HND : हिन्दी P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भहिकालीन काव्य)
M7 : हनर्गुण भहिधारा : प्रहिरोध और सामाहिक रूपान्िरण
हिषय हिन्दी
प्रश्नपत्र सं. एिं शीषुक P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भहिकालीन काव्य)
इकाई सं. एिं शीषुक M7 : हनर्गुण भहिधारा : प्रहिरोध और सामाहिक रूपान्िरण
इकाई टैर् HND_P5_M7
प्रधान हनरीक्षक प्रो. रामबक्ष िाट प्रश्नपत्र संयोिक प्रो. चौथीराम यादि
इकाई लेखक सि लेखक
अहमष िमाु
डॉ. अहनरुद्ध कगमार इकाई समीक्षक प्रो. ििरीमल्ल पारख भाषा सम्पादक प्रो. देिशंकर निीन
पाठ का प्रारूप
1. पाठ का उद्देश्य 2. प्रस्िािना
3. हनर्गुण भहि-धारा में प्रहिरोध का स्िर 3.1. िाहि और िणु भेद का हिरोध 3.2. धार्ममक भेदभाि का खण्डन
3.3. कमुकाण्ड, आडम्बर और अन्धहि्ास क आलोचना
4. हनर्गुण भहि-धारा का सामाहिक रूपान्िरण
4.1 सामाहिक रूपान्िरण का प्रहिरोधी स्िर पर प्रभाि
5. हनष्कषु
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M7 : हनर्गुण भहिधारा : प्रहिरोध और सामाहिक रूपान्िरण 1. पाठ का उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के उपरान्ि आप -
• हनर्गुण भहि-धारा में मौिूद प्रहिरोध के स्िरूप को समझ सकेंर्े।
• हनर्गुण भहि-धारा का सामाहिक-सांस्कृहिक मित्त्ि पिचान सकेंर्े।
• समय के साथ हनर्गुण भहि-धारा में आए पररििुनों को रेखांककि कर सकेंर्े।
• हनर्गुण धारा के रूपान्िरण में मध्यकालीन र्हिशील सामाहिक-सांस्कृहिक शहियों क भूहमका िान सकेंर्े।
• हनर्गुण भहि काव्य का मूल्यांकन कर सकेंर्े।
2. प्रस्िािना
हनर्गुण भि-धारा मध्यकालीन भहि आन्दोलन का सबसे प्रर्हिशील स्िर िै। इसमें मौिूद प्रहिरोध का स्िर आधगहनक चेिना के बहुि हनकट िै। सामाहिक-सांस्कृहिक असमानिा और रूकियों क कड़ी आलोचना इसे अत्यन्ि मित्त्िपूणु बना
देिी िै। परन्िग यि स्िर समय के साथ बदलने लर्ा। इसके सामाहिक रूपान्िरण का प्रभाि इसक सामाहिक स्िीकृहि पर भी पड़ा, और प्रहिरोध के स्िर पर भी। ऐसे में हनर्गुण भहि-धारा में मौिूद प्रहिरोध का स्िरूप िानना िरूरी िै। इस प्रहिरोधी स्िर क प्रासंहर्किा, इसके सामाहिक सरोकार, हनर्गुण भहि-धारा के सामाहिक रूपान्िरण के कारक, और सामाहिक रूपान्िरण का हनर्गुण-धारा क प्रहिरोधी चेिना पर प्रभाि िानना बहुि िरूरी िै।
3. हनर्गुण भहि-धारा में प्रहिरोध का स्िर
हनर्गुण भहि-धारा को अन्य भहि-धाराओं से खास पिचान कदलाने िाली हिशेषिा उसक प्रहिरोधी चेिना िै। हनर्गुण साहित्य में मौिूद प्रहिरोध के स्िर ने रामचन्र शगक्ल को भी अपनी पिचान करा दी थी। हनर्गुण धारा के प्रहि नकारात्मक दृहि रखने के बाििूद उन्िोंने हिन्दी साहित्य में इस स्िर को रेखांककि करिे हुए हलखा कक, “बहुदेिोपासना, अििार और मूर्मिपूिा का खण्डन ये मगसलमानी िोश के साथ करिे थे और मगसलमानों क कगरबानी (हिसा), नमाि, रोिा आकद क असारिा कदखािे हुए ब्रह्म, माया, िीि, अनिद नाद, सृहि, प्रलय आकद क चचाु पूरे हिन्दू ब्रह्मज्ञानी बनकर करिे थे।”
(हिन्दी साहित्य का इहििास, पृ. 45, लोक भारिी प्रकाशन, इलािबाद) मध्यकाल में िाहि-व्यिस्था, धमु क िरि िी
बहुि िाकििर थी। कगछ हिचारक यि आरोप लर्ािे िैं कक कबीर, दादू आकद हनर्गुण सन्िों ने किीं भी रािा या सम्राट का
हिरोध निीं ककया। इनका प्रहिरोध हसर्ु िाहि और धमु को लेकर था। िब िे इिने उग्र थे िो ित्कालीन मगहस्लम शासकों
के प्रहि उदार क्यों थे? िालांकक इन कहियों ने कभी ककसी रािा का आश्रय ग्रिण निीं ककया. डॉ. रामबक्ष का मि िै कक हनर्गुण सन्ि सूर् कहियों क भााँहि ित्कालीन मगहस्लम शासकों के समथुक निीं थे। “यकद ऐसा िोिा िो िे भी सूफ कहियों कक भााँहि अपने ग्रन्थ के आरम्भ में ित्कालीन सम्राट क प्रशंसा करिे। ऐसा उन्िोंने ककसी स्थान पर निीं ककया िै।
उनक रचनाओं में राि कमुचाररयों क प्रशंसा में एक साखी भी निीं हमलिी िै, िालांकक उनका हिरोध उग्र या मगखर भी
निीं िै। यि हिरोध बड़े आए-र्ए ढंर् से प्रच्छन्न रूप से ककया हुआ िै।”(रामबक्ष, दादू दयाल, पृ. 97, साहित्य अकादमी, नई कदल्ली)
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िालांकक िािीय दमन का अत्यन्ि मगखर प्रहिरोध इन कहियों ने ककया िै। दादू दयाल ने एकाध स्थान पर ‘छत्रपहि
हसररमौर’ धारण करने िाले बादशाि को ‘कार्द का माणस’ किा िै। और समाि को हनभुय रिने का उपदेश कदया िै।
हनभुयिा यकद िीिन मूल्य िै िो यि हनभुयिा रािसत्ता के आिंक के हखलार् िै। सूकर्यों ने भी ित्कालीन शासकों के
सामने प्रेम का आदशु रखा था। प्रेम का यि सूर् आदशु भी दमनकारी सम्राटों को मानिीय बनाने का प्रयास िी िै। इस रूप में सूर् काव्य भी सत्ता का उिना समथुक प्रिीि निीं िोिा।
हनर्गुण कहि कििे िै कक ई्र का न कोई रूप िै, न रंर्। न उसक िेशभूषा िै और न उसका कोई स्थान। िि िो सब प्रकार के र्गणों और पिचान के हचन्िों से परे िै। यकद ई्र ऐसा िै िो उसक न िो कोई महस्िद िो सकिी िै न कोई महन्दर। िब आप महन्दर-महस्िद क अिधारणा से असिमि िैं िो आपका प्रहिरोध उस संर्रठि कमु से िो िािा िै, िो
ई्र का एक स्थान िय करिा िै। कर्र उस स्थान क पूिा-आराधना िोिी िै। आराधना क पद्धहियााँ हनहिि क िािी
िै। कर्र उसका एक पगिारी िोिा िै। प्रत्येक व्यहि स्ियं िो पूिा निीं कर सकिा। एक महन्दर में एक पगिारी िोर्ा या
अनेक िोंर्े। उन पगिाररयों क व्यिस्था िोर्ी। भर्िान को भेंट दी िाएर्ी। प्रसाद हििररि ककया िाएर्ा। यि सब काम पगिारी के माध्यम से सम्पन्न िोर्ा। इसके हलए व्रि िोर्ा। उपिास िोर्ा। रोिा रखा िाएर्ा। भर्िान को प्रसन्न करने के
हलए अनेक किया-कलाप हनहिि ककए िाएाँर्े। कर्र एक पगस्िक िोर्ी या अनेक पगस्िकें िोर्ी। उसमें ई्र सम्बन्धी
हििेचन िोर्ा। कगरान में सब हलखा हुआ रिेर्ा। िेद अन्यों को प्रमाण के रूप में प्रस्िगि ककया िाएर्ा।
धमु और समाि का यि सारा िन्त्र इस एक अिधारणा से हनरस्ि िो िािा िै कक ई्र िो हनर्गुण िै और िि सिु व्यापी
िै। हसर्ु महन्दर में निीं रििा। िि िो घट-घट व्यापी िै। सभी मनगष्यों में रििा िै। िो सभी मनगष्य समान िै। इस ई्र को भहि द्वारा, प्रेम द्वारा प्राप्त ककया िा सकिा िै।
3.1. िाहि और िणु भेद का हिरोध
इसी दशुन के आधार पर हनर्गुण भहि-साहित्य में िाहि के आधार पर मनगष्य को ऊाँचा-नीचा मानने का प्रहिरोध ककया
र्या िै। सन्ि कहि ब्राह्मण िर्ु के ब्रह्मा के मगख से पैदा िोने िाले हसद्धान्ि को चगनौिी देिे हुए पूछिे िैं कक -
िे िू बााँभन बभनी िाया, िो आाँन बााँट ह्िै कािे न आया।।
(पद-41, श्यामसगन्दर दास, कबीर ग्रन्थािली, नार्री प्रचाररणी सभा, िाराणसी, सं-2054, पृ. 79) सन्िों ने बिाया कक सब एक िी िरि के अियिों से यगि शरीर िाले िैं। सब एक िी ज्योहि से पैदा हुए िैं। कर्र कौन ब्राह्मण और कौन शूर?
एक बूाँद एके मल मूिर, एक चााँम एक र्ूदा।
एक िोहि थैं सब उिपनों कौन बरुन कौन सूदा।। (पद-156)
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एक ई्र क सन्िानों में कोई ऊाँचा, कोई नीचा निीं िो सकिा िै।
इसहलए छूआछूि बरिना र्लि िै। िे ब्राह्मणों के छगआछूि व्यििार क आलोचना करिे िैं - कािे को क िै पाण्डे छूि हिचार।
छूििी िे उपिा सब संसार।।
कबीर के अलािा अन्य हनर्गुण सन्िों के यिााँ िाहििादी हनम्निा का प्रहिरोध अपरािेय आत्महि्ास के रूप में सामने
आया। सन्िों ने अपनी िाहि और उसके कारण नीच समझे िाने को अपने दोष क िरि छगपाया निीं। उसके हिपरीि
उन्िोंने अपनी िाहि का स्पि उल्लेख कर मानो स्ियं को िाहि और िणु के कारण ऊाँचा मानने िालों को बेििर भि िोने
क चगनौिी दे डाली। रैदास ने अपनी िाहि और पररिन का उल्लेख करिे हुए हलखा कक - ऐसी मेरी िाहि हिख्याि चमार
(हिन्दी साहित्य का इहििास, लोकभारिी प्रकाशन, सन् 2013, पृ. 53)
हनर्गुण सन्िों के रूप में िाहि और िणु भेद सम्बन्धी प्रहिरोध के स्िर के नए आधार बौद्धों, हसद्धों के यिााँ हमल र्ए। इस प्रहिरोध का प्रसार और प्रभाि दूर और देर िक हुआ।
3.2. धार्ममक भेदभाि का खण्डन
भेदभाि से मगहि क आकांक्षा में िाहि और िणु-भेद के साथ िी हनर्गुण भहि-धारा ने धमु आधाररि भेदभाि के हखलार्
भी अपनी आिाि बगलन्द क । धार्ममक असमानिा के प्रहिरोध का इनका स्िर अत्यन्ि पैना और िीखा िै। यि अकारण निीं िै कक िनश्रगहियााँ मगल्लाओं और पहण्डिों को कबीर के हखलार् खड़ा कदखािी िैं। कबीर का धार्ममक भेदभाि, अन्धहि्ास और रूकियों के हखलार् स्िर कट्टरपन्थी हिन्दू और मगसलमानों को हिलहमला देने िाला िै। इन आलोचनात्मक पदों क खाहसयि यि िै कक एक िी पद में दोनों धमों क समभाि से आलोचना हमलिी िै। इन्िें हिन्दू और इस्लाम दोनों एक समान हप्रय या अहप्रय िैं। प्रेम क्या हनन्दा में भी हनर्गुण भहि हिन्दू-मगसलमान में भेद निीं करिी िै।
कबीर का एक पद िै -
अरे इन दोउन राि न पाइ।
हिन्दू अपनी करै बड़ाई, र्ार्र छगिन न देई।
िेश्या के पायन िर सोिैं, यि देखी हिन्दगिाई।
मगसलमान के पीर औहलया, मगरर्ा-मगरर्ी खाई।
खाला केरी बेटी ब्यािैं घरहि में करैं सर्ाई।
हिन्दगन क हिन्दगिाई देखी िगरकन क िगरकाई।
किै कबीर सगनौ भाई साधौ, कौन राि िै िाई।
हिन्दू छूि मानिे िैं, मर्र िेश्यार्ामी भी िैं। मगसलमानों के धमुर्गरु िी िीि हिसा करने िाले िोिे िैं और हनकट- सम्बहन्धयों से शादी करने िाले िोिे िैं। हनर्गुण सन्ि आडम्बर, अन्धहि्ास, कमुकाण्ड िी निीं, कगरीहि और अनाचार के
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हलए भी दोनों धमु के अनगयाहययों को एक िी भाि से हधक्कारिे िैं। दोनों
धमों के अनगयाहययों क बगराइयााँ कदखाकर सन्िों ने उन्िें सिी राि पर चलने को किा। हिन्दगओं क मूर्मिपूिा का हिरोध करिे हुए कबीर हलखिे िैं -
पािन पूिे िरी हमले, िो मैं पूिू पिाड़!
घर क चक्क कोई न पूिे, िाको पीस खाए संसार।।
पत्थर पूिने से यकद ई्र हमल सकिा िै िो पिाड़ को िी पूि हलया िाना चाहिए। यकद ऐसा न कर सकें िो पत्थर क बनी घर क चक्क िै, उसे क्यों भगलाया िाए, हिसका पीसा हुआ अन्न िम रोि खािे िैं। मूर्मिपूिा पर ककए र्ए ऐसे
कटाक्षों में भी एक िकु िै। इसी िकु आधाररि व्यंग्य शैली में कबीर ने मगसलमानों द्वारा अल्लाि को प्रसन्न करने के हलए नमाि अदा करने, कर्र िीि हिसा करने पर कटाक्ष ककया िै। कबीर ने हलखा कक कंकड़ पत्थर िोड़ कर महस्िद बनािे
िो। उस पर चिकर मगर्े क िरि हनयि समय पर बांर् देकर अल्लाि को क िरि हचल्लाकर बगलािे िो। क्या खगदा बिरा
िो र्या िै?
कांकर पाथर िोररके, महस्िद लई चगनाय।
िा उपर मगल्ला बांर् दे, क्या बिरा हुआ खगदाय।।
कबीर ने हिन्दू और इस्लाम, दोनों धमों क एक िी पद में आलोचना करके उनमें एकिा स्थाहपि करने का मार्ु बनाया िै।
यि िनसाधारण िक पहुाँच चगक समानिा क स्िीकृहि थी। इसहलए उनके यिााँ प्रायः हिन्दू और मगसलमान साथ-साथ आिे िैं। अलर्-अलर् पदों और एक िी पद में दोनों धमों क आलोचना िम देख चगके िैं। सूक्ष्म स्िर के रूप में इस आन्िररक स्िीकृहि को िम एक िी पंहि में दोनों धमों के समािेशन के साथ देख सकिे िैं। कबीर हलखिे िैं कक -
हिन्दू किें मोहि राम हपयारा, िगकु किें रिमाना, आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मगए, मरम न कोउ िाना।
हिन्दू को राम और िगकु (मगसलमान) को रिीम प्यारे िैं। दोनों आपस में लड़कर मर रिे िैं, लेककन ममु कोई न समझ सके।
यि ममु (रिस्य) राम रिीम के ऐक्य में िै। दो नाम सगनकर भ्रम में पड़ने क िरूरि निीं िै।
राम-रिीमा एक िै, नाम धराया दोय।
किै कबीरा दो नाम सगहन, भरम परौ महि कोय।।
िे यि भी कििे िैं कक राम, रिीम क एकिा को पाहपयों (बदमाशों) ने दो बना कदया िै। िाहिर िै कक इससे धमु के
ठेकेदारों का स्िाथु हसद्ध िोिा िै। इसहलए हनर्गुण सन्ि पहण्डिों और मौलहियों के हखलार् प्रहिरोध का स्िर रचिे िैं।
3.3. शोषण और हििेकिीनिा क आलोचना
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हनर्गुण भहि-धारा ने िाहि और धमु से िगड़ी िकुिीन मान्यिाओं का
प्रहिरोध कर समानिापरक समाि के हनमाुण का स्िप्न देखा। रूकियााँ और अन्धहि्ास इस मार्ु के बड़े बाधक थे। धार्ममक
िी निीं सामाहिक और सांस्कृहिक र्हिहिहधयों में भी इन्िोंने अनेक कमुकाण्डों और कगरीहियों को िन्म दे कदया था। ये
कगरीहियााँ और कमुकाण्ड िकुिीन थे, कर्र भी समाि में प्रचहलि थे। ये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सामाहिक हिषमिा के
पोषक थे। हनर्गुण सन्िों ने हििेक क कसौटी पर खरा न उिरने िाली सारी सामाहिक परम्पराओं, रूकियों, रीहि- ररिािों, हि्ासों, मान्यिाओं आकद का प्रहिरोध ककया। िाहि, धमु और राि-सत्ता मध्ययगर्ीन समाि में सबसे प्रभािी
सामाहिक अहभकरण थे। ऐसे में सामाहिक दगदुशा क हिम्मेदारी भी इन्िीं क थी। सन्िों के हििेक ने इनक अिार्कककिा
और शोषक चररत्र के हखलार् प्रहिरोध का हबर्गल बिाया। उनके प्रहिरोध के स्िर का िेिर रिव्य िै - कबीरा खड़ा बिार में हलए लगकाठी िाथ।
िो घर िारे आपना सो चले िमारे साथ॥
स्ि क सीमाओं से मगि यि स्िर शोषकों का शत्रग िै, और हनबुलों का हििैषी। िे हनबुलों को सिाने िालों को आर्ाि करिे
िैं –
हनबुल को न सिाइए िाक मोटी िाय।
हबना िीि के सााँस से ज्यों लौि भस्म हुई िाय॥
मध्ययगर्ीन समाि हििेकिीन धार्ममक-सांस्कृहिक और सामाहिक मूल्यों को िीिन-मूल्य बनाए हुए थे। हनर्गुण सन्िों ने
बहुि से मूल्यों को िोड़कर, नए मूल्य क स्थापना का आह्िान ककया। उन्िोंने अन्धहि्ासों क आलोचना ककसी खास
िाहि और धमु के दायरे से मगि िोकर क िै। महन्दर-महस्िद, िीथाुटन, व्रि, उपिास का हिरोध करिे हुए कबीर ने
हलखा यकद खगदा महस्िद में िथा राम मूर्मियों और िीथों में बसिे िैं, िो बाक मगल्क या चीिों में ककसका िास िै?
िौ रे खगदाइ मसीहि बसि िै, और मगहलक ककस केरा।
िीरथ मूरहि राम हनिासा, मैं ककन! न िेरा।।
(श्यामसगन्दर दास, कबीर ग्रन्थािली, पृ. 179)
हनर्गुण भि हनरन्िर धार्ममक कमुकाण्डों और सामाहिक कगरीहियों का प्रहिरोध करिे हुए सभी को भहि और अध्यात्म का
नया रास्िा कदखािे िैं। िे देखिे िैं कक कमुकाण्डों के चक्कर में पड़कर सभी अपने राम (ई्र) से दूर िो र्ए िैं। कबीर हलखिे िैं –
देि पूहि पूहि हिन्दू मूये िगरूक मूये िि िाई।
(श्यामसगन्दर दास, कबीर ग्रन्थािली , पृ. 194)
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M7 : हनर्गुण भहिधारा : प्रहिरोध और सामाहिक रूपान्िरण
उन्िोंने राम से दूर करने और यम के र्ेर में डालने िाले इन धार्ममक
संस्कारों पर करारा व्यंग्य ककया िै। कबीर मूर्मि पूिकों का मिाक बनािे हुए हलखिे िैं - माटी का एक नार् बनाके, पूिे लोर् लगर्ाया।
हिन्दा नार् िब घर मे हनकले, ले लाठी धमकाया।।
हिन्दू सााँप क मूर्मि बनाकर पूिा करिे िैं। िब सचमगच का सााँप देखिे िैं, िो डर िािे िैं और उसे लाठी लेकर मारने
दौड़िे िैं। मगसलमान कदन में रोिा रखिे िैं, और राि को िीि हिसा करिे िैं। िे िीि हिसा करने िालों पर कटाक्ष करिे
हुए हलखिे िैं कक घास खाने िाली बकरी क िो खाल काि ली िािी िै। िो बकरी खािे िैं उनका िाल क्या िोर्ा?
बकरी पािी खाि िै, िाको कािी खाल।
िे िन बकरी खाि िै, िाको कौन ििाल॥
हनर्गुण भहिधारा के स्िर में ब्राह्मणों के छूआछूि हिचार करने और समाि के बड़े िबके को भहि और धार्ममक संस्कारों से
िंहचि रखने के हिरुद्ध प्रहिरोध भरा िै। इस प्रहिरोध में शोहषि और िंहचि िबके के हलए न्याय, सम्मान और सिानगभूहि
का भाि िै। कगछ िबके, मगख्य िथा स्त्री के शोषण और हस्थहि के हखलार् प्रहिरोध के स्िर का हनर्गुण भहि-धारा में भी
अभाि िै।
4. हनर्गुण भहि-धारा का सामाहिक रूपान्िरण
हनर्गुण भहि-धारा क उत्पहत्त सामाहिक रूपान्िरण से सम्बद्ध थी। उसने प्रहिरोधी िेिर अपनाकर िड़ीभूि सामाहिक व्यिस्था को बदलने पर मिबूर ककया। उसके समय क र्हिशील सामाहिक सांस्कृहिक शहियों ने उसके द्वारा शगरू क र्ई सामाहिक रूपान्िरण क प्रकिया को प्रभाहिि ककया। एक िरर् िो इन शहियों ने हनर्गुण-धारा क िैचाररकिा के
अनगसार समाि को बदलना शगरू ककया, िो दूसरी िरर् उसने हनर्गुण हिचारधारा के स्िरूप और िेिर को भी बदला।
हनर्गुण प्रहिरोध क परम्परा हसद्धों, नाथों आकद योहर्यों क सांस्कृहिक हिरासि का निीन प्रस्र्गटन िै। ििारीप्रसाद हद्विेदी हलखिे िैं -
“यकद हनर्गुणमििादी सन्िों क िाहणयों क बािरी रूपरेखा पर हिचार ककया िाए िो मालूम िोर्ा कक यि सम्पूणुिया
भारिीय िै, और बौद्ध धमु के अहन्िम हसद्धों और नाथपन्थी योहर्यों के पदाकद से उसका सीधा सम्बन्ध िै। िे िी पद, िे
िी रार्-राहर्हनयााँ, िे िी चौपाइयााँ कबीर आकद ने व्यििार क िैं, िो उि मि के मानने िाले उनके पूिुििी सन्िों ने क थीं। क्या भाि, क्या भाषा, क्या अलंकार, क्या छन्द, क्या पाररभाहषक शब्द, सिुत्र िे िी कबीरदास के मार्ुदशुक िैं।
कबीर क िी भांहि ये सन्ि नाना मिों का खण्डन करिे थे, सिि और शून्य में समाहध लर्ाने क बाि करिे थे, दोनों में
र्गरु क भहि करने का उपदेश देिे थे। इन दोिों में र्गरु को बगद्ध से भी बड़ा बिाया र्या था और ऐसे भाि कबीर में भी
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भरपूर हमलिे िैं, ििााँ र्गरु को र्ोहिन्द के समान िी बिाया र्या िै।
सद्र्गरु शब्द सिियाहनयों, िज्रयाहनयों, िाहन्त्रकों, नाथपहन्थयों में समान भाि से समादृि िै।” (पृ. 135-36)
बौद्ध हसद्ध नाथ आकद भारिीय समाि के रूपान्िरण क प्रकिया के िी पररणाम िैं। हनर्गुण भहि-धारा इसी परम्परा से
िगड़ी िै। सामाहिक रूपान्िरण को प्रभाहिि करने िाली र्हिशील सामाहिक सांस्कृहिक शहियों में समाि के उच्च िर्ु क हनणाुयक भूहमका िै। उच्च िर्ु ने हनर्गुण भहि-धारा क प्रहिरोधी चेिना से किया-प्रहिकिया क , और उसके स्िर को
प्रभाहिि ककया। आर्े िम हनर्गुण िर्ु के सामाहिक रूपान्िरण में उच्च िर्ु क भूहमका समझने क कोहशश करेंर्े। िम यि
भी देखेंर्े कक उसने हनर्गुण मि क प्रहिरोधी-चेिना को ककिना प्रभाहिि ककया और स्ियं उससे ककिना प्रभाहिि हुई।
हनर्गुण िाणी उच्च िर्ु को नापसन्द थी, लेककन उसक िनस्िीकृहि ने उच्च िर्ु के लोर्ों को उसे अपनाने पर मिबूर कर कदया। इिना िरूर हुआ कक उन्िोंने हनर्गुण भहि के सामाहिक िाहन्िकारी रूप के बिाय उसके धार्ममक-आध्याहत्मक रूप को स्िीकार ककया। हनर्गुण भहि साहित्य के इस प्रहिरोध का प्रहिरोध करने के हलए सर्गण कहि आर्े आए। सूरदास आकद कृष्ण भि कहियों ने भ्रमरर्ीिों के माध्यम से हनर्गुण भहि के दाशुहनक ित्त्िों का खण्डन ककया। इसके बाद र्ोस्िामी
िगलसीदास ने अपने समन्ियिादी दृहिकोण से हनर्गुण भहि को सर्गण में समाहिि कर हलया। इसी िरि समाि में इन सभी हनर्गुण सन्िों को प्रहिष्ठा हमल र्ई। उनक मूर्मिपूिा िोने लर्ी, उनके महन्दर बनने लर्े और िे सब सन्ि भी उसी
भारिीय परम्परा में समाहिि िो र्ए, हिस परम्परा का इन्िोंने िोर शोर से प्रहिरोध ककया था।
4.1. सामाहिक रूपान्िरण का प्रहिरोधी स्िर पर प्रभाि
हनर्गुण भहि-धारा अपने प्रहिरोधी स्िर के कारण सामाहिक हिकास क दृहि से सिाुहधक िाहन्िकारी धारा थी। उच्च िर्ु
के हिरोध ने इस प्रहिरोध के स्िर को और िीखा ककया। इससे उसक हनम्न िर्ु में पैठ बििी र्ई। सामाहिक रूपान्िरण क प्रकिया शगरू हुई, हिसमें हनम्न िर्ु ने उच्च िर्ु को िर क्षेत्र में चगनौिी देनी शगरू क । उन्िोंने अपने भहि मार्ु का
हनमाुण ककया, अपने सन्ि बनाए और अपना शास्त्र-हिधान रचना शगरू ककया। हनर्गुण िाणी से िाग्रि िनशहि का बोध
िोने पर उच्च िर्ु द्वारा भी इन सन्िों को मान्यिा हमल र्ई। इस सामाहिक स्िीकृहि का प्रहिरोधी स्िर पर घािक प्रभाि
पड़ा। मगहिबोध हलखिे िैं कक “िब िक कट्टरपन्थी शोषक ित्त्िों में यि भािना पैदा िो र्ई थी कक हनम्निािीय सन्िों से
भेदभाि अच्छा निीं िै। अब ब्राह्मण-शहियां स्ियं उन्िीं सन्िों का क िुन-र्ायन करने लर्ीं। ककन्िग इस क िुन-र्ायन के
द्वारा िे उस समाि क रचना को, िो िाहििाद पर आधाररि थी, मिबूि करिी िा रिी थीं।”( नेहमचन्र िैन (सं.), मगहिबोध ग्रन्थािली, खण्ड-5, रािकमल प्रकाशन, नई कदल्ली, संस्करण-1998, पृ. 290)
उच्च िर्ु ने एक िरर् िो हनर्गुण सन्िों को स्िीकार कर हलया, दूसरी िरर् उनके िाहन्िकारी सन्देशों पर लर्ािार िमले
ककए। कबीर के बाद सूर और िगलसी के साहित्य में न केिल हनर्गुण मार्ु पर िमला ककया र्या, बहल्क िोर-शोर से िाहि
और िणु आधाररि समाि क स्थापना क र्ई। हनर्गुण पन्थ ने भी सामाहिक स्िीकृहि को लेकर अपने िाहन्िकारी मार्ु
को छोड़ कदया। श्यामसगन्दर दास सन्िों के बारे में हलखिे िैं कक “सबने नाम शब्द, सद्र्गरु आकद क महिमा र्ाई िै और मूर्मिपूिा, अििारिाद िथा कमुकाण्ड का हिरोध ककया िै िथा िाहि-पाहि का भेद-भाि हमटाने का प्रयत्न ककया िै। परन्िग हिन्दू िीिन में व्याप्त सर्गण भहि और कमुकाण्ड के प्रभाि से इनके पररिर्मत्ति मिों के अनगयाहययों द्वारा िे स्ियं परमात्मा
HND : हिन्दी P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भहिकालीन काव्य)
M7 : हनर्गुण भहिधारा : प्रहिरोध और सामाहिक रूपान्िरण
के अििार माने िाने लर्े िैं और उनके मिों में भी कमुकाण्ड का पाखण्ड
घगस र्या िै। कई मिों में केिल हद्वि हलए िािे िैं। केिल नानक देि का चलाया हसक्ख सम्प्रदाय िी ऐसा िै हिसमें िाहि- पाहि का भेद निीं आने पाया, परन्िग उसमें भी कमुकाण्ड क प्रधानिा िो र्ई िै और ग्रन्थसािब का प्राय: िैसा िी पूिन ककया िािा िै िैसा मूर्मिपूिक मूर्मि का करिे िैं। कबीरदास के मनर्िन्ि हचत्र बनाकर उनक पूिा कबीरपन्थी मठों में भी
िोने लर् र्ई िै और सगहमरनी आकद का प्रचार िो र्या िै।” (श्यामसगन्दर दास, कबीर ग्रन्थािली, प्रस्िािना) इस िरि िम देखिे िैं कक सामाहिक रूपान्िरण क प्रकिया में हनर्गुण मि अहधक स्िीकृि हुआ ककन्िग अपने लक्ष्य से दूर िो र्या।
5. हनष्कषु
हनष्कषुिः िम कि सकिे िैं कक िन्म आधाररि भेदभाि का हिरोध, िणु और िाहि आधाररि सामाहिक व्यिस्था क हनन्दा, रूकियों, अन्धहि्ासों, बाह्याचारों, कमुकाण्डों, आडम्बर आकद क आलोचना हनर्गुण भहि-धारा के प्रहिरोध के
स्िर के मगख्य रूप िैं। हनम्न िाहि से आए हनर्गुण भिों के साहित्य में शोषण और भेदभाि क कड़ी आलोचना क र्ई िै।
उसके प्रहिरोध के िाहन्िकारी स्िर ने उसे हनम्न िर्ु में बहुि लोकहप्रय बना कदया। िाग्रि हनम्न िर्ु क शहि और स्िीकृहि
देखकर उच्च िर्ु ने भी अपना प्रहिरोध त्यार्कर सन्िों को अपना हलया। ककन्िग उससे हनर्गुण मि के िाहन्िकारी सन्देश प्रभाििीन िो र्ए और िि सामाहिक पररििुन के स्िर से भहि के एक और स्िर के रूप में ढल र्ई।