चेतन से ता पय मन के वैसे भाग से होता है, िजसम वे सभी अनुभव एवं संवेदनाएँ होती है िजनका
सं बं ध वतमान से होता है । ॉयड के अनुसार मानिसक पहले का एक छोटा सा िह सा होता है । ब. अ चेतन
अ चेतन मन से ता पय वैसे मन से होता है जो सचमुच म ना तो पूणतः चेतन होता है ना ही पूणतः
अचेतन । इसम वैसी इ छाएँ िवचार, भाव आिद होते ह जो हमारे वतमान चेतन या अनुभव म नह होते, परंतु थोड़ा यास करने पर हमारे चेतन मन म आ जाते ह ।
स. अचेतन
ॉयड के अनुसार मन का सबसे गहरा एवं बड़ा भाग अचेतन है । अचेतन का शाि दक अथ है जो
चेतना से परे हो । हमारे कुछ अनुभव इस कार के होते ह, जो ना ही हमारी चेतना म होते ह और ना
ही अ चेतना म ऐसे अनुभव अचेतन म होते ह । अचेतन मन म रहने वाले िवचार एवं इ छाओ ं का
व प कामुक असामािजक, अनैितक एवं घृिणत होता है, चूँिक ऐसी इ छाएँ एवं िवचार को िदन-
ितिदन के जीवन म पूरा करना सं भव नह होता है । अतः उनको चेतन से हटाकर अचेतन म दिमत कर िदया जाता है । अचेतन क इ छाएँ चेतन म सीधे तो वेश नह कर पाती है य िक अहं (Ego) का कड़ ितबं ध ऐसी इ छाओ ं को चेतन म आने से रोकता है । फलतः वे प बदल कर चेतन म वेश कर जाती है । व न, दैिनक जीवन क मनोिवकृितयाँ, स मोहन आिद ऐसे मुख अवसर है ।
अचेतन क कुछ िवशेषताएँ
चेतन, (conscious) अ चेतन (subconscious) तथा अचेतन (unconscious) म अचेतन (conscious) को सवािधक मह वपूण बतलाया गया है । फल व प मनोिव ेषणा क मनोिव ान
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(psychoanalytic psychology) म इसक कुछ िवशेषताओ ं (characteristics) पर बल डाला
गया है, िजनम िन नां िकत मुख ह |
(i) अचेतन मन चेतन तथा अ चेतन मन से बड़ा होता है (Unconscious mind is larger than the conscious and subconscious mind)- िच 5.1 म देखने से
प हो जाता है िक अचेतन मन का े चेतन मन तथा अ चेतन मन के े म काफ बड़ा है । इससे यह प हो जाता है िक अचेतन मन क अनुभूितयाँ , इ छाएँ एवं िवचार चेतन मन तथा अ चेतन मन क अनुभूितयाँ, इ छाएँ एवं िवचार से काफ अिधक होती
है। शायद यही कारण है िक अचेतन मन क अनुभूितय एवं ेरक (motivations) को
यवहार का तुलना मक प से अिधक भावकारी िनधारक माना गया है ।
(ii) अचेतन म कामुक, अनैितक एवं असामािजक इ छाओ ं क धानता होती है (In unconscious sexual] immoral and antisocial wishes dominate)- अचेतन म ॉयड के अनुसार िजतनी भी दिमत इ छाएँ होती है, उनम 99 इ छाएँ योन (sex) अनैितक एवं असामािजक यवहार से सं बं िधत होती है । जब सामािजक ितब ध (social restrictions) के कारण ऐसी इ छाओ ं क सं तुि िदन- ितिदन क िज दगी म नह हो
पाती है, तो यि उनका दमन अचेतन म कर देता है । अचेतन म चले जाने से ऐसी
इ छाओ ं का भाव यि पर य तः नह पड़ता है और यि म उसे सं बं िधत िच ता
एवं संघष (conflict) समा हो जाता है ।
(iii) अचेतन का व प ग या मक होता है (Unconscious is dynamic in nature)- अचेतन मन म दिमत इ छाएँ होती ह । दूसरे श द म अचेतन म वैसी इ छाएँ होती ह जो
सामािजक ितब ध के कारण िदन- ितिदन क िज दगी म सं तु नह हो पाय । फलतः
उनका चेतन से अचेतन म दमन कर िदया गया । अचेतन मन म जाने पर ऐसी इ छाएँ
समा नह हो जाती है बि क सि य होकर बार-बार चेतन मन म लौट आना चाहती है । पर तु चेतन मन तथा अहं (ego) के ितब धता (censorship) के कारण वैसी इ छाएँ
चेतन म नह आ पात और वेश बदलकर (disguised form), व न (dream) तथा
दैिनक जीवन क छोटी-छोटी गलितय (psychopathologies of everday life) के प म य होती ह । इस तरह से अचेतन क इ छाओ ं से सि यता होती है जो उसके व प को ग या मक (dynamic) बना देता है ।
(iv) अचेतन यि के िनयं ण से बाहर होता है (Unconscious is beyond the control of the person)- अचेतन क इ छाएँ यि के िनयं ण रेखा से बाहर होती है । चूँिक अचेतन के बारे म यि पूणतः अनिभ रहता है, इसिलए उस पर उसका िकसी कार का
कोई िनयं ण होने का ही नह उठता है । यि , अचेतन के बारे म इसिलए अनिभ रहता है य िक अचेतन का सं बंध वा तिवकता (reality) से नह होता है ।
(v) अचेतन म िबना िकसी कार के के ही पर पर िवरोधी इ छाएँ और भावनाएँ
सं िचत होती है (Unconscious stores contradictory wishes and anatagonistic impulses without any conflict)- अचेतन मन क एक िवशेषता
यह भी है िक इसम पर परिवरोधी इ छाएँ एवं िवचार आसानी से संिचत रहते ह । चेतन मन
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के िलए एक ही समय म दो पर परिवरोधी इ छाओ ं को सं िचत करके रखना सं भव नह है । इसका कारण यह है िक अचेतन म सं िचत िविभ न तरह क पर परिवरोधी इ छाओ ं से
यि अवगत नह रहता है । फलतः उसे िकसी कार के मानिसक सं घष (mental conflict) का सामना नह करना पड़ता है और वे ठीक ढं ग से उसम सं िचत रहते ह । उदाहरणाथ, अचेतन मन म िनराशा एवं सफलता, ेम एवं घृणा के भाव, सुख एवं दुख का
भाव आिद सं िचत रहते ह और इनसे यि को िकसी कार का मानिसक संघष भी पैदा
नह होता है य िक यि इन सबसे अवगत नह रहता है ।
(vi) अचेतन अपनी इ छाओ ं क सं तुि या अिभ यि छ प म करता है
(Unconscious satisfies or express is desire in disguised form)- अचेतन मन क इ छाएँ घृिणत, असामािजक एवं अनैितक होती है । ऐसी इ छाएँ हमेशा अपनी
अिभ यि या सं तुि मन म चाहती ह और इसके िलए वे काफ ि याशील (active) रहती ह । लेिकन ऐसा सं भव इसिलए नह हो पाता है िक अहं (ego) तथा चेतन मन (conscious mind) का कड़ा ितब ध (strong censor) होता है जो उ ह चेतन म आने
देने से रोकता है । फल व प अचेतन क इ छाएँ वेश.बदलकर या छ प (disguised form) म व न (dreams) या दैिनक जीवन क भूल (psychopathologies of everyday life) के मा यम से य होती है ।
(vii) अचेतन म उपांह (id) वृि याँ भरी होती ह तथा वह उपां ह के ही समान सुख के िनयम
ारा िनदिशत होता है | अचेतन म उपां ह वृि याँ (id impulses) का भरमार होता है । अतः उपांह क सभी िवशेषताएं अचेतन म पायी जाती है । जैसे, उपां ह (id) के समान अचेतन नैितकता से परे होता है, अतािकक (illogical) होता है, सामािजक िनयम को नह मानने वाला होता है, आिद। अचेतन क इ छाओ ं का सं बं ध वा वातावरण क वा तिवकताओ ं (reealities) से नह होता है । अतः ऐसी इ छाएँ मा अपना सं तुि
(satisfaction) चाहती ह चाहे उसका प रणाम कुछ भी हो । दूसरे श द म , अचेतन मन अपनी इ छाओ ं क संतुि कर मा सुख दान करना चाहता है, चाहे उसका प रणाम कुछ भी हो । यही कारण है िक यह कहा जाता है िक अचेतन मन सुख के िनयम (pleasure principle) ारा िनदिशत होता है ।
(viii) अचेतन मन का िछपा हआ पहलू होता है (Unconscious is the latent aspect of mind)- अचेतन मन को यि सीधे बा े ण (objectvie observation) ारा
नह अ ययन कर सकता है और न ही यि वयं अ तिनरी ण (introspection) ारा
ही इसके अि त व को मािणत कर सकता है य िक यह मन का एक अ य पहलू होता
है । इसके अि त व को मा परो प से कुछ माण जैसे व न तथा दैिनक.जीवन क भूल आिद ारा ही मािणत िकया जा सकता है । अतः अचेतन मन एक िबजली क वाह के समान होता है । िजसे सीधे देखा तो नह जा सकता है परंतु उसके भाव के
आधार पर उसके अि त व को समझा जा सकता है ।
इस तरह से हम देखते ह िक अचेतन मन क कई िवशेषताएँ है िजनके अ ययन से अचेतन मन के
व प का प ान हम हो जाता है
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दैिनक जीवन क मनोिवकृितयाँ (Psychopathologies of Everyday life)
सभी यि अपने दैिनक जीवन म कुछ.न.कुछ भूल करता है । इसम से कुछ भूल ऐसी होती ह,
िजनका हम ान होता है तथा हम तुरंत ही उन भूल म सुधार कर लेते ह । पर तु कुछ भूल ऐसी होती
ह िजसे यि अपने दैिनक जीवन म अ ानतावश तथा अनायास कर बैठता है । ये ऐसी भूल ह जो
यि को िन े य तथा मा संयोगवश होने लगता है । ॉयड के अनुसार ऐसी भूल अनायास नह होती है बि क उनका कारण होता है जो अचेतन (unconscious) म दिमत (repressed) होता है । अचेतन म दिमत िवरोधी िवचार (contradictory thoughts), कामुक इ छाएँ (sexual desires), अतृ इ छाएँ (unfulfilled wishes), आ ामक वृि याँ (aggressive tendencies) ही इन भूल का कारण होती है । अचेतन म दिमत ऐसी वृि याँ इन गलितय या
भूल ारा चेतन म अिभ य (expressed) होती ह । ऐसी गलितय (errors) को ही ॉयड ने
दैिनक जीवन क मनोिवकृितयाँश् (Psychopathologies of everyday life) कहा है ।
ॉयड ने अपनी पु तक साइकोपैथोलोजी ऑफ एवरीडे लाइफ 'Pshychopathology of Everyday life' जो 1914 म कािशत हआ, म इन मनोिवकृितय का िव तृत वणन िकया है । इन मनोिवकृितय (Psychopathologies) म बोलने क भूल (slips of tongue), िलखने क भूल (slip of pen), िकसी यि या थान के नाम को भूलना (forgetting of names), चीज को
इधर-उधर रखने क भूल (mislaying of objects), पहचानने क भूल, छपाई क भूल, अनजाने
म क गयी ि याएँ आिद मुख ह । चूँिक इन भूल के कारण अचेतन म होते ह ।
अतः यि इन भूल के ित अनिभ रहता है तथा उसे मा सं योगवश या िबना यान के होने
वाली गलती समझकर अपने आप को सं तु कर लेता है ।
7.3.1 दैिनक जीवन म मनोिवकृितय के मुख कार (Some important types of Psychopathologies of everyday life)
ॉयड ने अनेक तरह क मनोिवकृितय (Psychopathologies) का वणन िकया है िजनम
िन नांिकत मुख है -
(1) बोलने क भूल (Slip of tongue)- ायः यह देखा गया है िक दैिनक जीवन म यि
से बोलने क भूल हो जाया करती ह । वह बोलना कुछ चाहता है और बोल कुछ और ही
देता है । ऐसी गलितय पर वयं यि को भी आ य होता है । इस आ य का कारण यह है िक ऐसी गलितय के ज म का ोत अचेतन होता है । मे रंगर तथा मेयेय (Meringer &
Mayer 1948) ने बोलने म हए इस तरह के भूल का कारण श द क विनय म समानता
बतलाया है । पर तु ॉयड (Freud) ने इसका जोरदार ख डन िकया है और कहा है िक इसका कारण अचेतन म दिमत इ छाएँ होती ह जो इस तरह के भूल के प म चेतन म
य होकर अपना आंिशक सं तुि कर लेती है ।
बोलने क भूल के बहत से उदाहरण हम दैिनक जीवन म िमलते ह । जैसे, एक बार एक नेता
िकसी सभा का उदघाटन करते हए कह, स जन म घोषणा करता हँ िक कोरम पूरा है अतः
म सभा का कायवाही िविधवत प से समा करता हँ। जबिक नेताजी को बोलना था, स जन , म घोषणा करता हँ िक कोरम पूरा है और अब म सभा क कायवाही िविधवत् प
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से ारंभ करता हँ । बाद म नेताजी के िवचार का िव ेषण से यह पता चला िक सचमुच म नेताजी उस सभा को नह होने देना चाहते थे य िक उनके नजर म उस सभा का न तो कोई औिच य था और न ही उससे कोई साथक उ े य क ही पूित होती थी । उसी तरह से बोलने
क भूल (slip of tongue) का एक अ छा उदाहरण ाउन (Brown, 1969] p. 233- 234)ने िदया। ाउन के एक िम को अपने ऊपर काफ गव था तथा अपने ान-भ डार को
अ य यि य के ान-भ डार से काफ बड़ा समझता था । एक बार उसे एक सभा म अपने
िम के लेख पर बधाई देनी थी । सामा यतः उसे कहना था, या म इस महान लेख पर अपना साधारण िवचार कट कर सकता हँ । (" May I offer a few modest remarks on this very brilliant paper?") पर तु उसने कहा, इस िन न कोिट के लेख पर या म अपना महान िवचार कट कर सकता हँ (May I offer a few brilliant remarks on this very modest paper)। इस उदाहरण से प है िक उस यि के अचेतन मन म इस लेख के ित महानता का नह बि क िन नता का िवचार था ।
इसी तरह के अनेक उदाहरण हम अपने दैिनक जीवन से भी दे सकते ह िजसम इस तरह क बोलने क भूल हआ करती ह । इसी तरह ॉयड ने एक उदाहरण देते हए कहा है िक एक बार एक ऐसी रोगणी के िलये दवा िलखा जा रहा था जो सचमुच म इलाज के खच से
काफ परेशान थी । रोगणी अचनाक बोल उठी, हम इतना भी िबल (bills) ने देना िज ह म
िनगल ही नह पाऊँ । उसका यहाँ प तः िबल (bills) से ता पय (pills) से था । प है
िक बोलने क भूल अचेतन ारा े रत होती है ।
(2) नाम को भूलना (Forgetting of names) . ायः ऐसा होता है िक हम अपने दैिनक जीवन म प रिचत यि य , व तुओ ं तथा थान के नाम को थायी या अ थायी तौर पर भूल जाते ह । कई बार तो बहत कोिशश करने के बाद भी उनके नाम याद नह आते ह पर तु अपने आप िफर बाद म याद आ जात ह । यह अ थायी भूलना का कारण अ चेतन (subconscious) होता है । पर तु थायी प से भूलना या ल बे समय तक याद नह आने
का कारण अचेतन (unconscious) ही होता है । नाम को भूलने के समान ही हम अ य बात को भी भूलते रहते ह । जैसे िकसी से िकये गये वायद का भूल जाना, प को
डाकखाने के प .पटी म डालना भूलना, िकसी से ली गई व तु को लौटाना भूलना आिद भी
हमारे दैिनक जीवन म ायः होते रहते ह । साधारणतः इन सभी तरह के भूलने क ि या का
कोई प कारण हम पता नह चलता है और हम इसे एक संयोगवश या िनरथक होने वाली
घटना समझकर उस पर यान नह देते ह पर तु ॉयड ने कहा है िक ये सभी तरह का भूलना
िनरथक एवं सं योगवश नह होते बि क वे साथक होते ह और उनका कारण अचेतन या
अ चेन म होता है । ॉयड ने कई उदाहरण देकर यह प िकया है इन सभी तरह के भूलने
के पीछे कोई.न.कोई कारण ज र होता है । इन त य से संबं िधत अचेतन म कुछ दिमत दुखद या अि य अनुभूितयाँ (experiences) होती ह िजनसे उ प न मानिसक सं घष (mental conflicts) से मुि पाने के िलए हम अचेतन प से उसे भूल जाते ह । ॉयड ने
अपनी पु तक साइकोपैथोलाजी ऑफ एवरीडे लाइफ म एक अ छा उदाहरण तुत िकया
है जो इस कार है |