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HND : हहन्दी P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M4 : प्लेटो का साहहत्य हचन्तन

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HND : हहन्दी P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M4 : प्लेटो का साहहत्य हचन्तन

हिषय हहन्दी

प्रश् नपर सं. एिं शीषषक P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र आकाइ सं. एिं शीषषक M4 : प्लेटो का साहहत्य हचन्तन

आकाइ टैग HND_P14_M4

प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष जाट प्रश् नपर-संयोजक प्रो. ऄरुण होता

आकाइ-लेखक प्रो. रहि श्रीिास्‍तति

आकाइ-समीक्षक प्रो. एस.सी. कुमार भाषा-सम्पादक प्रो. देिशंकर निीन

पाठ का प्रारूप

1.

पाठ का ईद्देश्य

2.

प्रस्‍ततािना

3.

ऄनुकरण का हसद्धान्त

4.

कला और नैहतकता

5.

कहिता और समाज

6.

हनष्कषष

(2)

HND : हहन्दी P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M4 : प्लेटो का साहहत्य हचन्तन

1.

पाठ का ईद्देश्य

आस पाठ के ऄध्ययन के ईपरान्त अप–

 प्लेटो की कला सम्बन्धी मान्यताओं की पृष्ठभूहम जान पाएँगे।

 प्लेटो के 'ऄनुकरण हसद्धान्त' को समझ पाएँगे।

 'कला और नैहतकता' पर प्लेटो के हिचार समझ सकंगे।

 प्लेटो के काव्य एिं कलाकार सम्बन्धी हिचारं का मूल्यांकन कर सकंगे।

2. प्रस्‍ततािना

पाश् चात्य काव्यशास्‍त र मं प्लेटो के काव्यशास्‍त रीय हचन्तन का हिशेष महत्त्ि है। िे पहश् चम के पहले काव्यशास्‍त रीय हचन्तक हं। ईनके हचन्तन का दूरगामी प्रभाि परिती साहहत्य हचन्तकं पर भी खदखता है। ऄरस्‍ततू के 'ऄनुकरण के हसद्धान्त' की नइ व्याख्या प्लेटो के हचन्तन का ही प्रहतफलन है। 'ऄनुकरण हसद्धान्त' के जररए प्लेटो ने सम्पूणष कला मनीहषयं के सामने एक गम्भीर प्रश् न खड़ा खकया खक कला मानि समाज के हलए क्ययं जरूरी है? कला और नैहतकता के अपसी सम्बन्धं पर हिचार करते हुए प्लेटो ने कहि एिं कलाकार की सामाहजक ईपयोहगता पर बहस शुरू की।

यूनान के दाशषहनक हचन्तन मं इ.पू. तीसरी-चौथी सदी का समय चार महान दाशषहनकं के ईदय का समय है। आस दौर मं

हजन प्रबुद्ध दाशषहनक तथा साहहत्य-मनीहषयं ने ऄपने हचन्तन मं साहहत्य-हििेक का पररचय खदया, ईनमं सुकरात, प्लेटो, ऄरस्‍ततू, अआसाक्रेरटज प्रमुख हं। बाद मं ईस परम्परा मं हथयोफ्रैस्‍तटस का नाम और जुड़ गया। प्लेटो हिद्वान दाशषहनक थे।

तकष-हिद्या ईन्हंने ऄपने गुरु सुकरात से सीखी। सुकरात के साथ ऄपने संिादं मं ईन्हंने कहिता-सुखाहन्तकी-दुखाहन्तकी

के ऄलािा राजनीहत, अचार-शास्‍त र, हशक्षा-दशषन अखद पर तकष खकया। ऄनेक संिादं के ऄन्तगषत भाषण कला, भाषा, साहहत्य और समाज, कला और नैहतकता, तकषशास्‍त र अखद का हििेचन भी हमलता है। ये संिाद गोर्जजयास एण्ड फ्रीडस, क्रौरटलस, प्रोटागोरैस, अयॉन, ररपहललक तथा लॉज अखद ग्रन्थं मं ईपललध हं। यं तो सामाहजक जीिन के हिहिध सन्दभं को सुकरात ने ऄपनी हिलक्षण तकषशहक्य त से ईजागर खकया, खकन्तु कहिता, साहहत्य ऄथिा कला के क्षेर मं चलाइ गइ ईनकी हिश् लेषण-पद्धहत को ऄपनाकर प्लेटो ने साहहत्य-सम्बन्धी प्रश्नों का हल ढूँढ़ना शुरू खकया। आस पाठ मं ईसी का

ऄध्ययन ऄहभप्रेत है।

3. ऄनुकरण का हसद्धान्त

प्लेटो ने कला को ऄनुकरण कहा। बाह्य जगत के हिहिध रूपं का ऄनुकरण ही कला है। प्रो. एम.एच. एब्राम्स ने ऄपनी

पुस्‍ततक द हमरर एण्ड द लैम्प मंऄनुकरण की आस खक्रया के चार ऄियि बताएँ हं– कलाकार, कलाकृहत, भौहतक जगत एिं

दशषक-पाठक ऄथिा श्रोता

भौहतक जगत (यूहनिसष)

(कलाकृहत) (ऄनुकरण)

कलाकार श्रोता, दशषक ऄथिा पाठक

(3)

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(द हमरर एण्ड द लैम्प, पृ. 06)

प्लेटो के पूिषिती हचन्तक सुकरात के ऄनुसार हचरकला, कहिता, संगीत, नृत्य एिं िास्‍ततुकला अखद सभी ऄनुकरण हं।

ईनके यहाँ ‘ऄनुकरण’ सम्बन्धिाचक ऄिधारणा है, जो दो पक्षं एिं ईनके पारस्‍तपररक सम्बन्ध का बोध कराता है–

ऄनुकरण की खक्रया और ऄनुकरण की िस्‍ततु। खकन्तु प्लेटो के दाशषहनक संिाद मं ऄनुकरण तीन स्‍ततरं पर सखक्रय खदखाता

है– हिचारं का शाश् ित एिं ऄपररितषनशील स्‍ततर; रूपात्मक हचरं का भौहतक जगत, हजसे लहलत कला कहते हं; और पूिषहनधाषररत अदशष रूपं के ऄनुकूल कला एिं साहहत्य मं ईनकी यथाित ऄनुकृहत। (द हमरर एण्ड द लैम्प, एब्राम्स, पृ. 7) ररपहललक के दशिं ऄनुच्छेद मं आन तीन स्‍ततरं की और ईनके सम्बन्धं की ऄलग-ऄलग व्याख्या सुलभ है। कला की प्रकृहत की व्याख्या करते हुए प्लेटो के साथ एक संिाद मं सुकरात बताते हं खक एक पलंग के तीन रूप हं; पहला, पलंग का

हिचार। यह हिचार ही ईस पलंग का सार तत्त्ि है। इश् िर द्वारा हनर्जमत होने के पररणामस्‍तिरूप हिचार तत्त्ि ही परम सत्य है, ऄतः शाश् ित और ऄपररितषनशील भी है। दूसरा है बढ़इ द्वारा हनर्जमत पलंग जो ईस हिचार का ऄनुकरण है। तीसरा है, हचरकार द्वारा हचहरत पलंग जो बढइ द्वारा हनर्जमत पलंग का ऄनुकरण है। सुकरात का प्रश् न हं, खक पलंग का कौन-सा रूप अदशष रूप है? ईत्तर है, इश् िर द्वारा सृहजत पलंग का हिचारपरक रूप।

सुकरात के ईक्त हिचारं के अधार पर प्लेटो का तकष है खक कहिता और कला ऄनुकरण है – अदशष हिचारं (‘एलसल्यूट अआहडया’) का नहं, ईसके सारतत्त्ि का नहं, ईनके प्रहतहबम्ब भौहतक जगत के बाह्य रूपं का। आसहलए कला अदशष हिचार से िस्‍ततुओं की श्रेणी-शृंखला-पदानुक्रम मं हनचले दजे की िस्‍ततु है। प्लेटो के ऄनुसार चूँखक हिचारं का सत्य न केिल इश् िर बहल्क ईसकी गुणित्ता एिं मूल्य की भी केन्रीय धुरी है और कला ईससे हतहरी दूरी पर है, आसहलए यह स्‍तितः हसद्ध है खक कला परमसत्ता की ऄच्छाइ एिं सौन्दयष से भी ईतनी ही दूर है, ऄलग है।

प्लेटो के ऄनुसार कला मं ऄनुकरण की व्याख्या समेत भौहतक जगत के सारे ईपादानं का हिश् लेषण मं एक ख़ास दाशषहनक दृहि है, हिचारं का सत्य। भौहतक जगत ईसका प्रहतहबम्ब मार है। िहाँ हिचारं के साथ िस्‍ततुओं की हनकटता और दूरी

ईनकी हिश् िसनीयता एिं ऄहिश् िसनीयता की कसौटी है। आस तकष से कलाकार ऄहनिायषतः दाशषहनक, राजनीहतज्ञ, नीहतज्ञ, कानूनहिद, कारीगर अखद का स्‍तिाभाहिक प्रहतद्वन्द्वी बन जाता है और परमसत्ता से ऄपनी हतहरी दूरी के कारण ईसकी कला न केिल हमथ्या प्रतीत होने, पररणामस्‍तिरूप ऄसफल हसद्ध होने के हलए ऄहभशप् त है, बहल्क सामाहजक अधार पर तुलना मं कलाकार और कहि दूसरे-तीसरे दजे के नागररक हं। खफर अदशष गणराज्य मं ईनकी जरूरत ही क्यया

है? ईन्हं देश-हनकाला दे देना चाहहए।

बढइ पलंग बनाता है, पलंग की धारणा ईसके मन मं होती है। आस मूल धारणा का हनमाषता िह खुद नहं होता। आस धारणा का हनमाषता इश् िर होता है। मनुष्य के ईपयोग मं अने िाली हजतनी अिश्यक िस्‍ततुएँ है, ईसकी मूल धारणा का

हनमाषता िह अदशष हशल्पी है, हजसे इश् िर कहते हं। आसी तरह सभी िस्‍ततुओं की मूल धारणा एक है, यह हिश् िास धमष है।

िस्‍ततुओं को एक ही धमष से बँधा मानना, ऄथाषत इश् िरीय आच्छा का प्रहतहबम्ब मानना, भाििाद (‘अआहडहलजम’) है तथा

प्लेटो के तकषशास्‍त र का ऄध्यात्मिाद (‘मेटाखफहजक्यस’) है।

कहि बाह्य प्रकृहत और संसार का ऄनुकत्ताष है, खकन्तु प्रकृहत और संसार खकसी दैिीय आच्छा का प्रहतहबम्ब है। आसहलए ऄिास्‍ततहिक है। कहि बाह्य प्रकृहत का ऄनुकत्ताष है। आसहलए िह िास्‍ततहिक और यथाथष देिलोक से दूर है। कहि का

ऄनुकरण छायारूपी संसार का ऄनुकरण है। ऄतः ईसका ऄनुकरण कमष मृगमरीहचका है, हमथ्या है, क्ययंखक काव्य द्वारा

(4)

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सत्य का हनरूपण नहं हो सकता। अदशष देिलोक की ऄनुकृहत न होने के

कारण काव्य एिं कला मं न तो कोइ शहक्य त होती है, न ईसकी ईपयोहगता है। ईलटे िे मानिीय प्रिृहत्तयं को हिकृत करते

हं। अदशष गणराज्य मं केिल ईन्हं को स्‍तथान प्राप् त है, जो इश स्‍ततुहत करं, ऄथिा महापुरुषं की िन्दना करं।

प्लेटो ने कला को ऄनुकरणात्मक कहा। ईसके पीछे एक हनहश् चत दाशषहनक मतिाद था, हजसके भरोसे िे समझते थे खक आस ऄसार संसार के पीछे और परे देिलोक का सार युक्त संसार है और िही सत्य भी है। यह हमारे यहाँ के ‘ब्रह्म सत्यम् जगत्

हमथ्या’ जैसा है। यह दैिी संसार सत्यहनष्ठा, पहिरता, सौन्दयष अखद का संसार है। हजसका ऄनुकरण आस पार्जथि संसार के

कहि-कलाकार अखद करते हं। आसहलए ईसमं हिकृहतकरण का अना स्‍तिाभाहिक है। आसहलए श्रेष्ठ और ग्रहणीय िही है जो

मानि जीिन मं ईन्हं अदशं को प्रक्षेहपत करे, जो देिलोक के हं। काव्य एिं कला मं ऄनुकरणात्मकता िहं तक मान्य है

जहाँ तक िह मानि चररर मं ईस अद्य दैिीय संसार की हिभूहत की प्रेरणा जगाए, ईसका ऄनुकरण करे। आसी अधार पर ईन्हंने लहलत कला और ईपयोगी कला मं फकष खकया। लहलत कला िह है जो दैिीय अदशं के परे जाती है। ईपयोगी

कला िह है जो इश् िरीय शहक्य त के अदशं के प्रहत हिश् िास पैदा करती है। जाहहर है प्रथम के ऄन्तगषत काव्य, संगीत, हचर,

िास्‍ततु, नृत्य अखद कलाएँ थं। दूसरे के ऄन्तगषत दशषनशास्‍त र, अचारशास्‍त र, राजनीहत, क़ानून अखद थे। दोनं मं ऄब टकराि

ऄिश्यम्भािी था, हजसकी पररणहत कला और नैहतकता मं हुइ।

4. कला और नैहतकता

प्लेटो ऄपने दाशषहनक हिचारं से ऄध्यात्मिादी और राजनीहतक हिचारं से राज्यसत्तािादी एिं नैहतकतािादी थे। दोनं

की गहरी छाप ईनके कला-हचन्तन पर है। सारतत्त्ि ऄथाषत इश् िर हनर्जमत हिचारतत्त्ि से कला-कहिता-कलाकार-कहि के

हतहरे ऄलगाि के कारण, ईन्हंने नागररकं पर काव्य एिं कला के पड़ने िाले प्रभाि पर अपहत्त की। एम्ब्रास ने हलखा है,

“श्रोता पर ईसका बुरा प्रभाि पड़ता है। गरज खक िह (कहिता-कला-रासदी-सुखाहन्तकी, गीत, नाटक अखद) बाह्य रूपं के

ऄनुकरण हं, ईसके सारतत्त्ि के नहं। पररणामतः दशषक-पाठक मं अिेगं का जन्म होता है; हििेक एिं तकष का पतन होता

है। ऄनुकरण की प्रखक्रया मं कलाकार अिेगं पर ही रटके नहं रह सके। ईन्हं ऄपने अिेगं को भी िश मं रखना होगा तथा

इश् िरीय प्रेरणा का आन्तजार करना होगा।'' (ए हमरर एण्ड द लैम्प, पृ.9)”

ऄपने नैहतक अग्रहं के कारण प्लेटो काव्य एिं कला पर अक्षेप खकया खक िह मनुष्य को ईत्तेहजत करती है। ईसका सम्बन्ध मनुष्य के हनकृि जीिनऄंश एिं कुहत्सत भािनाओं से है। ईन्हंने ऄपने अदशष गणराज्य से कहियं-कलाकारं को बाहर कर देने को कहा, क्ययंखक हिकृत भािनाओं के ईरेक से राज्य-संचालन मं बाधा होती है। कहि नागररक सद्गुणं के हिपरीत प्रभाि ईत्पन् न करते हं। आसहलए गणतन्र के रक्षकं का कत्तषव्य है खक िे कहि-कलाकारं को राज्य से हनकाल दं।

‘ररपहललक’ के दसिं ऄनुच्छेद मं प्लेटो की राय है खक महाकाव्य या गीत के मृदुल संगीतमय स्‍तिर को ऄपनी सीमा से बाहर जाकर स्‍तिीकारने पर तकष और क़ानून के बदले हमारे राज्य के शासक दुखी हंगे। दशषन और कहिता मं पुराना झगड़ा है। (ए शॉटष हहस्‍तरी ऑफ़ हलटररी खक्रटीहसजम, हिम्साट एिं ब्रुक्यस, पृष्ठ-10)।

कहि-कलाकार का सम्बन्ध भािनाओं, ऄनुभूहतयं, अिेगं, संिेदनाओं एिं आहन्रयबोध से है। राज्य का सम्बन्ध तकष-बुहद्ध और कानून से है जो दाशषहनक के गुण हं। दोनं का हिरोध स्‍तपि है। प्लेटो के यहाँ कहि और दाशषहनक राजा के ऄन्तर्जिरोध से कला एिं नैहतकता मं हिरोध ईत्पन् न होता है, क्ययंखक दाशषहनक राजा ऄपनी तकष-बुहद्ध एिं हििेक से राज्य की नैहतकता

की रक्षा करता है और कहि-कलाकार हनःकृि जीिनऄंशं एिं कुहत्सत भािनाओं के ईरेक से ईसे नि करते है। आसी हबन्दु

पर प्लेटो के यहाँ दशषनशास्‍त र और साहहत्य का हिरोध है।

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प्लेटो ने कहियं-कलाकारं को देश हनकाला देने की पैरिी दो कारणं से

की – पहला कारण प्लेटो के दाशषहनक हचन्तन की सीमा है, जो ईनके समय और समाज के पूरे बोध की ऐहतहाहसक सीमा

भी है। दूसरा कारण कुलीनतन्र – दासं और माहलकं िाले समाज मं प्लेटो की सामाहजक हस्‍तथहत है। प्लेटो का दाशषहनक हचन्तन दास-प्रथा िाले यूनानी समाज की देन है। ईत्पादन और ईपभोग के बीच की खाइ का चौड़ा होना शेष था, जो

पूँजीिादी जरटल समाज व्यिस्‍तथा की ऄहनिायष पररणहत होती है। ईनखदनं प्रकृहत और मनुष्य का सम्बन्ध भी अज जैसा

िैमनस्‍तयपूणष न था। दोनं की अियहिक एकता प्लेटो के समाज की हिहशिता थी, हजसके मूल मं समस्‍तत प्राकृहतक खक्रया- व्यापारं के प्रहत एक नैसर्जगक अश् चयष भाि भरा था।

सभ्यता के हिकास के ईस प्रारहम्भक दौर ने ऐसी चेतना को जन्म खदया, हजसके ऄनुसार पूरा समाज खकसी अहधभौहतक सत्ता से हनयहन्रत एिं संचाहलत होने के कारण व्यिस्‍तथाबद्ध था। यह अहधभौहतक सत्ता प्लेटो के यहाँ एकमार अध्याहत्मक सत्य है, हजसे िह सािषभौम हिचार कहते हं। सृहि के मूल मं यही सािषभौम हिचार खक्रयाशील है, जो सत्य एिं पूणष है। ऄतः ऄपररितषनशील भी है। यही अद्यशहक्य त समस्‍तत यथाथष का अदशष रूप है, हजससे भौहतक चीजं की

पहचान होती है। सुदीप्तो कहिराज के ऄनुसार यूनानी हचन्तन मं भी यथाथष का सारतत्त्ि एक सम्पूणष पररघटना है जो

ऄपने अदशष रूप मं मौजूद होता है। प्लेटो ऄध्यात्मिादी दाशषहनक थे। आसहलए िे हिश् िास करते थे खक सभी यथाथष, रूप की हिकृहतयाँ हं, हजन्हं अदशष के हनकट लाने की अिश्यकता है। पररशुहद्ध के हलए यह ऄहनिायष है।

ऄथाषत प्लेटो के हलए कला का प्रश् न सौन्दयषशास्‍त र का प्रश् न न होकर सामाहजक व्यिस्‍तथा का प्रश् न है। ईनके ऄनुसार देश, समाज व्यहक्य त सभी की मुहक्य त इश् िर की समरूपता मं है; जो ज्ञान, दशषन और इश् िरीय हचन्तन से सम्भि है, लहलत कलाओं से नहं। कला-हनषेध की समस्‍तया दरऄसल सामाहजक संगठन एिं व्यिस्‍तथा से जुड़ी हुइ है। हिद्वानं की धारणा है

खक प्लेटो मातृ एिं हपतृपक्ष - दोनं से कुलीन थे। ईस कुलीनतन्र की सुरक्षा के हलए दाशषहनक हचन्तन को अध्याहत्मक औहचत्य प्रदान खकया गया।

5. कहिता और समाज

कुलीनतन्र के भीतर प्लेटो ने तकष, शहक्य त (हस्‍तप्रट ऑफ़ पॉिर) और भोग (एपीटाआट) के अधार पर ऄपने गणतन्र मं

नागररकं का कोरट हिभाजन खकया। ‘तकष’ के ऄन्तगषत दाशषहनकं एिं बुहद्धजीहियं को प्रथम स्‍तथान हमला। ‘शहक्य त ’ के

भीतर योद्धाओं-सूरमाओं एिं राजा को दूसरा स्‍तथान हमला। ‘भोग’ के ऄन्तगषत दोनं की सुहिधाओं एिं सामाहजक जरूरतं

को पूरा करने के हलए सामान जुटाने िाले दासं, कारीगरं, श्रमजीहियं का स्‍तथान सुरहक्षत हो गया। नागररक समाज का

यह हिभाजन बहुत कुछ भारतीय िणषव्यिस्‍तथा िाले समाज जैसा प्रतीत होता है।

प्लेटो कहि और कहिता से नाराज आसहलए थे खक िे सामाहजक हस्‍तथहत को ईलट-पलट देते थे। होमर ने आहलयड और ओहडसी मं दासं के ऄहधकारं एिं ईनके संघषं की कथा कही है। स्‍तपाटाषकस को महहमामहण्डत खकया है। प्लेटो की दृहि

से, ऄनुकरणकताष कहियं के साहहत्य द्वारा नागररक समाज के राजहनहतक, सामाहजक और िैचाररक जीिन मं ईच्छृंखलता

फैलने की बहुत सम्भािना थी और व्यहक्य त गत जीिन भी कलुहषत होने का खतरा था। ईन्हं स्‍तिभाितः ऐसा साहहत्य नापसन्द था जो न तो व्यहक्य त गत चररर को ईन् नत करे और न सामाहजक जीिन को श्रेष्ठ बनाए। ईनका ध्येय श्रेष्ठ समाज, श्रेष्ठ राजनीहतक हसद्धान्त तथा श्रेष्ठ नैहतक हनयमं की स्‍तथापना था। जब ईन्हंने देखा खक साहहत्य आन लक्ष्ययं से भटक गया

है, तब ईन्हंने कहियं-कलाकारं का घोर हिरोध खकया और ईन्हं ऄपने अदशष गणराज्य से हनष्काहषत करने को कहा।

यहाँ ईल्लेखनीय यह है खक श्रेष्ठ समाज, श्रेष्ठ राजनीहतक हसद्धान्त तथा श्रेष्ठ नैहतक हनयमं के मानदण्ड िही थे, जो

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कुलीनतन्र के थे और हजसे प्लेटो ने मनुष्य की कोरट-क्रम-शृंखला मं

बँधकर ईनकी सामाहजक भूहमका हनधाषररत कर दी थी।

यूनान के ऄनेक मानितािादी लेखक और कहि दास-प्रथा और कुलीन-तन्र को नापसन्द करते थे। नाटककार युरोपडीज ईनमं से एक थे। िे स्‍त री-स्‍तितन्रता एिं लोकिादी गणतन्र के पक्षधर थे। देमस्‍तथनीज ने एथंस के गणतन्र को नया

लोकिादी रूप देकर दासं की समस्‍तया को सुलझाना चाहा।

कुछ हिचारकं का मत है खक प्लेटो श्रेष्ठ काव्य और काव्यकारं के हिरोधी नहं थे। िे हिरोधी थे हीन कोरट के काव्य और ईच्छृंखल कहियं के, हजनसे ऄसन्तुि होकर ईन्हंने काव्य के हिरुद्ध हिचार खदए। सच् चाइ है िीरता, धैयष, संयम, पहिरता

अखद गुणं का अह्िान करनेिाले प्लेटो के हिचार से ग्राह्य हं। यहाँ श्रेष्ठ एिं ग्राह्य काव्य, नाटक अखद के हनदेहशत गुण दाशषहनक राजा और शूरतन्र के गुण हं, देिताओं के गुण हं। ईन्हं पर हलखा गया साहहत्य ग्राह्य होगा। दासं एिं श्रहमकं

के साहत्िक क्रोध, भय, इष्याष, दया, लालसा और संघषष हचरण से हृदय मं ऄश्रद्धा पैदा होती है, हजससे समाज को बहुत हाहन पहुँचती है। प्लेटो का तकष है खक सुसंगरठत समाज के हलए देिी-देिताओं के श्रेष्ठता का प्रदशषन ही िांछनीय है। खकन्तु

कहि ऄक्यसर ऐसी कथािस्‍ततु चुनकर काव्य रचना करते हं, हजनमं देिी-देिताओं के प्रहत मन शंकाकुल होता है। देश के

महान योद्धा भी ईद्दण्ड, हिद्वेषी और कलहपूणष रूप मं प्रदर्जशत होते हं, जो देिी-देिताओं के सामान ही सम्माननीय होते

हं। (अलोचना, आहतहास तथा हसद्धान्त, डॉ. एस.पी. खरी, हशिदान सिसह चौहान, राजकमल प्रकाशन, 1964)

ररपहललक मं जगह-जगह प्लेटो ने कहियं-नाटककारं का ईपहास खकया है। ईन्हंने रासदीकारं पर व्यंग्य करते हुए घोहषत खकया खक रैहजक कहि बुहद्धमान हं। िे तानाशाही के प्रशंसक हं। आस कारण हम ईन्हं ऄपने राज्य मं न अने दं, तो

आसके हलए िे हमं, हमारी जीिन-पद्धहत ऄपनाने िालं को क्षमा करंगे।... िे दूसरे नगरं मं पहुँचाते रहंगे और जनसमुदाय को अकर्जषत करंगे। मधुर, ईदात्त और प्रभािशाली स्‍तिर िाले व्यहक्य त यं को भाड़े पर ले अएँगे और नगरं को

तानाशाहहयं और जनतन्र की ओर खंचते रहंगे।... ये कहि, नाटककार एक राज्य एथंस से बाहर खकए गए तो दूसरे राज्य मं पहुँच जाएँगे। सुरीले गायक ईनकी कहिताएँ गाकर जनता को मन्र-मुग्ध करंगे। आसहलए ईन्हं यूनान की सीमा से बाहर कर दो। प्लेटो के हलए सबसे ज्यादा ऄखरने िाली बात यह थी खक लोग कहियं का सम्मान करते हं, पैसा देकर ईन्हं

बुलाते हं। जनतन्रिादी भी आस मामले मं पीछे नहं हं। खकन्तु हमारे लेखे संहिधान की पहाड़ी पर िे हजतना चढ़ते हं, ईनकी ख्याहत हगरती है और ईनकी साँस फूलने लगती है।

यूनान के महान रैहजडी लेखक होमर रचना-कौशल्य एिं भािकं पर ईनकी रचनाओं के प्रभाि के बारे मं प्लेटो का मत था

खक बुहद्धमान व्यहक्य त भी ईसमं प्रकट शोक से सहानुभूहतपूिषक रहित होते हं। जो कहि हमारे भािं को ईकसाता है ईसके

रचना-सौष्ठि की प्रशंसा करते िे नहं थकते। ईनकी राय मं ईन्हंने स्‍तपि राय दी खक अत्मा का श्रेष्ठतम ऄंश हििेक का

और हनकृितम ऄंश भािं का घर है। ईन्हंने स्‍तपि राय दी खक शोक से पीहड़त होकर भी हम ईसके हिरोधी शाहन्त और धैयष जैसे गुणं से काम लेते हं। आसी मं मदाषनगी है। बाकी जो पाठ सुनकर हम प्रसन् न होते हं, िह सब स्त्रैण प्रिृहत्त है

(ररपहललक, पृ. 481)। मनुष्य के दुखं को हजन कहि-नाटककारं ने हचहरत खकया, िह सब स्त्रैण प्रिृहत्त है, ऄहििेकपूणष है।

भािं का दमन और ईन पर ऄहिश् िास, प्लेटो के ईपयोगी कलाओं की श्रेष्ठता की कसौटी है, और यह जो हसफष कला ही

नहं हर िस्‍ततु को ईपयोहगता के तराजू पर तौलता है।

प्लेटो की एक प्रहसद्ध ईहक्य त है, ‘जो ईपयोगी है िही श्रेष्ठ है, जो हाहनकारक है िही हीन है।' (ररपहललक- II, द डायलाग्स ऑफ़ प्लेटो, पृ. 312) आस दृहि से तो होमर ही नहं, युरोपडीज, सोफोक्यलीज, एहस्‍तकलस एिं ऄररस्‍ततोफेनीज जैसे सभी

यूनानी रासदीकार की कृहतयाँ हाहनकारक एिं हीन हो जाएंगी, क्ययंखक ईनका सम्बन्ध मानि-मन की पेचीदा गुहत्थयं

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HND : हहन्दी P14 : पाश् चात्य काव्यशास्‍त र M4 : प्लेटो का साहहत्य हचन्तन

और ऄसम्भाव्य के सम्भाव्य से है। रासदी िहं से जन्म लेती है। प्लेटो के

ऄनुसार कहि-प्रकृहत ईस हचरकार की है जो मोची का प्रहतरूप बना देगा, जबखक िह मोची के काम के बारे मं कुछ नहं

जानता। ईसी तरह के दूसरे लोग, जो ईससे ज्यादा कुछ नहं जानते और केिल रंगाकृहतयाँ देखकर हनणषय करते हं, हचर से

सन्तुि हो जाते हं। (ररपहललकन, पृ. 475) बढ़इ पलंग बनाता है। ईससे समाज की एक अिश्यकता पूरी होती है। आसी

तरह मोची जूता बनाता है। ईससे लोगं की जरूरत पूरी होती है। कहि शलद रचना करता है। हचरकार रंगं-रेखाओं से

हचर बनाता है। ईससे समाज की कोइ जरुरत पूरी नहं होती। हलहाज़ा कहि और हचरकार बढ़इ और मोची से श्रेष्ठ नहं

हो सकते। यहाँ प्लेटो ने कहि-नाटककार के साथ हचरकार की भी सामाहजक ईपयोहगता स्‍तपि कर दी है।

ग्राम्शी ने ऄपनी हप्रजन डायरी मं व्यिहारपरक दशषन के ऄध्ययन की कुछ समस्‍तयाओं पर हिचार खकया है। ईन्हंने क्रोचे

की हिचार-प्रणाली की रुरट के बारे मं हलखा है खक ऄन्य भाििादी-अदशषिादी हचन्तकं की तरह ईनके यहाँ भी दाशषहनक दृहिकोण और राजनीहतक कमष के बीच एक फाँक खदखाइ देता है। यानी, एक हनहश् चत दाशषहनक मतिाद ऄहनिायषतः एक हनहश् चत राजनीहतक कमष की ओर ले जाता है, यह बोध प्लेटो के ‘मेटाखफहजक्यस’ मं हसरे से ऄनुपहस्‍तथत है। यही ईन्हं

हिश् िात्मा जैसे ऄमूत्तष, तरल एिं स्‍तिकहल्पत ऄटकल-पन्थ की ओर ले जाता है। यह प्लेटो के हाथ की सफाइ कहहए या

ईनकी हिलक्षण प्रहतभा का चमत्कार खक ईन्हंने काव्य और कला के प्रश्नों को रहस्‍तयिादी शलदािली प्रदान कर ईसकी

दुहनया को अध्याहत्मक सृजन की सिोत्तम ऄहभव्यहक्य त तक पहुँचाया; जहाँ प्रश् न िास्‍ततहिक सामाहजक-राजनीहतक सुरक्षा

का नहं, बहल्क कला की अध्याहत्मक साधना का था जो ऄन्ततः दशषनशास्‍त र की अत्ममुग्ध दुहनया मं ऄन्तधाषन हो जाता

है। कहने की जरूरत नहं खक हसद्धान्त से व्यिहार का, कमष से हचन्तन का यह असमानी-जमीनी ऄलगाि और यूनानी

समाज के यथाथष से उपर ईठकर हिचारं को बनाने की प्रिृहत्त ने प्लेटो को सामाहजक हजम्मेदाररयं से मुक्त रखा। कहियं- कलाकारं के प्रहत हतरस्‍तकारमूलक और हिद्वेषपूणष ऄिमानना स्‍तियं मं एक राजनीहतक कमष था, हजसकी ऄपररहायष पररणहत ‘अदशष गणतन्र’ की सीमा से रासदी लेखकं को खदेड़ देने मं हुइ, जो स्‍तियं एक रासदी थी।

प्लेटो के हचन्तन का ढाँचा थोड़े-बहुत संशोधनं के साथ सोलहिं सदी के लेबनीज तक बना रहा। यद्यहप ऄरस्‍ततू ने

ऄनुकरण एिं ऄनुकृहत की व्याख्या एकदम नए तरीके से की, खकन्तु प्लेटो के अध्याहत्मक हचन्तन का सुदृढ़ घेरा टूट नहं

पाया। िह टूटा औद्योहगक क्राहन्त के बाद। इश् िर ऄपदस्‍तथ हुए और प्लेटो के ऄध्यात्मिाद का ताना-बाना हबखर गया।

दुबारा ईसकी मरम्मत ऄसम्भि हो गइ। प्लेटो का साहहत्य-हचन्तन समकालीन राजनीहतक हलचल और सामाहजक हिघटन के एक दौर मं साहहत्य-सृजन को व्यिस्‍तथाबद्ध करने की ऐहतहाहसक भूहमका पूरी कर चुका था।

6. हनष्कषष

संक्षेप मं प्लेटो के ऄनुकरण हसद्धान्त ने कला को सच से हतहरी दूरी पर हस्‍तथत मानकर, ईसे एक झूठी ऄनुकृहत भर माना।

ईन्हंने कला को मनोभाि हिकृत करने िाला, सामाहजक हस्‍तथहत मं ईलट-पुलट कर देने िाला साधन कहकर ईसकी तीव्र अलोचना की। ईसके ऄनुसार यह राज्य के हलए ऄिांहछत था, आसहलए कहि एिं कलाकार को राज्य से बाहर हनकाल देना चाहहए। िस्‍ततुतः प्लेटो का यह हचन्तन ईनकी कला-सम्बन्धी मान्यताओं की ऄहतरेकी दृहि का पररणाम हसद्ध हुअ, हजसका ईनके समय मं ही खण्डन शुरू हो गया।

References