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उपागम-प रहार सं घष (Avoidance-Avoidance Conflict)

Characteristics of Mental Mechanism

2. उपागम-प रहार सं घष (Avoidance-Avoidance Conflict)

इस तरह के सं घष यि के सामने ल य तो एक ही होता है पर तु उसके ित पर परिवरोधी भाव उसम उ प न हो जाते ह । इस ल य पर वह पहँचना भी चाहता है तथा साथ ही साथ उससे दूर भी

रहना चाहता है । इस तरह के सं घष अ य सं घष क अपे ा अिधक घातक होता है ।

अब यह प है िक यि के सामने एक ही ल य है िजसे वह ा करना भी चाहता है ;धना मक मान तथा िजसे वह दूर रहना भी चाहता है (ऋणा मक मान) उदाहरणाथ, यिद िकसी यि को

एक ऐसी नौकरी िमल रही हो िजसे वह काफ पस द करता है य िक उसका वेतनमान अिधक है

पर तु वह उसम जाना नह चाहता है य िक उसम दूर-दूर के ामीण इलाक म जा जाकर लोग से

स पक थािपत करना आव यक है । इस तरह क सं घष क ि थित उपागम.प राहार सं घष क

ि थित होगी ।

3. प रहार-प रहार सं घष (Avoidance-Avoidance Conflict)

इस तरह के सं घष म यि दो ऋणा मक ल य के बीच िघर जाता है । वह इन दोन ल य या

इ छाओ ं से दूर रहना चाहता है िफर भी इन दोन म से िकसी भी पूित के प म िनणय लेना ही पड़ता

है । िजससे उसम संघष उ प न होता हे यहाँ यि दो ऋणा मक ल य के प म िनणय य न लेए उसे कुप रणाम का सामना करना ही पड़ता है । मनौवै ािनक ने इस तरह क प रि थित को इधर ख दक उधर खाई से उपमा देकर तुलना िकया है । यि न तो ख दक म जाना चाहता है और न खाई म ही िगरना चाहता है । परंतु उसे िकसी एक म जाने का िनणय लेना ही पड़ता है । जैसे यिद

िकसी िव ाथ को रसायनशा तथा भौितक शा म से िकसी को अपने अ ययन िवषय के प म चुनना पड़े जबिक दोन िवषय उसे काफ किठन तथा नीरस लगता हो तो उससे उ प न सं घष को

प रहार-प रहार सं घष कहा जाता है ।

4. ि उपागम-प रहार सं घष (Double-Approach Conflict)

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इस तरह से सं घष म दो (या कभी-कभी दो से अिधक भी) धना मक एवं दो ऋणा मक ल य यि

को एक साथ अपने.अपने और ख चने लगते ह । जीवन क अिधकां श प रि थितयाँ इसी कार क होती है िजसम यि को कई धना मक एवं ऋणा मक ल य का सामना एक साथ करना पड ता है।

ऐसी प रि थित म उ प न संघष को ि उपागम - प रहार सं घष (Double-Approach Conflict) या बह उपागम - प रहार संघष भी कहा जाता है । प है िक ऐसी प रि थित म म यि कम-कम- से कम दो धना मक ल य एवं दो ऋणा मक ल य के बीच होता है और ये सभी ल य अपनी- अपनी पूित एक साथ चाहते ह । इस एक उदाहरण ारा इस कार समझाया जा सकता है । मान लीिजए िक एक नौकरी पेशा मिहला है िजसक शादी उसके मनपस द पर तु बेरोजगार युवक से से

होने वाली है । पर तु प रि थित कुछ ऐसी है िक शादी के बाद उस मिहला को अपना शहर छोड़कर अपने पित के साथ रहने के िलए जाना आव यक है । अब इस उदाहरण पर गौर कर । मनपसंद युवक के साथ शादी करना एक धना मक ल य है तथा दूसरा धना मक ल य है नौकरी । इस उदाहरण म पहला ऋणा मक ल य शादी के बाद नौकरी छोडना, तथा दूसरा ऋणा मक ल य अपने पित क बेरोजगारी है । इस तरह से दोन धना मक ल य एवं दोन ऋणा मक ल य मिहला को अपनी-अपनी

िदशा म सोचने के िलये बा य कर रहे ह िजससे मिहला म जो संघष उ प न होगी उसे ि उपागम- प रहार ल य कहा जायेगा ।

इस तरह से हम देखते ह िक िकसी भी यि को अपने जीवन.काल म िभ न-िभ न तरह के सं घष से

जूझना पड़ता है । एक सामा य यि इन सं घष का उिचत समाधान तुरंत ढूं ढ लेता है पर तु जब वह

िकसी कारण से ऐसा नह कर पाता है तो इससे उसम तनाव क ि थित ल बे समय तक बनी रहती है

िजससे उसम असामा य यवहार के ल ण िदखलाई पडने लगते ह ।

9.3.3 मानिसक संघष का समाधान (Resolution of Mental Conflicts)-

मानिसक सं घष का समाधान यि चेतन तर तथा अचेतन तर पर करता है । जब वह मानिसक सं घष का समाधान चेतन- तर पर करता है तो वह तक-िवतक करते हए सं घष के प -िवप म सोचता है और अ त म वह उसका एक िनि त समाधान पर पहँच जाता है । चेतन- तर पर सम याओ ं का समाधान काफ आसान होता है ।

जहाँ तक अचेतन- तर पर मानिसक सम याओ ं का समाधान का है यह चेतन- तर पर होने वाले

समाधान से िभ न होता है । इस तरह के समाधान म यि संघष के बारे म तक-िवतक नह करता है

बि क उसका अहं (ego) कुछ इस कार के र ा मक उपयोग को अपनाता है िजससे सं घष का

समाधान अपने-आप हो जाता है । इसिलए उ ह अहं-सुर ा युि याँ (Ego defense Mechanism) या र ा मक युिकतयाँ या मानिसक मनोरचनाएँ भी कहा जाता है । ाय: अहं

मानिसक सं घष का समाधान युि सं गत तरीक से करना चाहता है पर तु जब वह ऐसा नह कर पाता

है तो कुछ अयुि सं गत तरीक को अपनाता है तािक वह उन सं घष का समाधान कर सके एवं

यि का मानिसक सं तुलन बना रह ।

इन अयुि सं गत तरीक को वह अहं र ा युि याँ (Ego-defense mechanism) कहा जाता है । ऐसी र ा युि य क िन नांिकत दो िवशेषताएँ होती ह |

1 र ा युि याँ या अहं-र ा युि याँ अचेतन तर पर काम करती है । अतः वे आ म- ामक होती है ।

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2 र ा-युि याँ वा तिवकता के य ण को िवकृत कर देती ह । इसिलए मानिसक सं घष से

उ प न िच ता अपने आप समा हो जाती है ।

मनोवै ािनक ने कई र ा.युि य का वणन िकया है िज ह मूलतः दो भाग म बाँटकर अ ययन िकया

गया है |

ाथिमक मानिसक मनोरचनाएँ (Primary Mental Mechanism) गौण मानिसक मनोरचनाएँ (Secondary Mental Mechanism) ाथिमक मनोरचनाएँ

इस ेणी म आने वाले मु य मनोरचनाएँ िन नांिकत ह | 1. दमन (Repression)-

ॉयड ारा वणन िकये गये मनोरचनाओ ं म दमन सबसे मुख मनोरचना है । दमन एक ऐसी

मनोरचना है िजसके ारा िच ताए तनाव एवं सं घष उ प न करने वाली असामािजक एवं अनैितक इ छाओ ं को चेतना से हटाकर यि अचेतन म कर देता है । दमन क यह ि या भी अचेतन प से ही होती है । इेसे पेज (1947) ने इसे इस कार प रभािषत िकया है क कर या अनैितक होने के

कारण यि को िव ु ध करने वाले िवचार या इ छाएँ जब वतः ही यि के चेतना से हट जाते ह तो दमन क सं ा दी जाती है । इस प रभाषा से यह प है िक दमन एक ऐसी वतः होने वाली

मानिसक ि या है िजनके ारा क कर एवं अनैितक िवचार यि के चेतन से हट जाते ह । जब यि क कोई इ छा होती है जो असामािजक एवं अनैितक होती है तो वह अहं तथा परां ह को

मा य नह होता है । फल व प अहं अचेतन तर पर ऐसी इ छाओ ं को चेतन तर से हटा देता है

िजसे हम दमन कहते ह । जैसे यिद कोई यि अपनी भाभी से यौन स ब ध थािपत करने क इ छा

रखता है तो इस तरह क अनैितक इ छा को यि का अहं तथा पराहं कभी पूरा करने क अनुमित नह देगा । फल व प ऐसी इ छा का वतः ही दमन हो जायेगा । इसी तरह के अनेक अनैितक एवं

असामािजक इ छाओ ं का उदाहरण िदया जा सकता है िजसं अहं के िलए पूरा करना सं भव नह है । फलतः उनका दमन कर िदया जाता है । ऐसी अनैितक एवं असामािजक इ छाओ ं का जब अचेतन म दमन कर िदया जाता है तो वे वहाँ िनि य नह रहती बि क हमेशा चेतन म आने क कोिशश करती रहती है । वे व न तथा दैिनक जीवन के िभ न-िभ न कार क भूल के प म अचेतन से

चेतन म अिभ य होती है ।

2. यौि करण (Rationalization) -

यौि करण एक ऐसी ि या हे िजसम अयुि सं गत अिभ ेरक एवं इ छाओ ं से उ प न मानिसक सं घष या तनाव का समाधान उन अिभ ेरक एवं इ छाओ ं को युि सं गत बनाकर अथात तकपूण एवं िववेकपूण या या कर िलया जाता है । इस तरह से योि करण म यि अपने अयुि सं गत यवहार को एक युि सं गत एवं तकसं गत यवहार के प म प रणत कर अपने आप एवं दूसर को

सं तु कर अपना मानिसक सं घष दूर करने क कोिशश करता है । जेली तथा जाईलर 1984 ने

यौि करण को प रभािषत करते हए कहा है िक यौि करण एक ामक िववेक है । िजसम वयं एवं

दूसर के सामने िकसी अयुि सं गत यवहार को अिधक युि सं गत एवं तकसं गत यवहार के प म उपि थत िकया जाता है ।

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इससे प है िक यौि क करण म यि कुछ ऐसी युि य का सहारा लेता है िजनसे अनुिचत या

अवां छनीय ेरणाओ ं के अधीन होकर िकये गये यवहार को वह युि सं गत एवं तकसं गत िस करत देता है । जैसे मशहर ऐशोप क पौरािणक कथा म जब लोमड़ी अंगूर के वृ तक पहँचने म असमथ रहती है तब कहती है अंगूर ख े ह । यौि करण के उदाहरण दैिनक जीवन मे भी काफ

िमलता है । परी ा म असफल हो जाने पर िव ाथ अ सर यह कहता है िक िपता जी अ छे

िकताब को खरीदने के िलये समय पर पैसा नह िदये गये थे या िश क परी ा म पूछे गये से

सं बं िधत पाठ्य म को तो पढ़ाया ही नह था । यौि क करण दो कार के होते ह |

1 सावर - े स टाईप (Sour-Grapes type) म यि उस व तु या यि म दोष ढूँढ़ता

है या उसे कलं िकत करता है िजसे ा करने म उसे असफलता िमलती है िकसी युवक को

जब अपने मनपसंद क सुंदर लड़क से शादी नह हो पातीए तो वह युवक अ सर यही

कहता है लो अ छा हआख् उससे भी अिधक सं दर लड़क िमलने का एक रा ता खुल गया । अंगूर ख े ह क पौरािणक कथा (Fable)भी यौि क करण के इसी ेणी म आती है।

2 वट -लेमन टाईप (Sweet- Lemon type) इस तरह के यौि क करण म यि

अपनी तु छ व तु को दूसरे क क मती चीज क तुलना म े अ छा मािणत करके

अपने तु छ के होने से उ प न िच ता या संघष को दूर करता है । जैसे अपनी झ पड़ी दूसरे के

महले से भली तथा अपनी सूखी रोटी दूसरे के हलवे से अिधक वािद होती है जैसी

युि याँ यौि क करण के इस ेणी के उदाहरण है ।

3. िति या िनमाण (Reaction Formation): इस मनोरचना म यि अपने अहं

को िकसी क कर एवं अि य इ छा तथा ेरणा के ठीक िवपरीत इ छा या ेरणा िवकिसत कर बचाता है । एक र ा मक ि या के प म िति या िनमाण के िवकास म दो चरण सि मिलत होते ह । पहले चरण म यि अपनी अि य एवं क कर िवचार एवं इ छाओ ं को अचेतन म दमन कर देता हे तथा दूसरे चरण म वह इन दिमत इ छाओ ं एवं िवचार के

ठीक िवपरीत इ छा चेतन तर पर य कर अपने तनाव को दूर करता है । िति या

िनमाण के अनेक उदाहरण हम दैिनक जीवन म िमलते ह । जैसे ेम करने म असफल हो

जाने पर अपनी ेिमका या ेमी से घृणा करना, नेता ारा ाचार के िवरोध म भाषण देना तथा च र हीन यि ारा च र -सं बं ध बात पर तरह-.तरह से मुँह बनाना आिद कुछ

िति या िनमाण के मुख उदाहरण है । हमारे दैिनक जीवन म िति या िनमाण क अिभ यि कुछ मुख लोकोि य ारा जैसे सौ चूहे खाकर िब ली हज को तथा मुँह म राम बगल म छूरी से भी होता है ।

4. ितगमन (Regression) : ॉयड ारा बतलाये गये मनोरचनाओ ं म ितगमन भी एक मुख मनोरचना है । ितगमन का योग करीब-करीब इसी अथ म हआ है । जब कोई वय क अपनी इ छाओ ं, ेरणाओ ं एवं यवहार को बा याव था क इ छाओ ं, ेरणाओ ं एवं यवहार के अनुकूल बना लेता है तो इसे ितगमन क सं ा देते ह । एक वय क जब एक ब चा के समान यवहार करने लगता है या बचकाना ढं ग से अपनी इ छाओ ं एवं

ेरणाओ ं क अिभ यि करता है तो उसक इन इ छाओ ं से सं बं िधत मानिसक िच ता तथा

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तनाव अपने आप थोड़ा कम हो जाता है । जेली तथा जाईगलर (Hjelle & Ziegler, 1981) ने इस कार प रभािषत िकया है ितगमन मे मनोलिगक िवकास के के ारि भक अव था या अिभ यि क कुछ ऐसे तरीक जो साधारण एवं बचकाना होते ह क और उलटाव पाया जाता है ।

इस प रभाषा से प है िक ितगमन म मानिसक सं घष तथा तनाव के समाधान के िलये यि म बा याव था के यवहार क ओर पलटने क वृि अिधक होती है । इसके भी कई उदाहरण हमारे

दैिनक जीवन म िमलते ह ।

ितगमन के सामा यतः दो प होते ह .

1 अहं ितगमन (Ego Regression) :

ितगमन म यि अपने जीवन क जिटल एवं सं घषमय प रि थितय से उ प न तनाव को कम करेन के िलये कुछ उन व तुओ ं से आन द ा करने क वृि िदखलाता है । िजन व तुओ ं से ायः

ब चे आन द ा करते ह है जैसे, िकसी ौढ़ यि ारा पतं ग उड़ाना, गोली खेलना तथा गु ली- डं डा खेलना आिद कुछ अहं ितगमन के अ छे उदाहरण है ।

2 यौन ितगमन (Libido Regression):

इस ितगमन म यि अपने काम सं बंधी वृि य क सं तुि बा याव था क तरह क काम वृि य को अपनाकर करता है जैसे ौढ़, मिहला ारा गुड्डे.गुिडय ए क शादी करवान का खेल खेलना, अंगूठा चूसना तथा अ सर दाँत तले टॉफ चबाना आिद यौन ितगमन के कुछ उदाहरण है।

मानिसक संघष या अंत को दूर करने का यह तरीका यि य अपनाता है ? इसका उ र देते हए मनोवै ािनक कहा है िक मानव जीवन क सबसे सुखी अव था बा याव था है जहाँ ब चा को न तो कोई िवशेष िच ता होती है और ना ही उनक इ छाओ ं क तृि म कोई बाधा होती है । लेिकन जब िवकास के म म वह किठनाईय एवं बाधाओ ं का सामना करता है और जब उन सबका

समाधान करने म वह सफल हो जाता है तो वह इससे उ प न मानिसक पीड़ा को दूर करने के िलए बा याव था क ओर मुड़ जाता है और ब च जैसा यवहार करने तथा इ छाओ ं क अिभ यि

कर के उसे पुनः सुख क अिभ यि होने लगती है । 5. उदा ीकरण (Sublimation) -

मानिसक सं घष को दूर करने म उदा ीकरण का भी मह वपूण हाथ होता है । इस मनोरचना म यि

दिमत इ छाओ ं क पूित समाज ारा वीकृित रचना मक ि याओ ं के प म करता है । इसम यि

अपनी असं तु इ छाओ ं क पूित समाज ारा वीकृत ल य या उ े य के प म ित थािपत करके करता है । जब यि क इ छा कुछ बाधाओ ं एवं अवरोध के कारण सं तु नह हो पाती है

तो वह अचेतन म दिमत हो जाती है और यि िफर उस दिमत इ छाओ ं क पूित समाज ारा

वीकृत ल य एवं उ े य को ा करके करता है । सारासन (Sarason 1972) ने उद ीकरण को

इस कार प रभािषत िकया है, जब वृि य क सं तुि सीधा तरीका से होना अव हो जाता है

तो सामािजक प से लाभदायक थानाप न । के प म उसक सं तुि क जाती है िजसे उदा ीकरण कहा जात है । इस प रभाषा से यह प है िक उदा ीकरण म यि क वैसी इ छाएँ जो सीधे तौर