ाउन (Brown) के अनुसार “प रवतन - िह टी रया म ऐसे शारी रक ल ण उ प न होते ह, िजसका
मूल कारण मानिसक होता है ।” कोलमैन (Coleman) के अनुसार, “प रवतन - िह टी रया एक कार का तांि कातापी ितर ा ि यातं (Defense Mechanism) ह, िजसम शारी रक रोग के
ल ण उ प न होते ह, पर तु उन ल ण के पीछे कोई वा तिवक शारी रक िवकार नह होता ।”
11.5.2 ोभो माद के कार (Types of Hysteria)
ायः ोभो मान को तीन कार म रखकर अ ययन िकया जाता है, यथा-
1. ोभो माद या िह टी रया (Hysteria) - इस कार म रोगी रोने या हंसने से सं बं िधत अिनयं ि त सं वेग का दशन करता है ।
2. िच ता ोभो माद (Anxiety Hysteria) - िच ता ोभो माद म रोगी म आकुलता, य ता व िच ता ायः थायी प से बनी रहती है ।
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3. पा त रत ोभो माद (Conversion Hysteria) - इस कार के मानिसक अंत , शारी रक ल ण म पा त रत हो जाते ह अथात रोगी िकसी कार क शारी रक बीमारी
से त होता है, पर तु उसके कारण उसके शरीर म खोज करने पर भी ा नह होते ।
11.5.3 ोभो माद के ल ण (Symptoms of Hysteria)
ोभो माद म मानिसक व शारी रक दोन कार के ल ण पाये जाते ह । इसके ल ण कुछ थायी
कृित के तथा कुछ अ थायी या आकि मक कार के होते ह । इन ल ण का हम नीचे वणन कर रहे हैः-
(क) शारी रक ल ण (Physical Symptoms) - ोभो माद म उ प न होने वाले ल ण क सं या बहत बड़ी है । हमारे शरीर के येक सं वेदनाग (Sense Organ) अथवा भाग पर इसका भाव पड़ सकता है । सुिवधा के शारी रक कारण से उ प न ोभो माद को
पा तरण िवकृित या प रवतन िह टी रया भी कहते है । हम उन ल ण को िन निलिखत तीन भाग म बां ट सकते हैः- 1. सं वेदी ल ण (Sensory Symptoms)
2. ग या मक ल ण (Motor Symptoms) 3. आ तरेशी ल ण (Visceral Symptoms)
1. सं वेदी ल ण (Sensory Symptoms) - हमारे मु य पांच सं वेदन है - (1) ाण सं वेदन (olfactory sensation), वक् संवेदन (cutaneous sensation), वाद सं वेदन (gustatory sensation), ि सं वेदन (visual sensation), वण संवेदन (auditory sensation). इन सं वेदन से सं बं िधत प रवतन िह टी रया या पा तरण िवकृित के कुछ ल ण िन नवत् ह ।
(i) ि िवकृित (Visual Disorder) - ोभो माद या पा तर िवकृित के रोगी म पूण या
आंिशक अ धापन पाया जाता है । यह अ धापन काया मक, अ धापन (functional blindness) कहलाता है । रोगी आँख क शारी रक रचना म कोई दोष नह होता है । इस अ धेपन क िवशेषता
इसका (specific) होना है । रोगी एक व तु या यि को देख सकता है जबिक दूसरी व तु या
यि को देखने म असमथ होता है। इसके अलावा धुंधली ि (blurred vision), दोहरी ि (double vision) आिद ि िवकृितय भी देखी जा सकती है ।
थम और ि तीय िव यु म हजार सैिनक म ि सं बं धी ल ण उ प न हो गये थे, जैसे ि ि ता
(Diplopia) अथात एक व तु को वे दो िदखाई देना, रत धी (Night Blindness) अथात रात म
िदखाई न देना, वणा धता (Colour Blindness) इ यािद।
(ii) वण िवकृित (Auditory Disorders) - रोगी म पूण या आंिशक बहरापन देखा जाता है । वण संवेदना के े म भी िविश बहरापन (specific deafness) देखा जा सकता है । वह िकसी
एक यि क आवाज सुन सकता है और दूसरे यि क आवाज सुनने म असमथ होता है । कुछ रोगी म अलौिकक शि होने के कारण वह भगवान या पैग बर क आवाज भी सुन सकते ह ।
ि तीय िव यु म एक सैिनक के सुनने क शि समा हो गई, अिपतु उसके दोन कान रोग मु
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थे। डॉ टर के परी ण ारा यह ात हआ । रोगी का इलाज मनोिचिक सक से करवाया गया । एक
िदन रोगी िब तर पर लेटा था । मनोिचिक सक जोर से िच लाया ‘जहाज-जहाज’, रोगी ने जैसे ही
यह श द सुने तुर त चारपाई के नीचे घुस गया, य िक रोगी को लगा क श ु के हवाई जहाज बम फकने के िलए आ गये ह । इससे यह िस हो गया िक बहरापन मानिसक था ना िक शारी रक।
(iii) सं वेदनशीलता िवकृित (Sensitivity Disroder) - इस िवकृित के अ तगत एने थेिसया
(anesthesia), हाइपरे थेिसया (hyperesthesia), एनलगेिसया (analgesia), पारे थिसया
(paresthesia) आिद शािमल होते ह । एने थेिसया का अथ यह है िक रोगी के िकसी अंग म सं वेदनशीलता (sensitivity) समा हो जाती है।
(a) लोव एने थेिसया (Glove Anesthesia) - जब शरीर के ऊपरी अंग म सं वेदनशीलता क
ित हो जाती है, उसे लोव एने थेिसया कहते ह, जैसे हाथ या कलाई म सं वेदनशीलता क ित।
(b) पैर एने थेिसया (Foot Anesthesia) - जब यि के िनचले अंग जैसे पैर म ित होती है
तो उसे पैर एने थेिसया कहते ह ।
(c) हाइपरे थेिसया - इसम रोगी म पश के ित अ यिधक सं वेदनशीलता िवकिसत हो जाती है । (d) पैरे थेिसया - इसम रोगी को असामा य वचा सं वेदनाएँ (abnormal skin sensation) होती
है यथा जलन, खुजली, गुदगुदी (tickling) आिद का अनुभव होता है ।
(e) एनलगेिसया - इसम रोगी शरीर म दद या पीड़ा के ित असं वेदनशील बन जाता है ।
(2) ग या मक ल ण (Motor Symptoms) - ग या मक ल ण िविवध कार के होते ह।
रोगी म क पन (trembeling), ए टािसया एबािसया (Astasia - Abasia), ऐलन (cramps), पेशीय सं कुचन (contractions of muscles) आिद आते ह ।
(i) तं ि क य क पन (Neural Tremors) - रोगी के अंग िवशेष म क पन का ल ण देखा जाता है । क पन ायः भय का ल ण माना जाता है । जन भय के ित वाभािवक अिभ यि अव हो जाती है तो पूरा शरीर कांपने लगता है । िकसी व तु को उठाते
समय, कुछ िलखते समय अथवा िकसी काय को करते समय हाथ म क पन देखा जा
सकता है । इसके अलावा हम ोध और ेम के कारण भी कांपने लगते ह ।
(ii) िटक (Tic) - इसम रोगी के शरीर म ऐसी गितिविधयाँ वचािलत प से होती ह, िजनका
रोगी को ान भी नह होता है जैसे - िसर पर झटकाना, पलक का झपकाना, मुँह का
फड़कना, पैर का िहलाना आिद। आ त रक के प रणाम व प ये ल ण उ प न होते
ह और इन गितय का ितका मक अथ होता है ।
(iii) ऐ ंठन (Convulsion) - इस ल ण का सं बं ध यावसाियक तं ि काताप से है । शरीर के
िविश भाग म पेशीय ऐंठन उ प न होती है । रोगी उस काय को करने से बच जाता है जो
उसे िचकर नह लगते। उदाहरण - एक िव ाथ के दाय हाथ क पेिशय म ऐंठन का
ल ण उ प न हो गया, िजसके कारण वह िलखने म असमथ हो गया । इसका कारण यह था िक वह अनेक बार परी ा म फैल हो गया । यह उ लेखनीय है िक वह िलख तो नह सकता पर तु ताश के प को सुिवधापूण फट सकता है ।
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(iv) मू छा (Faint) - रोगी म मू छा का ल ण, झटका (seizure) भी देखा जा सकता है । यह उ मादी मू छा (hysterical faint) कहलाती है, यह मू छा दूसरे लोग िवशेष प से
प रिचत लोग क उपि थित से ही घिटत होती है, इसिलए यह सामा य मू छा से अलग होती है, य िक सामा य मू छा म यह बात नह पायी जाती है ।
(v) यूिट म (मुकता) तथा हकलाना (Aphonia, Mutism & Stuttering) - यह तीन वाक िवकार के ल ण ह (Disorder of Speech)। वर हािन से पीिड़त रोगी क आवाज ब द हो जाती है, वह केवल फुसफुसाहट क आवाज म ही कुछ बोलने म समथ होता है । मुकता (Mutism) म रोगी गूंगा हो जाता है, वह िब कुल भी नह बोल पाता।
हकलाना (stuttering) म रोगी क- क कर बोलता है । िकसी िवशेष श द या वनी पर क जाता है । मरण रखना चािहए िक रोगी के वाणी अंग म कोई दैिहक दोष नह होता है।
(vi) लकवा (Paralysis) - ग या मक ल ण म लकवा सबसे अिधक मुख ल ण है । रोगी
के शरीर के िकसी भाग म अंगघात उ प न हो जाना प रवतन िह टी रया ग या मक ल ण का सवािधक नाटक य ल ण है । सामा य यि भी अ यिधक भय द ि थित म प थर क मूित बन जाता है, न भाग सकता है, न िच ला सकता है । रोगी के अंग िवशेष म लकवा
मार जाता है, कभी िकसी एक अंग म तो कभी दूसरे अंग म। जैसे जां घ, हाथ आिद अंग म लकवा का ल ण िवकिसत हो जाता है, लेिकन लकवा का कोई दैिहक आधार (Somatic Basis) या शारी रक आधार नह होता । सामा य अंग क तरह लकवा त अंग म भी
सहज ि याएँ (reflex actions) होती रहती ह । एक सैिनक को जैसे ही श ु पर आ मण करने का आदेश िदया गया, वह अंगघात से पीिड़त हो गया । लेिकन मेिडकल जांच से उन अंग म कोई शारी रक या कायक दोष (somatic Defect) नह पाया गया ।
(vii) पेशीय सं कुचन (Contraction of Muscles) - इस ल ण म रोगी क पेशी सं कुचन के बाद अपनी सामा य ल बाई को पुनः ा नह कर पाती, िजससे शरीर म अंग िव िपत हो जाता है । यि िवकलां ग बन जाता है, जैसे हाथ-पेर क अंगुिलय का मुड़ जाना, घुटन म अन यता (rigidity) आ जाना िजसके कारण रोगी चलते समय अपनी टां ग को
गोला म घुमाकर आगे बढ़ाता है ।
(3) आ तरोगी लक्षण (Visceral Symptoms) - शरीर के बा अंग क भांित शरीर के
अ दर के आ तरां ग (Viscera) भी प रवतन िह टी रया से भािवत होते ह, जैसे िसर का
दद, सां स लेने क ि या म गड़बड़ी, नाड़ी गित म ती ता खां सी के दौरे पड़ना, जी
िमचलाना, उ टी आना, अ यिधक पसीना आना, चेहरे व वचा का बदरंग हो जाना, शम से मुँह लाल हो जाना, भोजन क इ छा न होना आिद। इनके अलावा कुछ रोिगय म उदरशूल, दमन, मले रया, य रोग और अपिडसाइिटस (Appendicitis) आिद रोग प रवतन िह टी रया के प रणाम व प उ प न हो सकते ह ।
(ख) मानिसक या मनोवै ािनक ल ण (Mental or Psychological Symptoms) -
ोभो माद के मुख मानिसक या मनोवै ािनक ल ण िन न हैः-
(1) िन ा मण (Somnambulism) - इसम रोगी न द म ही उठकर अचेतन प से ऐसे
अनेक जिटल काय व यवहार करता है, िजसक मृित उसे जा ताव था म नह होती।
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सामा य प से रोगी सोता है तथा राि म िबना जागे िब तर से उठकर अनेक कार क
ि या करता है तथा पुनः अपने िब तर पर जाकर सो जाता है । िन ाचार एक ऐसा मनोरोग माना जाता है, िजसम रोगी का अचेतन मन चेतन मि त क को पूण प से िनयं ण म ले
लेता है तथा रोगी को मनचाहा काय करने को े रत करता है । रोगी यह काय तब तक करता रहता है जब तक िक अचेतन मन म दिमत वृि याँ तृ नह हो जाती। रॉस (1948) ने िन ा मण का एक रोचक उदाहरण िदया है । एक नौ सैिनक अिधकारी िन ा मण क अव था म अपना शयन क उस समय छोड़ता था, जबिक वह पूण नौ सैिनक व को
पहन लेता था और इसके बाद ही वह जहाज क छत पर टहलने लगता था । कभी-कभी
िन ा मण के समय ही इस नौ सैिनक अिधकारी से बातचीत क जा सकती थी । पर तु उसे
जा ताव था म इन ि याओ ं क मृित नह होती थी ।
(2) आ म िव मृित (Fuge) - िफशर के श द म, “आ म िव मृित एक ोभो माद आ मण (दुघटना) है, िजसम यि अपने यि गत जीवन को भूल जाता है तथा अपने पयावरण को छोड़ देता है । दुःखद प रि थितय से बचने के िल ए ही यि आ म िव मृित का सहारा
लेता है । इसका समयकाल एक-दो घ टे, दो-चार िदन या कई महीने का भी हो सकता है ।”
(3) ैध यि व (Dual Personality) - इसम रोगी समय-समय पर िविभ न कार के
यि व को धारण कर लेता है । मनोवै ािनक ने ैध यि व के शुभ व अशुभ (good
& bad) व प पर आधा रत माना है । ैघ यि व को पीछे-पीछे, समय-समय पर नैितक सामािजक व धािमक, शुभ तथा अशुभ वृि य के बीच का हाथ रहता है । गोडाड (Goddard) ने इस सं बंध म एक लड़क , नोमा पॉली (Norma Polly) का वणन
िकया, बा याव था से ही उस लड़क म िन ा मण, सामा य थकान, यि गत अ स नता
आिद के ल ण िव मान थे । युवाव था तक आने पर लड़क का यि व दो कार म बं ट गया । उसके दो नाम नोमा व पॉली हो गये । नोमा, शुभ यि व - कार था तथा यह बुि मान आ म िनयं ि त, िवन व सदाचारी लड़क थी । पॉली अशुभ यि व - कार क लड़क थी, जो वाथ , उ ड, िनल ज व शरारती थी, नोमा व पॉली दोन कार के
यि व एक-दूसरे से अनिभ थे। गोडाड के अनुसार, एक तरफ वह घर म नो मा के प म उ रदािय व , किठनाइय आिद का सामना करती थी तथा इन सबसे छुटकारा ा करने के
िलए पॉली यि व को धारण कर लेती थी ।
11.5.4 ोभो माद के कारण (Etiology or Causes of Hysteria)
1. अचेतन लिगक इ छाएँ (Unconscious Sexual Wishes) - िसगम ड ॉयड (Sigmund Freud) के अनुसार िजन लैिगक इ छाओ ं क सं तुि चेतन तर पर नह होती
या िज ह ने अपनी लैिगक इ छाओ ं को दिमत कर िलया है, उन यि य को मानिसक अंत उ प न हो जाता है, िजससे बचने के िलए यि म ोभो माद के ल ण िवकिसत हो जाते ह ।
2. असुखद ि थित से बचाव - जब यि िकसी असुखद अथवा भय द ि थित से बचना
चाहता है तब उसम ोभो माद के ल ण पाये जाते ह । परी ा के िदन बीमार होने वाला
छा इसका अ छा उदाहरण है ।