इकाई 6 (UNIT 6)
7.2 अवधान (Attention)
7.2.1 अवधान क अवधारणा (Concept of Attention) एवं वभाव :-
अवधान (Attention) संवेद या (Sensory process) और य ीकरण के बीच क कड़ी है।
संवेदना अवधान य ीकरण Sensation Attention Perception
कसी भी ण हमारे संवेद अंग पर बहु त से उ ीय स य होते है फर भी उनम से
केवल कुछ ह ऐसे होते है िजनका हम प ट प से य ीकरण करते है। जब हम कोई काम कर रहे होते ह तो हमारे प रपे (background
)
म कई कार क व नयां हो सकती है। हम उनके त अवगत नह ं होते (हम उनका आभास नह ं होता) यध प कान पर उनका नवेश होतारहता है। अवधान य ीकरण क उस या को कहते है जो कसी नवेश (input) का अपने
चेतन अनुभव या चेतना म शा मल करने के लए चयन करती है। य ीकरण क यह चुनावी
या कसी संवेद अंग के लए रा ता साफ कर देती है। इस कार यह भाव जो संवेद यं
पर अभी हावी है यह उस समय के लए अ य सभी संवेद भाव को ब द कर देता है। उस समय के लए हावी संवेद भाव सब पर भार पड़ता ह बाद म न चय ह कोई अ य संवेद उ ीपक भावी हो सकता है। ऐसे त य को हम कहते है क हम कुछ ि थ त पर यान दे रहे ह।
अवधान हमारे अनुभव के े को के ब दु (focus) और पा व (margin) म वभािजत करता है। पर तु हमारे अवधान के परास म केवल थोड़े से ह मद आ सकते है। िजन घटनाओं को हम प ट साफ देखते है वह हमारे अनुभव (experience) को के ब दु
(focus) होती है। अ य मद (item) उनसे मले हु ए या एक तरफ कुछ दूर ऐसे होते है िजनका
हम केवल धुंधल तरह से य ीकरण करते है। हम उनक उपि थ त से अवगत तो होते है पर केवल अ प ट प से। इसके अ त र त और भी कई चीज हो सकती है िज ह हम अनुभव कर या नह ं भी कर सकते है। यह हमारे अवधान े से पूणत: बाहर होती है।
एक उदाहरण से इसे ओर प ट करते है।
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मान ल िजए आप केट का मैच देख रहे है उस समय आपके अवधान का के ब दु बैट करने
वाला तथा गद फकने वाला (bowler) होता है। बाक लोग अ य खलाड़ी (fielder) दशक इ या द उसके पा व म होता है तथा चुंगम जो आप चबा रहे है हो सकता है क वह अवधान से
पूणत: बाहर हो।
7.2.2 अवधान क चय नत या को भा वत करने वाले त व :-
अवधान वा तव म चय नत (selective) होता है पर तु इस चयन म वह चंचल या
ढुलमुल होता है। चेतना का वाह शायद ह सौ य (placid) या अबाध हो यह इधर-उधर भटकता
सा लगता है तथा कभी एक दशा म अ धक समय तक नह ं रहता। जे स वायस (James Joyse) तथा यूजीन ओनील (Eugne O'Neil) ऐसे कुछ वतमान लेखक ने ढुलमुलपन को
बहु त अ धक मह व दया है पर तु यान से देखने पर यह बहु मू तदश वभाव (Kaleidoscopic nature) एक सु यवि थत यं माना गया। इसके कुछ नधारक है िजनके
आधार पर अवधान का चयन होता है। बो रग लगफेलड बेल (Boring Langfield Weld) 1963 pages 219-20 ने ऐसे अवधान पोषक 6 नधारक का वणन कया है जैसे-
1. उ ीपक क ती ता (intensity of stimulus) - यह अवधान ा त करने का अकेला
सबसे मह वपूण नधारक है तथा आवाज (जैसे धमाके इ या द ) तेज काश (चकच ध करनेवाल) ती वेदना इ या द। इनम से येक उपयु त त या क अपे ा रखती
तथा सामा यत: कोई न कोई त या होती ह है। ऐसा ती उ ीपक सामा य वातावरण म प रवतन उ य त करते है इस लए य ीकरण का ोत बनते है। पर तु जब यह कुछ समय तक बने रहते है या दोहराये जाते है तो वह सामा य वातावरण का भाग बन जाते है इनक अवहेलना होती है, उन पर यान नह ं जाता। ती ग त या उ ीपक म एकाएक प रवतन भी अवधान का कारक बन सकता ह। पर तु तेज ग त से जाता रॉकेट, स नाटे क अपे ा अवधान पाने से अ धक बल है। कनफुसक (whisper) पर शायद हमारा यान आक षत न कर सके पर तु जोर का शोर सदा यान आक षत करता है।
2. उ ीपक क नवीनता (Novelty of the Stimulus) :-
उ ीपक नवीनता भी एक कार से वातावरण म प रवतन लाती है, इस लए उस पर यान जाना लगभग नि चत है। ती ता के समय अवधान ा त करने का यह भी
मह वपूण ोत ह थानीय म हलाओं के झुंड म एक वदेशी म हला बड़ी ज द यान आकषण कर लेती हे। ल क से हटकर कोई नया चटपटा संगीत फौरन यान खींचता है।
3. उ ीपक क बार बारता (Frequency of Stimulus):-
उ ीपक का बार बार दोहराया कई कार से अवधान ा त करने म सहायक हो सकता है
जैसे:-
(i) एक कार से बार बार दोहराया उ ीपक ती उ ीपक क तरह काम करता है।
एक बार के थान दो बार दोहराये उ ीपक क अवधान को आक षत करने क अ धक स भावना है। य द यह तीसर बार भी दोहराया जाये तो उसक अवधान क स भावना और अ धक होगी।
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(ii) हो सकता है क कसी व न पर हमारा यान न जाये पर सतत् दोहराने पर वह हमारा यान आक षत कर लेती है य क पहले बार आने वाला उ ीपक हमको उसके दोहराने पर उसके त सजग करता है। कभी-कभी कसी नये
चटपटे गीत पर हमारा यान नह ं जाता पर जब वह कई बार सुना जाता है तो
हमारा यान उसके त वत: चला जाता है।
(iii) कोई उ ीपक जब नय मत प से तुत कया जाता तो अ सर एक कार से
ऐसी अपे ा (expectation) उ प न करता है जो इतनी बलवान होती है क य द दोहराये जाने वाला उ ीपक पहले वाले से कुछ भ न भी है तो भी वह उसे
पहले वाल उ ीपक क भां त ह दखाई पड़ता है। जैसे सनेमा म डु ल केट का
योग या Proof reader का कसी श द क गलत वतनी (Spelling) को भी
सह पढ़ना।
(iv) बार-बार दोहराना वयं म अवधान पोषक हो सकता है। य द कसी कारण पहले
आने वाले उ ीपक पर यान न जाये बार-बार उसके दोहराने पर वह अवधान पाने म सफल हो जाता है। फर भी बार-बार दोहराने का भाव मु यत: संयोग के कारण नह ं होता। उ ीपक के पा व म होने के कारण दोहराने वाला
आ खरकार अवधान के के ब दु म लाने म सफल होता है। फर भी बार-बार दोहराने का भाव मु यत: संयोग के कारण नह ं होता। दोहराने से पा व म रहने वाला उ ीपक आ खरकार के ब दु म आने म सफल होता है।
4. अ भ ाय (Intention):-
कस समय कौन सा अनुभव हमारा अवधान ा त करे। यह बहु त कुछ इस बात पर नभर करेगा क पहले से हमार उसके त या झान या अ भवृ त है। जब हम भीड़ म अपने कसी साथी को ढूंढ रहे हो तो सामने पड़ने पर उस पर हमारा यान तुरंत चला
जाता है। वह भीड़ म सबसे अलग दखता है। जब कार क कुंजी जो अपने नि चत थान पर नह ं मलती, को ढूंढते है तो सामने पड़ने पर हमारा यान उस पर तुर त चला जाता है। अ भ ाय एक बार से अपे त अनुभव का पूवा यास (rehearsal) है।
जब वह अनुभव आता है. वह एक पुराने म से मलने के समान होता है। (boring ut al. p.220)
5. अ भ ेरणा (motivation):-
वह सार आ त रक शि तयां िज ह अ भ ेरणा के प म सं हत कया जा सकता है
य ीकरण म शि तशाल चयना मक एजे ट का काय कर सकते ह।
उदाहरण के लए यौनाकषण अ य कारक क अपे ा बड़ी तेजी से अवधान ा त करता
है। इस लए T.V. पर तथा अ य व ापन म सु दर बालाओं का खुल कर योग कया
जाता है। भूखे यि त के लए भोजन क गंध, इ के गंध से अ धक आकषक लगता है।
इस कार यि तगत, भौ तक एवं सामािजक ेरक अवधान ा त करने म अहम भू मका
नभा सकते है।
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6. पूर य ीकरण क संरचना म कसी वशेष उ ीपक का योगदान :-
कसी भी आकृ त म उसके कसी भाग क वयं म चयन होने का संयोग बहु त कम होता है। जब उसे कसी व तुओं क योजना म मह वपूण भू मका द जाती हे तो वह एकाएक उभर कर सामने आ जाता है।
च : 7.1 य ीकरण म अ भवृि त / अ भ ाय
उपरो त आकृ त म जब हम उसे एक पीकदान के प म देखते है तो अथह न लक र उभर कर उसको पीकदान का प देती है। पर तु हम उ ह दो जुड़वा ब च के प म देखते है तो यह लक र उस जुड़वा आकृ त के बनाने म मह वपूण योगदान देती है।
7.2.3 श ण के अवधान का मह व एवं उसका योग :-
एक ग तशील श ण-अ धगम या म श क और छा के बीच स य पार प रक या होती रहती है। िजस क ा म केवल श क बोलता रहता है या यामप पर लखता रहता
है ओर छा चुपचाप सुनते रहते है या यामप पर लखे हु ए क नकल करते रहते है अ धगम क ि ट भावी नह ं हो सकता।
क ा श ण म छा को बराबर स य रखने के लए श क को उनका अवधान सतत्
ा त करना आव यक होता। उपरो त उदाहरण से यह प ट हो गया होगा क अवधान कन- कन व धय से ा त कया जा सकता है फर भी इ ह यहाँ दोहराना साम यक होगा।
कसी भी पाठ-योजना म तावना, तुतीकरण, अ यास तथा सारांश मुख भाग होते
है। तावना का काय छा को पाठ वषय पर यान आकषण करना होता है िजसे थानडाइक क भाषा म Law of readiness (त परता का नयम) कह सकते है। यहाँ श क ऐसे नवीन अनुभव या सम याएं उपि थत करता है जो छा का यान आक षत करते है तथा वे आगे आने
वाल क ा ग त व धय को सीखने म च लेते है।
इसी कार तुतीकरण के फौरन बाद श क उसका अ यास करते' करते है। कई बार भ न प म वषय साम ी को दोहराने से छा के यान म वह साम ी बैठ जाती है।
इन सबके बीच श क आव यक त य पर बराबर जोर देकर या यामप पर रेखां कत करके साम ी को ती ता दान करता है अवधारणाओं म छपे ब दुओ को काश म लाता है उन पर उनका यान आक षत करता है पाठ को वातावरण को उन करण से जोड़ने का य न करता है िजनम च होती है जैसे फ म म कुछ अ छे साम यक गाने या य इ या द।
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