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मनः नायुिवकृित (Psychoneurosis)

मनः नायुिवकृित यि व का यि म है, पर तु यह यि म (deviation) भय द नह है । इसिलए मनः नायुिवकृित के रोिगय का इलाज बिहरंग रोगी (Outdoor Patient) म िकया जाता है

और ये आसानी से उपचा रत िकए जाते ह । यह यान देने यो य बात है िक मनः नायुिवकृित के रोगी

म कोई रोग के कारण शारी रक और मानिसक असाम यता नह होती, इसिलए वह आसानी से

अपने दैिनक कत य घर म और घर के बाहर कर सकता है । सामा यतः मनः नायुिवकृित जीवन शैली का गलत अनुकूलन है, िजसके िच ता व छुटकारा दो मुख ल ण होते ह । इस कार के

रोिगय क जीवन शैली म दो मुख कृितयाँ पायी जाती है-

1. वा तिवकता का गलत मू यां कन तथा सम याओ ं के समाधान के थान पर उससे बचने क प ित।

2. अपने आप से हार जाने क कृित से पीिड़त रहना।

यि व म यि म मनः नायुिवकृित रोग के कारण थायी नह होता, य िक यि

सामा य काय म लगा रहता है । िफर भी िविश ि थित म यि म सतह पर आ जाता है या यूं कहे

यह यि म अलग से रोगी के ाना मक, सं वेगा मक व ि याओ ं से सं बंिधत िवकृितय का

ह का कार है । िचिक सा के ि कोण से भी यह साधारण मानिसक रोग है । इसम रोगी का

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यवहार सामािजक आदश के अनु प ही होता है । रोगी अ य रोग क अपे ा दुः खी, िचि तत, आ त रक अंत आिद से िघरा नह होता । इसका साधारण डॉ टर के इलाज क अपे ा मनोवै ािनक उपाय अिधक उपयोगी है ।

10.7.1.i मनः नायुिवकृितय के सामा य ल ण (General Symptoms of Psychoneurosis)

1. िच ता एवं भयावह (Anxiety & Fearfulness) - अनेक मनोवै ािनक ने िच ता को

मनः नायुिवकृित का मुख ल ण माना है । रोगी इसम िबना कारण के ही भया मक ि थित म िववरण करता है, िजसका व प वा तिवक भय से िभ न होता है ।

िच ता से बचाव करने का यास होता है । मनःि थित म रोिगय को अिधकतर यह आशं का सताती है िक कह मेरे आ त रक अंत व भय कट न हो जाय। यही कारण है

िक रोगी सदैव अनेक कारण भय, यथा - दुघटना त होने, बीमार पड़ जाने व पागल हो

जाने आिद से त रहता है ।

2. अ मता तथा िन न ितबल सिह णुता (Inadequacy & Low Stress Tolerance) - येक मनः नायुिवकृित रोगी वयं को अ म समझता है, अतः सदैव दूसर क सहायता का इ छुक रहता है । इसके िवपरीत यह भी हो सकता है िक वह वयं

को अ यिधक मता वाला यि समझकर अपनी अ मता को िछपाने के िलए दूसर पर भु व थािपत करने का असं गत एवं अस भव यास कर। इन रोिगय क अहम् शि

(Ego Strength) तथा ितबल सिह णुता (Stress Tolerance) बहत कम होती है । वह सं वेगा मक प से सदैव दुःखी और उदास रहता है । उसे साधारण किठनाइयाँ भी भयानक तीत होने लगती है । छोटी सी सफलता पर खुशी से फूला नह समाता और असफलता

पर दुःखी और परेशान हो जाता है ।

3. अहं केि ता (Ego Centricity) - ायः इसम रोगी अपने ही िवचार , भावनाओ ं आिद म खोए रहने के कारण, जीवन के सं घष का सामना एक सामा य यि क अपे ा किठनाई के साथ कर पाते ह । दूसरे श द म ये रोगी मु यतः अपनी सम याओ ं म उलझे

रहते ह तथा अ य यि य क सम या से इनका कोई सं बंध नह रहता है ।

4. तनाव तथा िचड़िचड़ापन (Tension & Irritability) - दुि ता और भय इसके मन और शरीर को िनर तर तनाव क ि थित म रखते है । वह छोटी-छोटी बात पर ु ध हो

जाता है । उसक िचड़िचड़ाहट और आ ामकता बढ़ जाती है । चूंिक रोगी अपने

सम याओ ं का सामना िववेक ारा न करते हए अन य और सं वेगा मक ढं गसे करता है, उसम, तनाव और िचड़िचड़ापन और बढ़ जाता है ।

5. अ त ि क कमी (Lack of Insight) - य िक ये छोटे-छोटे सं घष का सामना

उपयु ि याओ ं से नह कर पाते। अतः इनम मानिसक तनाव, सं घष, भय आिद क ि थित बनी ही रहती है, िजसके प रणाम व प इनम सूझ क कमी रहती है, आ म-सं यम, आ मिनभरता आिद का अभाव िदखाई पड़ता है । यवहार म वाभािवक लोच का अभाव रहने के कारण वह अपने को अ य त िनराशजनक ि थित म पाता है ।

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6. पार प रक सं बं ध व सामािजकता क कमी (Lack of Sociality) - रोगी

आ मकेि त व अनुपयु ता से िघरे होने के कारण अ य यि य , अनेक सामािजक पर पराओ ं व रीित- रवाज के ित उदासीन रहता है, य िक उसम या तो यह भावना रहती

है िक वतं प से काय कर या पूण प से दूसर पर ही िनभर रहे, िजसके कारण अ य यि ऐसे यि य से शी ही ऊब जाते ह तथा दूर रहने का यास करते ह ।

7. थकान और अ य शारी रक क (Fatique & Other Physical Injury) - मानिसक तनाव, िच ता, संघष, भय आिद के कारण इसक शारी रक तथा मानिसक शि

यथ म ही न होती रहती है । फलतः वह थकान तथा अ य शारी रक क आिद से पीिड़त रहते है । इस कार के यि य को पेट सं बंधी रोग, िसर दद, शरीर म प वेदना आिद क सताते है ।

8. मानिसक तथा दैिहक ल ण (Mental & Physical Symptoms) - इन रोिगय म उपयु ल ण के अलावा अनेक अ य मानिसक ल ण, यथा - परेशानी, असं तुि , यान क एका ता म कमी आिद भी पाये जाते ह ।

10.7.1. ii मनः नायुिवकृित के सामा य कारण (General Etiology or Causes of Psychoneurosis)

मनः नायुिवकृितय के अनेक कारण िजनक पूण या या करना किठन है, अतः हम इनके सामा य कारण क या या करगेः-

1. जैिवक कारक (Biological Factors) - अनेक अ ययन से ात हआ िक मनः नायुिवकृित को उ प न करने म जैिवक कारण भी मह वपूण है, य िक इस कार के

रोिगय के प रवार म सामा य प रवार क अपे ा यह िवकृित अिधक सं या म पाई जाती

है । हेनरी इ धम आिद के अ ययन के अनुसार वह ब चे भी मनः नायुिवकृित के रोगी पाए गए, िजनके माँ-बाप मनः नायुिवकृित के रोगी थे, य िक वे माँ-बाप ब चे को उिचत पालन-पोषण, यवहार का वातवारण उपि थत नह करा पाते। जैिवक कारक को इस रोग का मु य कारक नह माना जा सकता, िक तु न ही इन कारक को इस रोग से पूणतः पृथक ही िकया जा सकता है ।

2. मनोवै ािनक कारक (Psychological Factors) - अनेक मनोवै ािनक का मत है

िक मनः नायुिवकृित का कारण दबावपूण मनोवै ािनक प रि थितयाँ, जैसे - अवा तिवक मह वाकां ाएँ, अवांिछत इ छाएँ आिद ह । एडॉ फ मेयर (Adolf Meyer) के अनुसार जब यि अपनी यो यता या मता से अिधक जीवन ल य बनाते है तब मनः नायुिवकृित उ प न होती है । थान (Thorne, 1963) के अनुसार जब िकसी यि के जीवन म का पिनक बात क अिधकता और वा तिवकता क कमी हो जाती है, तब उसे अपने

अि त व क िच ता घेर लेती है, िजससे उसे समायोिजत प से जीवनयापन करने म किठनाई होती है, तब उसक असफलताएँ थाई हो जाती है और उसम मनः नायुिवकृित के ल ण उ प न होने लगते ह । मावॉरर (Mowrer) के अनुसार अप रप वता व अपराध भाव (immaturity & guilt) ही इसके उ प न होने के मुख कारक ह ।

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3. सामािजक कारक (Social Factors) - इस कार के रोगी येक समाज व वग म पाये

जाते ह लेिकन कुछ सामािजक ि थितयाँ िविभ न कार क मनोिवकृितय को उ प न करती ह । जैसे - ोभो माद (Hysteria) के रोगी आिथक व सामािजक ि से िपछड़े

े म अिधक िमलते ह । ह ट (Hunt) ने अपने अ ययन म पाया िक नी ो यि य म मनोिवकृित का रोग, अमे रकन गौरे यि य से यादा होता है ।

10.7.2 मनोिवकृितयाँ/मन ताप (Psychosis)

मनोिवकृितयाँ/मन ताप मानिसक िवकार क ेणी म ती यि व क मशीलता है । मन ताप से

पीिड़त रोगी का यि व मनः नायुिवकृित क अपे ा अिधक ित त होता है । रोगी को

वा तिवकता का ान नह होता, आ म-सं यम व सामािजक सं तुलन का पूणतः अभाव रहता है तथा

अ सर क पना लोक म िवचलन करता है । उसका रोग इतना ती होता है िक उसे अ पताल म भत करना आव यक हो जाता है । इनम िवपयय व िव म (illusion and halluination) का

बाह य रहता है तथा इ ह अपने सुधार का ठीक होने क कोई िच ता नह रहती। िचिक सक क सलाह को वीकार नह करते तथा आ मह या करने पर उता रहती है । ोफेसर ाउन का मत है

िक इस कार क असामा यता म रोगी के यि व का पूण िवघटन हो जाता है । अहम्-इदम् व परम अहम् (ego, ID and super ego) के अपने सं बंध इस असामा यता म िबगड़ जाते ह । सं ेप म, मनोिवकृित के सं बंध म हम कह सकते ह िक ये ती असामा यताएँ होती है जो िक बोधा मक,

ाना मक व ि या मक से सं बं िधत रहती है तथा िजसके फल व प यि काय करने म यो य नह होता । उसका वा तिवक जगत से सं तुलन िबगड़ जाता है ।

10.7.2.i मनोिवकृितय /मन ताप का वग करण (Classification of Psychosis)

मनोिवि ल ण (Psychotic Symptoms) का ज म या तो मनोवै ािनक दबावपूण, ि थित या

आंिगक मि त क यािध या इन दोन क ि थितय के कारण होता है । इसी धारणा के आधार पर मन तापीय रोग को दो वग म बांटा जा सकता हैः-

1. मनोज य/ काया मक मन ताप (Functional Psychosis) - ायः मनोवै ािनक कारण से उ प न होते ह और मि त क य िवकास नह होते।

2. आं िगक मन ताप (Organic Psychosis) म मि त क य िवकास प प से िदखायी

देते ह ।

मनोज य/ काया मक को मु यतः िन न चार कार या समूह म बांटा जा सकता हैः- i. मनोिवदलन िति याएँ (Schizophrenic Reactions) - इसम रोगी के अ दर

वा तिवकता के सं बं ध म पुनः हटने (retrent) क वृि पायी जाती है, जैसे - यामाह (delusion), िव म (halluinations) और ि ़ढयुि याँ (Stereotypes)

ii. ि तवत िति याएँ (Paranoid Reactions) - रोगी म मु यतः उ पीड़न (persecution) या महानता (grandeur) से सं बंिधत यामोह आते है ।

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iii. भावा मक िति याएँ (Affection Reactions) - इस कार क िति याओ ं म भाव म ती उ चावचन पाया जाता है, िजसका सं बंध िवचार व यवहार क बाधाओ ं से

होता है । इसके दो उपसमूह हैः-

a. उ साह-िवषाद िति याएँ (Manic Depressive Reactions)

b. मनोिवि िवषादा मक िति याएँ (Psychotic Depressive Reactions) iv. यावतनकालीन िवषाद िति याएँ (Involutional Psychosis Reactions) -

इसम यावतन काल म असामा य िवषाद व िच ता आिद उ प न हो जाती है ।