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पाठक क मरणशि त क सी मतता (Limitation of Memory of Readers)

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संरचना

6. पाठक क मरणशि त क सी मतता (Limitation of Memory of Readers)

सा ह य म वृ , समि ट नकाय क सं या म वृ , कार म वृ , मलते-जुलते नाम आ द के फल व प कसी व वशेष े के वशेष के लये मनोवै ा नक ि ट से यह स भव है

क वह अपने वषय े म संल न सभी सं थाओं के नाम को सह म म याद रख सके, य क मानव क मरण शि त सी मत होती है।

जहाँ पाठक के लये र क श द य अि व ट नाम (Search name) को याद रखना

संभव होता है वह ं बहु श द यअि व ट नाम म से वि ट पद के प म उ ह ं श द या श द समूह को लेना चा हए, िजनम पुन: मरण क स भावना अ धक हो य क अ धकांश पाठक उ ह ं श दा/श द समूह का उपयोग पुन: मरण के लये करगे।

4.9.3. पुन: मरण मान के उपसू का योग (Application Oof Canon of Recall Value)

1. यि तगत नाम (Name of Person): पि चमी यि तगत नाम म सवा धक पुन: मरणमान सामा यतया नाम के अि तम श द अथात् पारवा रक नाम म होता है। अत: उसे ह

वि ट पद बनाया जाना चा हए। यह अ भगम पुन: मरण मान के उपसू को संतु ट करेगी, जैसे-

SHAKESPEARE (William) SURI (Anil).

38 द णी भारतीय नाम म द त नाम के अ तगत पुनः मरण मान होता है अत: उसे

ह वि ट पद बनाया जाना चा हए जैसे- RADHAKRISHAN (Sarvapalli) RANGANATHAN (S R)

2. शासन उसके अंग (Government and its organ): शासन के नाम म सीमा

े के नाम जैसे देश, देश के े के नाम म वि ट पद बनेगा। शासन के नाम म कोई गौण पद नह ं होता।

इसी कार शासन के व भ न अंग के उपक पन म भी पुन: मरण यो य पद को ह वि ट पद बनाया जायेगा।

जैसे- INDIA, FINANCE (Department of-).

RAJASTHAN, HIGH COURT

INDIA, LIBRARY (Advisory Committee-ies)(1956) Chairman : K P Shnha

3. सं था उसके अंग (Institution and its organ): स पूण सं था को शीषक के

प म उपकि पत करते समय उस श द या श द समूह को वि ट पद बनाया जाता है जो उस सं था के मु य अंश के प म उसके वषय या अ य कसी वशेषता का योतक तथा इसे एक वचन म ह लखा जाता है। जैसे-

SCIENCE (Indian Institute of - s)

वि ट पद के बाद बचे श द को गौण पद के प म लखा गया हो तो उसे गौण पद म छोट आड़ी रेखा के वारा दशाया जाना चा हए।

पार प रक सं थाएँ जैसे आ द के नाम म य द वषय न दया गया हो तो वि ट पद आ द ह होगा। जैसे-

UNIVERSITY (of Rajasthan).

UNIVERSITY (oxford-).

4. स मेलन उसके अंग (Conference and its organ): स मेलन को शीषक के

प म लखते समय उसके नाम म उसी श द या श द समूह को वि ट पद बनाया जायेगा जो

क उस स मेलन के वषय या अ य व श टता के े म स बि धत होगा। इसको एक वचन म लखा जायेगा।

LIBRARY (ALL India- Conference) (Varanasi) (1969).

स मेलन के अंग का भी उपक पन शासन एवं सं था के अंग के समान ह होगा जैसे- LIBRARY (ALL India- Conference) (Varanasi) (1969), RECEPTION (Committee)

39 5. पु तक आ या (Title as Heading): सामा यतया आ या म वि ट बनाई ह नह ं जाती, फर भी अलंका रक आ या व यि तवाचक आ या क अव था म तथा नयमांक MD61 के अ तगत आ या वि ट बनाने का नयम है। जैसे-

ANGLO ASSAMEES (dictionary etc.)

SCIENCE AND technology (Mc Graw Hill encyclopedia of-).

5. पु तकालय व ान के सामा य सू (General Laws of Library Science)

5.1 अथ नणय के सू (Laws of Interpretation)

रंगनाथन के अनुसार सूची सं हता एक व ध के समान है, इस लये इसके नयम क या या व ध नयम क तरह होनी चा हये। इसके एक नयम का दूसरे नयम के साथ व ह हो सकता है। लेख वारा उ प न नवीन सूचीकरण सम या का उ चत समाधान सूची सं हता

के नयम क उ चत या या वारा कया जाना चा हये। व व मक ि थ त के समाधान के

लये नयम म समय-समय पर अनुभव के आधार पर प रवतन कया जाना चा हये। अथ नणय के सू के अनुसार उपसू (Canons) तथा पु तकालय व ान के सू म व व क

ि थ त म उपसू को वर यता द जानी चा हये। पु तकालय व ान के सू के म य भी

सूचीकरण सं हता के कसी नयम क सरचना के स ब ध म संघष हो सकता है। पु तकालय व ान का पचम सू पु तकालय एक व नशील सं था है तथा मत य यता का सू एक मत रहते ह जब क अ य सू उनका वरोध करते ह। ऐसी अव था म अ य वक प के अभाव म रंगनाथन ‘िजतना उ तरकाल न नयम उतना ह अ धक भावकार' स ा त के योग क अनुसशा करते ह।

5.2. न प ता का सू (Law of impartiality)

यह सू नद शत करता है क य द शीषक के प म यु त होने के लये दो या

अ धक दावेदार ह तो उनम से एक को पया त आधार पर ह ाथ मकता द जानी चा हये न क वे छा के आधार पर।

उदाहरण के लये सहलेखक वारा र चत पु तक हेतु न प ता का सू पु तक के

सभी लेखक के नाम के शीषक म समान प से लखे जाने के अ धकार क अनुशंसा करता

है। इसी कार कसी पु तक क एक से अ धक काशक य ंथमालाय (Publishers Series) होने क ि थ त म सभी धमालाओं के नाम मु य वि ट के ट पणी अनु छेद म लखे जाने

तथा फल व प सभी थमालाओं के नाम पु तक नद श वि टय के शीषक म दये जाने

क अनुशंसा करता है।

5.3. सम म त का सू (Law of Symmetry)

यह स ा त ता वत करता है क '' दो स ताय (Entities) या प रि थ तयाँ

(Situations) िजनको सम म त त प (Symmetry Counterparts) क मा यता द गई हो, य द उनम से एक स ता अथवा प रि थ त को कसी वशेष संग म अ धक मह व दया

40 जाना है तो दूसर स ता अथवा प रि थ त को भी पहल के समान ह मह व दया जाना

चा हये। ''

उदाहरण के लये दो सहलेखक वारा र चत पु तक क मु य वि ट शीषक अनु छेद म दोन लेखक के नाम को पु तक म मुखपृ ठ पर दये गये म म अं कत कया जाता है।

फल व प लेखक पु तक नद श वि ट के शीषक अनु छेद म दोन लेखक के नाम मु य वि ट के शीषक अनु छेद म द त मानुसार अं कत कये जाते ह।

सम म त का सू लेखक के नाम म म प रवतन प के अ तगत भी वि ट बनाने

का सुझाव देता है।

5.4. मत य यता का सू (Law of Parsimony)

यह सू नद शत करता है क 'कसी वशेष ि थ त के लये दो या दो से अ धक वैकि पक नयम उपल ध ह तो उनम से उस नयम को ाथ मकता द जाये, िजसके वारा

जनशि त (Manpower), साम ी (Material), मु ा (Money) और समय (Time) सभी को

एक साथ वचार करते हु एऔर उपयु त मह व देते हु एसम मत य यता ा त होती हो। '' मत य यता के सू के कारण ह मृखला या म स तु लत भाव पड़ा, िजसके

कारण वग नद श वि टय क सं या म कमी आई।

वां छत शीषक के उपसू वारा ता वत नामा तर नदशीत वि टय तथा वग नदशी वि टय क सं या म भी कमी आई है।

ह त ल खत तथा टं कत वि टय हेतु बहु प क णाल (Multiple Card System) तथा मु त वि टय हेतु आधार प क णाल (Unit Card System) क अनुशंसा भी

मत य यता के सू के पालमाथ क जाती है।

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