अि सयो र कहािनय म अवाम क संघष चेतना
(ASSIYOTTAR KAHAANIYOM MEIN AVAAM KI SANGHARSH CHETANA)
thesis submitted to
COCHIN UNIVERSITY OF SCIENCE AND TECHNOLOGY
for the award of the degree of
DOCTOR OF PHILOSOPHY
By जोियस टोम JOYICE TOM
Supervising Teacher
Prof. (Dr) M. Shanmughan
DEPARTMENT OF HINDI
COCHIN UNIVERSITY OF SCIENCE AND TECHNOLOGY Cochin-682002
January-2011
Certificate
This is to certify that this is a bonafide record of research work carried out by Mr. Joyice Tom, under my supervision for Ph.D degree and no part of this has hitherto been submitted for a degree in any university
Dr .M. Shanmughan
Supervising Teacher Dept. of Hindi
Cochin University of Science and Technology Cochin-682022
Place : Cochin Date :
DECLARATION
I hereby declare that the work presented in this thesis is based on
the original work done by me under the guidance of Dr. M. Shanmughan, Professor, Department of Hindi, Cochin University
of Science and Technology, Cochin-682022, and no part of this thesis has been included in any other thesis submitted previously for the award of any degree in any other university.
Joyice Tom
Dept. of Hindi
Cochin University of Science and Technology Cochin-682022
Place : Cochin Date :
पुरोवाक
भारतीय स दभ काफ कलुिषत है । सब कह दंगा-फसाद, भीषण मार-काट, बमबारी
एवं िवघटनवाद है । बारी-बारी म आये िविभ सरकार के ाचार तथा जनिवरोधी
तानाशाही है । भूम डलीकरण के नये माहौल म ब रा ीय कंपिनय के दलाली नेतृ व क नकाब उतर चुक है । कालाधन एवं दलाली का धन संसद क दीवार के भीतर ही कह चु पा- चु पी खेलने लगे ह और सबसे यादा खून अब संसद क सी ढय से उतर कर बह रही है । राजनीित वाकई र नीित बन गयी ह और जातं एक वागा िवहीन वागाडंबर, िजसक शोभाया ा म अवाम क तरापा कह गुमशुदा है ।
जनता के मूँह पर चाहे ताला लग गया हो, उसक उदासीन िनगाह ने सब कुछ देखा
है। उ मीद के टूटने के दद को धीरज से झेला है । खुदपर ती का पहला पाठ जनता ने अपने
नेता से सीखा होगा । फल व प समाज म ि अकेला होने लगा । उसे अपनी अि मता के
सामने िच न दखने लगा । वह समाज म अपनी िवरासत को ढूँढने लगा । अपनी
िवशालकाय सामािजक अहिमयत को छोड ऐसे छोटे-छोटे समूह क खोज करने लगा िजसे वह पहचानता है और िजसम वह पहचाना जाता है । नतीजतन ब जन समाज फुटकल टापु मे
िबखरने लगा, िजनके सामने स ाई एवं अिधकार भी एकतरफा ह । यह माहौल सा दाियकता एवं ांतीयता क नाज़क चगा रय को अनुकूल बयार समान महसूस आ । नतीजतन दूसरे िसरे से सा दाियक दंगे, मार-काट, बारी-बारी म भारत के सीने पर बम
िव फ़ोट !
समकालीन भारतीय समाज वाकई टापु का गु छा है, िजसको ब धाये गये शासन क नाज़क तनी डोर कभी भी, कह भी नफरत क आग म जल-भुनकर राख हो सकती है । खािल थान, गोरखालड, तेलुंगाना, क मीर, भारत क संवैधािनक एकता िबखराव के कगार पर है । चाहे अनचाहे ि पर अि मताएँ थोपी जा रही ह । खून के रंग को जहाँ नज़र दाज़ ही कया जाता है, उधर खून के ढंग क वरीयता ामािणत होती है । उसके अनुसार कोई सवण, कोई दिलत, कोई आय, कोई अनाय, कोई िवड, कोई िह दू, कोई मुसलमान बनाई जाती है । नारी को कला म भी अपना अपमान दखने लगा है और कलाकार देशिनकाला हो
जाता है । अ लाह के ब द को खुदा का तौहीन नागवार है । ई वर क संतान को भगवान का
अपमान अस है । मगर इनसान क कदरदानी दोन को घ ी खीर है । काटो तो खून बहता
ज़ र है और खून कभी यह देखकर नह बहा है क माथे पर ितलक है या टोपी और बम कभी
यह देखकर नह फ़टा है क मूँह म खुदा है या राम !
लडाई चाहे िजसक भी हो,बदला आिखर कसक भी हो मरता ज़ र अवाम ही है । हर कसी क गलती का मोल चुकाता भला अवाम ही है । स ा क जनिवरोधी शासन क क मत चुकाता अवाम। अखबार के भीतरी प म कैद होकर दम घुटता बेनाम अवाम । राजनीती के िव ापन बनता बे दा, बेमोल, बेज़बान, मेहनतकश अवाम, जो हर कह है
ले कन स ा से दूर । समाज म उसक दशा इस कदर घृणा पद है क मानो अवाम पर नज़र पडना ही या, वयं अवाम महसूस करना भी गुनाह है । वह हािशये क िज़ दगी गुज़ारने
केिलये मजबूर है ।
जािहर है क मौजूदा समाज िविवधता िसत है और इतना िविवध है क उसे अपनी
सम ता म देखना और समझना बमुि कल काम है । कदािचत सािह य म भी िवषयपरक
िविवधता क यही वजह है, और वजह वािजब भी । हालाँ क सािह य म दिलत, नारी, कसान, मज़दूर जैसे िवभजन का मूल उ े य सािह य को, उसके मािन द समाज को सम ता
से पहचानना है, न क एक दूसरे के बर स खडा करना । ले कन व तो िबखराव का है ही । इसिलये शं कत ँ क कही ना कह सािह य उस मूल उ े य से चूक तो नह गया है ।
िवभजन के घने पिहय के नीचे फंसकर बेपनाह अवाम र दा तो नह जा रहा है । समाज क तरफ सिह य म भी वह वाकई हािशये-नसीब तो नह हो रहा है । इसिलये वगपरक,वणपरक, लगपरक जैसे अनेक अि मता म िवभिजत मेहनतकश अवाम के संघष म िछपी बुिनयादी
एकता को परखना अिनवाय बन गया है । यह शोध- ब ध उसके िलये एक सरल यास है । म ने इसका शीषक ‘अि सयो र कहािनय म अवाम क संघष चेतना’ रखा है । अ ययन क सुिवधा केिलये यह पाँच अ याय म िवभिजत है । अंत म उपसंहार है ।
तुत शोध- ब ध का पहला अ याय है-अवाम क संघष चेतना : सै ांितक एवं
ऐितहािसक सव ण । यह अ याय दो खंड म िवभिजत है जैसे ‘अवाम क संघष चेतना : ऐितहािसक सव ण तथा अि सयो र भारतीय प रवेश का प रदशन । पहले खंड म अवाम क प रक पना,अवाम क संघष चेतना म कायरत दशन जैसे मा सवाद, अ बेदकरवाद,
नारीवाद आ द क संक पना को तुत कया है । अवाम को संघष करने क चेतना दान करने म इन दशन क भूिमका पर िवचार कया गया है । इस खंड म आगे अ सी-पूव क कहािनय म िचि त अवाम का तथा ितकूल वातावरण म उनके संघष या ित या के
अ दाज़ को एकि त कया गया है । इसम ेमच द, य पाल, फणी वरनाथ रेणु, भी म साहनी, कमले र, अमरकांत, शेखर जोशी आ द लेखक क च चत कहािनय को परखा गया
है ।
दूसरे ख ड म अि सयो र सामािजक,राजनैितक,आ थक तथा धा मक पहलु को
एकि त कया गया है । भारत क संवैधािनक, सामािजक, सां कृितक एकता को ठेस प ँचाते
ए सां दाियक दंगे, ाचार,िवघटनवाद आ द क अनेक िमसाल सामने आयी । इस खंड म मुख घटनाएँ एकजुट ह ।
दूसरा अ याय है- कसान व मज़दूर का संघष । इस अ याय म कसान तथा म दूर के
संघष पर केि त कहािनय पर िवचार कया गया है । कसान का संघष, कारखाना मज़दूर का संघष, दहाडी मज़दूर, घरेलू नौकर, कूडा-कचरा बीनने वाले लोग, सामान-स जी वगैरह बेचने वाले, र ा चालक आ द मेहनतकश अवाम के संघष भरी िज़ दगी का अ ययन अलग से
आ है ।
तीसरा अ याय दिलत सम या पर केि त है । इसका शीषक ‘अि सयो र कहािनय म दिलत संघष’ रखा गया है । इस अ याय म कहािनय म िचि त दिलत संघष पर िवचार कया गया है । दिलत कहािनयाँ दिलत चेतना का िनदशन ह । ये सचेत दिलत मन क कामना का अंकन करती ह । यह अ याय सामािजक, राजनीितक, आ थक, धा मक, शारी रक व मानिसक आ द बुिनयादी तर म दिलत संघष को परखने क कोिशश है ।
चौथा अ याय नारी सम या पर केि त है । इसका ‘अि सयो र कहािनय म नारी
का संघष’ है । दुिनया म ऐसी कोई जगह नह जहाँ नारी का शोषण नह होता । ले कन इस अ याय म िन म यवग य एवं िन वग य ना रय पर केि त कहािनय को ही चुन िलया
गया है, जो अवाम क प रक पना के अंतगत आती ह । नारी समाज वगपरक, जाितपरक, लगपरक आ द तीन कार से शोिषत है । अि सयो र प रवेश म संघषरत नारी जीवन क कई िमसाल िव मान है । यह अ याय उनके ब तरीय संघष का अ ययन है । पर परा एवं
ढय के िखलाफ संघष, पु षवचि वता के िखलाफ संघष, यौन शोषण के िखलाफ संघष, प रवार म संघषरत औरत, ाचार के िखलाफ नारी का संघष, भूख से सं त नारी मन का
संघष आ द शीषक म यह िवभ है ।
पाँचवाँ अ याय है- संघष के कुछ और आयाम । इस अ याय म ऐसे कुछ संग को
जोडा गया है, िजनक अवाम के प र े य म खािसयत है जैसे िव थापन,वृ जन सम या,िशि त युवा पीढी का संघष, ब का संघष आ द ।
उपसंहार म तुत अ ययन के िन कष को सं ेप म एकि त कया गया है ।
तुत शोध- ब ध को ी िव ान व ौ ोिगक िव िव ालय के िह दी िवभाग के ो.
एम.ष मुखन के िनदशन एवं िनरी ण म तैयार कया गया है । उनक ेरणा से ही यह काय संप आ है । उ ह ने मुझे अपने अधीन िश ा पाने का सुअवसर दया । मुझे बेटा समान पहचाना । मुझे िलखना िसखाया और व बे व मेरी गलितय को सुधारने का जोिखम उठाया । मेरे शोधकाय को सफल बनाने केिलये उनक सारी कोिशश के सामने म नतम त ँ । मेरे इस शोध काय के िवषय िवशेष डॉ. के. वनजा जी के ित म कृत ता ािपत करता ँ । मेरे शोध काय को सही दशा िनदशन करने म वे हमेशा सजग रही ह । उनके नेह का म हमेशा पा रहा ँ और आगे भी उसका उ मीदम द ँ ।
शं कत ँ क िह दी िवभागा य मोहनन जी के ित कृत ता कैसे अदा क ँ । वे मेरी
ेरणा ह, मेरा बल ह ।
िवभाग के अ य अ यापक के ित म आभार कट करता ँ िज ह ने मेरी काफ मदद क है ।
िह दी िवभाग के और यहाँ के पु तकालय के कमचा रय को भी म ध यवाद अदा
करता ँ, िज ह ने इस शोधकाय को सुगम बनाने के िलये काफ सहयोग दया है । अपने ि य िम के ित म आभार ँ । उ ह ने मुझे हमेशा हौसला दलाया है।
िनमला कॉलेज मुवाटुपुषा के अ यापक ि य िव नाथन जी एवं अ य गु जन को भी
इस शुभ अवसर पर याद कर रहा ँ, िज ह ने भाषा एवं सािह य क तरफ मेरी ची बढायी
है।
मेरे वग य िपताजी के अलावा माताजी, भाई, बहन एवं बहनोई, नाना और नानी का
भी म मरण कर रहा ँ।
म यह शोध- ब ध िव ान के सामने सिवनय तुत कर रहा ँ । अनजाने आ गई किमय तथा गलितय केिलये मा ाथ ँ ।
सिवनय
जोियस टोम
िह दी िवभाग
को ी िव ान व ौ ोिगक िव विव ालय को ी-22
तारीख :
िवषय सूची
पहला अ याय
अवाम क संघष चेतना: सै ांितक एवं ऐितहािसक सव ण क.अवाम क संघष क चेतना : सै ांितक एवं ऐितहािसक सव ण
अवाम क प रक पना- संघष चेतना-अवाम क संघष चेतना म कायरत दशन- मा सवाद-दिलत चतन-नारीवाद - िह दी कहानी े म अवाम क संघष चेतना के िविभ आयाम - ेमच द क कहािनय म अवाम - यशपाल - फणी वनाथ रेणु - भी म साहनी – अमरकांत – कमले र- शेखर जोशी
ख.अि सयो र भारत के प रवेश का प रदशन
इि दरा गाँधी ह या तथा िसख िवरोधी दंगा - अयो याका ट - चरार-ए-शरीफ पर हमला - ाचार का नया पव - संसद पर हमला - गो ा का ड - ाकृितक दुरघटनाएँ- भोपाल दुघटना - महारा म भूचाल - लेग क वापसी - का गल क लडाई - उडीसा म तूफ़ानी हमला - गुजरात भूचाल - सुनामी का हमला - सामािजक प र य - आ थक प रदृ य- िन कष
दूसरा अ याय
कसान व मज़दूर का संघष
कसान का संघष - अि सयो र कहािनय म कसान का संघष - मज़दूर का संघष:
पूव पीढी - अि सयो र कहािनय म मज़दूर का संघष - कारखाना मज़दूर का संघष - घरेलू
नौकर का संघष - दहाडी मज़दूर का संघष - कूडा-कचरा बीनने वाल का संघष- सामान- स जी वगैरह बेचनेवाल का संघष - र ा चालक का संघष - कुछ और आयाम - िन कष तीसरा अ याय
अि सयो र कहािनय म दिलत संघष
दिलत व अवाम - दिलत का जीवन स दभ - अि सयो र दिलत कहािनय म संघष चेतना - ज़मी दारी शोषण नीित तथा दिलत क संघष चेतना - सवण
अिधका रय के कुच तथा दिलत के संघष - ा ण वच व के िखलाफ दिलत का
संघष - राजनैितक शोषण के िखलाफ दिलत का संघष - सजातीय शोषण का
िच ण - आ थक तर पर दिलत के ऊपर यादती एवम उनक संघष चेतना - शारी रक व मानिसक तौर पर शोषण तथा दिलत का संघष - सामािजक तौर पर दिलत पर यादती एवं उनका संघष - धा मक े क यादती और दिलत का
संघष – िन कष चौथा अ याय
अि सयो र कहािनय म नारी का संघष
नारी व अवाम - नारी का समकालीन प रदृ य - अ सी-पूव क कहािनय म नारी का
संघष -अि सयो र कहािनय म नारी संघष के िविभ आयाम - परंपरा एवं ढय के
िखलाफ नारी का संघष - पु ष वचि वता के िखलाफ नारी का संघष - प रवार म सं त नारी का संघष - यौन शोषण के िखलाफ नारी का संघष - ाचार के िखलाफ नारी का
संघष- भूख के िखलाफ नारी का संघष – िन कष पाँचवाँ अ याय
संघष के कुछ और आयाम
िव थािपत का संघष - वृ जन संघष - िशि त युवा पीढी का संघष - बालजन संघष –
िन कष उपसंहार
स दभ थ-सूची
पहला अ याय
( क ) अवाम क संघषचेतना : सै ाि तक एवं
ऐितहािसक सव ण
( ख ) अि सयो र भारत के प रवेश का प रदशन
ख ड-क
अवाम क संघषचेतना : सै ाि तक एवं
ऐितहािसक सव ण
मनु य सामािजक ाणी है । समाज म ही उसके शारी रक एवं बौि क इकाइय का
िवकास होता है । यह िवकास मानव-मानव म अलग-अलग मा ा म है । इसिलये समाज म कोई सहज ही सबल है ओर कोई दुबल । यह एक ाकृितक अव था है, िजसके आघार मानुिषक मताय ह, जैसे क बु ी और शि । यह एकदम सहज है और एक हद तक सनातन भी । आ दम स ा इन मता पर केि त थी । समय के बदलते मनु य ने अथ क प रक पना क और एक अथ केि त स ा क ित थापना क । उस स ा ने ब जन समाज क कुल भौितक संप ी को ि क त कर दया । नतीजतन ाकृितक व था बदली । पूँजी सव थम मानी
जाने लगी । कुल जमा पूँजी के आधार पर समाज का बंटवारा होने लगा । स ा पारंपरीय बन गयी कोई ज म से स ासीन, सबल या खास बन गया तथा कोई सहज ही अवाम । इस तरह समाज दो मुख वग म िवभिजत ए जैसे उ वग एवं िन वग ।
िव ान क गित ने औ ोिगक ाँित मचा दी । जनता िशि त होने लगी । समाज का
एक बडा िह सा आधुिनक बन गया । इसने वग िवभाजन म म य वग नाम से एक और कडी
को जोड दया । इस तरह ब जन समाज उ वग, म य वग, िन वग, आ द तीन िवभाग म बंट गया । कालोपरांत इसके अनेक भेद ए जो िन िलिखत ह1
1. उ वग- जो आ थक और सामािजक तौर पर िनि त ह । सभी सुख-सुिवघा के
बीच शान से रहनेवाले बडे-बडे उ ोगपित, नवधना , भू वामी आ द इस िवभाग म आते ह । ये समाज को िनघा रत करते ह ।
2. उ म य वग- शासन से जुडे सभी अिधकारी लोग इस ेणी म आते ह जो शासन क बागडोर संभालते ह । इनके साथ सामा य उ ोगपित भी आते ह।ये भी आ थक तौर से िनि त ह । ये भी भोग िवलास के अिधकारी ह ।
3. म य म य वग- उ म य वग और िन म य वग के बीच एक वग और है जो म य म य वग कहे जाते ह । ये हमेशा उ वग एवं उ म य वग क तरफ देखते रहते ह । छोटी-छोटी िवलासवृि याँ इनको भी नसीब ह । छोटे-मोटे अिघका र लोग, छोटे-छोटे
खेत-खिलहान के मािलक, कसान आ द इसम आते ह ।
1 मृदुल जोशी, समकालीन िह दी किवता म आम आदमी, पृ-17
4. िन म य वग- ये लोग शैि क तौर पर सफल ह, ले कन अपनी बुिनयादी ज़ रत के
िलये अथ पाजन म ये हमेशा संघषरत ह । िवलािसता इनक सोच के बाहर ह । द तर के छोटे-छोटे कमचा र, चपरासी आ द इस ेिण म आते ह ।
5. िन वग- अपने जीवन क बुिनयादी ज़ रत जैसे अ , कपडा, मकान आदी के िलये ये
हमेशा संघषरत ह । ये अपने शारीर के बल पर जीते ह । समाज के प रवतन के साथ अपने आप को जोडने म ये असमथ रहते ह । र ा वाले, ताँगे वाले, मोची, घोबी, बुनकर लोग, बूट-पोिलश करने वाले, टीन-टपरा तथा कूडा-कबाड बेचकर जीवन यापन करनेवाले, मकान बनानेवाले मज़ूर, िव थापन के िशकार आमजन सभी इस
ेिण म आते ह ।
इस आ थक िवभाजन म िन वग एवं िन म य वग ही अवाम क प रक पना के
अ तगत आती ह जो आ थक तौर पर हमेशा असुरि त ह । अवाम क प रक पना
‘अवाम’ फारसी से िह दी भाषा म यु श द ह । ‘common man’ अँ ेज़ी म इसका
समानाथ श द ह िजसका मतलब ह -‘one man who has no title’1 । यािन िजसका कोई खास नाम या पहचान नह , वही अवाम है । यह आम आदमी का समानाथ श द है । तारा पाँचाल क राय म “जो भी अपनी िज़ दगी को मामुली से मामुली और िनचले तर पर चलाने के िलये ब त कुछ ईमानदारी से जीते ह, खटते ह और मेहनत करने पर भी मज़लुम और मजबुर का जीवन जीते ह । ये लोग ही आम आदमी क ेणी म आते ह ।"2 ान काश
िववेक क राय म “सबसे यादा जो आ थक दृि से कमज़ोर ह, वही आम आदमी ह” 3। कमले र ने िलखा ह क “आदमी वह ह जो कह भी कसी भी े का िनय ता नह है पर हर
1 oxford dictionary
2 तारा पाँचाल, समकालीव िह दी कहानी, मीना ी पाहवा, पृ167 3 ान काश िववेक
कसी े क आधारिशला है ।”1 आम आदमी क प र े य म समकालीन िह दी किवता
को परखते ए मृदुल जोशी ने िलखा है- “हतदप हताश और जीवन संघष म अनवरत जूझते
शोिषत को ही हम आम आदमी क वग कृत सीमा के अ दर पाते ह ।“2 मीना ी पाहवा
क राय् आम आदमी वह है-“जो अपने ही अिघकार को ा करने के िलए िनर तर संघषरत हो, जो हमेशा भु व का िनशाना बनता रहे, जो हमेशा हारता भी रहे ले कन जीने क हौसला
भी न छोडे, जो जीवन क असंगितय -िवसंगितय को झेलकर भी जीवन के ित आ था न छोडे वही आम आदमी है ।”3
िव ान ने यादातर आ थक प रवेश को अवािमयत का आधार माना है । ले कन इसके
कुछ और पहलुएँ भी ह िज ह छोडा नह जा सकता। ी बजरंग ितवारी ने समाज म मौजुद कई उदाहरण तुत कर अवाम क प रक पना का एक िवशाल दायरा ख चा ह -“ संघषशील आम जन क प रभाषा संकुिचत नह है । इसम कसान तो आते ही है, भूिमहीन मज़दूर, शहरी
िमक भी शािमल ह। साथ ही इसम िपतृस ा, जाित और गरीबी क झेलती ितकूल प रि थितय म फंसी ि यां ह, सरकार िवकास अिभयान म फँसे आ दवािस ह, प रवार, समाज और समूचे प रवेश म ा संवेद हीनता, ू रता झेलते ब े ह । क ठन प र म करते
पहाडी लोग ह और सब कुछ दाँव पर लगा देनेवाले न सल संगठन के सद य भी ह ।”4 इ ह ने शारी रक व मानिसक क ज़ो रयं तथा समािजक एवं सां कृितक िपछडापन को जोडकर अवाम को पूण इकाई बनाया है । सं ेपतः शारी रक व मानिसक, आ थक, सामािजक एवं
सां कृितक िपछडापन के िशकार जन साधारण ही अवाम है जो अपनी बुिनयादी ज़ रत जैसे
1 कमले र,1977 क िह दी कहानी क भूिमका,सं.ऋिषकुमार चतुरवे द 2 मृदुल जोशी,समकालीन िह दी किवता म आम आदमी,पृ,16
3 मीना ी पाहवा,समकालीन िह दी कहानी,आम आदमी के स दभ म,पृ.2
4 बजरंग िबहारी ितवारी,संघषशील जन क कहािनय का फलक,हंस,आग त 2006
अ , कपडा, मकान आ द क खाितर िनत संघषरत है । वे पूरे समाज म िन सारता, िनरीहता, सादगी एवं िनह थेपन का पुंज है ।
सािह य समाज का यथात य नह है । च द के श द म “ अगर हम यथाथ को ब ख चकर रख द तो उसम कला कहाँ है । कला केवल यथाथ क नकल का नाम नह है । कला
दखती तो यथाथ है ले कन यथाथ होती नह । उसक खूबी यही है क यथाथ न होते ए भी
यथाथ मालूम हो ”1 अतः सािह य म तथा यथाथ म अंतर है । अवाम के प र े य म भी यह लागू है । सिह यकार समाज से त य को वीकारते है; तदनुकूल पा क सृजना करते ह,
िजनके साथ पाठक का साधारणीकरण संभव हो और उ ह िवचारािभ ंजना समेत पाठक के
स मुख परोसते ह । जािहर है क सािह य म अवाम के पायन म सृजनकार क खास भूिमका
रहती है, जो अवाम क जय-परजय को िनधा रत करती है । गोया अवाम क सािहि यक एवं
सामािजक अिभ ि म बुिनयादी फरक ह । समाज म संघषरत अि मताहीन अवाम हािशये
पर खडा है । ले कन सािह य म सृजनाकार क लेखक य ग रमा उसे एक खािसयत दान करती है । नतीजतन वह सहानुभूती एवं िव ोह के अलग-अलग संवेदना के तहत अि मतासीन ि व बन जाता है । वह लडाई लड सकता है ।
संघष चेतना
संघष केिलये अं ेज़ी म ‘conflict’, ‘struggle’ आ द श द यु ह । अतःसंघष ं है
या ितकूल वातावरण म येक मानव मन का वैचा रक एवं वैका रक ित या है ।2 ी देवे इ सर िलखते ह -“सृजन और संहार क शि याँ येक युग म पर पर संघष म रही ह । और इसम िनरंतर गती भी होती रही है ”3 जािहर है क संघष समाज को िवकास क तरफ
1 ेमच द,भूिमका,पृ.6
2 ऑ सफोड िड र
3 ी देवे इ सर,मू य सं ाँित और युग चेतना,समकालीन सिह य चतन,सं.डॉ.रामदरश िम ,डॉ.महीप
िस ह,पृ.12
ले जाता है । यह संघष सािहि यक तर क भी बुिनयाद है जो समाज एवं सािह य के बीच
िमलन सेतु है । डॉ.महीप सह क राय म सािह य “ ापक प रवतनकामी, व प प रवतनकामी, यथाि थितकामी और प रवतन िवरोधी शि य के आपसी टकराव का वह द तावेज़ बनता है ”1 जो प रवतन को श द देता है । दर असल यह टकराव, , या संघष ही
सािह य को गित दान करता है -“ कसी न कसी तरह क या संघष क ि थित के िबना
रचना म गित नह आती । ”2
संघष के कई आयाम है जैसे ि संघष एवं समाज संघष । एक भरी सभा म एक न हा
सा ब ा जब िगरता है, वह रोने लगता है । रोने क वजह अ सर दद नह होता बि क अपने
व व को लगी ठेस है । उससे उपजी आ मवेदना दन बतौर बाहर िनकलती है । यह ि संघष के िलये उदाहरण है । जो दुबल है अपने संघष पर दूसर क बिल चढाता है जैसे ऑफ स म उ अिधकारी क डाँट-फ कार का गु सा बीवी-ब े या जानवर पर उतारना । जो
बेसहारा है संघष उसकेिलये अपने ही भीतर क ददनाक अनुभूित है । नतीजतन जीवन जड तु य बन जाता है । सबल डांट का बदला डांट,मार का बदला मार से देता है । कहािनय म वैयि क संघष के कई द तावेज़ ह । ेमच द क ‘पूस क रात’ कहानी के ह कू ारा अपना
ही खेत नीलगाय से चरा दये जाना, अमरकांत क ‘िज़ दगी और ज क’ कहानी का ‘रजुआ’
दूसर को िचढाकर गाली सुनना और उससे अपनी पहचान कायम रखना, कमले र क ‘खोई ई दशाएँ’ कहानी के नायक ारा अपनी प ी से अपनी पहचान पूछे जाना, िजते भा टया
क ‘शहादतनामा’ कहानी के नायक ारा अमरजीत क मौत क असिलयत िछपा देना, मृदुला
गग क ‘हरी िब दी’ क नाियका क नीली चुडीदार के साथ हरी िब दी लगा देना, ओम काश
1 डॉ,महीप िस ह,सािह य और सामािजक प रवतन, समकालीन सिह य चतन,सं.डॉ.रामदरश
िम ,डॉ.महीप िस ह,पृ.23
2 डॉ.देवराज, सािह य और संघषशीलता, समकालीन सिह य चतन,सं.डॉ.रामदरश िम ,डॉ.महीप
िस ह,पृ.9
वा मी क क ‘ रहाई’ कहानी छुटकू क तरह अ यायी के िसर पर प थर दे मारना सभी
वैयि क संघष के िलये उदाहरण ह । ये सारे संघष वैयि क होकर भी सािह य म सामािजक ह त ेप बनकर उपि थत ह । अतः पाठकगण कहानी म अपनी ितछिव पाने लगते ह । इस तरह सािह य एवं उसम प रलि त संघष समाज सापे बन जाता है ।
जो संघष समाज सापे है, वह जनसंघष है । इसके तहत संघष के ज़ रये समाज म बदलाव या प रवतन का मकसद कायरत है । समाज एक िनयत व था का नाम है । मौजूदा
पूँजीवादी व था क कई िवडंबनाएँ ह । समाज वग, जाित, धम, िवचारधारा, सं कृित, भाषा आ द कई िवभजन क अलग अलग दायर म फँसा आ है। भारत क िवशाल राजनीितक तथा सामािजक एकता के धागे से िपरोकर भी इन िवभजन क अपनी अहिमयत ह । य क ये सारे िविभ सां कृितक एवं वैचा रक िवरासत के नाग रक के अलग अलग पुंज है जो एक ही मु क के समान अिधकारी ह । इसिलये इनके बीच आपसी संघष सहज है जो जन संघष है । इसके कई आयाम है जैसे वग संघष, जाित संघष, लग संघष, धम संघष आ द । पा क तान- ीलंका का जातीय संघष, सगूर, नि द ाम म भूिम केिलए संघष, अपनी सं कृित को कायम रखने केिलए तथा अपने कानूनन अिधकार केिलये आ दवािसय का संघष, क मीर क वतं ता एवं आज़ादी केिलए लडाई, खािल थान वाद, िह दु-मुि लम उ वाद आ द भी
तथाकिथत जनसंघष के िलये उदाहरण ह ।
जनसंघष एक ऐसा हिथयार है, जो समाज को िजतना आगे ले सकता है, उतना पीछे
भी। मनु य म सहज ही एक पशुतावृि मौजूद है । मानवीयता उसे कमज़ोर देती है । हालां क अनुकूल वातावरण म वह बाहर िनकलती है िजससे खून खराबा स भव है । िह दू मुि लम दंग म इसका बुरा असर दखाई देता है । इसिलये जनसंघष ग भीर मसला है । ी रामशरण जोशी क राय म “आतंकवाद म भी जनसंघष क भावनाएं वा कोिशश ितिबि बत होती ह । बगैर जनसमथन वा िह सेदारी के आतंकवादी अिभयान को लंबे समय तक चलाये रखना
लगभग अस भव है ।”1
1 ी.रामशरण जोशी,समयांतर,फव र,2008,पृ.2
सं ेप म संघष पर पर िवरोधी शि य के बीच है । यह िजतना आंत रक एवं
भौितक है उतना वैका रक एवं वैचा रक भी । यह प रवतन का मूल है । चेतना
चेतना केिलये अं ेज़ी म consiousness श द यु है । consiousness , conscious श द से उ धृत है । इसका शाि दक अथ है -awake and aware of one’s surroundings and identity 1 अतः येक मानव के अपने व व एवं प रवेश से अवगत होना या जागृत होना तथा ितरोध के िलये स होना चेतना है । काल मा स के ा मक भौतीकवाद के अनुसार चेतना पदाथ क उपज है । यानी वाद- िववाद के संवाद से चेतना
जागृत होती है । मृदुला गग क राय म “चेतना का स ब ध वग, वण, धम, या लग से नह , दृि से है, जो अनुभूती क ऐितहािसक, सामािजक और वैयि क या ा म से िवकिसत होती
है।”2 ।अतः चेतना, दृि क उपज है, जो मनु य को अपनी अनुभूितय एवं िवचार से उपल ध होती है ।
येक मानव को अपने ान का एक बडा िह सा अपनी सामािजक, वैचा रक एवं
सां कृितक िवरासत के तौर पर िमलता है । थोडा ब त वह अपने आसपास से और समसामियक जीवन यथाथ से हािसल करता है । इन दोन के बीच िनरंतर संघष बतौर उसे
जो नया ान या पहचान होती है, चेतना उसी का नाम है । सं ेप म चेतना िवचार-भावा दय के संघष क उपलि ध है, िजसम येक क सामािजक, वैचा रक एवं सां कृितक िवरासत क खास भूिमका रहती है । चेतना और संघष, दोन अ यो याि त ह । संघष चेतना क और चेतना िव ोह क जननी है ।
अवाम क संघष चेतना म कायरत दशन
येक दाशिनक अपनी अि तीय िधषणा बल के ज़ रये अपने समसामियक समाज क
1 ऑ फोड द न र
2 मृदुला गग,मद आलोचना,आधुिनक िह दी कहानी,नारी चेतना,पृ.206
अलग अलग ा याएँ देते रहे ह । ये कभी अवाम के प म ह तो कभी िवप ीय बन जाती ह।
हालां क अवाम क संघष चेतना के पायन म इनक बडी भूिमका होती है । अवाम क संघष चेतना म कायरत दशन म मा सवाद, अ बे करवाद और नारीवाद का अलग योगदान है । मा सवाद
“ समाज को समझने और बदलने तथा शोषण हीन समाज का िनमाण करने के िव ान का नाम मा सवाद है ।”1 मा सवादी दशन अथ एवं म पर आधा रत है । मा स के अनुसार ब जन समाज उ वग, म यवग, िन वग आ द तीन बुिनयादी तर म िवभिजत है । पहला
वग शोषक का है। वे पूंजी के अिधकारी है । दूसरा वग िशि त तथा औहदे ा पीढी का है
और अंितम वग सवहारा का है जो अपनी मेहनत के ज़ रये सब कुछ पैदा करते ह । उ वग एवं
म यवग ारा समाज म िन वग का शोषण होता रहता है। मा स क राय म वग क उपि थित ागैितहािसक काल से नह है । बि क सामािजक िवकास के दौरान स ासीन ए ह। मा स इितहास को सा ी मानता है -“आ दम सा यवादी युग् म कसी कार के वग नह थे। सभी ि समान आकां ा और आव यकता से े रत थे । इन आकां ा और आव यकता क पूरती केिलये ि समान काय का संपादन करते थे । इसके बाद िनरंतर दास, सामंत और पूँजीवादी युग म वग बने रहे । इन वग म थाई भेद के कारण संघष होते
रहे ।”2 इस तरह मा स ने संघष के ज़ रये सामािजक िवकास क अवधारणा तुत क है । उनक राय म संघष एक गितशील णाली है, जो समता स प समाज क ित थापना म ही
समा होती है । वह समाज वगहीन होगा । पूँजी वैयि क न होकर पूरे समाज क उपलि ध मानी जायेगी ।
वगहीन समाज क थापना वगसंघष से ही स भव होती है । उ वग एवं िन ाग यानी
शोषक एवं शोिषत के बीच िनरंतर संघष होता रहता है । पूजीपित इसिलये शोषण करते ह ता क पूँजी बढती जाए । शोिषत इसिलये शोिषत है क उनके महनत के अलावा और कोई
1 राम िवलास शमा,मा सवाद और गितशील सािह य,पृ.265 2 राम िवलास शमा,मा सवाद और गितशील सािह य, पृ.265
चारा नह रहता । मा सवाद के अनुसार इस बदहालत से उबरने केिलये सव थम मेहनतकश अवाम को संग ठत होना चािहये । संग ठत होने से एक वगवादी चेतना का उदय होता है, जो
िव ोह एवं ाँित क ेरणा देती है । वह पूँजीवादी स ा के िखलाफ लडने क ताकत दान करती है । नतीजतन समाज म समता और शांित अमल होती है ।
मा स क राय म दुिनया के सभी पदाथ प रवतनशील ह । इस प रवतन का आधार पदाथ के आपसी संघंष ही है । इसे ा मक भौतीकवाद कहा गया है । प रवतन क अव था
म एक व तु दूसरे व तू म बदल जाती है । पुराने व तु पर नयापन आ जाता है। ा मक भौतीकवाद के अनुसार यह या गित और िवकास क प रचायक होती है । “ मक भौितकवाद िवकास क या को आधार बनाता है । सृि िनरंतर िवकासशील है और यह
िवकास क याभौितक पदाथ अथवा या के पूण स ब ध क ही अव था म होती है । प रवतन क अव था म एक व तु दूसरे व तु म बदल जाती है। िवकास क या अनंत है । एक व तु क जगह दूसरी व तु आ जाती है और यह या िनरंतर चलती है । मक भौतीकवाद के अनुसार यह या गित और िवकास क प रचायक है, जो िनरंतर बढती
और िवकिसत होती है । भौितक जगत िवकास का ही व प है, िजसम ि के आ थक जीवन के साथ उसक सामािजक पृ भूिम अंत निहत होता है । सभी व तु क िनषेधा मक और िवधेया मक ि थितयाँ होती है ।”1 इस तरह मा स ने संघष को अपने िस ाँत क तथा
प रवतन क धुरी मान ली है ।
उ वग एवं िन वग, िवरोधी शि याँ है । इन िवरोधी शि य के आपसी संघष वगसंघष ह । वग संघष के दौरान जो नई वग व था होगी, वह समतास प होगी ले कन यह अव था भी थायी नह है । नया वग पर जब स ा क त होती है धीरे धीरे उसक अ दाज़ म प रवतन आने लगता है । वह पूँजीवाद को य देने लगता है । केवल अपने
िवकास पर यान देने लगता है । नतीजतन दूसरे वग क गती म बाधा पडने लगती है और असमानता पलने लगती ह । इससे नयी चेतना ज म लेती है और संघष के नये आयाम जुडने
1 राजे िम ,समकालीन सािह य और िवचारधाराएँ,पृ.66
लगते ह । इस तरह मा स के अनुसार संघष एक गितशील णाली है जो प रवतन का
पूवाभास देता है ।
मा स ने एक सपना देखा िजसम आ थक िविभ ता से परे समाज के सभी नाग रक समान अिधकारी है । सपने को हक कत म बदलने केिलये मेहनतकश अवाम से उसक
िवरासत-मेहनत तथा संघष को ज़ रया बनाया गया; और ऐसा एक िस ांत का पायन कया
िजसके तहत म तथा संघष के लगातार इ तेमाल से पूँजीवादी व था के कायापलट का
बमुि कल काम काफ अिनवाय हो जाता है । मा सवाद ने मेहनतकश अवाम को उसके वजूद का एहसास दलाया । कदम से कदम िमलाकर वयं गित क तरफ बढने का हौसला दया । आ थकता एवं भौितकता क सीमारेखाएँ ह फर भी अवाम को मुि का सपना दखाने म मा वाद क अहम भूिमका है ।
दिलत चतन
आ थक धरातल एवं भौतीकवा द दृि कोण मा सवाद को सावलौ कक उपादेयता दान करती है । ले कन भारतवष का िवशेष स दभ थोडा िभ है । भारतीय समाज जाितपरक
िवभाजन के खेमे म है, िजसक जड भारत क मृ मय सं कृित तक फैली ई है । इसिलये
जाित था क आ द एवं ाि का सही दशांकन करना बमुि कल है ।
‘आ दम वै दक समाज ा ण, ि य, वै य, शू आ द चार बुिनयादी वग म
िवभिजत था ।’1 िवभाजन कम के आधार पर ए थे । ये गाँव म बसते थे । कुछ लोग गाँव के
बाहर भी रहते थे जो िवभाजन के बाहर थे । ज़माने के साथ िवभाजन का आधार भी बदल गया । जाित कम के आधार पर नह बि क ज म के आधार पर माने जाने लगे । इस तरह समाज म असमानताएँ पलने लगा । ा ण का बेटा वह चाहे िनर र हो, ा ण बनने लगा
और शू का बेटा शू । नतीजतन धम ढी म प रव तत होती गई । वह शोषक के हाथ का
सबसे तीखा हिथयार बनता गया ।
1 एस. आिबद सैन,the national culture of india
गाँव के बाहर जो बसते थे वे अछूत माने जाते थे । उनक पर परा आज दिलत श द से अिभिहत होती है । अछूत से दिलत तक क या ा को डॉ. दनेश राम ने इस कार अिभ कया है -‘वष1933 म महा मा गाँधी ने इ ह ‘ह रजन’ नाम दया िजनका ह रजन ने जमकर िवरोध कया । फल व प अछूत ने अलग अलग अपना नामकरण कया आ द-
िवड, आ द-आ , आ द कणाटक और आ द- हदु इ या द । अपने संघष के दौरान अछूत के
िलये ‘दिलत’ श द का इ तेमाल सबसे पहले जोितबा फूले ने ही कया । यह श द आज अिधकाँश े म अछूत के िलये ा हो गया । अं ेज़ ने अपनी सुिवधा के िलये इस वग को
औट के ट (out caste) ‘ए टी रअर के ट (exterior caste) और िड े ड के ट (dipressed caste) का नाम दया । इन सब नाम के अित र एक नाम अनुसूिचत जाित, अनुसूिचत जनजाित भी है जो संिवधान ारा दया गया है । आज अछूत के िलये सवािधक
ा और चिलत नाम है ‘दिलत’ जो धीरे -धीरे पूरे भारतवष म अछूत ारा वीकार कया
जा रहा है ।
वयं अपने ज म को रोकना कसी से स भव नह । कोई भी ि अपनी िवरासत को
नह बदल सकता । ज म तथा िवरासत येक पर थोपा गया है । कसी केिलये वह मुबारख है
तो कसी के स मुख मुसीबत । दिलत के िलये दोन मुसीबत ही है जो उनके जीने क अिभलाषा को ठंडा कर देती ह । इसी वजह वह समाजिनकाला बन जाता है िजसम उसका
कोई कसूर नह है । इस दद भरे एहसास को अं कत करते ए डॉ. िशवकुमार िम िलखते ह - वह कौनसी बात है जो आदमी को सवािधक दंश देती है । यथाथ अनुभव बतता है क आदमी
को सबसे बडा दद तभी होता है जब उसम और दूसर म उन कारण के तहत फरक कया
जाता है िजसम उनका कोई वश नही है ।”1 दिलत चतन का उ े य इस नाजायज़ बोझ को
दिलत के क धे से उतारना है ।
1 डॉ.िशवकुमार िम ,वग और वण स दभ:दिलत िवमश,वतमान सािह य,पृ.11
“ आधुिनक भारत म दिलत चतन का आर भ महा मा जोितबा फूले से होता है ।”1 जाित था का मूल- वणा म व था- पर उ ह ने अपने िवचार क तीर चलाई । वणा म
व था के िविभ इकाइयाँ जैसे कमफल, पुनज म, मो का िस ाँत आ द क कडी
आलोचना क । उनक राय म ये दिलत को गुलाम रखने के उ े य म सवण ारा रिचत सािजश है । उ ह ने वेद, पुराण, मृित जैसे ंथ का ितर कार कया । पूरे समाज के िलये
गितशील मू य के नये िवक प को तुत कया -“अपने आंदोलन म जोितबा फूले वणा म व था का िवरोध कर रहे थे तो उसके बर स एक नई समाज व था का िवक प भी तुत कर रहे थे िजसम आधुिनक गितशील मू य - वतं ता, समानता और ब धु व, क बात कही
गयी है । उ ह ने एक ऐसी समाज क क पना क जहाँ कसी भी कार का जाितभेद, स दायभेद न हो और जहाँ मानवािधकार के सुरि त रहने क गैरंटी हो ।”2
महा मा जोितबा फूले ने दिलत को िशि त होने का आ वान कया । उ ह ने अपने
िवचार को च रत करने केिलये सािह यकार क भी भूिमका िनभाई है । ि तीय र ा, गुलामीिग र आ द उनक मुख रचनाएँ ह । सावजिनक सभा क थापना म उनक मह वपूण योगदान है ।
दिलत आंदोलन के स दभ म जोितबा फूले के बाद डॉ.भीमराउ अ बेदकर का नाम मुख है । उ ह ने पूवज क िवचाधारा को आगे बढाया । उ ह ने दिलत को िशि त होने, संग ठत होने तथा संघष करने का आ वान कया । उ ह ने भारतीय संिवधान को अपने योगदान से
स प बनाया। उ ह ने भारतीय संिवधान म देश के सारे अ पसं यक समाज के िलये आर ण क सुिवधा दान कर दी जो दिलत केिलये काफ गुणदायक रहा। उ ह ने दिलतो थान के
िलए रा यसमाजवाद क वकालत क । िवधान सभा म कानून मं ी के प म अ बेदकर ने
दिलत के िलये आवाज़ उठाया ले कन िह दु कोड िबल पर अपनी असहमित दखाते ए उ ह यागप देना पडा । 1959 म िह दु धम क िवडंबना के ित िव ोह व प अपने हज़ार
1 दनेश राम,समकालीन िह दी कहानी और अ बेदकरवादी आंदोलन,पृ 20 2 दनेश राम,समकालीन िह दी कहानी और अ बेदकरवादी आंदोलन,पृ.30
अनुगािमय के साथ उ ह ने बौ धम का वरण कया । डॉ.अ बेदकर ने एक ऐसे
वणिवहीन समाज क क पना क िजसम आधुिनक मानवीय तथा वै ािनक मू य का समावेश है, िजसका च र वतं ता, समानता, ातृ व का है । उनके मत म जनतं केवल सरकार का
ही एक प नह है बि क मौिलक प से वह संग ठत ढंग से रहने क रीित है। वह पर पर आदान- दान का अनुभव है । वह आव यक तौर पर अपने सािथय के ित आदर तथा स कार क भावना है ।1 अ बेदकर के अनुसार िबना सामािजक रसतं के सरकार और राजनीित क भूिमकाएँ अधूरी होती ह । उ ह ने गरीबी के उ मूलन के िलये उ पादन म वृि तथा रा के
बिहमुिख िवकास के िलए रा ीयकरण क नीित क वकालत क । वे भूिम का रा ीयकरण कर उ पादन क णाली को एक सामूिहक प ित बनाने के प धर थे । उनके अनुसार जब तक रा य खेती और उ ोग के े म समाज के गरीब तबक के िलये आ थक संसाधन नह जुडा
पायेगा, तब तक आ थक समृि का होना क ठन है । समाज म आ थक और सामािजक प रवतन के िलए वे रा य क अहम भूिमका मानते थे ।
डॉ. अ बेदकर सामािजक याय के बल समथक थे । उनके अनुसार- “सामाज याय का
पैमाना मा भौितक उ ित नह है, मा शारी रक भूख यास िमटाना नह है, कुछ सुख- सुिवधाएँ और सरकारी नौक रयाँ देना नह है, बि क इससे भी अिथक मह वपूण बात यह है
क भारत के लोग अथवा सभी वग और धम के लोग के उन मानवीय मू य तथा अिधकार को थािपत करना है।िजनसे समाज क व था यायोिचत बने और रा ीय समरसता क दशा म अिभवृि हो ।”2 उनके िवचार मा अमुक जनिवभाग पर केि त नह बि क सम त शोिषत एवं दिमत के िलये थे । फर भी िवचार के मूल म जितगत असमानता का उ मूलन ही
मुख था।उनका असर यादतर दिलत समाज तक सीिमत रखने क वजह यही है । सुभाष गातडे क राय म -“अ बेदकर के आँदोलन का सबसे प भाव यही रहा है क सभी दिलत जाितय म िश ा के ित िच बढी । इन पढे-िलखे दिलत म कई ने सरकारी नौकरी,
1 डॉ.िब.आर.जाटव,गाँधी लोिहया अ बेदकर,पृ87 2 दनेश राम,समकालीन िह दी कहानी और अ बेदकरवाद