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11.3 िच ता िवकृित (Anxiety Disorder)

11.3.1 प रभाषाएँ (Definitions)

िभ न-िभ न मनोवै ािनक ने नायुिवकृित अथवा िच ता िवकृित को प रभािषत करने का यास

िकया है । ाउन (Brown) के अनुसार, “मनः ना का अथ बां धा मक, संवेगा मक तथा ि या मक

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ि याओ ं क साधारण असामा यताएँ है, जो यि को ायः केवल आंिशक प म अ म बना

देती है और िजनमे मौिलक ल ण का सं बंध िच ता से होता है ।”

डैिवसन तथा नील (Davison & Neale, 1996) के अनुसार, “ नायुिवकृित का ता पय अमनो

िवकृितय के एक समूह से है, िजनके ल ण है अवा तिवक िच ता तथा िवचार बा यताएँ अ य स ब सम याएँ जैसे मनोभीितक तथा यवहार बा यताएँ ह ।”

इसी तरह सरासन तथा सरासन (Sarason & Sarason 1998, 2002) के अनुसार, “िच ता

िवकृित एक मानिसक िवकृित है, िजसे पहले नायुिवकृित कहा जाता था, िजसका मु य ल ण

िच ता है । इसके अ तगत आतं क िवकृित, मनोभीितक िवकृित, बा यता, सामा यीकृत िच ता तथा

ित बालक के ित िति या क गणना क जाती ह ।”

11.3.2 िच ता िवकृित के कार (Types of Anxiety)

ए जाइटी िडस्आडर के िविभ न कार इस तरह हैः-

1. पैिनक अटैक - इसम पसीना आना, सीने म दद, अिनयिमत िदल क धड़कन और िदल का दौरा पड़ रहा हो ऐसा महसूस होता है ।

2. ऑ सेिसव क पलिसव िडसआडर (OCD) - ओसीडी से त यि को िकसी न

िकसी बात का डर हमेशा लगा रहता है और उस वजह से वे िकसी भी काम को बार-बार करते रहते ह । जैसे िक ज स और बै टी रया के डर क वजह से वे अपने हाथ को बार-बार धोते रहते ह । यह ऑ सेशन एक िवचार है और उनक उ ह वही काम बार-बार करने पर मजबूर करती है ।

3. पो ट ामेिटक ेस, िडसआडर (PTSD) - शारी रक हमला, यौन शोषण और उ पीि ़डत, भयानक या ददनाक घटना, िकसी अपने क मृ यु अथवा कोई ाकृितक सं कट, इन सब कारण क वजह से यह िडसआडर हो सकता है । िजन लोग को यह िवकार होता

है उ ह इन घटनाओ ं के भयानक िवचार िदमाग म आते रहते ह और वे िफर भावना मक प से असं वेदनशील बन जाते ह ।

4. सोशल एं जाइटी िडसआडर - सोशल एं जाइटी िडसआडर अथवा सोशल फोिबया से

यि यह सोचता है िक लोग उनक आलोचना करते ह या उनके बारे म कुछ अनुमान लगाते ह । इसम यि सोशल गेद रंग म थोड़ा से फ कानिशयस हो जाता है और अपनी

परेशानी से बचने का रा ता ढूं ढ़ता है ।

5. पेिसिफक फोिबया - इसम िकसी खास चीज के बारे म ती डर लगता है, जैसे ऊँचाई, पानी, लाइंग अथवा अ धेरे का डर।

6. जनरलाइड एं जाइटी िडसआडर - इसम िकसी भी बात के िलए िच ता हो सकती है और इसम िकसी खास घटना से बात का सं बंध नह होता । िच ता और बैचेनी अवा तिवक होती है । कट म ऐसा कोई कारण उपि थत नह होता, िजससे यि को िच ता हो सके ।

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11.3.3 िच ता िवकृित के सामा य ल ण (General Symptoms of Anxiety Disorder)

इस मानिसक रोग के िन पण (diagnosis) तथा पहचान (identification) म सुिवधा ही इसिलए इस मानिसक िवकृित के सामा य ल ण को िन निलिखत भाग म िवभािजत िकया जा सकता हैः- 1. शारी रक कारण (General Physical Symptoms) - इसम यि िकसी भी अि य

घटना म िचि तत नजर आता है, वह ऐसा य महसूस कर रहा है, इसका कारण नह बता

पाता। उसे अिनि त िच ता घेर लेती है । कभी-कभी उसक िच ता इतनी ग भीर होती है

िक उसे िदल क धड़कन महसूस होना (Palpitations), माँस-पेिशय म कमजोरी, तनाव, थकान, िमचली, सीने म दद, सां स क कमी, पेट म दद या िसर दद जैसे शारी रक भाव हो

सकते ह । जब शरीर खतर से िनपटने के िलए होता है तब र चाप और िदल गित क दर बढ़ जाती है, पसीना बढ़ जाता है, मुख माँस-पेशी समूह के िलए र का बहाव बढ़ जाता

है और ितर ा और पाचन तं णािलयाँ म कावट आ जाती है (लड़ या भाग का

िति या), पीली वचा, पसीना, क प और पुतिलयाँ (pupillary), फैलाव िच ता के

बाहर ल ण म शािमल हो सकते ह । कोई िजसे िच ता है इसे भय या आतंक का भाव के

प म अनुभव कर सकता है ।

2. मनोवै ािनक कारक (Psychological Symptoms) - िच ता केवल भौितक भाव ही नह बि क इसम कई भावना मक भाव भी शािमल है ।

a. यि व न म भी िच ता िवकृित से िघरा रहता है । उसे ‘दु व न/बुरे सपने आते ह जो

उसक िच ता िवकृित को बढ़ा देते ह । उसे लगता है िक कोई उसे िकसी न िकसी प म शारी रक यणना दे रहा है । वह सपने म ाण घातक व न भी देख सकता है या िफर कोई डरावनी घटना/चीज भी देख सकता है, िजससे वह भागना चाहे, पर भाग नह पाये।’

b. रोगी को कभी-कभी िच ता का दौरा भी पड़ सकता है । ये दौर कभी कुछ िमिनट या िफर कुछ घ टे के भी हो सकते ह । उसे सांस लेने म तकलीफ या िफर च कर आने क भी

िशकायत हो सकती है । वह दूसर से डॉ टर को बुलाने का अनु ह करता है, य िक उसे

लगता है िक वो बेहोश हो जायेगा । डॉ टर आकर उसे देखता है, समझाता है और उसके

आ मिव ास को बढ़ाता है तो वह अ छा महसूस करता है । अगर डॉ टर को नह बुलाया

जाए और उसके साथ के लोग उसम आ मिव ास बढ़ाने क कोिशश कर तब भी वह अ छा महसूस करता है । रोगी को ये दौरे एक िदन म दो-तीन बार से लेकर महीने म दो-तीन बार आ सकते ह ।

c. रोगी को आशंका या भय क भावनाओ ं, यान केि त करने म किठनाई, तनाव या उछाल क भावना, िनकृ तम का अनुमान, िचड़िचड़ापन, बैचेनी, खतरे या घटना के सं केत (और घिटत होने) को देखने (और इ तजार करना) शािमल ह । रोगी को यह भी महसूस होता है

जैसे उसका मि त क शू य हो गया है ।

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11.3.4 िच ता िवकृित के सामा य कारण (Etiology or Causes of Anxiety Disorder)

मुख कारण जो िच तािवृत (Principal causes that rise of anxiety neuroses) उ प न कर सकते ह-

1. दोष एवं िनराश का भाव (Feeling of Guilt & Frustration) - दोष क भावना

एवं िनराशा क भावना िच ता िवकृित उ प न कर सकती है । रोगी को यह महसूस होने

लगता है िक उसका वतमान जीवन दुःखद है अथवा भिव य म भी दुःखद घटनाओ ं के

घटने क पूरी स भावना है और इन सबका कारण िवगत जीवन म उसके ारा िकये गये

कुछ पाप ह । जैसे रोगी यह महसूस कर सकता है िक उसके ारा अतीत म िकये गये

अनैितक काय के कारण उसे ाकृितक कोप का सामना करना पड़ रहा है ।

2. अयो यता तथा असुर ा का भाव (Feeling of Inadequaty & Insensitivity) - रोगी साधारण काय के िलए भी खुद को अयो य समझने लगता है, वह एक साधारण सा िन णय िकसी क राय के (optional/consult) िबना नह ले सकता, अगर उसे िनणय लेना

पड़ जाए तो वह िच ता से िघर जायेगा । यह सोच कर िक उसका िनणय कह गलत तो

नह । फलतः वह िकसी काय या प रि थित का मू यां कन तट थ प से नह कर पाता है । भय िच ता तथा असुर ा के भाव से पीिड़त रहता है ।

3. वाथवाद तथा िवि छ न पार प रक सं बं ध (Ego Centricity & Disturbed Interpersonal Relationships) - मनः नायु के रोगी आ मकेि त होते ह, वह प रवार तथा समाज के लोग से अलग-अलग रहने का यास करता है और केवल यि गत आव यकताओ ं म ख च लेता है, पर तु दूसरे लोग से अपनी सम याओ ं के

समाधान म अपे ा रखता है, लेिकन उनक अपे ाएँ इतना अयथाथ (cure alistic) होती

है िक उनक पूित करना स भव नह होता है । फलतः दूसरे लोग के साथ रोगी का

पार प रक सं बं ध िबगड़ जाता है ।

रॉिबं स एवं रेिगयर (Robins & Regier; 1991) के अनुसार पार प रक सं बंध के

िवि छ न हो जाने का कारण यह है िक रोगी िविभ न कार के भय, िच ता एवं असुर ा से

पीिड़त िजससे उसके य ीकरण के ढ़ं ग (modes of pervising) अयथाथ बन जाते ह । 4. दोषपूण समायोजन (Faulty Adjustment) - मनः नायु का समायोजन दोष पूण होता है । िच ता, असुर ा का भाव, अयो यता का भाव, वाथवाद (ego centricity), सं देह, अन यत (rigidity) आिद के कारण रोगी के पा रवा रक, सामािजक, सं वेगा मक, यवसाियक तथा वैवािहक समायोजन िबगड़ जाते ह । िफर भी रोगी का सं बं ध वा तिवक जगत से कायम रहता है ।