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Dynamic Aspect of Mind

3. पराअहम् (super ego)

इदं (Id ) क उ पित मनु य के ज म के साथ ही हो जाती है | ॉयड इसे यि व का सबसे

मह वपूण िह सा मानता था | इसक िवषय व तु वे इ छाएं ह जो िलिबडो (यौन मूल वृित क उजा ) से स बं िधत है और ता कािलक सं तुि चाहती है | ऊजा क वृि इदं नह सहन कर पाता

और अगर इसे सही ढं ग से अिभ यि नह िमलती तब यह िवकृत व प धारण करके यि को

भािवत करता है |

अहम् (ego) ॉयड के िलए व-चेतना क तरह थी िजसे उसने मानव के यवहार का ि तीयक

िनयामक बताया | यह इदं का सं गिठत भाग है, इसका उ े य इदं के ल य को आगे बढ़ाना है |

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सुपर ईगो ( Super Ego ). इन तीन का व प एक-दूसरे से िभ न ह | इसिलए इनके बीच सदा

सं घष चलते रहते ह | ये सं घष चेतन, अध चेतन एवं अचेतन तीन तर म चलते रहते ह इस सं घष का भाव यि व के िवकास पर पड़ता है | यि के सामा य तथा असामा य दोन कार के

यवहार म संघष का बहत बड़ा हाँथ रहता है | इसी कारण यि व के सं गठन म प रवतन होता है | परा अहम् एक कार का यवहार ितमानक होता है, िजससे नैितक यवहार िनयोिजत होते ह | इसका िवकास अपे ाकृत देर से होता है |

i इड ( Id )

मन के ग या मक पहलू का पहला भाग इद कहलाता है | ब च म केवल इड ही रहता है |ईगो तथा

सुपर-ईगो का िवकास मशः बाद म होता है | इड के व प पर काश डालते हए रचाड ड लू.

नाइस (Richard W. Nice) ने िलखा है - ‘इड मन का अस श आिदम भाग है िजसम ज मजात

ेरणाएँ, मूल वृितयाँ, इ छाएँ, अिभलाषाएँ रहती ह जो उिचत माँग और िनयं ण से मु रहती ह | सरल श द म कहा जाता है िक इड हमल गो के अंदर पशुवत एवं बं धनमु ेरणाएँ ह | ॉयड के

अनुसार इड क िन निलिखत िवशेषताएं ह –

1. इड जीवन तथा मृ यु क वृितय का भं डार है – मूल वृित एक शि है जो सभी

कार क ि याओ ं को उ प न करती ह | मूल वृित मु यतः दो कार क होती ह – जीवन तथा मृ यु मूल वृित. जीवन मूल वृित के कारण रचना मक ि याएँ उ प न होती ह एवं मृ यु मूल वृित के कारण िव वंसा मक ि याओ ं क उ पि होती है | इड म ये दोन मूल वृितयां िव मान रहती ह | अतः इड के कारण ही यि रचना मक एवं िव वंसा मक

ि याओ ं को करने के िलए इ छुक होता है | इन ि याओ ं को करने का एकमा उ े य सुख क ाि है | इसिलए इड को इ छाओ ं क जननी कहा जाता है |

2. इड को समय एवं वा तिवकता का ान नह रहता है - इड को न तो समय का ान रहता है और न ही वा तिवकता का | समय तथा वा तिवकता पर िबना िवचार िकये ही

वह अपनी इ छाओ ं क पूित चाहता है | सुख तथा आनंद क तृि के िलए इड ऐसी

ि याओ ं को भी करना चाहता है जो समय एवं वा तिवकता के ितकूल है | इसे अपने

काय क प रणाम क िचं ता नह होती है |

3. इड म तािकक दोष होता है – अपनी इ छा क तृि म इड तक को कोई थान नह देता

है | वह इस बात क ओर यान नह देता है िक अमुक ि या को करने का सुअवसर है

अथवा नह |

4. इड पूणतः अचेतन है – इसम चेतना का अभाव होता है | यह अचेतन प से अपनी

इ छा क पूित चाहता है |

5. इड सुख के िनयम ारा िनदिशत है – इड क सदा एक ही इ छा होती है – आनं द क

ाि . िजस ि या ारा भी सुख अथवा आनंद क ाि क संभावना होती है, इड उस

ि या को करने के िलए त पर हो जाता है चाहे वह नैितक हो या अनैितक, सामािजक हो

या असामािजक, समय एवं थान के अनुकूल हो या ितकूल |

6. ज म के समय ब चा पूणतः इड से भािवत रहता है – ब चे के ज म के समय केवल इड रहता है | इसिलए वह सभी इ छाओ ं क तृि करना चाहता है | उसे समय एवं

वा तिवकता का ान नह रहता है

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ii ईगो ( Ego )

ईगो मन के ग या मक पहलू का दूसरा भाग है | यह यि व का वह भाग है िजसका स ब ध वा तिवक जगत से रहता है | ॉयड ने उसे वचेतन बुि ( Self-Conscious ) कहा है य िक यह काय को सोच समझ कर करता है | चूँिक ईगो को वा तिवकता का पूण ान रहता है इसिलए वह इड और सुपर-ईगो के बीच सं तुलन थािपत करता है | इसिलए यह भी कहा जाता है िक ईगो दो

विमओ ं का दास है िज ह एक साथ खुश करता है, य िप दोन क इ छाएँ िवपरीत रहती ह (The Ego is a servant of two masters with clashing interests ). इस बात का समथन करते

हए रचाड ड लू. नाइस (Richard W. Nice) ने िलखा है – “ईगो यि व का वह भाग है जो

एक तरफ जो बा जगत के सं पक म रहता और दूसरी ओर इड के संपक म. वह िवचार,िनणय, या या और यवहार को वा तिवक जीवन के अनुसार यावहा रक एवं कुशल बनाने का यास करता है |” ॉयड के अनुसार ईगो क िन निलिखत िवशेषताएं ह –

1. ईगो को समय एवं वा तिवकता का ान रहता है - ईगो को बा जगत का पूण ान रहता

है | वह वा तिवकता क जिटलता को समझता है | िकस काय को, िकस समय तथा िकस थान पर करना चािहए, इसक जानकारी ईगो को रहती है | उिचत अवसर िमलने पर वह इड क इ छाओ ं क पूित होने देता है और उिचत अवसर नह िमलने पर उसक पूित नह होने देता है | 2. ईगो तािकक दोष से वं िचत रहता है –िकसी इ छा क तृि के पहले ईगो उसके प रणाम पर

िवचार कर लेता है िक ऐसा करने म उसे लाभ है या हािन. यिद लाभ क सं भावना होती है, तो

उस इ छा क तृि होने देता है और यिद हािन क सं भावना होती है, तो उसक पूित नह होने

देता है | द नो हालात म यि क वा तिवकता क ओर से कोई खतरा नह रहता है |

3. ाणी और वातावरण के बीच ईगो समायोजक का काम करता है – ईगो यि के सभी

यवहार को िनयं ि त एवं संचािलत करता है | येक काय के प रणाम को गं भीरतापूवक सोचता है और अनुकूल अवसर आने पर इड ारा उ प न इ छाओ ं क तृि होने देता है | इड क अनैितक एवं असामािजक इ छाओ ं तथा वा तिवकताओ ं क जिटलताओ ं के बीच समझौता करता है | इसी समझौता के फल व प यि म संतुलन थािपत हो पाता है | 4. ईगो का स ब ध नैितकता से नह होता है – ईगो यह नह जानता िक कौन सा काय नैितक है

या कौन सा काय अनैितक | वह केवल इतना जनता है िक िकस काय को करने का अभी

अवसर है और िकस काय को करने का अभी अवसर नह है |अवसर िमलने पर वह अनैितक एवं असामािजक काय को भी कर लेता है, इसके िलए उसे दुःख या पछतावा नह होता है | इस

कार ईगो को हम अवसरवादी भी कह सकते ह | iii पराहं / सुपर ईगो ( Super Ego )

सुपर-ईगो मन के ग या मक पहलू का तीसरा और अंितम भाग है | वह आदश क जननी है | पराहं

वा तिवकता के समाजीकृत भाव का प रणाम होता है | पराहं म प रवार एवं सं कृित ारा

नैितकता एवं मू य आिद के बारे म बतलाये गए सभी तरह के उपदेश सि मिलत होते ह | यहाँ सभी

उपदेश एवं िश ा का आ तरीकरण इस ढं ग से हो जाता है िक उसम अहं आदश (Ego Ideal) का

िनमाण होता है | पराहं म अंतःकरण एवं िववेक भी सि मिलत होता है िजसके कारण यि एक पूण

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एवं सामािजक प से समायोजी यवहार िजसका िवरोध उपाहं (Id) ारा िकया जाता है, कर पाता

है |

पराहं (Super Ego) के व प पर काश डालते हए नाइस ने िलखा है िक – “पराहं यि व का

वह भाग है िजसे िववेक कहा जाता है | यह हम स य मानव क तरह यवहार करना िसखाता है | इस तरह वह इड क असं गत इ छाओ ं क पूित म बाधा डालता है |”

1. पराहं मु यतः चेतन है – इसे वा तिवकता का पूरा ान रहता है |

2. पराहं आदश का भं डार है – इसका स ब ध जीवन के आदश एवं आचरण से होता है ठीक इसके िवपरीत उपाहं (Id) यि को बुरे काय क ओर ढकेलता है जबिक पराहं उन काय से

बचा कर अ छे काय क ओर े रत करता है |

3. पराहं का िनमाण एक समाज म होता है – सामािजक बंधन और िनयम के कारण ही सुपर - ईगो का िनमाण होता है | सामािजक वातावरण से अलग रहकर सुपर-ईगो का िवकास सं भव नह है | यही कारण है िक जानवर म सुपर-ईगो का िवकास नह होता है |

4. पराहं का स ब ध नैितकता से होता है – यह पूणत: नैितकता पर आि त होता है | इस कार यह एक ओर इड से िभ न है िजसको नैितकता का ान नह है, और दूसरी ओर ईगो से िजसको

नैितकता का ान तो है लेिकन उसके अनुसार वह काय नह करता है | पराहं िकसी भी मू य पर अनैितक एवं असामािजक इ छाओ ं क पूित के िलए राजी नह हो सकता |

5. पराहं से ही पछतावा एवं दोष क भावना उ प न होती है – यि के सभी काय पर पराहं

का ितबंधक रहता है | वह अनैितक या असामािजक काय को नह होने देता है | यिद यि

ऐसे काय को िकसी कारण से कर लेता है तो उसे बाद म पछतावा पराहं के कारण ही होता है | पराहं के अभाव से गलत काम करने के बाद भी यि अपनी भूल वीकार नह करेगा और न ही इसके िलए पछताएगा |

iv उपाहं (Id), अहं (Ego) एवं पराहं (Super-Ego) के बीच स ब ध

उपाहं (Id), अहं (Ego) एवं पराहं (Super-Ego) क उपयु या या से प है िक वा तिवकता

के एक छोर पर है तथा अहं इन दोन के म य म है | ाउन महोदय ने तीन के पार प रक सं बं धो पर काश डालते हए कहा है – “इड जैिवक प से अनुकूिलत है | ईगो ाकृितक िनयम के अनुसार अनुकूिलत है लेिकन सुपर-ईगो मु य प से सामािजक एवं सां कृितक प से अनुकूिलत है |”

उपाहं क सभी माँग को समाज नह वीकार करता है और यि पराहं के सभी आदश क पूित नह कर सकता है | ऐसे हालात म यि का सं तुलन िबगड़ने लगता है और वह मानिसक सं घष का

िशकार बन जाता है | यि के सं तुलन को कायम रखने तथा सं घष को दूर करने के िलए अहं दोन के बीच समझौता करता है | अहं के दुबल होने के कारण यि मानिसक रोग का िशकार बन जाता

है | लेिकन, अहं के बल होने के ि थित म वह उपाहं तथा पराहं को िनयं ि त करके यि म सं तुलन कायम करता है | इसी तरह अहं क दुबलता क ि थित म यि ं से पीिड़त हो कर मानिसक िवकृितय का िशकार ही जाता है | अहं िजस हद तक बल होता है, यि का जीवन उसी हद तक सं तुिलत एवं समायोिजत होता है |

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3.8 सारां श

असामा य मनोिव ान के अ ययन म एक अ यं त मह वपूण प के प म हम सभी मन एवं उसक सं रचना को समझने का यास या मनोिव े णा मक मनोिव ान के तहत सव थम ॉयड के ारा

सं प न िकया गया | उ ह ने सव थम मन को अकारा मक प एवं ग या मक प के प म बाँट कर असामा य ल ण को वै ािनक तरीके से िव ेिषत िकया | इसम उ ह ने अकारा मक प के

अंतगत चेतन, अध-चेतन एवं अचेतन भाग म बाँट कर मानिसक िवचार एवं ि याओ ं को समझने

का यास पहली बार िकया | मन के ग या मक प के अंतगत उ ह ने मानिसक वृित एवं िवचार को उपाहं ( Id ), अहं ( Ego ) एवं पराहं ( Super-Ego ) के अंतगत सामा य एवं असामा य यवहार का पहली बार अ ययन िकया | इस तरीके के ारा मानिसक यवहार एवं ि याओ ं का

अ ययन असमा य यि य के यवहार या मानिसक रोिगय क िचिक सा के दौरान सामने आया|

इससे मनोिव ेषणवाद क नयी शाखा क उ पि हई. काला तर म अ य मनोवै ािनक ने इस मनोिव ान क धारा का उ रोतर सुधार एवं िवकास िकया | िजसके प रणाम व प मनोिव ान के

अंतगत नैदािनक मनोिव ान एवं मनोरोग िव ान पी नयी शाखा क उ पि हई.

3.9 किठन श दावली

इदम् या इड (Id) : ॉयड के अनुसार, मानस का वह आवेगी एवं अचेतन अंश जो

मूल वृिनक अंतन द के प रतोषण क ओर सुखे सा -िसणं त के मा यम से ि याशील होता

है । इड ही वा तिवक अचेतन या मानस का गहनतम अंश समझा जाता है ।

आदश अहम् (Ideal self) : िजस कार का यि हम बनना चाहगे । इसे अहमादश या

आदश कृत आ म भी कहा जाता है ।

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तदा मीकरण या तादा य (Identification) : सामा यतः िकसी दूसरे यि को

अिधक पसंद करने या अ यिधक स मान देने के फल व प अपने को उस यि क तरह समझने/ महसूस करने क ि या।

काम सुि काल (Latency period) : ॉयड क मनोलिगक अव थाओ ं के िसणं त म लिगक अव था और प रप व जननां गीय अव था के बीच क अविध (4-5 क आयु से

लेकर 12 क आयु तक) िजसम ‘काम’ के ित कम अिभ िच रहती है ।

कामशि या िलिबडो (Libido) : ॉयड ने इस पद को ब तािवत िकया । ॉयड क

िवचारधारा म िलिबडो कामुकता क य या अ य अिभ यि मा थी ।

मनो िसत-बा यता िवकार (Obsessive-compulsive disorder) : ऐसा िवकार

िजसम बामयताओ ं या मनो ि तय के ल ण पाए जाते ह ।

इिडपस मनो ंिथ (Oedipus complex) : ॉयड ारा बदन सं ब यय िजसम िकशोर अपने िलं ग के माता-िपता का थान लेने क तथा िवपरीत िलं ग के माता-िपता का वही

नेह पाने क उ कृ इ छा िवकिसत कर लेता है ।

मनोगितक उपागम (Psychodynamic approach) : एक उपागम जो अिभबेरक या

अंतन द के अनुसार यवहार क या या करने का यास करता है ।

(Conflict) : पर पर-िवरोधी अिभ ेरक , अंतन द , आव यकताओ ं या ल य से

उ प न हए िव ोभ या तनाव क दशा।

अहं (Ego) : यि व का वह अंश जो इदम् और बां जगत के बीच अंतर धी का काय करता है ।

झाड़फूंक या भूत अपसारण (Exorcism) : िकसी ‘आ मा त’ यि से दु ा माओ ं या शि य को िनकाल भगाने के िलए अिभकि पत माम- े रत उपचार िविध ।

युि करण (Rationalisation) : एक र ा युि जो तब घिटत होती है जब यि अपनी

असफलताओ ं या किमय क या या अिधक वीकाय कारण पर गुणारोिपत करके करता

है ।

िति या-िनमाण (Reaction formation) : एक र ा युि िजसम यि िकसी

अननुमोिदत अिभ ेरक के ितकूल अिभ ेरक को सश अिभ यि देकर उस अिभ ेरक को नकारता है ।

ितगमन (Regression) : एक र ा युि िजसम यि अपने जीवन क िकसी पूव अव था के यवहार को अपना लेता है । यह पद सांि यक म भी यु होता है, जहाँ

सहसं बंध क सहायता से पूवकथन िकया जाता है ।