HND : हहन्दी P 15 : साहहत्य का आहतहास दर्शन M 15 : हिधेयिादी साहहत्येहतहास दृहि

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HND : हहन्दी P 15 : साहहत्य का आहतहास दर्शन M 15 : हिधेयिादी साहहत्येहतहास दृहि

हिषय हहन्दी

प्रश् नपत्र सं. एिं र्ीषशक P15 : साहहत्य का आहतहास दर्शन आकाइ सं. एिं र्ीषशक M15 : हिधेयिादी साहहत्येहतहास दृहि

आकाइ टैग HND_P15_M15

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश् नपत्र-संयोजक प्रो. मैनेजर पाण्डेय आकाइ-लेखक डॉ. गजेन्र कुमार पाठक आकाइ-समीक्षक प्रो. गोपेश् िर सिसह भाषा-सम्पादक प्रो. देिर्ंकर निीन पाठ का प्रारूप

1. पाठ का ईद्देश्य 2. प्रस्तािना

3. हिधेयिादी दर्शन और काव्य

4. आपाहलत ऄडोल्फ तेन का हिधेयिादी दर्शन 5. हिधेयिादी दृहि की हिधाएँ

6. काम्ते और तेन

7. साहहत्येहतहास लेखन और हिधेयिादी दृहि

8. अचायश रामचन्र र्ुक्ल की आहतहास दृहि

9. हनष्कषश

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1. पाठ का ईद्देश्य

आस पाठ के ऄध्ययन के ईपरान्त अप

 हिधेयिाद की ऄिधारणा को समझ सकंगे।

 तेन के हिधेयिादी दर्शन से पररहचत हो सकंगे।

 साहहत्य के आहतहास लेखन की हिधेयिादी दृहि से पररहचत हो सकंगे।

2. प्रस्तािना

हिधेयिाद ऐसा दर्शन है हजसमं तार्ककक और गहणतीय पद्धहत तथा ऐहन्रक ऄनुभिं को अहधकाररक ज्ञान के ऄनन्य स्रोत के रूप मं देखा जाता है। यह दर्शनर्ास्त्र और काव्य के बीच अधुहनक बहस की पररणहत है।

आहतहास दर्शन के ऄन्तगशत हिधेयिाद के प्रितशन का श्रेय ऄगस्त काम्ते (सन् 1760-1825) को जाता है। आससे पूिश आहतहास दर्शन और हिज्ञान को हबल्कुल ऄलग-ऄलग ऄनुर्ासन के रूप मं देखा जाता था। हिधेयिाद के ऄन्तगशत ऄगस्त काम्ते ने यह प्रहतपाददत करने का प्रयास दकया था दक हर प्रामाहणक ज्ञान िास्तहिक प्रमाण पर अधाररत होता है और प्रत्येक प्रामाहणक ज्ञान मं यह दािा ऄन्तभूशत होता है दक ऄंहतम रूप से स्िीकृत ज्ञान हिज्ञान ही होता है। यूरोप मं 17िं- 18िं सदी मं सांस्कृहतक प्रबोधन-अन्दोलन (Enlightenment movement) के बुहद्धजीहियं ने परम्परा की जगह तकश और व्यहििाद पर सिाशहधक जोर ददया। बुहद्धजीहियं का लक्ष्य परम्परागत हिश्वास को तकश के अधार पर चुनौती देकर समाज का पुनशहनमाशण करना था आसहलए हिज्ञान और िैज्ञाहनक प्रहिहध पर आनका ज्यादा जोर था।

3. हिधेयिादी दर्शन और काव्य

ऄगस्त काम्ते ने हिधेयिाद की व्याख्या सिशप्रथम सन् 1830 से 1842 इ. के मध्य प्रकाहर्त ऄपनी पुस्तक द कोसश आन पोहजरटि दफलास्फी मं र्ृंखलागत रूप से प्रस्तुत की थी। बाद मं ए जनरल व्यू ऑफ पोहजटीहिज्म पुस्तक मं काम्ते के

हिचारं का हिस्तार देखने को हमलता है। यह पुस्तक सिशप्रथम फ्रेंच मं सन् 1848 मं प्रकाहर्त हुइ, बाद मं सन् 1865 मं

आसका ऄंग्रेजी ऄनुिाद प्रकाहर्त हुअ। आन पुस्तकं मं हिधेयिादी प्रहिहध का हिकास ददखाइ देता है।

सामाहजक आहतहास के ऄध्ययन के हलए हिधेयिाद की अिश्यकता पर जहाँ ऄगस्त काम्ते ने हिचार दकया िहं साहहत्य के आहतहास-दर्शन मं हिधेयिाद का प्रादुभाशि आपाहलत ऄडोल्फ तेन (21 ऄप्रैल1825 से 5 माचश1893) के प्रभाि से हुअ।

हिधेयिाद पर हिचार करते हुए हमं काम्ते और तेन दोनं के हिचारं को देखना होगा। तेन फ्रेांसीसी साहहत्य के एक प्रमुख अलोचक और आहतहासकार थे। फ्रेांसीसी यथाथशिाद पर तेन का सिाशहधक प्रभाि था। साथ ही तेन समाजर्ास्त्रीय हिधेयिाद के प्रमुख हसद्धान्तकार और आहतहास दर्शन मूलक अलोचना के प्रथम प्रयोिा के रूप मं जाने जाते हं। साहहत्य का आहतहास दर्शन तेन के साथ ही र्ुरू हुअ माना जाता है। तेन का हिर्ेष महत्त्ि कला एिं साहहत्य के ऄध्ययन तथा

हिश्लेषण के हलए ईनके द्वारा बताइ गइ पद्धहत के कारण है। तेन ने आस सन्दभश मं तीन चीजं को सिाशहधक महत्त्ि योग्य माना– प्रजाहत, िातािरण और क्षण। ईन्हंने ऄंग्रेजी-साहहत्य के आहतहास मं प्रहतपाददत दकया दक दकसी भी साहहत्य के

आहतहास को समझने की धारणा ईससे सम्बहन्धत जातीय परम्पराओं, राष्ट्रीय और सामाहजक िातािरण एिं सामाहजक पररहस्थहतयं से ऄनुर्ाहसत होती है। (तेन के आन हिचारं का एहमल जोला, मोपांसा जैसे रचनाकारं की रचनाओं पर स्पि प्रभाि ददखता है।) तेन के आस हसद्धान्त का गहरा ऄसर ईनके समकालीन पाश्चात्य साहहत्य पर ददखाइ देता है।

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आनसाइक्लोपीहडया हिटाहनका मं यह स्िीकार दकया गया दक एहमल

जोला, मोपांसा की रचनाओं पर तेन के हिचारं का प्रभाि सहज ही देखा जा सकता है।

4. आपाहलत ऄडोल्फ तेन का हिधेयिादी दर्शन

तेन का हिधेयिादी दर्शन प्रजाहत, क्षण एिं िातािरण के अधार पर साहहत्य का िैज्ञाहनक हिहध से हिश्लेषण करने िाली

पद्धहत है। यहाँ पर यह हिचार करना अिश्यक है दक हिधेयिादी दर्शन के ऄन्तगशत जाहत, िातािरण एिं क्षण का तात्पयश क्या है? तेन के आन तीन र्ब्ददं या पदं के सूत्रीकरण के पीछे ऄसल सन्दभश क्या थे? हिधेयिादी दर्शन के ऄन्तगशत तेन ने

यह माना दक कोइ भी साहहत्य ईसके रचनाकार के िातािरण से ही जन्म लेता है, आसहलए ईस िातािरण का हिश्लेषण हमं ईस (रचे गए) साहहत्य को समझने मं सिाशहधक प्रभािी हसद्ध हो सकता है।

तेन ने हिधेयिादी दर्शन के ऄन्तगशत प्रजाहत र्ब्दद का प्रयोग दकसी धार्ममक या क्षेत्रीय समुदाय के हिहर्ि ऄथं मं नहं

दकया है। तेन ने प्रजाहत र्ब्दद का प्रयोग ईस सामूहहक सांस्कृहतक स्िभाि के रूप मं दकया है हजससे प्रत्येक व्यहि ऄचेतन रूप से संचाहलत होता है। ऐसे मं िह क्या है जो आस सामूहहकता से दकसी व्यहि को ऄलग करता है ? तेन के ऄनुसार िह क्षण होता है, एक हिर्ेष पररहस्थहत होती है जो दकसी व्यहि के स्िभाि को बनाती या हबगाड़ती है। तेन के आस क्षण को

पररभाहषत करते हुए जॉन एच. मूलर ने ऄपने प्रहसद्ध लेख आज अटश द प्रोडक्ट ऑफ आट्स एज़ मं हलखा है दक ‘व्यहि का

संहचत ऄनुभि ही क्षण है, तेन की क्षण सम्बन्धी ऄिधारणा ‘युगबोध’ से ज्यादा मेल खाती है।'

तेन ने प्रजाहत की धारणा को बहुत महत्त्ि ददया है। िे प्रजाहत के ऄन्तगशत व्यहि की सहज तथा िंर्ानुगत हिर्ेषताओं, मानहसक बनािट और र्ारीररक संरचना अदद की चचाश करते हं। ईन्हंने अयं का ईदाहरण देते हुए हलखा है एक प्रजाहत यद्यहप देर्काल की दृहि से दूर-दूर फैल जाती है, दफर भी ईसमं कुछ-कुछ समान हिर्ेषताएँ हमलती हं। फोन्तेन पर ऄपने

हनबन्ध मं ईन्हंने हलखा है, दकसी प्रजाहत की चररत्रगत हिर्ेषताएँ जलिायु, हमट्टी और आहतहास की महान घटनाओं की

ईपज होती है। चररत्र की बुहनयादी हिर्ेषताएँ प्रजाहत की हिहर्ि चेतना और सौन्दयाशनुभूहत मं प्रकट होती है। प्रजाहत चररत्र के ऄनुसार ही सौन्दयश के अदर्ं का हिकास होता है। सत्रहिं र्ताब्ददी के फ्रेांस मं फोन्तेन, पुनजाशगरणकालीन आंग्लैण्ड मं र्ेक्सपीयर और हमारे समय के जमशनी मं गेटे आसी प्रदिया की देन हं। एक र्हि के हिकास के ऄहतररि प्रहतभा

और क्या है और िह र्हि ऄपने देर् मं ही सहजता और पूणशता से हिकहसत होती है। िहाँ प्रहतभा हर्क्षा से बढ़ती है, आहतहास के दृिान्तं से र्हि ऄर्मजत करती है, जातीय चररत्र सुदृढ़ बनाती है और जनता से ईसे कभी-कभी चुनौती भी

हमलती है। तेन ने प्रजाहत की धारणा की व्याख्या मं ऄपने समकालीन डार्मिन के हचन्तन से भी मदद ली है। िे प्रजाहत की

चेतना और चररत्र की हिर्ेषताओं से ही ईसके आहतहास, कला और दर्शन अदद का कारण मानते हं।

तेन की दूसरी महत्त्िपूणश धारणा है िातािरण या पररिेर् की ऄिधारणा, हजसका प्रो. मैनेजर पाण्डेय ने ऄपनी दकताब मं

हिश्लेषण दकया है। िातािरण से तेन का अर्य मुख्यतः प्राकृहतक पररिेर् से है, लेदकन ईसके ऄन्तगशत िे सामहयक पररिेर्

को भी र्ाहमल करते हं। ईन्हंने हलखा है दक दुहनया मं मनुष्य ऄकेला नहं होता, ईसके चारं ओर प्रकृहत भी होती है, समाज भी होता है। ईसकी अददम प्रिृहियाँ तथा प्रजाहतगत हिर्ेषताएँ भौहतक-सामाहजक पररहस्थहतयं, घटनाओं अदद से प्रभाहित होती हं, कभी पुि होती हं कभी बदलती हं। ईन्हंने मानि स्िभाि और प्राकृहतक पररिेर् के बीच कायश- कारण सम्बन्ध हबठाने की कोहर्र् की और ईसके अधार पर साहहत्य की हिर्ेषताओं की व्याख्या की है। िे मानते हं दक यूनान और रोम के हिहर्ि प्राकृहतक पररिेर् से िहाँ के हनिाहसयं का स्िभाि बना है और ईसी स्िभाि की ऄहभव्यहि

ईनकी संस्कृहत, कला तथा साहहत्य मं हुइ है। ऐसे प्रसंगं मं िे कायश-कारण सम्बन्ध स्थाहपत करने के हलए बार-बार प्राणीहिज्ञान और जीिहिज्ञान की मदद लेते हं। ईन्हंने हलखा है दक मनुष्य समाज की हस्थहत भी िनस्पहतयं के समान होती है। एक ही हमट्टी, पानी और तापमान से हिहभन्न प्रकार के पेड़-पौधे पैदा होते हं। ईनके हिकास मं एक िम, एक

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व्यिस्था होती है, पूिाशपर सम्बन्ध भी होता है। तेन जब भी प्राकृहतक

पररिेर् और साहहहत्यक हिर्ेषताओं के बीच कायश-कारण सम्बन्ध देखने लगते हं तब िे प्रायः सरलीकरण के हर्कार हो

जाते हं। यह हस्थहत ईनके ऄंग्रेजी साहहत्य के आहतहास मं जगह–जगह ददखाइ देने लगती है। आसी सन्दभश मं प्रो. मैनजेर पाण्डेय का कहना है दक ‘ईनका िस्तुिाद भाििाद की गोद मं जा बैठता है।’

तेन की तीसरी धारणा क्षण का हिश् लेषण करते हुए प्रो. मैनेजर पाण्डेय ने हलखा है दक “आस धारणा के मूल मं युग चेतना

का हिचार है जो ईस समय जमशनी और फ्रेांस के हचन्तन मं जगह-जगह हमलता है। तेन के ऄनुसार एक युग मं कुछ प्रधान हिचार होते हं, ईनका एक बौहद्धक सांचा होता है जो पूरे समाज के हचन्तन को प्रभाहित करता है। हर युग मं मनुष्य की

एक पररकल्पना या ऄिधारणा होती है। मनुष्य की यह पररकल्पना अदर्श का रूप धारण कर लेती है, जैसे दक मध्यकालीन यूरोप मं िीर और पुजारी तथा अधुहनक काल मं दरबारी और िाक्-पटु। युग के प्रधान हिचार का प्रसार जीिन के सभी क्षेत्रं मं होता है, व्यिहार मं और हचन्तन मं। एक लम्बे समय के बाद ऐसे हिचार का धीरे-धीरे ह्रास होता

है और कोइ नया हिचार हिकहसत होकर प्रधान हिचार बन जाता है। यह दूसरा हिचार पहले से जुड़ा होता है। साथ ही

िह राष्ट्रीय प्रहतभा और समकालीन पररिेर् से जुड़कर नए प्रकार के हचन्तन और सृजन को प्रेरणा देता है। यद्यहप तेन ने

युग प्रधान हिचार को हिचारधारा नहं कहा है, लेदकन ईन्हंने ईसकी जैसी व्याख्या की है िह हिचारधारा की धारणा के

करीब है। यही नहं, िह गोल्डमान की हिश् िदृहि की धारणा का भी पूिाशभास कराती है। ईनकी क्षण की धारणा मं

संस्कृहत और साहहत्य की परम्परा की धारणा का भी समािेर् है। ईसमं परम्परा तथा समकालीनता, राष्ट्रीय प्रहतभा तथा

समकालीन सामाहजक सन्दभश के बीच के सम्बन्ध से संस्कृहत, कला तथा साहहत्य के हिकास की प्रदिया की ओर संकेत है।"

तेन के हिधेयिादी दर्शन का फ्रेांस की बौहद्धक संस्कृहत और साहहत्य पर व्यापक प्रभाि था। तेन का फ्रेांस के महान लेखक एहमल जोला के साथ हिर्ेष सम्बन्ध था। एहमल जोला के यथाथशिादी ईपन्यासं पर तेन के प्रभाि को एकमत से स्िीकार दकया जाता है। तेन का प्रभाि हिहभन् न देर्ं के राष्ट्रीय साहहहत्यक अन्दोलनं पर पड़ा। तेन के हसद्धांतं को अधार बनाकर यह साहबत करने की कोहर्र् की गइ की प्रत्येक देर् की ऄपनी पृथक साहहहत्यक-हिर्ेषताएँ होती हं और आसी

कारण साहहत्य के आहतहास मं ईन देर्ं के साहहत्य का ऄपना हिर्ेष महत्त्ि और स्थान होता है। बाद मं ईिर-अधुहनक हचन्तकं ने भी तेन की ‘जाहत, िातािरण और क्षण’ सम्बन्धी ऄिधारणा का दकहित बदले हुए ऄथं मं साहहत्य और सामाहजक आहतहास के सम्बन्ध को हिश् लेहषत करने के िम मं प्रयोग दकया। जैसे अलोचक जॉन चैपल ने ऄपनी

ऄिधारणा समहन्ित आहतहास को स्पि करने के हलए तेन की ऄिधारणा का प्रयोग दकया था।

महान दार्शहनक नीत्र्े के साथ भी तेन का पत्र-व्यिहार था। ईन्हंने ऄपनी प्रहसद्ध पुस्तक हबयोण्ड गुड एण्ड एहिल मं तेन को 'द ग्रेटेस्ट हलसििग हहस्टोररयन' की संज्ञा दी थी। ऑहस्िया के प्रहसद्ध ईपन्यासकार और नाटककार स्टीफेन ज्िेआग ने तेन पर ऄपना र्ोध द दफलॉसॉफी ऑफ आपोहलत तेन र्ीषशक से प्रस्तुत दकया।

5. हिधेयिादी दृहि की ददर्ाएँ

हिधेयिाद के अलोचकं का मानना था दक जाहत, िातािरण और क्षण की ऄिधारणा कलाकार की व्यहिगत हिर्ेषता

का ऄध्ययन करने मं ऄपयाशप्त है, जबदक कलाकार की व्यहिगत हनष्ठा और हिर्ेषता स्िच्छ्नन्दतािाद की प्रमुख हिर्ेषता

थी। तेन का हिधेयिादी दर्शन, हजसमं सामाहजक पहलू पर ज्यादा बल है, िह आसी स्िच्छ्नन्दतािाद के हिरोध मं अया

हुअ दर्शन है। यहाँ तक दक एहमल जोला, जो तेन का बेहद एहसानमन्द था; ने भी तेन के आस दर्शन पर अरोप लगाते हुए कहा दक एक कलाकार की हनजी प्रकृहत भी ईसे हिहर्ि कलाकार बना सकती है। कलाकार का िह िातािरण या देर्काल हमेर्ा सिाशहधक महत्त्िपूणश नहं होता, हजसमं ईसकी सामान्य हिचार पद्धहत का हिकास होता है। जोला ने ऄपने आस तकश के समथशन मं फ्रेांस के ही ईस समय के महान कलाकार एदुअदश मानेट का ईदहारण ददया था। फ्रेांसीसी आहतहासकार और

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अलोचक गुस्तािे लानसन् का मानना था दक ‘जाहत, िातािरण, क्षण’

प्रहतभा को तय करने िाले कारक नहं हं। ईनके ऄनुसार तेन ने हजतने बेहतर ढंग से सामान्य स्तर को व्याख्याहयत दकया

है ईस तरह महानता की व्याख्या नहं कर पाए हं।

एक दूसरी तरह की अलोचना भी तेन के हिधेयिादी दर्शन की हुइ है। आस अलोचना की मूल हचन्ता तेन की तीनं

ऄिधारणाओं मं मौजूद सम्भाहित दफसलन और िैज्ञाहनक अधार पर केहन्रत थी। ऑस्िीयाइ र्ैली िैज्ञाहनक हलयो

स्पाआटजर ने जाहत, िातािरण और क्षण के अपसी ऄिधारणात्मक सम्बन्ध पर ही सिाल ईठाया था। ईनके ऄनुसार आन तीनं ऄिधारणाओं के बीच का अपसी सम्बन्ध ही स्पि नहं है। ईनके ऄनुसार ‘क्षण’ को गैरजरूरी ढंग से बाकी दो

ऄिधारणाओं के साथ र्ाहमल दकया गया लगता है।

तेन कला तथा साहहत्य के दार्शहनक आहतहासकार और अलोचक थे। आस सदी के आहतहास लेखन मं हिधेयिादी दृहि, अलोचना मं ऐहतहाहसक पद्धहत और साहहत्य के समाजर्ास्त्र मं ऄनुभििादी दृहिकोण का हिकास ईनके हचन्तन से

प्रभाहित है। ईनकी अलोचना खूब हुइ। जमशनी के एक दार्शहनक हिलहेल्म डीलफे ने सन् 1883 मं ही यह स्थापना दी थी

दक एक िैज्ञाहनक एक घटना की व्याख्या ईसकी कारण भूत-पूिश घटनाओं के द्वारा करता है, जबदक आहतहासकार संकेतं

या प्रतीकं मं ईसका ऄथश समझने की कोहर्र् करता है। समझने की यह प्रदिया ऄहनिायशतः िैयहिक और अत्महनष्ठ भी

होती है।

तेन के दर्शन की अलोचनाएँ तरह-तरह से होती रहं। रूपिादी ईनकी अलोचना आसहलए करते हं दक तेन साहहत्य के

हििेचन मं सामाहजक सन्दभश पर जोर देते हं। लेखक के व्यहित्ि को महत्त्िपूणश मानते हं और रचना मं सामाहजक सत्य की

खोज करते हं। ऄनुभििाददयं को तेन की अलोचनात्मक दृहि पसन्द नहं अती। माक्सशिाददयं ने तेन की पद्धहत मं मौजूद सरलीकरण और याहन्त्रकता की अलोचना करते हुए भी ईनका सहानुभूहतपूिशक मूल्यांकन दकया है। रूसी हिचारक प्लेखानोि ने तेन के हचन्तन मं भौहतकिाद और भाििाद के ऄनमेल हमश्रण की अलोचना करते हुए कला और साहहत्य से

सम्बहन्धत हचन्तन के समाजर्ास्त्रीय दृहिकोण के हिकास मं महत्त्िपूणश योगदान के हलए ईनकी सराहना की है।

6. काम्ते और तेन

ऄगस्त काम्ते ने हजस हचन्तनधारा का अरम्भ दकया था, तेन मं ईसका हिकास ददखाइ पड़ता है। ऄध्ययन की हजस हचन्तनधारा का सूत्रपात काम्ते ने सामाहजक आहतहास के ऄध् ययन-लेखन के हलए दकया था, तेन ईसे साहहत्य आहतहास- दर्शन तक ले कर अते हं। तेन हिज्ञान के साथ सामाहजक हिज्ञान को भी आहतहास-दर्शन से जोड़ते हं। तेन का दृहिकोण ऐहतहाहसक था, पद्धहत िैज्ञाहनक थी और समसामहयक समाज ईनके हचन्तन के केन्र मं था।

7. साहहत्येहतहास लेखन और हिधेयिादी दृहि

तेन ने प्रजाहत, पररिेर् और युग को साहहत्य के हिकास का कारण माना है। लेदकन जब िे कायश-कारण सम्बन्ध की खोज करने लगते हं तब कभी प्रकृहतहिज्ञान की प्रणाली मं फँस जाते हं और कभी सरलीकरण के हर्कार हो जाते हं। ऄसल मं

हिधेयिादी प्रणाली मं ऄसम्बद्ध तथ्य एकहत्रत दकए जाते हं। ईसमं ऄन्तव्याशप्त मान्यता यह रहती है दक साहहत्य की

व्याख्या भौहतक हिज्ञानं की प्रणाहलयं से, कायश-कारण मीमांसा के द्वारा और बहहभूशत हनधाशरक र्हियं को ध्यान मं

रखते हुए दकया जाता है। हिधेयिाद का एक महत्त्िपूणश ईद्देश्य िस्तुहनष्ठता, हनिैयहिकता और हनश्चयात्मकता जैसे

सामान्य िैज्ञाहनक अदर्ं के ऄनुकरण का प्रयास है। आसके साथ ही कायश-कारण सम्बन्ध और ईद्गम के ऄध्ययन के द्वारा

भौहतक हिज्ञान की प्रणाहलयं के ऄनुकरण की चेिा भी थी, जो दकसी भी पारस्पररक सम्बन्ध के हनदेर् को युहिसंगत ठहराती थी, बर्ते दक िह हतहथ िम पर अधाररत हो। ऄहधक संकीणशता से व्यिहृत होने पर िैज्ञाहनक कायश-कारण पद्धहत

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अर्मथक, सामाहजक और राजनीहतक पररहस्थहतयं के कारण हनधाशररत

कर दकसी साहहहत्यक हिर्ेषता की व्याख्या करती थी। कुछ हिद्वानं ने साहहहत्यक ऄध्ययन मं हिज्ञान की पररमाणमूलक प्रणाहलयं को भी समाहिि करने की कोहर्र् की थी। िे अँकड़ं और ताहलकाओं की सहायता से साहहहत्यक ऄध्ययन को

र्ास्त्रीय बनाना चाहते थे। हिद्वानं का एक ऐसा भी दल था हजसने साहहत्य के हिकास के सूत्रं के हनधाशरण के हलए, बड़े

पैमाने पर प्राणीर्ास्त्रीय हसद्धान्तं का व्यिहार दकया था। ‘आस प्रकार साहहत्य के ऄध्येता िैज्ञाहनक बन गए थे। चूँदक ईन्हं

एक ऄहनधाशरणीय पदाथश का ऄध्ययन करना था, आसहलए िे हनकृि और ऄयोग्य िैज्ञाहनक हसद्ध हुए। िे ऄपने हिषय और प्रणाहलयं के बारे मं सर्ंक बने रहते थे।’

ईन्नीसिं र्ताब्ददी मं हिधेयिाद का साहहत्येहतहास लेखन के हलए एक प्रणाली के रूप मं यूरोप मं बहुत प्रचार था। माना

जाता है दक हहन्दी मं आहतहास लेखन के हलए आस प्रणाली के ईपयोग का प्रथम प्रयास हग्रयसशन ने दकया था। साहहत्य के

आहतहास को प्रिृहतयं के अधार पर युगं मं बाँटकर देखना, युगीन-पररिेर् के प्रभाि एिं साहहत्य की सामाहजकता की

खोज हग्रयसशन को हहन्दी मं हिधेयिाद का प्रितशक आहतहासकार बनाता है। आसी कारण तुलसी का काव्य-कौर्ल ईन्हं बेहद प्रभाहित करता है। हग्रयसशन कहियं के व्यहित्ि तथा कृहतत्ि का िणशन तत्कालीन पररिेर् के अधार पर करते हं एिं आसी

अधार पर ईनकी साहहहत्यकता का हनधाशरण भी करते हं। िे स्पि रूप से कायश-कारण के सम्बन्ध-हनधाशरण को आहतहास लेखन के हलए अिश्यक मानते हं। आसी कारण ईन्हं कृष्ण, िाआस्ट के भारतीय ऄितार जान पड़ते हं और भहि अन्दोलन की प्रेरणा के रूप मं ईन्हं इसाआयत का प्रभाि ददखाइ देता है।

8. अचायश रामचन्र र्ुक्ल की आहतहास दृहि

अगे चलकर अचायश रामचन्र र्ुक्ल ने व्यापक रूप से ऄपने आहतहास लेखन के हलए हिधेयिादी प्रणाली का प्रयोग दकया।

हिधेयिादी प्रणाली का आहतहासकार एक ओर साहहत्य सम्बन्धी अँकड़े एकत्र करता है, दफर िह तत्कालीन सामाहजक जीिन का ऄध्ययन करता है और ऄन्ततः सामाहजक जीिन और साहहत्य मं कायश-कारण सम्बन्ध स्थापना का ईपिम करता है। अचायश रामचन्र र्ुक्ल ने ऄपने आहतहास मं यही पद्धहत ऄपनाइ है और साहहत्य को तत्कालीन जीिन की छाया

के रूप मं देखने-ददखाने का अयोजन दकया है। आस तरह उपरी धरातल पर सामाहजक जीिन और साहहत्य का सम्बन्ध स्थाहपत हो जाता है। ईदाहरण के तौर पर हम अचायश रामचन्र र्ुक्ल द्वारा दी गइ साहहत्य के आहतहास की पररभाषा पर गौर कर सकते हं। र्ुक्ल जी हहन्दी साहहत्य के आहतहास मं हलखते हं – “जब दक प्रत्येक देर् का साहहत्य िहाँ की जनता की

हचििृहत का संहचत प्रहतहबम्ब होता है, तब यह हनहश्चत है दक जनता की हचििृहि के साथ-साथ साहहत्य के स्िरूप मं भी

पररितशन होता चलता है। अदद से ऄन्त तक आन्हं हचििृहियं की परम्परा को परखते हुए साहहत्य परम्परा के साथ ईनका सामंजस्य ददखाना ही साहहत्य का आहतहास कहलाता है।” िातािरण और क्षण की ऄिधारणा का स्पि प्रभाि

र्ुक्ल जी की ईि पररभाषा मं ददखाइ देता है। प्रजाहत के रूप मं जनता स्पि रूप मं मौजूद है। तेन ने भी प्रजाहत र्ब्दद का

आस्तेमाल सामूहहक सांस्कृहतक स्िभाि के रूप मं ही दकया है। र्ुक्ल जी हजस प्रहतहबम्बन की बात करते हं, तेन के

हिधेयिाद मं िही क्षण है। तेन के यहाँ क्षण व्यहि एिं समुदाय का संहचत ऄनुभि ही है। आसी कारण कइ हिद्वानं ने तेन के आस ‘क्षण’ को युगबोध कहना ज्यादा ईहचत समझा है। िातािरण या पररिेर् के बदलने से साहहत्य के स्िरूप के बदलने

का स्िीकार र्ुक्ल जी की आस महत्त्िपूणश पररभाषा मं ददखाइ पड़ता है। हिधेयिाद का सामाहजकता पर हिर्ेष जोर था।

पहले भी चचाश की गइ है दक तेन का हिधेयिादी आहतहास दर्शन स्िच्छ्नन्दतािाद के हिरोध मं अया था। हिधेयिाद मं

यथाथश परक ऄहभव्यहि पर ज्यादा ध्यान ददया जाता है। यही कारण था दक र्ुक्ल जी छायािाद को सहज रूप से स्िीकार नहं कर पाए। हहन्दी साहहत्य के आहतहास मं अहिभूशत छायािाद पर पहश् च म के स्िच्छ्नन्दतािाद का प्रभाि स्पि था।

व्यहििाददता, प्रकृहत हचत्रण और कल्पना का प्रयोग आस युग की हिर्ेषता थी। हिधेयिादी हचन्तन आन सब चीजं को

स्िीकार नहं कर पाता, हिधेयिाद रूप पक्ष से ज्यादा िस्तु पक्ष को महत्त्िपूणश मानता है। आसका भी ऄभाि र्ुक्ल जी को

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HND : हहन्दी P 15 : साहहत्य का आहतहास दर्शन M 15 : हिधेयिादी साहहत्येहतहास दृहि

छायािाद के ऄस्िीकार का एक कारण दे देता है। र्ुक्ल जी ने हहन्दी

साहहत्य के आहतहास मं हलखा है दक – “आस तृतीय ईत्थान मं जो प्रहतितशन हुअ और जो पीछे ‘छायािाद’ कहलाया िह ईसी हद्वतीय ईत्थान की कहिता के हिद्द्ध कहा जा सकता है। ईसका प्रधान काव्य-र्ैली की ओर था, िस्तुहिधान की ओर नहं। ऄथशभूहम या िस्तुभूहम का तो ईसके भीतर बहुत संकोच हो गया। समहन्ित हिर्ाल भािनाओं को लेकर चलने की

ओर ध्यान न रहा।” ‘समहन्ित हिर्ाल भािनाएँ’ हजस पर हिधेयिाद का हिर्ेष बल होता है; की ईपेक्षा के कारण छायािाद र्ुक्ल जी को हिर्ेष ईम्मीद नहं जगा पाता।

अचायश रामचन्र र्ुक्ल की भहि अन्दोलन के ईदय की व्याख्या पर भी हिधेयिाद का प्रभाि पररलहक्षत होता है। जहाँ िे

आस्लाम के अगमन को भहि अन्दोलन के ईदय का सिाशहधक महत्त्िपूणश कारण मानते हं। यहाँ हिधेयिाद के कायश-कारण हसद्धान्त का ईपयोग करते हं। हिधेयिाद तथ्यं के पूणशरूपेण संकलन के बाद दकसी घरटत घटना के पीछे स्पि कारण की

खोज करता है। आहतहास मं घटी दकसी घटना के पीछे कोइ तात्काहलक कारण नहं होता। आहतहास एक लम्बे प्रदिया का

पररणाम होता है।

9. हनष्कषश

हिधेयिादी दृहि की यह सीमा है दक िह समाज को एक ठोस आकाइ के रूप मं देखती है। हिधेयिादी दृहि पर हिचार करते

हुए यह ध्यान रखना चाहहए दक समाज के ऄनेक स्तर होते हं; एक ही युग मं ईन पर पररहस्थहतयं का दबाि ऄलग-ऄलग प्रकार का होता है; ईसका प्रहतफलन भी ऄलग-ऄलग रूप मं ददखाइ देता है। आसहलए देखा जाता है दक एक ही युग के

साहहत्य मं हिहिधता हिद्यमान है। एक ही युग के साहहत्य मं हमं कइ तरह की प्रिृहतयाँ एक ही साथ ददखाइ दे जाती हं।

ये प्रिृहियाँ एक दूसरे की सहायक भी हो सकती हं और परस्पर हिरोधी भी। तुलसी और केर्ि एक दूसरे के समकालीन हं

पर दोनं की कहिता का स्िर एक नहं हं। दोनं की जीिन दृहि मं भी ऄन्तर है। तुलसी की कहिता मं जहाँ जनमानस बोलता है िहं केर्ि का काव्य काव्यर्ास्त्रीय जरटलताओं से ओत-प्रोत है। एक का काव्य ईसे लोकमंगलकारी बनाता है तो

दूसरे का काव्य ईसे करठन काव्य का प्रेत। आसी प्रकार तुलसी और कबीर के बीच भी पयाशप्त भेद है।यद्यहप दोनं कहियं की

कहिता का लक्ष्य समाज-कल्याण है तथाहप दोनं के दृहिकोण मं पयाशप्त ऄन्तर है। दोनं कहियं मं युग का ईतना बड़ा

ऄन्तर नहं है हजतना सामाहजक स्तर का। आसहलए लक्ष्य एक होते हुए भी दोनं की जीिन दृहि ऄलग है और कभी-कभी

तो परस्पर हिरोधी भी प्रतीत होती हं। हजन आहतहासकारं ने हिधेयिादी प्रणाली का ईपयोग करते हुए युगीन

िातािरण को तो देखा, लेदकन एक युग की हिहभन् न ऄन्तधाशरा पर गहराइ से हिचार नहं दकया, िे कइ जगहं पर सम्बन्ध स्थापन मं धोखा खा गए।

हिधेयिादी प्रणाली मं ऐहतहाहसक दृहिकोण को महत्त्ि ददए जाने के बािजूद कइ बार व्यिहार के स्तर पर आसका ऄभाि

ददखाइ देता है। तत्कालीन पररिेर् या युगीन पररहस्थहत के प्रभाि को ही हिधेयिादी आहतहासकार ज्यादा महत्त्ि देता

ददखाइ पड़ता है। दकसी भी साहहहत्यक प्रिृहत के पीछे एक दीघशकालीन परम्परा होती है, जो धीरे-धीरे ही प्रकार् मं अती

है। आसहलए दकसी भी साहहत्य के हििेचन मं हजतना महत्त्ि युगीन पररहस्थहत का होता है, ईतना ही ईसके आहतहास का।

ईसकी दीघशकाल से चली अ रही परम्परा का भी महत् ि होता है। आसी दृहि के ऄभाि मं ही हहन्दी साहहत्य के कइ आहतहासकरं ने भहि अन्दोलन को आस्लामी अिमण की प्रहतदिया माना और रीहतकालीन र्ृंगार-प्रधान काव्य की

रचना के पीछे दरबारी मनोिृहत को प्रधान कारण माना। आसी तरह छायािादी काव्य अन्दोलन को हद्विेदी-युग के हिरोध स्िरूप अया हुअ माना गया और प्रगहतिादी काव्य अन्दोलन को छायािाद और प्रयोगिादी काव्य अन्दोलन को

प्रगहतिाद के हिरोध मं अया हुअ माना गया। आस तरह के आहतहास लेखन की प्रणाली से ऄधूरी सच्छ् चाइ ही सामने अती

है क्यंदक तात्काहलकता के दबाि मं दीघशकालीन प्रभािं का हिश् लेषण आस पद्धहत मं ईपेक्षणीय रहता है।

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HND : हहन्दी P 15 : साहहत्य का आहतहास दर्शन M 15 : हिधेयिादी साहहत्येहतहास दृहि

हिधेयिाद की आन सीमाओं के बािजूद, हिधेयिाद ने हिज्ञान और

साहहत्य को साहहत्य-आहतहास की हचन्तन परम्परा मं र्ाहमल करने का द्वार खोला। आसहलए हिधेयिादी दर्शन को

समझना और ईस पर हिचार करना साहहत्य के आहतहास दर्शन के हलए अिश्यक है।

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