Psychoanalytic and Behaviorist Approach
4.5 अ यास
4.5.1 र थान 4.5.2 िनबं धा मक 4.5.3 उ र 4.6 सं दभ थ सूची
4.1 तावना
असामा य यवहार के व प क या या एवं उपचार करने के िलए यवहारवादी िवचार धारा क उ पि एक मह वपूण कूल यवहारवाद (Behaviourism) कहा जाता से हई । इस म इस बात पर बल डाला जाता है िक सभी ाणी, पयावरण ारा सीखते है एवं गत सहचय के आधार पर भिव य के बारे म सीखते है । पयावरण म बदलाव आने पर ाणी म भी बदलाव आता है ।
दूसरी ओर िसगम ड ॉयड ने यि व के िस ा त का ितपादन िकया उसे मनोवे ौिषक उपागम कहा जाता है । यह उपागम मानव कृित या वभाव के बारे म कुछ मूल पूवक पनाएँ पर आधा रत है ।
4.2 उ े य
इस पाठ को पढ़ने के बाद इन के उ र दे सकगे |
मनोवै ेिषक उपागम या है ?
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यवहारवादी उपागम या है ?
यि कैसे सीखता है?
कब सीखता है?
आिद मूल के उ र देने म स म ह गे ।
4.3 प रभाषा एवं या या
4.3.1 यवहारवादी उपागम (Behaviouristic Approach)
जैसा िक नाम से ही प है, असमा य यवहार के व प क या या एवं उपचार करने के िलए यावहारवादी िवचारधारा क उ पि मनोिव ान का एक मह वपूण कूल िजसे यवहारवाद (Behaviourism) कहा जाता है,से हआ है । यह कूल अमे रका तथा स के शैि क मनोिव ान (academic psychology) पर करीब 1920 से 1960 वाले दशक तक हावी रहा और अपना
िव तृत छाप उस पर छोड़ा। इस कूल ने न केवल असामा य यवहार क या या ही िकया बि क अ य े म भी मह वपूण योगदान िकया । य िप यवहारवाद का औपचा रक थापना तो वाटसन (Watson) ारा िकया गया था परंतु इसम पैवलव, मीथ, थानडाइक आिद मनोवै ािनक क भी
सराहनीय भूिमका रही है । यवहारवाद क तीन मह वपूण पूवक पना है जो असामा य मनोिव ान पर सीधे लागू होटी है । वे तीन पूवक पनाओ ं पर यहाँ िवचार करना होगा ।
1. पयावरणवाद (Environmentalism)- यहाँ इस बात पर बल डाला गया है िक सभी
णी ;अथात मनु य तथा पशु दोन ही पयावरण ारा िनधा रत होता है । हमलोग अपने गत साहचय के आधार पर भिव य के बार म सीखते ह । यही कारण है िक हमलोग का
यवहार दं ड तथा पुर कार ारा यवि थत िकया जाता है । पुर कृत यवहार को हम भिव य म करना चाहते ह तथा दंिडत यवहार को नह करना चाहते ह ।
2. योगवाद (Experimentalism)- यह पूवक पना का सं बंध इस बात से है िक योग के
मा यम से यह पता लगाया जा सकता है िक पयावरण के िकस पहलू से यवहार भािवत होता है तथा िकस तरह हम उसे प रवितत कर सकते ह । अगर पयावरण के मह वपूण त य को रोक िलया जाता है, यवहार क वतमान िवशेषता समा हो जाएगी और अगर मह वपूण त य को पुन थािपत कर िदया जाता है, तो यवहार क वतमान िवशेषता
पुनवापस आ जाता है ।
3. आशावाद (Optimism)- यह पूवक पना का सं बं ध प रवतन से है । अगर यि
पयावरण का ितफल है और अगर वातावरण का वह सब पहलू जो उसे प रवितत िकया
है, को योग ारा ात िकया जा सकता है, तो पयावरण म कभी प रवतन होने से यि म भी प रवतन होगा ।
ये तीन पूवक पनाओ ं का उपयोग असामा य यवहार क या या म य प से क गयी है | पहला, सामा य तथा असामा य यवहार को गत अनुभूित से सीखा जाता है । जब यि अपअनुकूिलत अिजत आदत को सीख लेता है तो उससे उसम असामा य यवहार क उ पि होती है । दूसरा हमलोग योग करके यह िनधा रत कर सकते ह िक पयावरण के
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िकस पहलू से असामा य यवहार क उ पि होती है । तीसरा अगर हम लोग पयावरण के
इन पहलूओ ं को प रवितत कर देते ह यि अपने पुराने कुसमायोजी यवहार को याग देगा और उसक जगह पर नए समायोजी यवहार को सीख लेगा ।
उ त य का सार यह है िक यवहारवादी िवचारधारा के अनुसार कुसमायोजी यवहार या
असामा य यवहार के दो मु य कारण होते ह |
4. यि ारा समायोजी यवहार या िनपुणता या सं तोषजनक वैयि क सं बंध को िवकिसत करने क असफलताएं तथा
5. अ भावी या कुसमायोजी यवहार को सीखना ।
अब यह उठता है िक ाणी िकसी यवहार को िकस तरह सीख लेता है तथा वह या चीज है
िजसे वह सीखता है? वयवहारवादी िवचारधारा के अनुसार सीखने के दो मु य ि याएँ ह और इन
ि याओ ं के ही मा यम से यि सामा य एवं असामा य यवहार को सीखता है । ये दो िविधयाँ
ह | पैवलोिवयल एवं लािसकल अनुबं धन तथा साधना मक या ि या सूत अनुबंधन । इन दोन का वणन असामा य यवहार म उसक उपयोिगता िन नां िकत ह |
4.3.1.1(1) पैवलोिवयन या लािसक अनुबंधन (Pavlovian or Classical Conditioning)
आई.वी.पैवलव एक सी शरीर वै ािनक थे िज होन अपनी जीवन वृि दय के काय के अ ययन से शु क पर तु बाद म उ ह ने पाचन ि या (digestion) के दैिहक (physiology) का िवशेष प से अ ययन करना ारंभ िकया और उनका यह अ ययन इतना मह वपूण एवं लोकि य हआ
िक 1904 म इसके िलए उ ह नोबल पुर कार भी िदया गया । िबलकुल ही सं योग से पैवलव ने इन अ ययन के दौरान लारमय अनुब धन (salivary conditioning) क घटना का अ ययन िकया
और इससे सं बं िधत सीखने के एक िस ा त का भी ितपादन िकया िजसे अनुबि धत अनुि या
िस ां त (conditioned response theory) कहा जाता है । सचमुच म लारमय अनुब ध का
अ ययन 1899 म ारंभ हआ था जब ओलपसन (Wolpson)का पी.एच.डी शोध िजसका शीषक लारमय ाव का े ण (Observation upon salivary secretions) था पैवलव के िनदश म ही
पूरा िकया गया था ।
पैवलव ने अपने सीखने के िस ा त का आधार अनुब धन को माना है । ले ाइनकोइस (Lefrancois, 1983) के अनुसार अनुब धन एक ऐसी ि या है िजसके ारा उ ीपक (stimulus) तथा अनुि या (response)के बीच एक साहचय (association) थािपत होता है । पैवलव के
सीखने के इस अनुब धन िस ा त को लािसक अनुब धन िस ा त (classical conditioning theory) या ितवादी अनुब धन िस ा त (Respondent conditioning theory) या टाइप.एस (Type-S)अनुब धन भी कहा जाता है । इसे लािसक अनुबं धन इसिलए कहा जाता है य िक पैवलव ने ही अिधगम का लािसक योगशाला अ ययन िकया था ।
ितमान से ता पय एक सां केितक मॉडल या िच से होता है जो िकसी ि या के िवशेष गुण को
समझने म मदद करती है । लािसक अनुब धन म ितमान क शु आत एक उ ीपक तथा इससे
उ प न अनुि या के बीच म सं बं ध से होता है । पैवलव के अनुसार जब कोई वाभािवक एवं उपयु
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उ ीपक को जीव के सामने उपि थत िकया जाता है तो वह उसके ित एक वाभािवक अनुि या
करता है । जैसे गम बतन को छूते ही हाथ ख च लेना तथा भूखा होने पर भोजन देखकर मुँह म लार आनाए कुछ ऐसी अनुि याओ ं के उदाहरण है । जब इस वाभािवक एवं उपयु उ ीपक के ठीक कुछ सेके ड पहले एक दूसरा तट थ उ ीपक बार-बार उपि थत िकया जाता है तो कुछ यास के
बाद उस तट थ उ ीपक ारा ही वाभािवक अनुि या ;लार आना या हाथ ख च लेना जो िसफ वाभािवक उ ीपक के ित होती थी उ प न होने लगती है । जैसे एक भूखे यि के सामने घंटी
बजाकर बार-बार भोजन दे तो कुछ यास के बाद मा घंटी बजते ही उस यि के मुँह म लार आना ारंभ हो जायेगा । पैवलव ने तट थ उ ीपक (घं टी) तथा वाभािवक अनुि या ;लार आना
के बीच इस नये साहचय को सीखने क सं ा िदया है ।
पैवलव का यह िन कष िक यिद तट थ उ ीपक के िकसी उपयु एवं वाभािवक उ ीपक के साथ बार-बार िदया जाता है तो तट थ उ ीपक के ित यि वैसी ही अनुि या करना सीख लेता है जैसा
िक वह उपयु एवं वाभािवक उ ीपक के ित करता है । यह िन कष एक योग पर आधा रत है । सं ेप म योग इस कार था | एक भूखे कु े को एक विन-िनयंि त योगशाला म एक िवशेष उपकरण के सहारे खड़ा कर िदया गया । कु े के सामने भोजन लाया जाता था और चूँिक कु ा भूखा
था इसिलए भोजन देखकर उसके मुँह म लार आ जाता था । कुछ यास के बाद भोजन देने के 4 या
5 सेके ड अथात 400 या 500 िमलीसेके ड पहले एक घं टी बजायी जाती थी । यह ि या कुछ
िदन तक दोहरायी गयी तो यह देखा गया िक िबना भोजन आये ही मा घं टी क आवाज पर कु े के
मुँह से लार िनकलना शु हो गया । पैवलव के अनुसार कु ा घं टी क आवाज पर लार के ाव करने
क ि या को सीख िलया है । उनके अनुसार घंटी क आवाज ;उ ीपक तथा लार के ाव ;अनुि या
के बीच एक साहचय कायम हो गया िजसे अनुब धन क सं ा दी गयी ।
पैवलव के इस योग पर यान देने से प हो जाता है िक पैवलोिवयन अनुब धन के मु य चार अंग ह जो इस कार है |
1- वाभािवक उ ीपक (Unconditional or Unconditioned stimulus : UCS)- वाभािवक उ ीपक वैसे उ ीपक को कहा जाता है जो िबना िकसी पूव िश ण के ही
ाणी म अनुि या उ प न करता है । जैसे पैवलव के योग म भोजन एक वाभािवक उ ीपक है जो लार ाव करने क अनुि या िबना िकसी िश ण के ही करता है ।
2- वाभािवक अनुि या (Unconditioned response : UCR)- वाभािवक अनुि या वैसी अनुि या को कहा जाता है जो वाभािवक उ ीपक ारा उ प न िकया
जाता है । जैसे पैवलव के योग म भोजन देखकर कु े के मुँह म लार का ाव का होना
एक वाभािवक अनुि या है ।
3- अनुबि धत उ ीपक (Conditional stimulus or Conditioned stimulus : CS)- अनुबि धत उ ीपक वैसे उ ीपक को कहा जाता है िजसे यिद वाभािवक उ ीपक के साथ या उससे कुछ सेके ड पहले लगातार कुछ यास तक िदया जाता है तो वह उ ीपक वाभािवक उ ीपक के समान ही अनुि या उ प न करना ारंभ कर देता है । िकसी भी
उ ीपक को अनुबं िधत उ ीपक कहलाने के िलए यह आव यक है िक वह ाणी क
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ानेि य के पहँच के भीतर हो यानी िजसे देखा जा सके सुना जा सके पश िकया जा सके।
पैवलव के योग म घं टी क आवाज एक अनुबि धत उ ीपक का उदाहरण है ।
4- अनुबि धत अनुि या(Conditioned response : CR)- जब अनुबि धत उ ीपक वाभािवक उ ीपक के सं योजक (paired) िकया जाता है तो कुछ यास के बाद अनुबि धत उ ीपक के ित ाणी ठीक वैसी ही अनुि या करता है जैसा िक वह वाभािवक उ ीपक के ित करता था । इस तरह क अनुि या को अनुबि धत अनुि या
कहा जाता है । पैवलव के योग म ;िबना भोजन देखे ही घं टी क आवाज सुनने पर जो लार के ाव क अनुि या होती थी वह अनुबि धत अनुि या क उदाहरण है ।
बाद म पैवलव के सहयोिगय एवं उनके िश य ारा कुछ और भी योग बकरीए भेड़ आिद पर भी
िकये गये। इन योग के आधार पर पैवलव के िन कष को वैध (valid) ठहराया गया ।
लािसक अनुबं धन क पूण या या के िलए यह आव यक है िक उसम सि मिलत िकये गये मु य त य का वणन िकया जाए । ऐसे मुख त य िन नांिकत ह |
1. उ ेजन का िनयम (Law of excitation) - इस िनयम ारा यह पता चलता है िक यिद तट थ उ ीपक को वाभािवक उ ीपक के साथ बार-बार उपि थत िकया जाता है तो ऐसी
अव था म तट थ उ ीपक ाणी म एक सामा य उ ेजन पेदा करना ारंभ कर देता है । दूसरे
श द म यह कहा जा सकता है िक तट थ उ ीपक ाणी को इस हद तक उ ेिजत कर देता
है िक वह अनुबि धत अनुि या (C) करने के िलए त पर हो जाता है ।
2. आ त रक अवरोध का िनयम (Law of internal inhibition)- पैवलव ने यह देखने
के िलए िक जब तट थ उ ीपक (घं टी) के बाद वाभािवक उ ीपक (भोजन) नह िदया
जाता है तो या होता है इस िवशेष िनयम का ितपादन िकया । उनका े ण यह था िक ऐसी प रि थित म ाणी धीरे-धीरे तट थ उ ीपक के ित अनुि या करना ब द करने लगता
है । दूसरे श द म सीखी गयी अनुि या ;यानी लार का ाव िनकलने को अनुि या का
िवलोपन (extinction) होने लगता है । पैवलव के अनुसार ऐसा होने का कारण यह है िक इस तरह क प रि थित म यानी घं टी बजने के बाद भोजन के नह िदये जाने क प रि थित म ाणी म एक िवशेष वृि उ प न होती है जो णी को सीखी गयी अनुि या को करने से
रोकता है । अतः ाणी सीखी गयी अनुि या को भूल तो नह जाता है बि क जान -बूझकर उसे नह करता है ; य िक ऐसा करने क एक िवशेष त परता उसम उ प न हो जाती है । इसे
ही पैवलव ने आ त रक अवरोध का िनयम कहा है ।
3. बा अवरोध का िनयम (Law of external inhibition)- हाउ टन (Houston, 1976) ने बा अवरोध को प रभािषत करते हए कहा है जब सीखने के दौरान कोई नया
उ ीपक अनुबंिधत उ ीपक के साथ िदया जा ता है तो इससे सीखने क ि या धीमी हो
जाती है औ ेर इस तरह के अवरोध को बा अवरोध कहा जाता है । पैवलव ने यह बतलाया
िक जब ाणी तट थ उ ीपक (घं टी) तथा वाभािवक उ ीपक (भोजन) को एक दूसरे से
सं बं िधत करना सीखता है तो उस समय अगर कोई बा उ ीपक जैसे रोशनी करके तट थ उ ीपक िदया जाता है तो वैसी प रि थित म सीखने क गित थोड़े समय के िलए अव