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HND : हहन्दी P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M9 : होरेस का काव्य-हचन् तन

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HND : हहन्दी P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M9 : होरेस का काव्य-हचन् तन

हिषय हहन्दी

प्रश् नपर सं. एिं शीषषक P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र आकाइ सं. एिं शीषषक M9 : होरेस का काव्य-हचन् तन

आकाइ टैग HND_P14_M9

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश् नपर-संयोजक प्रो. ऄरुण होता

आकाइ-लेखक प्रो. देिशंकर निीन

आकाइ-समीक्षक प्रो. एस.सी. कुमार

भाषा-सम्पादक हशिानी सक्सेना

पाठ का प्रारूप 1. पाठ का ईद्देश्य 2. प्रस्‍ततािना

3. असष पोएहतका

4. काव्य-हचन् तन

5. मूल्यांकन

6. हनष्कषष

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HND : हहन्दी P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M9 : होरेस का काव्य-हचन् तन

1. पाठ का ईद्देश्य

आस आकाइ के ऄध् ययन के ईपरान् त अप–

 होरेस का संहक्षप् त पररचय प्राप् त कर सकंगे।

 होरेस की प्रहसद्ध रचना असष पोएहतका के प्रमुख हबन्दुओं से परहचत हो सकंगे।

 होरेस और प्लेटो-ऄरस्‍ततू के हचन् तन का मूल भेद समझ सकंगे।

 होरेस के काव्य-हसद्धान् त के प्रमुख हबन्दुओं को जान सकंगे।

 परिती कहि और अलोचकं पर होरेस का प्रभाि जान सकंगे।

2. प्रस्‍ततािना

होरेस (इ.पू.65-इ.पू.08) रोम के प्रहसद्ध कहि और अलोचक थे। िे रोम के सम्राट औगस्‍ततस (Augustus) के समसामहयक थे। ईनका जन्म ऄपूहलया के िेनूहसया नामक स्‍तथान मं हुअ था। ईन्हंने पहले रोम और बाद मं एथेन्स मं भी हशक्षा प्राप् त की। बाद मं िे रोम अ गए। जीिन के ऄहन् तम समय तक िे रोम मं ही रहे।

ऄरस्‍ततू के हनधन के बाद दो सौ िषं मं एथेन्स का बौहद्धक-सांस्‍तकृहतक ईत्कषष प्रायः समाप् त हो चुका था। एथेन्स का गौरि

हसकन् दर की िजह से हमस्र को हमल चुका था। पहली शताब्दी इसा पूिष मं औगस्‍ततस के नेतृत्ि मं रोमी साम्राज्य के ईदय के

साथ हसकन् दररया का ईत्कषष भी क्षीण पड़ गया और रोम यूरोपीय सभ्यता, संस्‍तकृहत, ज्ञान, कला अदद का केन्र बन गया।

औगस्‍ततस ने एक ऐसे साम्राज्य का हनमाषण दकया हजसका प्रभाि मध्य-युग (12िं-13िं शताब्दी तक) तक सारे यूरोप पर छाया रहा। शायद रोम के आसी प्रभाि और िैभि को लेकर ईहि चल पड़ी दक ‘सारे मागष रोम को जाते हं।’ फलस्‍तिरूप शताहब्दयं तक यूरोप के ज्ञान-हिज्ञान, साहहत्य-संस्‍तकृहत, धमष-राजनीहत की भाषा लैरटन बनी रही। स्‍तिभाितः होरेस रोमी

गौरि के रष्टा ही नहं, भोिा भी थे।

सम्राट औगस्‍ततस काव्य और कला के संरक्षक तथा प्रेरक थे। िे राष्ट्र गुणगान से परर पूणष साहह त् य चाहते थे, हजससे सम्राट के

कायषकलाप का प्रशहस्‍तत-हिस्‍ततार हो। ऐसे सीहम त लक्ष्य का साहहत्य कदाहप महान नहं हो सकता। रोमी लेखक यूनानी

लेखकं द्वारा प्रस्‍ततुत काव्य-हिधाओं मं ही थोड़ा-बहुत पररितषन करने मं सफल हो सके। ईन्हंने व्यंग्य, पर, शोकगीत, ग् िालगीत, सूहि जैसी कुछ हिधाएँ हिकहसत ऄिश्य कं, पर ईनमं साहहत्य को महहमा प्रदान करनेिाली िह ऄसाधारणता न अ सकी। नाटकं की हस्‍तथहत भी बहुत कुछ िही रही। होरेस ऐसे ही देश-काल मं सामने अए।

होरेस ऄपने समकालीन कहियं, समीक्षकं, हिशेष रूप से हससरो तथा हक् िण् टेहलयन से काफी अगे थे। आसका एक कारण हससरो, हक् िण् टेहलयन द्वारा भाषणकला को ऄहधक महत्त् ि ददया जाना था, जबदक होरेस ने साहहत्य को ऄहधक महत्त् ि ददया।

होरेस को सम्राट की हनकटता प्राप् त थी। कहा जाता है दक होरेस रोम के कहियं मं सिषश्रेष्ठ अलोचक और अलोचकं मं

सिषश्रेष्ठ कहि थे। एक ही साथ एक बड़ा कहि और समथष अलोचक होने के कारण ईन् हं काफी लोकहप्रयता हमली। होरेस की

रचनात्मक दृहष् ट मं राजनीहत, प्रेम, दशषन, नैहतकता और नागररक की सामाहजक भूहमका भी शाहमल थी। ईनका मानना

था दक आन सारी बातं का ईल्लेख एक ऄच्छी कहिता मं ही हो सकता है।

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ऄरस्‍ततू के बाद लगभग दो सदी तक साहहत्य-हसद्धान् तं की चचाष से ररि

समय के बाद रोमन कहि होरेस (इ.पू.65-08) की असष पोएहतका नाम की प्रहसद्ध रचना का ईल्लेख हमलता है।

3. असष पोएहतका

असष पोएहतका के रचनाकार होरेस प्रहतभाशाली होते हुए भी ऄपने समय की सीमाओं का ऄहतक्रमण नहं कर सकं।

ईनकी दो व्यंग्य-परक रचनाएँ, चार सम् बोध-गीहतयाँ (odes) और दो परात्मक पुस्‍ततकं ईपलब्ध हं। असष पोएहतका आन्हं

परात्मक पुस्‍ततकं मं से एक है। यह ‘हपसो’ नामक एक युिक के नाम पद्य मं हलहखत पर है। आसमं कुल 476 पंहियाँ हं।

हपसो के बारे मं ठीक-ठीक पता नहं चलता। हिद्वानं का ऄनुमान है दक िह लेखक बनना चाहता था। आसहलए ईसने ऄपने

समय के सबसे बड़े रचनाकार का मागषदशषन चाहा। ईसकी ईसी चाह का पररणाम यह पर है।

परात्मक होने के कारण आस पुस्‍ततक की कइ सीमाएँ हं। काव्यशास्‍त र के कइ महत्त् िपूणष सिालं का आसमं कोइ हजक्र नहं है।

यह पुस्‍ततक पूरी तरह व्यिहस्‍तथत नहं है। आसमं गम् भीर हििेचना का भी ऄभाि है। आसके बािजूद असष पोएहतका यूरोप के

निशास्‍त रिादी युग (16-18िं शताब्दी) मं लेखकं का कण् ठहार रहा और ईसे िही मान्यता प्राप् त हुइ जो ऄरस्‍ततू के

काव्यशास्‍त र को; बहल्क संहक्षप् त और चुरटली ईहियं के कारण ऄहधकतर असष पोएहतका के ईद्धरण ही लोकहप्रय थे

(पाश् चात्य काव्यशास्‍त र : देिेन्रनाथ शमाष, पृ. 70)।

असष पोएहतका मं काव्यशास्‍त र से जुड़े मुख्यतः तीन हिषयं– कहिता की हिषयिस्‍ततु, कहिता का रूप और कहि– पर चचाष की गइ है। कहा जाए दक काव्य, काव्यशैली और कहि– ये ही तीन हिषय हं हजन पर असष पोएहतका मं चचाष की गइ है।

असष पोएहतका मं होरेस ने कहियं को कुछ सुझाि दद ए हं–

 कहि मं ऐसी क्षमता होनी चाहहए दक प्रकाश से धुअँ ईत्पन् न करने के बदले धुएँ से प्रकाश ईत्पन् न कर दे। सरल और सामंजस्‍त यपूणष हि षय रचना की पहली ऄपेक्षा है। लेखक का यह नजररया दक िह जो कुछ हलख रहा है, ठीक नहं है। संक्षेपण के प्रयास मं ऄक्सर कहिता मं ऄस्‍तपष् टता अ जाती है। मधुरता के अग्रह मं कहिता का ओज एिं

स्‍तफूर्तत खत्म हो जाती है। भव्यता की अकांक्षा के कारण कहिता शब्दाडम्बर मं बदल जाती है। आसहलए कहि को

ऐसा ही हिषय चुनना चाहहए जो ईनकी क्षमता के ऄनुरूप हो।

 लेखक को काव्यगत दोषं के परस्‍तपर संयोजन मं सुरुहच और सािधानी से काम लेना चाहहए।

 नए शब्दं के प्रयोग मं यूनानी स्रोत का भी सहारा हलया जा सकता है।

 भाषा का हनयामक, शासक और मानक भाषा-प्रयोग होता है। ऄतः कहि को सदा प्रयोग करते समय सािधान रहने चाहहए।

 शोक, अनन् द और शौयष की ऄहभव्यहि के हलए ईन्हं के ऄनुसार छन् द का प्रयोग करना चाहहए। यानी कहि को

हिषय और छन् द के तालमेल का ध्यान रखना चाहहए।

 कथानक के हलए या तो परम् परा का आस्‍ततेमाल हो या दफ र जो कथा गढ़ी जाए ईसमं संगहत हो।

 यदद कथानक के हल ए नया पार चुनना पड़े, तो ईनकी चाररहरक हिशेषताओं का शुरू से ऄन् त तक पालन हो।

 नाटक मं कुछ घटनाओं का प्रदशषन होता है, और कुछ का िणषन। जो घटनाएँ प्रदशषन योग्य न हं, ईनका िणषन ही

ईहचत है।

 नाटक की भाषा न एकदम गँिइ हो और न ही एकदम ऄहभजात्य। नाटक दोनं श्रेणी के दशषकं से सम्बहन् ध त होता है। आसहलए भाषा का रूप भी िैसा ही होना चाहहए।

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 धन-हल प् सा से रहचत कहिता कभी स्‍तथायीत्ि प्राप् त नहं करती।

 रचना मं अया नैहतक सूर संहक्षप् त होना चाहहए, तादक ऐसा होने पर ही भािक ईसे सहजता से ग्रहण कर सके।

बुजुगष नागररकं को हशक्षाहीन नाटक पसन्द नहं, गमष-हमजाज सामन् तं को हशहथल और नीरस कहिता पसन् द नहं। रचना करते समय आन बातं का ध्यान रखना चाहहए।

 कहल्पत कथानक सत्य के हनकट होना चाहहए।

जाजष सेण् ्सबरी ने असष पोएहतका मं रोमी युग के साहहत्य की अलोचनात्मक धारणा की स्‍तपष्ट झाँकी को सिाषहध क महत्त् िपूणष माना (पाश् चात्य काव्यशास्‍त र : देिेन्रनाथ शमाष, पृ. 77)।

4. काव्य-हचन् तन

होरेस ने काव्य का िगीकरण करते हुए व्यंग्य और प्रहसन मं भेद दकया। ईनके हिचार मं व्यंग्य-काव्य का प्रयोजन व्यहि

ऄथिा समाज के दोषं का हनराकरण करना है। ईनका मानना था दक व्यंग्य का प्रभाि तुरन् त होता है। जो काम तकष से

नहं हो सकता, िह व्यंग्य से असानी से हो जाता है। आसहलए ईसका महत्त् ि भी ज्यादा होना चाहहए। ईनका हनदेश था

दक व्यंग्य मं तीव्रता नहं होनी चाहहए। तीव्रता से कटुता की भािना ईपजती है।

ईन्हंने कहा दक व्यंग्य-काव्य के पारं का हास्‍तय सन् तुहलत और हििेकपूणष होता है। प्रहसन के पारं मं आनका ऄभाि होता

है। व्यंग्य-काव्य हमेशा सोद्देश्य होता है, जबदक प्रहसन हबना दकसी ईद्देश्य के भी हलखा जा सकता है।

असष पोएहतका के काव्य हचन् तन के हन म् नहल हख त हबन्दु हं–

 काव्य का हिषय सरल, सामंजस्‍तयपूणष और कहि-शहि के ऄनुरूप होना चाहहए। यहाँ सरल का ऄथष कहि का जाना- पहचाना हि षय है।

 शब्द-संयोजन मं सुरुहच और सािधानी से काम लेना चाहहए, तादक पुराने शब्द भी नयी भंहगमा के साथ प्रस्‍ततुत हं। आसके साथ ही ऄगर ितषमान शब्दं से काम न चल रहा हो, तो नए शब्दं का हनमाषण भी दकया जाना चाहहए।

भाषा की ऄथषित्ता और शहिमत्ता का सबसे बड़ा अधार प्रयोग है।

 छन् द और हिषय का घहनष्ठ सम् बन् ध है। हर छन् द से हर भाि ऄहभव्यि नहं होता। दकस भाि के हलए कौन-सा

छन् द ईपयुि होगा, आसके हलए प्राचीन कहियं को प्रमाण मानना चाहहए।

 काव्य मं केिल सौन् दयष की सत्ता ही काफी नहं है; ईसमं श्रोता को भाि-मग् न करने की क्षमता भी होनी चाहहए।

यह तभी सम् भि होगा जब कहि ने ईस भाि को स्‍तियं महसूस दकया हो।

 नाटक का कथानक, प्रहसद्ध या कहल्पत, जो भी हो ईसमं अरम् भ से ऄन् त तक सामंजस्‍तय होना चाहहए। यही बात नाटक के पारं पर भी लागू होती है।

 नाटक मं कुछ घटनाएँ दृश्य होती हं और कुछ सूच्य। ऄरुहचकर, ईत्तेजक घटनाएँ सूच्य रूप मं ही प्रस्‍ततुत की जानी

चाहहए।

 नाटक की भाषा सिषजन-सुलभ होनी चाहहए।

 रचना का बार-बार संशोधन और पररमाजषन होना चाहहए।

 ईत्तम काव्य की हनष्पहत्त के हलए प्रहतभा, व्युत्पहत्त और ऄभ्यास तीनं ही ऄहनिायष हं। ऄभ्यास का महत्त् ि सिाषहध क है।

 काव्य का ईद्देश्य न तो कोरा ईपदेश है, न ही केिल अनन् द। दोनं मं सामंजस्‍तय अिश् यक है।

 सिषथा हनदोष काव्य हिरल ही होता है। ऄतः कुछेक दोष के कारण ही कोइ काव्य हेय नहं हो जाता।

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HND : हहन्दी P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M9 : होरेस का काव्य-हचन् तन

 काव्य हमेशा ईत्तम ही होना चाहहए। मध्यम काव्य नाम की कोइ चीज नहं होती। काव्य या तो ईत्तम होगा या ऄधम।

 जब तक रचना की ऄन् त:प्रेरणा न हो, रचना नहं करनी चाहहए।

 रचना के प्रकाशन मं जल्दबाजी नहं करनी चाहहए। जल्दबाजी मं प्रकाहशत रचना के कारण बहुधा यश की जगह ऄपयश ही हमलता है।

 रचना पर अलोचक की राय लेनी चाहहए। यदद अलोचक दोष बताएँ तो ईसका हनिारण करने की कोहशश करनी

चाहहए।

5. मूल्यांकन

होरेस के समय मं रोम के कहियं की हि हच र हस्‍त थ हत थी। यूनान पर रोम के अहधपत्य के बािजूद यूनान रोम की तुलना मं

साहहत्य और कला हचन् तन मं काफी अगे था। गुणित्ता की दृहष् ट से यूनानी साहहत्य आतना ईत्कृष्ट था दक ईसे छोड़ना

करठन था, और राष्ट्रीय चेतना का गौरि-बोध आतना दुदषम था दक ऄपनी भाषा की ईपेक्षा ऄप्रीहतकर थी (पाश् चात्य काव्यशास्‍त र - देिेन्रनाथ शमाष, पृ. 71)। फलस्‍त िरूप दोनं मं सामंजस्‍तय बनाने की कोहशश की गइ। रोम के साहहत्यकारं ने

ऄपनी कहिता के हलए अदशष का ढाँचा यूनान का ऄपनाया, पर भाषा ईनकी ऄपनी रही। यह लैरट न भाषा थी। आस बात को होरेस भी खूब ऄच्छी तरह समझ रहे थे। शायद आसीहलए ईन्हंने कहा था हिजेता रोम को पराहजत यूनान ने पराहजत कर ददया (पाश् चात्य काव्यशास्‍त र - देिेन्रनाथ शमाष, पृ. 71)।

सारत: होरेस का भाषा-सम् बन् धी हसद्धान् त काव्यालोचन के क्षेर मं एक महत्त् िपूणष योगदान है। िे हिषय के ऄनुसार ऄनुदात्त तथा ईदात्त भाषा के प्रयोग के हह मायती थे। अिश्यकतानुसार पुरानी शब्दािली के नए सन् दभं मं आस्‍ततेमाल को

भी प्रोत्साहहत करते थे।

प्लेटो ने काव्य की साथषकता नैहतक-शैहक्षक मूल्यं मं मानी। ऄरस्‍ततू ने काव्य मं अनन् द का महत्त् ि प्रहतपाददत दकया। होरेस ने दोनं के बीच का रास्‍तता हनकाला। ईन्हंने कहा दक हशक्षा और अनन् द दोनं ही काव्य के प्रयोजन होने चाहहए।

कहं भी ऄरस्‍ततू का नाम न लेने के बािजूद होरेस ईनसे प्रभाहित नजर अते हं। ऄरस्‍ततू और होरेस के हचन् तन मं कइ ऄन् तर भी हं। ऄरस्‍ततू की अलोचना हिश् लेषणात्मक है। होरेस ऄपनी अलोचना मं कहियं को हनदेश देते नजर अते हं। ऄरस्‍ततू

अलोचक की दृहष्ट से काव्य पर हिचार करते हं। होरेस रचनाकार की दृहष्ट से काव्य पर हिचार करते हं। ऄरस्‍ततू ने कुछ हसद्धान् त गढ़े। ईन हसद्धान् तं का अज भी आस्‍ततेमाल होता है। होरेस की अलोचना मं पद्धहत जैसी कोइ चीज नहं है।

ऄनुकरण शब्द का आस्‍ततेमाल होरेस ने ऄरस्‍ततू से हभन् न ऄथष मं ऄपनी अलोचना मं दकया है। होरेस के ऄनुसार ऄनुकरण का

ऄथष है प्राचीन कहियं के अदशं और मान्यताओं का ऄनुकरण। होरेस के ऄनुसार प्राचीन कहियं का ऄनुकरण ही

िास्‍ततहिक ऄनुकरण है। कहा जा सकता है दक दशषन के झमेले मं पड़े बगैर होरेस ने ऄनुकरण का सीधा, सरल ऄथष ग्रहण दकया।

होरेस के ऄनुसार काव्य-रचना का प्रधान गुण औहचत्य है। हिषय, भाि, भाषा, छन् द... सब जगह िे औहचत्य पर ही जोर देते हुए देखे जा सकते हं। औहचत्य एक प्रकार से शास्‍त रिाद का ऄहभन् न सहचर है। कालान् तर मं ईसी से रूदढ़यं का जन्म होता है। नाटक का अकार मयाषददत होना चाहहए, यह ठीक है, क्यंदक ऄहतहिस्‍ततार से िह उब पैदा करेगा। दूसरी तरफ ऄहतसंक्षेप से ईसका प्रभाि कम होगा। जब होरेस यह कहते हं दक नाटक मं ऄंक पाँच ही हं, न ऄहधक, न कम, तो यह रूदढ़ हो गइ। प्रेक्षकं का ध्यान बँट न जाए, आसके हलए मंच पर तीन ही पारं का होना संगत है, मगर चार पार कभी हं

ही नहं, यह रूदढ़ है। अिश्यकता पड़ने पर तीन से ऄहधक पारं के भी मंच पर अने मं अपहत्त नहं होनी चाहहए।

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HND : हहन्दी P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M9 : होरेस का काव्य-हचन् तन

आसहलए औहचत्य, रूदढ़ मं परर णत न हो जाए, आसका ध्यान रखना

चाहहए। होरेस का औहचत्य बहुधा रूदढ़ मं पररणत हो गया है।

होरेस ने काव्यालोचन की स्‍तिायत्तता कायम कर सबसे महत्त् िपूणष काम दकया, शुद्ध अलोचना का एक रूप पेश दकया।

काव्यालोचन को दकसी दूसरे ऄनुशासन के भरोसे नहं छोड़ा।

होरेस पर अरोप लगाते हुए सेण् ्सबरी ने कहा दक कुछ सन् दभं को छोड़कर ईनके यहाँ न तो सप्राणता है, न ईमंग, न भाि। दूसरी तरफ असष पोएहतका पर रटप्पणी करते हुए देिेन्रनाथ शमाष ने कहा दक होरेस पर गम् भीरता, मौहलकता और हििेचकता की कमी का अरोप सही हो सकता है, दकन्तु ईनमं न तो ईमंग या भाि की कमी है, न सप्राणता ही की।...

ईमंग या भाि के ऄहतरेक के कारण ही ईनमं गम् भीरता नहं अ पाइ। ईमंग, भाि-प्रिणता या हजन् दाददली मं होरेस की

समता करनेिाले अलोचक कम ही हमलंगे (पाश् चात्य काव्यशास्‍त र : देिेन्रनाथ शमाष, पृ. 78)।

6. हनष्कषष

होरेस का स्‍तिभाि हिनोदी और व्यंग्यहप्रय था। िे ऄपनी हिद्वता का अतंक जमाना नहं चाहते थे। मूलतः िे एक कहि थे।

कहिता करने के क्रम मं ईनके सामने जो चुनौहतयाँ अईं, ऄपनी अलोचना मं ईन्हंने ईन्हं का समाधान पेश करने की

कोहशश की। असष पोएहतका मं ईन्हंने ऄपने हिचारं को बहुत ही स्‍तपषटता से रखने की कोहशश की। दशषन के चक् कर मं

पड़ कर बड़ी-बड़ी बाते करने से िे बचते रहे। आतना ही ईन्हंने न तो एकदम अदशषिाद का रास्‍तता चुना, न ही

प्रहतदक्रयािाद का। ऄपनी समझ के ऄनुसार ईन्हंने बीच का एक रास्‍तता हनकालने की कोहशश की।

होरेस ने ऄपने प्रहसद्ध ग्रन् थ असष पोएहतका मं काव्य के औहचत्य पर सिाषहधक जोर ददया। ईनका मानना था दक कहि को

ऄपनी व्यिहाररक समझ से काम लेना चाहहए। ऄलंकार, छन् द, भाषा अदद का रचना मं मयाषददत प्रयोग होना चाहहए।

आस दृहष्ट से होरेस एक परम् परािादी अलोचक ठहराए जाएँगे, पर तथ् य है दक ईन्हंने निीनता और मैहलकता पर काफी

बल ददया।

होरेस का मानना था दक काव्य को नीरस नहं होना चाहहए। होरेस के ऄनुसार काव्य मं अनन् द और हश क्षा दोनं का योग अिश् यक है। ऄपनी कहिता मं होरेस सशि ऄहभव्यहि के हलए जाने जाते हं। ईन् हंने ऄपने समकालीन समीक्षकं का

हिरोध दकया। ईन् हं करतारता पसन्द नहं थी, आसहलए ऄसहमहत के बािजूद ईन् हंने यूनानी काव्यादशं को ही अधार मानने का अग्रह दकया, सुझाि ददया।

िैचाररक करतारता का हिरोध करते हुए ईन् हंने पाठक की सम् महत पर हिचार दकया और दूसरे कहियं को भी ऐसा करने

की सलाह दी। दूसरी तरफ ईन् हंने श्रोता-िगष के सुझाि मानने से मना कर ददया।

होरेस के समय मं साहहत्य जगत मं एक प्रकार की हस्‍तथरता अ गइ थी। ईन् हंने ऄनुभि दकया दक ईनका समकालीन हचन् तन न तो यूनानी ऄनुकरण पर हिकहसत हो रहा है, न ही स्‍तितन् र रूप से हिकहसत हो रहा है। काफी हचन् तन-मनन के

बाद ईन् हंने यूनानी हिचारधारा को ही काव्य के हलए हहतकर समझा। ईनका मानना था दक युगीन साहहत्य के रूपं मं

बनािटीपन और दुरूहता की बहुलता होती जा रही है। शायद आसीहलए ईन् हंने यूनानी काव्यादशं को ग्रहण करने का

सुझाि ददया। िातािरण की ऄनुकूलता के कारण ईन् हं ऄपने आस मकसद मं सफलता भी हमली।

नए रचनाकारं के हलए होरेस के हसद्धान् त बड़े ईपयोगी हं। ईन हसद्धान् तं का पालन करते हुए कइ रचनात्मक कहमयं से

सहज ही बचा जा सकता है। मानना चाहहए दक होरेस के काव्य-हसद्धान् तं की प्रासंहगकता बनी हुइ है। होरेस की

लोकहप्रयता भी शायद आसीहलए बनी हुइ है।

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HND : हहन्दी P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M9 : होरेस का काव्य-हचन् तन

रोमन साहहत्य-हचन् तन के हिकास युग मं होरेस को पयाषप् त मान्यता

हमली। अगे चलकर पोप, बोयले और जॉनसन जैसे हिहशष्ट यूरोपीय समीक्षक भी ईनसे प्रेररत हुए, ईनका प्रभाि स्‍तिीकार दकया। हन स्‍त सन् देह रोमन अलोचकं मं होरेस का स्‍तथान सबसे उपर है। शास्‍त रिादी अलोचकं मं भी ऄरस्‍ततू के बाद ईन्हं

का नाम हलया जाता है। शायद आसीहलए आंग्लैण्ड के बेन जॉनसन और रांांस के बोआलो जैसे ईत्कृष्ट अलोचकं पर होरेस का प्रभाि देखा जा सकता है।

References