संरचना
2. उस शीषक के एक वशेष वरण से , अथवा
31 3. उस वरण (Choice) के लए व वशेष उपक पन (Rendering) से, अथवा
4. एक वशेष सहायक वि ट जो उ प न होती है, न मत क जाए अथवा नह ं।'' उपयु त का नणय इस बात पर नभर है क या पाठक या पु तकालय कमचार वारा उस पु तक को उस वशेष कार के शीषक अथवा उसके वरण अथवा उस वशेष उपक पन अथवा उस वशेष सहायक वि ट के अ तगत सूची म खोजे जाने क स भावना है।
उ े य (Purpose): इस उपसू का उ े य पाठक क सभी अभी ट अ भगम क पू त हेतु वि टयाँ बनाने का है। उदाहरणाथ पु तक को लेखक, आ या, सहकारक, थमाला आ द नाम से मांगा जा सकता है। इस उपसू का यह भी उ े य है क सूची म पाठक वारा न मांगी जाने वाल वि टयाँ न बनाई जाए। उदाहरणाथ अथ सूचक मुखपृ ठ (Designing) हेतु
आ या वि ट बनाने क आव यकता नह ं है जैसे Introduction of Library Science, Elements of Political Science, Text book of Physics etc.
यह उपसू सूची सं हता के नमाण (Designing) म सहायक होता है। यह शीषक के
वरण तथा उपक पन से स बि धत नयम के नमाण म भी सहायक होता है।
न हताथ (Implications): कोई पाठक कसी पु तक को कन-कन शीषक से मांग सकता है इसका नधारण सूचीकार अपने ववेक के आधार पर करता है। सूचीकार म इस कार ववेक का वकास उसके स दभ सेवा के अनुभव पर आधा रत होता है। इसी लये रंगनाथन ने
सभी सूचीकार के लये कुछ समय तक स दभ वभाग के कायानुभव क आव यकता पर बल दया है।
1. आ या म प रवतन (Change of Title): कुछ पु तक क आ या म पीरवतन हो
जाता है। उदाहरणाथ Village India नामक पु तक कुछ समय बाद Village uplift in india नामक आ या तगत का शत हु आ था। इस बात क पूर स भावना है क पाठक इस पु तक क दोन आ याओं से मांग कर। इस कार दोन आ याओं क मांग क पू त हेतु 'वां छत शीषक के उपसू के अनुसार दोन आ याओं से वि ट का
बनाया जाना आव यक है।
2. सार अ भगम (Extract and its Approach) : कभी कभी कसी पु तक के मुख भाग को अलग से अलग पु तक के प म भी का शत कया जाता है। उदाहरणाथ रंगनाथ कृत ''Five Laws ofLibrary Science) नाम पु तक का एक अ याय कुछ समय बाद “ Union Library Act)'' शीषका तगत का शत हु आ। वे पाठक जो मूल पु तक से मांग करते ह तथा इसके उपल ध न होने पर य द उ ह उसका सार ((Extract) उपल ध करा दया जाए तो उनक आव यकता क पू त हो सकती है। इस हेतु मु य वि ट के ट पणी अनु छेद (Note Section) म एक ट पणी अं कत क जाएगी। यह ट पणी “Extract from... '' भी वां छत शीषक के उप के पालनाथ ह अं कत क जाती है।
3. वलय पु तक ट पणी (Merger Book Note) : जब दो या अ धक पु तक मलकर एक नवीन आ या तगत का शत होती ह तो पाठक वारा कसी भी आ या से मांगे
32 जाने पर वां छत शीषक उपसू क पू त हेतु मु य वि ट म वलयन पु तक ट पणी
(Merger Book Note) लगाए जाने के नयम का ावधान रंगनाथन वारा 1953 से ारंभ कया गया।
4. कृ म ंथमाला (Pseudo Series) : कृ म ंथमाला क वचारधारा का ारंभ वां छत शीषक के उप के कारण ह हु आ है। व शोधकता वारा म ास व व व यालय म यह पूछा गया क शै स पयर के बेरो रयम सं करण (Varoriam Edition) के कौन-कौन से नाटक उपल ध ह। सी सी सी 1934 के सं करण पर आधा रत सूची वारा इस न का उ तर देना संभव न था। अत: पाठक क वां छत अ भगम क पू त हेतु ह मु य वि ट म कृ म ंथमाला ट पणी देना ारंभ कया
गया।
5. ृंखला या (Chain Procedure) : सन 1938 म जब ृंखला या क अवधारणा का वकास हु आथा, इसके नयम अप र कृत (Crude) थे। शृंखला क सभी
क ड़य से वग नदशी वि टयां बनाई जाती थी। बाद म यह अनुभव कया गया क इनम से कई क ड़याँ अवां छत है। मत य यता के स ा त ने भी इन क ड़य के
नमाण का वरोध वि टयाँ बनाने पर रोक स भव हु ई।
6. नामा तर नदशी वि ट (Cross Reference Index Entry) : इन वि टय का
नमाण मत य यता के स ा त तथा वां छत शीषक के उपसू के म य सम वय के
फल व प हु आ है। पाठक लेखक वारा यु त कई नाम म से मा एक नाम मरण रख सकता है। उसके लये लेखक वारा यु त सभी नाम याद रखना संभव नह ं है।
इनम से कुछ नाम वा त वक तथा कुछ कृ म हो सकते ह। पाठक वारा लेखक के
वा त वक अथवा कृ म नाम से पु तक क मांग कये जाने पर उसे उस लेखक के
सभी पु तक क सूचना उपल ध होना आव यक है। य द इस मांग क पू त हेतु
पु तक नदशी वि टयाँ बनाई जाए तो सूची का आकार बढ़ जाएगा और य द इस माग क पू त न क जाए तो वां छत शीषक के उपसू क अवहेलना होगी। म य माग के प म नामा तर नदशी वि टय का नमाण कर पाठक के अ भगम क पू त क जाती है।
4.5. संग का उपसू (Canon] of Context) यह 'उप ल तपा दत करता है क-
1. एक सूची सं हता के नयम का नमाण न न ल खत संग म होना चा हए- 11.पु तक क सूचीकरण वशेषताओं क कृ त जो पु तक उ पादन र त म च लत हो।
12.पु तकालय के संगठन क कृ त जो पु तकालय सेवा क र त तथा को ट के स ब ध म च लत हो, और
13. का शत पु तक सू चयां वशेष प से पु तकपरक प काओं का अि त व म आना; और
2. नयम को समय-समय पर संग प रवतन होने के कारण पग से पग मलाकर चलने
के लए संशो धत करना।“
33 समी ा (Comments) : मु ण के अ व कार से पूव पा डु ल पय के लये बनायी
जाने वाल सूची म लेख का पूण भौ तक ववरण देना आव यक होता था। पर तु मु ण के
फल व प अब पु तके दुलभ नह ं रह । इस लए इस प रवतन को यान म रखते हु ए अब पु तक के भौ तक व प के ववरण को सूची म देने क आव यकता नह ं रह ।
इसी कार मु त वार णाल (Open Access Syster) म पाठक वयं पा य साम ी को यि तगत प से देख सकता है इस लए अब सूची म काशना द ववरण, पृ ठा द
ववरण, अ भ ट पण आ द क आव यकता नह ं रह ।
का शत पु तक स दभ सूचय क उपल धता ने सूची म व भ न कार क वै ले षक वि टय क आव यकता को समा त कर दया है।
सं ेप म यह कहा जा सकता है क पु तक, पाठक तथा पु तकालय सेवाओं क कृ त म प रवतन क ि थ त म पूव न मत सूची सं हता के नयम म आव यक प रवतन होना चा हए।
4.6. था य व का उपसू (Canon of Permanance)
यह उपसू तपा दत करता है क “ वि ट का कोई भी त व वशेष प से शीषक, सूची सं हता के नयम के अधीन तब तक प रव तत नह ं होना चा हए जब तक क वयं
नयम ह संग के उपसू के कारण प रव तत नह ं हो जाते। ''
उ े य (Objective) : इस उपसू का मु य उ े य शीषक म था य व बनाये रखना
है।
समी ा (Comments) : य द शीषक म द त सूचना म प रवतन होता रहेगा तो यह एक ययसा य तथा मसा य काय होगा। उदाहरणाथ एक लेखक ने कोई पु तक एक कृ म नामा तगत लखी। नधायता के उपसू (Canon of Ascertainability) के अनुसार उसका
शीषक कृ म नाम के अ तगत बनाया जाएगा। कुछ समय बाद उस लेखक का कोई अ य कृ म नाम चलन म आ जाने पर य द हम उसका rl न मत शीषक बदले, तो न केवल यह नधायता के उपसू का ह उ लंघन होगा अ पतु मत य यता के स ा त क भी अवहेलना
होगी। इस प रव तत नाम से नामा तर नदशी वि ट (CRIE) न मत क जानी चा हए। इस कार उपसू का पालन भी हो जाता है और सम त पाठक के व भ न अ भगम क भी
संतुि ट हो जाती है।
4.7. चलन का उपसू (Canon of Currency)
यह उपसू तपा दत करता है क ''अनुवग सूची क वग नदशी वि टय तथा
श दकोशीय सूची क वषय वि टय के लए जो श द वषय को अ भ य त करने के लए यु त हो, चलन म होना चा हए। ''
उ े य (Objective) : इस उपसू का उ े य येक पाठक क वषय अ भगम क पू त अ धकतम पाठक म च लत वषय के नाम के अ तगत करना है।
समी ा (Comments): इस उ े य क पू त हेतु एक बाधा यह है क कुछ वषय के
नाम समय के साथ साथ बदलते रहते ह तथा उनके थान पर नये नाम चलन म आ जाते
34 ह। उदाहरणाथ Library Science को कुछ वष पूव Political Science को Politics तथा
Economics को Political Economy नाम से जाना जाता था। इस उपसू के अनुसार च लत नाम का योग कया जाना चा हए, य क पाठक च लत श द से ह इन वषय क मांग करते ह। इस उपसू क पालना से था य व के उपसू क अवहेलना होती है। दोन सू
के व व को समा त करने के लये रंगनाथन ने दोन के सीमा े नि चत कये है। चलन के उपसू का योग वग नदशी वि टय तथा वषय वि टय के शीषक तक सी मत रहना
चा हए तथा था य व के उपसू का योग नाम शीषक (Name Heading) जैसे यि तगत नाम, भौगो लक इकाई अथवा समि ट नकाय के लये करना चा हए।
था य व तथा चलन दोन ह उपसू पर पर वरोधी ह अथात् वि टय के शीषक या तो थायी ह रह सकते ह या च लत ह, य क नाम के प रव तत हो जाने पर वि टय म प रवतन करने पर ह च लतता का पालन कया जा सकता है और य द प रवतन न कया जाए तो था य व का पालन व च लतता क अवहेलना होती है।
पर तु नधायता के उपसू व था य व के उपसू म मतै य है अथात् नधायता तथा
था य व का पालन एक साथ संभव है।
4.8. संग त का उपसू (Canon of Consistency) यह उपसू तपा दत करता है क
1. ''सूची सं हता के नयम को ऐसा होना चा हए क एक लेख क सम त सहायक वि टयाँ उस पु तक क मु य वि ट से संग त रखती है।
2. सभी लेख क वि टयाँ कुछ वशेष अ नवायताओं जैसे शीषक तथा अ य अनु छेद के वरण (Choice), उपक पन (Rendering) तथा लेखन शैल से संग त रखती ह ।''
न हताथ (Implications) : इस उपसू के अधीन कसी भी सूची सं हता के अनुसार सम त पु तक क मु य वि टयाँ एक ह जा त क होनी चा हए। उदाहरणाथ य द श दकोशीय सूची म मु य वि ट के नाम के अ तगत बनाई जाती है तो सभी पु तक क मु य वि ट लेखक के नामा तगत ह बनाई जाएगी।
यह उपसू यह तपा दत नह ं करता है क सभी पु तकालय म एक पु तक क थान सं या म वि टयाँ बनी जाए। इस नणय का अ धकार तो पु तकालय व ान के पांच सू तथा मत य यता के सू (Law of Parsimony) को ह।
इस उपसू का सी सी सी सूची सं हता वारा पूण प से पालन कया गया है।
वग कृत सूची क सभी मु य वि टयाँ ामक अंक अथवा वगाक वि टयाँ होती हे।
ए ए सी. आर- 2 सूची सं हता भी इस उपसू का पालन अ धकतर ि थ तय म करती
हैह। कुछ ह ि थ तय म इस उपसू क अवहेलना_क गई है, उदाहरणाथ- कुछ शासक य काशन क मु य वि ट म वषय शीषक को उपशीषक के प म दे क अनुसंशा क गई है।
जैसे India, Constitution इसी कार अनामक कृ तयाँ, धा मक पु तक, शां त सं धयाँ आ द को एक प आ यांतगत (Uniform title) सूचीकृत करने का ावधान है।
35 4.9. पुन: मरण मान का उपसू (Canon of Recall value)
यह उपसू डी. आर. ट सी म वकासा मक शोध का प रणाम है। यह उपसू 1969 म रंगनाथन वारा तपा दत कया गया। इससे पूव डॉ. रंगनाथन ने अपनी पु तक ' योर ऑफ लाई ेर केटालॉग' (Theory of Library Catalogue) म पुन: मरण के वशेषता
स ब धी वचार को उ ले खत कया था, पर तु उपसू का व प इसे 1969 म दान कया
गया।
4.9.1. प रभाषा (Definition)
रंगनाथन ने अपनी पु तक ‘केटाला गंग ेि टस' (Cataloguing Practice) म इस उप को न न ल खत से प रभा षत कया है। यह उपसू तपा दत करता है क-
1. ''बहु श दा भ य त नाम (Multi Word Name) म 11. यि त या