअन्दाज क्रकया गया िै। उपन्यास का पिला हिस्सा आजादी हमलने से पिले का िै। तब तक सोशहलस्ट काांग्रेस में िी थे। लेक्रकन उपन्यास में उनका हचत्रण इस तरि क्रकया गया िै, मानो काांग्रेस से उनका कोई सम्बन्ध न िो...।

लक्ष्मीनारायण भारतीय ने अपने लेख मैला आँचल -एक दृहष्टकोण में लेखक के उसके रास्ते से भटक जाने की हशकायत की

िै और मैला आँचल की जो कहमयाँ उन्िोंने हगनाईं, िै उसे साहित्य में बढ़ रिी प्रिृहत्तयों की तरि िी माना िै िे हलखते िैं-

“लेक्रकन उपन्यास पढ़कर समाप्त करने के बाद क्या असर रि जाता िै? कोई तीव्र रसानुभूहत असर छोड़ निीं जाती। पात्रों

को हजस बदतर हस्थहत में लाकर पटक क्रदया जाता िै, सारा िातािरण जैसा बना क्रदया जाता िै, लगता िै यक्रद लेखक ने

अपनी यिी शहक्त, काश पात्रों की स्िभाहिक एिां मानिोहचत भािनाओं को रांगने में लगाईं िोती, तो न हसफष रसोत्पादाकता की अनुभूहत का पररपाक िोता...हन:सन्देि लेखक में हलखने की शहक्त एिां कला िै, लेक्रकन रास्ता उसका

चूक गया िै। यथाथषिादी बनने के मायाजाल में िि ऐसा उलझ गया िै क्रक िर पात्र की हनम्न भािनाओं को उत्तान रूप क्रदए हबना िि हचत्र सजीि एिां यथाथष िो िी निीं सकता, ऐसा उसने मान हलया िै...पाठक सोचता िै जो पात्र नया आता

िै, क्या उसका दूसरे के साथ अनुहचत सम्बन्ध तो आगे जाकर लेखक न क्रदखाएगा ..ऐसी आशांका िोने लगती िै।”

आगे िे अपने मैला आँचल और उसका मूलय मापन नामक एक लेख में हलखते िैं क्रक “साहित्य में अहभव्यहक्त को सांयम और हििेक की लगाम न रिे तो िि सम्यक निीं रि पाता िै। साहित्य में तो तात्पयष स्पष्टता भी कलापक्ष को िाहन पहुँचाने

िाली मानी गई िै। तब इस तरि खुला स्पष्ट िणषन हसिा उत्तानता के और कौन-सी अिस्था ला सकता िै...पूरा उपन्यास शब्दकोष की मदद से पढने का अच्छा हसलहसला रेणु ने शुरू कर क्रदया िै...।”

डॉ. इन्दू प्रकाश की आपहत्त इस बात पर िै की मठ और महन्दर में िोने िाले हजस यौनाचार का हचत्रण रेणु ने क्रकया िै िि

तकषसांगत निीं िो पाया जाता िै। रेणु ने उसका िणषन बढ़ा-चढ़ा कर क्रकया िै। उनकी मान्यता िै की मठों में चोरी छुपे

कभी-कभी व्यहभचार तो िै, परन्तु िे हनयम निीं अपिाद िै। िे हलखते िै क्रक “कोई भी ग्रामीण साधु के अनैहतक व्यापार को बदाषश्त करने के हलए तैयार निीं, ऐसी हस्थहत में आश्चयष इस बात पर िोता िै की गाँि के लोग क्रकस प्रकार पांचायत द्वारा रामहपयारी को रखैल रूप में मठ में रिने की अनुमहत दे देते िैं? मठ कोई साधारण पूजा स्थल निीं िै। उसका

मिन्त मठ से सांलग्न नौ सौ बीघा जमीन का माहलक िै। ऐसे व्यहक्त के भोग-हिलास िेतु कोई भी ग्रामीण समाज क्रकसी एक टोले की क्रकसी एक जाहत की औरत को मठ में निीं रिने देगा। लेखक ने धार्णमक व्यहभचार एिां भ्रष्टाचार की टाइपोलाँजी

को मनमाना हिस्तार दे क्रदया िै, जो उपन्यास के एक आिश्यक पररप्रेक्ष्य के रूप में मित्त्िपूणष भले िो जाए परन्तु यथाथष की दृहष्ट से िि कमजोर िै।"

रचना और आलोचना के सन्दभष में एक बात और भी मित्त्िपूणष िै; िि यि क्रक रचना का सामाहजक सच, रचना या कृहत के ऊपर तैरने िाली चीज निीं िोती। िि रचना में गिरे तौर पर अनुस्यूत रिती िै और आलोचक का काम उस गिराई तक पहुँचना िोता िै। लेक्रकन, कई बार ऐसा िोता िै क्रक आलोचना स्ियां उस गिराई तक निीं पहुँच पाती। िि रचनाकार

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M 14: हिन्दी आलोचना में मैला आँचल का मूलयाांकन

के आलोचनात्मक सांघषष और सत्य को टटोल निीं पाती िै। ऐसे में िि

पाठक को हसफष भ्रहमत करती िै। इस पूरे प्रकरण का उद्देश्य यिाँ यि िै क्रक मैला आँचल का मूलयाांकन करते िक्त कुछ आलोचक हनश्चय िी भ्रहमत िोते रिे, पर बहुतायत उन लोगों की िै हजन्िोंने रचना के मूलय को सिी तरीके हनश्चय िी और सिी सन्दभष में रेखाांक्रकत क्रकया।

नहलन हिलोचनन शमाष ने इसकी हगनती श्रेष्ठ उपन्यासों में की। उनका तो यिाँ तक किना था क्रक मैं हबना क्रकसी दुहिधा के

क्रकसी भी एक उपन्यास को िटाकर इसके हलए दस उपन्यासों में इसकी जगि बना सकता हँ। उनका किना था क्रक हिन्दी

उपन्यास साहित्य में यक्रद क्रकसी प्रकार की रुकािट थी तो िि इस कृहत से दूर िो गई िै। जो मैला आँचल की भाषा पर तरि-तरि के आक्षेप लगाते रिे िैं उनका आक्षेपों का जिाब देते हुए उन्िोंने किा क्रक- “मैला आँचल की भाषा से हिन्दी

समृद्ध हुई िै, रेणु ने कुशलता से ऐसी शैली का प्रयोग क्रकया िै, हजसमें आँचहलक भाषा-तत्ि पररहनहष्ठत भाषा में घुल हमल जाते िैं, कोई कारण निीं था क्रक िे अपनी शैली के सम्बन्ध में आत्महिश्वास का पररचय- सा देते हुए प्रत्येक अध्याय के

बाद पाद-रटप्पहणयों के रूप में, प्रयुक्त आँचहलक शब्दों के पररहनहष्ठत रूप भी प्रस्तुत करते।” आलोचकों ने रेणु के इस निीन हशलप का खुलकर स्िागत भी क्रकया। नेहमचन्द्र जैन मानते िैं क्रक भारतीय देिात के ममष का इतना सरस और भािप्रिण हचत्रण हिन्दी में सांभितुः पिले कभी निीं हुआ, रेणु के मेरीगांज िणषन में एक आत्मीयता और कहित्िपूणष दृहष्ट नजर आती िै। इसहलए िे हलखते िैं- “िि मानि आत्मा का हशलपी इसहलए िी िोता िै की िि जीिन के काव्य का उसकी

सरसता और सौन्दयष का हिकृहत और हिसांगहत के पांक के बीच से झाांकते-मुस्कराते कमल का द्रष्टा िोता िै। मैं जीिन के इस सौरभ की पिचान को िी कहित्िपूणष दृहष्ट किता हँ, मैला आँचल का लेखक इस सौरभ से न केिल स्ियां उन्मत्त हुआ िै,

िि औरों को भी उससे उन्मत्त करने में सफल िो सका िै...मैला आँचल के लेखक को जीिन की सुन्दरता से, बहुमुखी

मनोरमता से प्यार िै, उसकी भव्यता और मित्ता से प्यार िै। इसी से उसके क्रकसी भी पात्र के हचत्रण में आिश्यक हसद्धान्तगत हिद्वेष निीं, दुराग्रिपूणष पक्षधरता निीं िै...।” हजन आलोचकों ने फणीश्वरनाथ रेणु के ऊपर अश्लीलता थोपने

िाले आलोचकों को नेहमचन्द्र जैन के कथन पर गौर करना चाहिए क्रक िे किते िैं- “उपन्यास भर में ऐसे स्थल बहुत िी कम

िैं जिाँ अहतनाटकीयता अथिा अहत भािुकता लेखक के हििेक पर िािी िो, दूसरी ओर किीं भी क्रकसी ऊपर से थोपी हुई, दुराग्रिपूणष नैहतकता का सिारा लेखक निीं लेता। ऐसी नैहतकता के सिारे कभी भी जीिन को सांस्कार देने िाले साहित्य का हनमाषण निीं िोता। यद्यहप साहित्य को जीिन की प्रगहत का अस्त्र मानने िाले साहित्यकार के हलए यिी सबसे बड़ा

खतरा िै की िि ऐसे िी क्रकसी नैहतक चौखटे को प्रगहत का पयाषयिाची मान ले और उसमें िी जीिन्त इन्सानों को ठूँस- ठूँसकर हबठाने का प्रयत्न करता रि जाए।”

रमेश कुन्तल मेघ ने इस उपन्यास की अहद्वतीय िास्तुहशलप की तरफ इशारा करते हुए हलखा िै क्रक-“इसमें उपन्यास का

पारम्पररक तन्त्र तो िै िी निीं। इसकी स्थानान्तरण टेक्नोलॉजी, में साांस्कृहतक नृतत्िशास्त्र (कलचरल एनथ्रोपोलाजी),ग्रामीण समाजशास्त्र (रुरल सोहशयोलाजी), समाजभाहषकी (सोहशय–सलगीहिहस्टक), लोकयान (फोकलोर), सांगीत–नृत्यहलहप (कोररयोग्राफी), जनपद का भूमानहचत्र...इन सबने इसे घटना सांिाद के तत्त्िों से क्षीण कर क्रदया िै। इसमें अनेक छोटे-छोटे पात्रों का पूँजीभिन मानो स्ियां नायक ग्राम का हिधान कर देता िै। इस आँचहलक उपन्यास के हििरण इहतिृत्त, दोनों में देशकाल स्थानीय रांगत से बहुत आगे नई-नई तकनीकों का अनजाने में प्रयोग हुआ

िै- एक लोकत्त्ि िेत्ता (फोकलोररस्ट)की गीतकथा रेकार्डडग, फोटोग्राफर के चलहचत्रों के हडहजटल तथा आहडयो-रेकाडषर

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M 14: हिन्दी आलोचना में मैला आँचल का मूलयाांकन

की ध्िहनयों की अनुहलहप एिां कमेन्री आक्रद। यि सारा प्रिम तृणमूल तक

जाकर सांक्षेत्र-प्रकायष (फीलडिकष) से अनुप्राहणत िै। यि आलेखन-आरेखन-ध्िहनग्रामाांकन हिश्वसनीय िी निीं, तथ्यात्मक भी िै। इसके हनराधार अथिा अयथाथष कलपना िोने की िजि निीं हमलती। अतएि खुद प्रहतबद्ध रेणु ने उपन्यास का

हघसा-हपटा ढाँचा नामांज़ूर कर क्रदया िै। इसहलए मैला आँचल का िास्तुहशलप अहद्वतीय बना रिा।

हशिदान ससि चौिान मैला आँचल को आजादी के बाद के भारतीय जीिन का सबसे कलात्मक और यथाथषिादी मिाकाव्य माना िै। उनके अनुसार “सारे पात्र इतने जीिन्त िैं क्रक लगता िै क्रक रेणु ने उपन्यास न रचकर चतुर्ददक से हसनेमा के

दजषनों कैमरे मेरीगांज पर लगा क्रदए िो, हजसमें एक साथ िी गाँि का पूरे पररदृश्य क्रदख रिा िो। चूँक्रक सभी पात्र सजीि िैं, इसहलए अहिस्मरणीय भी िैं...बढ़ते हुए अन्याय, भ्रष्टाचार और जनहिद्रोि के हिरुद्ध बामनदास की शिादत और कालीचरन का जागरूक सांघषष तो इतनी प्रतीकात्मक घटनाएँ िैं क्रक िे स्िात्नत्योत्तर राजनीहत को मूत्तष हचत्रों में

पररभाहषत कर देती िै।”

माकषण्डेय ने उन मैला आँचल के हशलप की सारिना करते हुए इस बात को रेखाांक्रकत क्रकया िै क्रक रेणु ने हजस हशलप की

रचना की उसे उन्िोंने परती पररकथा में भी दुिराने की कोहशश की, पर िे असफल रिे। िैहश्वक स्तर पर उपन्यास मृत्यु के

कगार पर खड़े िैं, हिकहसत देशों का भी यिी िाल िै ऐसे में चेमीन, पद्मा नदीर माँझी की कड़ी में माकषण्डेय को रेणु का

मैला आँचल क्रदखाई देता िै हजसमें भारत के बहुमुखी समाज की झलक क्रदखाती िै। स्ितन्त्रता प्राहप्त के बाद के हिन्दी

साहित्य में रेणु का मैला आँचल एक ऐसा प्रकाश स्तम्भ िै, हजसके आलोक में हिन्दी उपन्यास की लोकोन्मुखी परम्परा के

हक्षहतज को और भी हिस्तार हमला िै। भारतीय पररिेश को देखते हुए नई सम्भािनाओं के द्वार खुले िैं। रेणु शायद हिन्दी

के ऐसे अकेले कथाकार िैं, हजनके जीिन के सारे आहत्मक अनुभि उनकी रचनाओं में सांग्रहथत िै। िे उपन्यास को उपन्यास मानते हुए भी जीिन-सत्यों की कथा मानते थे और अनेक पात्रों की पिचान इतनी सिज िो गई थी क्रक पूर्णणया अांचल के

अनेक लोग उनके उपन्यासों में अपना चेिरा पिचानने लगे थे।” स्िाधीनता आन्दोलन के पररप्रेक्ष्य में हनत्यानांद हतिारी

मैला आँचल की हिशेषता को रेखाांक्रकत करते हुए हलखते िैं क्रक-‘मैला आँचल की कुछ मित्त्िपूणष हिशेषताएँ िैं, हजन पर अब तक हिचार निीं हुआ िै। उसकी ठेठ देशीयता (आँचहलकता) हिश्वनागररकतािादी हिचारधारा के सामने चुनौती की

तरि खड़ी िै। िि चािे हजतनी हपछड़ी हुई िो, उसकी जड़ें िैं, परम्परा िै, साांस्कृहतक समृहद्ध िै और इन्िीं कारणों से िि

सजीि तथा हभन्न िै। यि हभन्नता ठोस मानिीय िास्तहिकता िै।”

5.

हनष्कषष

उपयुषक्त हिश्लेषण के सन्दभष में िम देखते िैं क्रक एक स्िस्थ हिचारधारा के अभाि में िम रचना का गलत मूलयाांकन कर बैठते िैं, लेक्रकन हिन्दी साहित्य जगत में बहुत सारे ऐसे आलोचक भी िैं जो एक निीन प्रयास देखकर उसमे कहमयाँ ढूढने

के बजाय उसकी हिशेषताओं को समझने की कोहशश करते िैं, और उसके मित्त्िपूणष तत्िों को रेखाांक्रकत करते िैं। मैला

आँचल के नए कलेिर को लेकर इस पर कई तरि के आक्षेप लगाए गए। लेक्रकन नहलन हिलोचन शमाष, माकषण्डेय, नेहमचन्द्रजैन, हशिदान ससि चौिान जैसे अनेक आलोचकों ने उसकी भाषा कथ्य और हशलप की सरांचना में हछपी उसकी

प्रगहतशीलता को पिचाना। हिन्दी आलोचना के सामने एक नए प्रहतमान को स्थाहपत क्रकया, हजससे हिन्दी आलोचना

समृद्ध हुई।

References

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