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HND : हहन्दी P12 : दहितसाहहत्य M 23 : सिाम

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HND : हहन्दी P12 : दहितसाहहत्य M 23 : सिाम

हिषय हहन्दी

प्रश्नपत्रसं. एिंशीषषक P12 :दहितसाहहत्य आकाइसं. एिंशीषषक M 23 : सिाम

आकाइटैग HND_P12_M23

प्रधान-हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश्नपत्र-संयोजक प्रो. टी.िी.कट्टीमनी

आकाइ-िेखक प्रो. रामचन्र आकाइसमीक्षक डॉ. ऄब्दुिऄिीम भाषासम्पादक प्रो. देिशंकरनिीन पाठ का प्रारूप

1. पाठ का ईद्देश्य 2. प्रस्तािना

3. कथानक

4. ओमप्रकाश िाल्मीकक की कहानी संिेदना और ‘सिाम’ में ऄहभव्यक्त स्िानुभूहत के प्रश्न 5. ‘सिाम’ में हचहत्रत ऄस्पृश्यता, ऄसमानता और जाहतगत िचषस्ि

6. ‘सिाम’ प्रथा के हनहहताथष तथा अत्मसम्मान एिं गररमा की अकांक्षा

7. हनष्कषष

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HND : हहन्दी P12 : दहितसाहहत्य M 23 : सिाम

1. पाठ का ईद्देश्य

आस पाठ के ऄध्ययन के ईपरान्त अप–

कहानीकार की कहानी संिेदना और दहित प्रश्नों के सरोकारों को जान सकेंगे।

भारतीय समाज में मौजूद ऄस्पृश्यता, ऄसमानता और जाहत के िचषस्ि को परख सकेंगे।

थोपी गइ ‘सिाम’ प्रथा के हनहहताथष और हहन्दू-व्यिस्था की ऄसमान हस्थहतयों से ऄिगत हो सकेंगे।

दहित िेखन में अत्मसम्मान एिं गररमा की अकांक्षा के महत्त्ि को समझ सकेंगे।

हहन्दू सामाहजक व्यिस्था की जड़ता में पि रहे बच्चों के मनोभािों की पड़ताि कर सकेंगे।

दहित साहहत्य के मुहक्तकामी पररप्रेक्ष्य को समझ सकेंगे।

2. प्रस्तािना

हहन्दू सभ्यता एिं संस्कृहत की हम चाहे हजतनी भी हिहशष्टताएँ हगनाकर अह्िाकदत हो िें, परन्तु हहन्दू समाज के

व्यािहाररक जीिन में गहतमान जाहतगत िचषस्ि, ऄस्पृश्यता, ऄसमानता, ऄन्याय एिं ईत्पीड़न के सच से मुंह नहीं मोड़ सकते। आस व्यिस्था में िचषस्ि और ऄसमानता को स्थाहयत्ि देने िािी कुछ ऐसी प्रथाएँ, परम्पराएँ एिं मानहसकताएं

हनर्ममत की गइ हैं जो मनुष्य हिरोधी हैं, ऄमानिीय हैं। ईन्हीं में से एक है ‘सिाम प्रथा’, हजसको केन्र में रखकर कहानीकार ओमप्रकाश िाल्मीकक ने जाहतगत िचषस्ि एिं दमन की मानहसकता को ईजागर ककया है। मानिीय ऄहधकार और बुहनयादी

सुहिधाओं से िंहचत रखकर एक साहजश के तहत दहित िगष को हीनतर एिं हनम्नतर बनाए रखने के हिए सिाम प्रथा को

परम्परा का हहस्सा बनाया गया होगा। ऐसी प्रथाओं एिं परम्पराओं को सामाहजक िैधता देते हुए शोषण एिं दमन का

तन्त्र चिता रहा है, हजसका प्रहतरोध दहित िेखन में हमिता है। आसी ऄथष में दहित साहहत्य मुहक्तकामी िेखन भी है।

दहित साहहत्य अन्दोिन की महत्िपूणष हिशेषताएँ हैं, िणष-जाहत के िचषस्ि का हिरोध एिं नकार और आस िचषस्ि के कारण व्याप्त ऄपमान, ऄन्याय, ऄसमानता, ईत्पीड़न, घृणा, हहसा एिं हिगभेद का प्रहतरोध। िणष-जाहत के िचषस्ि एिं शोषण के

हिहिध रूपों की िैधता के स्रोत माने जाने िािे धमष एिं इश्वर के अडम्बर तथा ऄन्धहिश्वासों का पुरजोर खण्डन एिं

हिरोध दहित िेखन का मुख्य ध्येय है। िचषस्िशािी हहन्दू व्यिस्था के समानान्तर दहित िेखन ने बौद्ध दशषन एिं

ऄम्बेडकरिादी हिचारधारा के अधार पर मनुष्य की गररमा, अत्मसम्मान एिं मानिता को सिोपरर मानते हुए समता, स्ितन्त्रता, बन्धुता, मैत्री, प्रेम, न्याय एिं ऄहहसा की स्थापना को ऄपना मुख्य सरोकार एिं ईद्देश्य बनाया है। ओमप्रकाश

िाल्मीकक की ‘सिाम’ कहानी आन्हीं सरोकारों का प्रहतफिन है। आस कहानी का मूि मन्तव्य िणष एिं जाहतहिहीन समाज की हनर्ममहत के सपने को साकार करना है। संिेदनहीनता को संिेदनशीिता में पररिर्मतत कर समाज में व्याप्त ककसी भी

तरह के भेदभाि को समाप्त करना कहानीकार का मुख्य िक्ष्य है| हहन्दू परम्परा में ‘सिाम’ प्रथा जैसी घृहणत सोच की

मौजूदगी भारत के हिकास में ककतनी बड़ी बाधा रही है – आस ओर हहन्दी के िेखकों का ऄब तक ध्यान क्यों नहीं गया था?

आस प्रश्न को ‘सिाम’ कहानी में ओमप्रकाश िाल्मीकक ने स्िानुभूहत एिं सहानुभूहत के माध्यम से किात्मक प्रस्तुहत दी है।

दहितों के स्िाहभमान को तोड़ने िािी प्रथा का प्रहतरोध एिं नकार के माध्यम से कहानीकार हहन्दी कहानी परम्परा को

नया अयाम कदया है।

3.कथानक

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HND : हहन्दी P12 : दहितसाहहत्य M 23 : सिाम

ओमप्रकाश िाल्मीकी की ‘सिाम’ कहानी का कथानक परम्परागत हहन्दी

से हभन्न है। आस कहानी की संिेदना दहित िेदना पर अधाररत है, हजसमें हहन्दू व्यिस्थाओं की जड़ताओं एिं हिरूपताओं

का यथाथष ऄंकन करते हुए पात्रों के मानहसक द्वन्द्व, संघषष, स्िाहभमान एिं अत्महिश्वास को सजषनात्मक रूप कदया गया है।

हहन्दू समाज में सकदयों से चिी अ रही मनुष्य हिरोधी ‘सिाम’ प्रथा को केन्र में रखकर कथानक की हनर्ममहत की गइ है।

‘सिाम’ प्रथा के मूि में हिद्यमान जाहत- प्रथा एिं िचषस्ि की मानहसकता को बेनकाब ककया गया है। हहन्दू िचषस्ि में

हनहहत ऄपमान,घृणा और ऄस्पृश्यता के बीच पिते बािमन पर ऄंककत गहरी खरोचों का चाररहत्रक हिकास ऄहद्वतीय है।

ओमप्रकाश िाल्मीकी की आस कहानी का कथानक ‘सिाम’ जैसी ऄमानिीय प्रथा की पररहध में मौजूद शोषण और दमन की

िचषस्ििादी व्यिस्था को तब्दीि करके मानिता अधाररत समतापरक जाहतहिहीन समाज की हनर्ममहत की पृष्ठभूहम तैयार करता है।

‘सिाम’ कहानी के कथानक का अरम्भ हरीश की शादी की रस्म और हििाह-मण्डप से होती है, हजसकी व्यिस्था में घर- पररिार िािों के ऄिािा ईसका हप्रय सहपाठी दोस्त कमि ईपाध्याय भी िगा हुअ है। जुम्मन की बेटी से ब्याहने हजस गाँि में हरीश की बारात गइ है, िहाँ रांघड़ समुदाय के िोगों का बाहुल्य और िचषस्ि है। रांघड़ समुदाय के िोग चूहड़े

समुदाय से नफरत और जाहत- पाँहत का हीनतर व्यिहार रखते हैं। िहाँ ‘सिाम’ प्रथा की मौजूदगी दहितों को ऄपमाहनत एिं हीनतर व्यिहार साहबत करने के ईद्देश्य से ही है। रोजगार और हशक्षा के ईद्देश्य से गाँि से नगरों की ओर घए दहित समुदायों में अइ चेतना के कारण हहन्दू कुप्रथाओं का हिरोध और अत्म सम्मान का बोध जाग्रत हुअ है। हरीश और हरीश का पररिार दहित चेतना के प्रतीक हैं। देहरादून में हरीश और कमि ऄपाध्याय सहपाठी और घहनष्ठ हमत्र हैं। दो ऄिग- ऄिग समुदायों के बच्चों के मनोभािों और संस्कारों के माध्यम से कहानीकार बािमन की गहनतम परतों को खोिते हुए स्िानुभूहत और सहानुभूहत के ऄथष को रचनात्मक ढंग से कहानी में प्रस्तुत ककया है। जब गाँि का चाय िािा कमि

ईपाध्याय को चूह़ड़ा समझकर चाय नहीं हपिाता बहल्क ईसे गाहियाँ देते हुए ऄपमाहनत करता है, तब कमि को हरीश द्वारा दहित दमन एिं शोषण के बारे में बताइ गइ सारी बातें सच िगने िगती हैं। बारात की हिदाइ से पहिे रांघड़ समुदाय के दबंग दूल्हे को ऄपने घरों में सिाम पर अने के हिए बाध्य करते हैं, धमकाते हैं, हजसका पुरजोर हिरोध हरीश और ईसके पररिार के िोग करते हैं। ऄन्ततः सिाम पर गए हबना गाँि से बारात हिदा हो जाने में हरीश को ऄसफिता

हमिती है। ऄन्ततः िह स्िाहभमान और अत्महिश्वास को बचाने में सफि हो जाता है। आस प्रकार यह कहानी दहित चेतना

की हिहशष्टता की कहानी बन जाती है।

4.ओमप्रकाश िाल्मीकक की कहानी संिेदना और ‘सिाम’ में ऄहभयक्त स्िानुभूहत के प्रश्न

दहित जीिन सन्दभों से जुड़े िेखकों ने हहन्दी कहानी परम्परा की संिेदना को हिस्तार कदया है। भारतीय सामाहजक संरचना की संहिष्टता और िैषम्य जीिन में बहुत कुछ ऐसा था जो ऄनकहा-ऄनछुअ रह गया था। ईन्हीं संिेदनशीि

पहिुओं एिं घटनाओं को दहित कहाहनयों ने हिस्तार कदया। ओमप्रकाश िाल्मीकक की रचनाधर्ममता ने दहित िेखन की

िैचाररकता एिं ईसके सरोकारों की प्रहतबद्धता के साथ हहन्दी कहानी संिेदना को नया तेिर एिं पररप्रेक्ष्य कदया है। हहन्दू

समाज में मौजूद उँच-नीच तथा भेदभाि अधाररत मानहसकताओं की परतों को पात्रानुकूि एिं भािानुकूि प्रस्तुहत देते

हुए िाल्मीकक जी की कहाहनयाँ भाषा एिं हशल्प को ऄथषिान बनाती है। शोषण, दमन, घृणा एिं ऄन्याय के बीच जी रहे

संघषषमय एिं पीड़ादायी मनःहस्थहतयों को साहहहत्यक तेिर देकर कहानीकार ओमप्रकाश िाल्मीकक ने हहन्दी साहहत्य के

आहतहास के ऄधूरेपन को सम्पूररत ककया है। आस ऄथष में दहित साहहत्य अन्दोिन का महत्िपूणष योगदान है। हहन्दी

अिोचना के केन्र में दहित हिमशष के पररप्रेक्ष्य में स्िानुभूहत और सहानुभूहत का प्रश्न िम्बे समय तक बहसतिब रहा है।

आन प्रश्नों का प्रामाहणक ईत्तर ‘सिाम’ कहानी में रचनात्मक ढ़ंग से हमिता है। ‘सिाम’ कहानी में हरीश और कमि

ईपाध्याय के बािमन के हिकास-क्रम में घट रही सामाहजक घटनाओं के बीच से स्िानुभूहत एिं सहानुभूहत के प्रश्न का

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HND : हहन्दी P12 : दहितसाहहत्य M 23 : सिाम

रचनात्मक जिाब हमिता है। दोस्त हरीश की शादी में शाहमि कमि

सुबह-सुबह गाँि की चाय की दुकान पर जब चाय पीने गया तो चायिािे के द्वारा ईसका पररचय पूछने के बाद ईसे चाय नहीं हमिी, बहल्क ईल्टे ऄपमान और ऄनादर का सामना करना पड़ा। चायिािा मानने को तैयार ही नहीं था कक एक दहित की शादी में कोइ ब्राह्मण का बािक अ सकता है। ईस गाँि के बल्िू रांघड़ के बेटे दबंग रामपाि को अते देखकर चायिािा हबफर कर बोिा, “चूहड़ा है। खुद कू बामन बतारा है। जुम्मन चूहड़े का बाराती है। आब तुम िोग ही फैसिा करो।

जो यो बामन है तो चूहड़ों की बारात में क्या मूत पीणे अया है। जात हछपाके चाय माँग रा है। मैन्ने तो साफ़ कह दी। बुद्धू

की दुकान पे तो हमिेगी ना चाय चुहड़ों-चमारों कू, कहीं और ढूँढ़ िे जाके।’’ दुकान के अस-पास खड़ी भीड़ से मदद और समथषन के हिए कमि ईपाध्याय ने जैसे ही ‘भाआयों’ कहकर सम्बोधन ककया, िैसे ही रामपाि ने ईसे डाँटा और ढेर सारी

गाहियाँ दे डािी। अस-पास खड़े िोगों ने भी कमि की हंसी बनाया। ओमप्रकाश िाल्मीकक ‘सिाम’ में हिखते हैं, “कमि

को िगा जैसे ऄपमान का घना हबयाबान जंगि ईग अया है। ईसका रोम-रोम कांपने िगा। ईसने अस-पास खड़े िोगों ने

हनगाहें डािीं। हहसक हशकारी तेज नाखूनों से ईस पर हमिा करने की तैयारी कर रहे हैं।’’ कमि ईपाध्याय के मनोभािों

का चररत्रांकन करते हुए पूरी भीड़ को घृणा और ऄपमाहनत करने की िृहत्त के नेपथ्य में िैषम्य एिं जाहतगत व्यिस्था के

सच को कहानीकार ने ईजागर ककया है। सहानुभूहत से स्िानुभूहत के बोध का रचनात्मक एहसास कराते हुए ओमप्रकाश

िाल्मीकक संिेदना को और घनीभूत करते हैं। कमि ईपाध्याय को ईस घटना से जो महसूस हुअ ईससे ईसे हपछिी बातें

याद अइ,“ईसने पहिी बार ऄखबारों में छपी ईन खबरों को हशद्दत से महसूस ककया। हजस पर हिश्वास नहीं कर पाता था

िह। फिाँ जगह दहित युिक को पीट-पीटकर मार डािा, फिाँ जगह अग में भून कदया। घरों में अग िगा दी। जब-जब भी हरीश आस तरह का समाचार कमि को सुनाता, िह एक ही तकष दुहरा देता था।...‘हरीश ऄपने मन से हीन भािना

हनकािो। दुहनया कहाँ से कहाँ हनकि गइ और तुम िोग िहीं के िहीं हो। ईगते सूरज की रोशनी में देखो। ऄपने अप पर हिश्वास करना सीखो। पढ़-हिखकर उपर ईठोगे तो सब कुछ ऄपने-अप हमट जाएगा।’ िेककन आस िक्त कमि के सामने

हरीश का एक-एक शब्द सच बनकर खड़ा था। सच साहबत हो रहा था।’’

‘सिाम’ कहानी में घटनाओं के कक्रया-व्यापार के माध्यम से कहानीकार ने सहानुभूहत और स्िानुभूहत के सिािों को

ऄथषिान बनाया है। अत्मानुभूहत के माध्यम से कमि ईपाध्याय को हरीश के द्वारा सुनी गइ दहित ईत्पीड़न की घटनाओं

पर हिश्वास होता है। दहित िेखक आन्हीं एहसासों से समाज को पररहचत कराना चाहता है और सामाहजक पररितषन के

हिए सिषसमाज को एकजुट करना चाहता है, हजससे समाज में व्याप्त भेदभाि, ऄन्याय और ऄपमान खत्म हो तथा

एकतापरक समाज का हनमाषण का रास्ता खुि सके। ‘सिाम’ प्रथा आसीहिए परम्परा का हहस्सा बनती चिी गइ होगी

क्योंकक आससे होने िािे ऄपमान का एहसास ऄन्य समाज के िोगों एिं िेखकों को नहीं था। दहित िेखन आसी सन्दभष में

हिहशष्ट िेखन है।

5.‘सिाम’ में हचहत्रत ऄस्पृश्यता, ऄसमानता और जाहतगत िचषस्ि

ऄपमान और ऄनादर की अत्मानुभूहत से चोरटि कमि ईपाध्याय के जेहन में पन्रह िषष पुरानी घटना की स्मृहत मात्र से

कहानी में ऄस्पृश्यता और ऄसमानता की तस्िीरें ईभर अती हैं। कमि ऄपने दोस्त हरीश को जब पहिी बार ऄपने घर िे

गया था और ऄपनी माँ से हमििाने के बाद खाना खाते समय मुँह में पहिा कौर रखते ही हरीश की जाहत का भान होते ही

कमि की माँ का अग-बबूिा होना तथा कमि को झन्नाटेदार थप्पड़ का पड़ना, हरीश को हरामी अकद ढेर सारी गाहियाँ

देकर घर से भगा देना और आस दुत्कार, फटकार से हरीश का बुरी तरह अहत होना तथा कमि के बािमन का फटी-फटी

अँखों से माँ के गुस्से से भरे चेहरे को देखते रह जाना, कहानी के ऐसे संिेदनशीि हचत्र हैं, हजससे हहन्दू सामाहजक-धार्ममक व्यिस्था का िैषम्य पहिू ईजागर होता है। ओमप्रकाश िाल्मीकक हरीश और कमि ईपाध्याय के बािमन के मनोभाि का

हचत्रण करते हैं, “ईसे पहिी बार िगा था कमि और िह दोनों ऄिग-ऄिग हैं। दोनों के बीच कोइ फासिा है। ’’ “कमि के

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बािमन में भी एक दरार पैदा हो गइ थी। िह चुपचाप जाकर ऄपने

कमरे में िेट गया था। ढेरों सिाि ईसके मन को कचोट रहे थे अहखर माँ ने ऐसा क्यों ककया? क्या कमी है हरीश में?

कदनभर ईसने कुछ नहीं खाया था।’’ हरीश को दुत्कार कर भगा देने के बाद कमि की माँ द्वारा पूरे घर की धुिाइ और गंगाजि हछड़ककर जमीन का पहित्र ककया जाना अहखरकार ककस सभ्यता और संस्कृहत का सूचक है? ऄस्पृश्यता के दंश को झेिने िािे समाज के हिए अज भी ढेरों कानून बन गए हैं, संिैधाहनक व्यिस्था भी िागू है परन्तु भारतीय समाज ऄस्पृश्यता से ऄभी पूणषतः मुक्त नहीं हो सका है। समाज में मौजूद ऄसमानता और जाहतगत िचषस्ि ने ऄस्पृश्यता को िैध बना रखा है। ‘सिाम’ कहानी भेदभाि की िैधता पर सिाि ईठाती है और आसके खात्मे की पृष्ठभूहम तैयार करती है।

ऄसमानता और िचषस्ि की मानहसकता सभी िणों जाहतयों में है। यह एक मनोरोग की तरह व्याप्त है। ‘सिाम’ कहानी में

हचहत्रत बल्िू रांघड़ के िचषस्ि और जाहतगत रिैये से िेखक ऄसमानता के िैहचत्र्य का सटीक रेखांकन ककया है। ‘सिाम’

प्रथा की परम्परा को बनाए रखकर दहितों के स्िाहभमान को रौंदने की प्रिृहत्त को हजन्दा रखने का काम एक रांघड़ समाज कर रहा है। ऄसमान हहन्दू व्यिस्था में जीने िािे समाजों की आस हिडम्बना के कारण ही भारत का हपछड़ापन बरकरार है।

‘सिाम’ कहानी ब्राह्मण बािक की अत्मानुभूहत और रांघड़ जैसी हपछड़ी जाहतयों के समुदायों में बरकरार िचषस्ि के भाि

के माध्यम से भारतीय सामाहजक संरचना की िैषम्यपूणष तहों को बेनकाब करती है तथा बुहनयादी बदिाि के हिए यह कहानी ईत्प्रेररत करती है।

6.‘सिाम’ प्रथा के हनहहताथष तथा अत्मसम्मान एिं गररमा की अकांक्षा

‘सिाम’ प्रथा मानिीय गररमा और अत्मसम्मान को रौदनें की प्रथा रही है। श्रमशीि िगों के पसीने पर पिने िािा हहन्दू

समाज ककस तरह स्िाहभमान को रौंदकर िचषस्ि का दम्भ भरता है ईसकी बानगी ‘सिाम’ कहानी प्रस्तुत करती है।

‘सिाम’ प्रथा को ईपहार और अमदनी से जोड़कर हििाह के नये जोड़े को शुरू से ही गुिाम बनाए रखने की मानहसकता

को जीहित रखा गया था, हजसका हिरोध हरीश और हरीश के घरिािे करते हैं। आस चेतना में हशक्षा की बहुत बड़ी भूहमका

रही है। डॉ. ऄम्बेडकर ने आसीहिए हशक्षा को प्राथहमकता दी थी। हशक्षा से ही मुहक्त का रास्ता तय ककया जा सकता है।

हशहक्षत नइ पीढ़ी का प्रहतहनहध पात्र हरीश ही आस कहानी में चेतना का नायक बना है, साथ ही कमि ईपाध्याय की

ईपहस्थहत से कहानी में हिहिधता अइ है। सिाम प्रथा के हिरोध में खड़ा हरीश ऄपने हनणषय में प्रहतरोधी चेतना का

प्रहतरूप एिं अत्महिश्वास और स्िाहभमान से भरा हुअ कदखाइ देता है। गािों की संरचना में परम्परा के नाम पर िचषस्ि

और शोषण की ऄनेक परम्पराएँ अज भी जीहित हैं। ईन परम्पराओं को जीहित बनाए रखने में धमषसत्ता की भी बड़ी

भूहमकाएँ होती हैं। मयाषदा और रीहत के नाम पर सुहिधाहीन दहितों का शोषण कैसे कायम रखा जा सकता है, आसका

प्रहतहबम्बन ‘सिाम’ में देखा जा सकता है। बल्िू रांघड़ ने बाराहतयों के सामने ही जुम्मन को फटकार िगाते हुए कहा,

“जुम्मन तेरा जंिाइ ऄब तक ‘सिाम’ पर क्यों नहीं अया। तेरी बेटी का ब्याह है तो हमारा बी कुछ हक बनता है। जो नेग- दस्तूर होता है, िो तो हनभाना ही पड़ेगा। हमारी बहू-बेरटयाँ घर में बैठी आन्तजार कर रही हैं। ईसे िे के जल्दी अ जा....।’’

नेग-दस्तूर के नाम पर गुिाम बनाए रखने की परम्परा को ग्रामीण समाज में िैधता आसहिए हमिी रही, क्योंकक िे दहित समुदाय ऄहधकार हिहीन हैं, भूहमहीन हैं, ईन्हें बेबस और िाचार बना कदया गया था। ईनके पास अत्महनभषर जीिन जीने

का कोइ मौका नहीं था। आसीहिए िे चेतनाहीन बने रहे, सताए जाते रहे, परन्तु हशक्षा ने ईन्हें ऄहधकार सम्पन्न बनाया, दहितों को ऄपने ऄहधकारों के प्रहत सचेत ककया। हशहक्षत नइ पीढ़ी में अ रहे बदिाि और ऄम्बेडकरिादी चेतना की िहर ने अत्मसम्मान और गररमा की अकांक्षा को बििती ककया। ‘सिाम’ पर न जाने की हजद और ऐसी प्रथा को बन्द करने की

पुरजोर कोहशश से हरीश का अत्मबि बढ़ गया। कमि ईपाध्याय ने हरीश की ओर देखकर महसूस ककया, “हरीश की

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HND : हहन्दी P12 : दहितसाहहत्य M 23 : सिाम

अँखों में अत्महिश्वास और स्िाहभमान के ईगते सूरज की चमक कदखाइ

पड़ रही थी। दोनों ने एक-दूसरे का हाथ गमषजोशी से दबाया। अँखों ही अँखों में एक-दूसरे को अश्वस्त ककया। नीम के पेड़ पर हरी नमष पहत्तयाँ हहि रही थीं, मानो हौसिा दे रही हों”।

हरीश और कमि ईपाध्याय की गमषजोशी और ईनकी अश्वहस्त से कहानीकार के सरोकारों एिं प्रहतबद्धता की हिराटता को

महसूस ककया जा सकता है। सम्पूणष समाज की जिाबदेही गैर हजम्मेदारी का बोध कराने की प्रिृहत्त ‘सिाम’ में देखी जा

सकती है। आन सब प्रहतबद्धताओं, हजम्मेदाररयों, सरोकारों के बीच हजस स्िाहभमान, अत्महिश्वास और अत्मसम्मान की

चेतना कदखाइ देती है, ईन्हीं के बीच सामाहजक जरटिता, संहिष्टता एिं जड़ता के हिस्तार की मानहसकता को भी

कहानीकार ईजागर करता है। ऄपमान, घृणा और िचषस्ि के हशकार पररिार एिं समाज में भी बाराहतयों का खाना बनाने

िािे को मुसिमान समझकर दीपू जैसे बच्चे द्वारा खाना खाने से मना कर देना स्कूिी हशक्षा और नइ पीढ़ी की सोच को

प्रभाहित करने िािी संस्कृहत को भी प्रश्न के कठघरे में खड़ा करके ओमप्रकाश िाल्मीकक ने कहानी को नया मोड़ दे कदया है।

भारतीय समाज की जरटितम परम्पराएँ, संस्कृहत एिं सोच को पुनर्मििेचन के हिए कहानीकार ने बाध्य ककया है।

7.हनष्कषष

शहर से गाँि में ब्याह के हिए गइ बारात से शुरू हुइ कहानी का ऄन्त 10-12 साि के बच्चे के मन में बैठी जाहत एिं धमष की

दीिारों की घृणा से होता है। बारात ठहराने के हिए गाँि का स्कूि खोि देने की प्रधान जी की हामी के बािजूद बाराहतयों

को ठहरने के हिए मात्र बारामदा ही हमि सका। हबजिी और पानी की सुहिधाओं से िंहचत ककए जाने की हििशताओं के

बीच शादी सम्पन्न होती है। दहित िगष में जन्में हरीश की शादी में दोस्त कमि ईपाध्याय का ऄहतररक्त ईत्साह और घर- पररिार के सदस्य की तरह सारी व्यिस्था में शरीक होना समाज की दूररयों को पाटने की कहानी बन जाती है। बारात में

गाँि गए कमि ईपाध्याय को घृणा, ऄपमान, हतरस्कार और जाहतगत िचषस्ि का एहसास तब होता है, जब ईसे चायिािा

चूहड़ा समझकर चाय नहीं देता, बहल्क बड़ी हहकारत भरे स्िर में फटकारता है। गाँि के बल्िू रांघड़का िड़का रामपाि

बड़ी भद्दी गाहियाँ देता है। आस घटना से कमि की संिेदना के तार झंकृत हो जाते हैं। 15 िषष पुरानी बातें ईसे याद अती हैं

जब हरीश को घर िाने और खाना हखिाते समय जाहत जान िेने पर ईसे ऄपनी माँ का झन्नाटेदार थप्पड़ खाना पड़ा था।

हरीश की िे बातें भी कमि को सच िगने िगती हैं जो ऄखबारों में छपी दहित ईत्पीड़न की घटनाओं को हरीश द्वारा सुना

करता था। कमि ईपाध्याय की अत्मानुभूहत से स्िानुभूहत और सहानुभूहत के प्रश्नों का ईत्तर कहानीकार ने रचनात्मक कसौटी के अधार पर कदया है। शादी की सुबह ‘सिाम’ पर बुिाने की हठधर्ममता एिं धमककयों से डरे हबना ईस प्रथा को न मानने कीहरीश की हजद ईसकी दहित चेतना से कहानी को िैचाररक पररप्रेक्ष्य हमिता है। हरीश और कमि की दोस्ती

तथा एक-दूसरे का सहयोग, साहनध्य एिं मैत्री से िेखक के सरोकारों को कहानी पुष्ट करती है। ‘सिाम’ कहानी ऄन्ततः

परम्परा एिं प्रथा के ऄमानिीय पहिुओं को ईजागर करते हुए ईसके नेपथ्य में काम कर रही जाहतप्रथा एिं िचषस्ि की

सोच को ईजागर करती है। यह कहानी ऄसमानता, ऄस्पृश्यता, भेदभाि एिं जाहतगत िचषस्ि की मानहसकता को बदिने

तथा समतापरक भारत के हनमाषण की अकांक्षा को साकार करने का िक्ष्य सामने रखती है। सम्पूणष समाज को सामाहजक हिषमता की सोच से मुक्त होने की कहानी के रूप में ‘सिाम’ को पढ़ा जाना चाहहए।

References