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प्रश्नपत्र सां. एवां शीषषक P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भक्ति कालीन काव्य) इकाई सां. एवां शीषषक M34 : पद्मावत के स्त्री पात्रों का चरित्राांकन

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HND : हिन्दी P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भक्ति कालीन काव्य) M34 : पद्मावत के स्त्री पात्रों का चरित्राांकन

क्तवषय क्तिन्दी

प्रश्नपत्र सां. एवां शीषषक P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भक्ति कालीन काव्य) इकाई सां. एवां शीषषक M34 : पद्मावत के स्त्री पात्रों का चरित्राांकन

इकाई टैग HND_P5_M34

प्रधान क्तनिीक्षक प्रो. िामबक्ष जाट प्रश्नपत्र-सांयोजक प्रो. चौथीिाम यादव

इकाई-लेखक प्रो. देवशांकि नवीन

इकाई समीक्षक प्रो. जविीमल्ल पािख

भाषा सम्पादक डॉ. िीता दुबे

पाठ का प्रारूप

1. पाठ का उद्देश्य 2. प्रस्तावना

3. पद्मावत के प्रमुख स्त्री पात्र

4. पद्मावत के अन्य स्त्री पात्र

5. क्तनष्कषष

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HND : हिन्दी P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भक्ति कालीन काव्य) M34 : पद्मावत के स्त्री पात्रों का चरित्राांकन 1. पाठ का उद्देश्य

इस पाठ के अध्ययन के उपिान्त आप–

 जायसी द्वािा पद्मावती के चरित्राांकन का स्वरूप जान सकेंगे।

 स्त्री पात्रों के चरित्राांकन के माध्यम से जायसी के स्त्री सम्बन्धी दृक्तिकोण समझ सकेंगे।

 स्त्री प्रकृक्तत के सूक्ष्म क्तनिीक्षण में जायसी की सफलता-क्तवफलता की क्तस्थक्तत जान सकेंगे।

2. प्रस्तावना

मक्तल क मुिम् मद जायसी िक्तच त पद्मावत सूफी प्रेममागी काव्यधािा का सवषश्रेष्ठ ग्रन्थ िै। मसनवी शैली में िक्तच त आध्याक्तममक स्वरूप की यि प्रेमगाथा एक प्रक्तसद्ध ऐक्ततिाक्तसक कथा पि आधारित िै। इक्ततिास एवां कल्पना का

चमम कारि क समन् वय भावकों को सिज िी मुग् ध किता िै। घटना-क्रम सांयोजन, प्रसांग-परि क्तस् थ क्तत यों के वणषन, सूक्ष्मति

चरि त्र-क्तच त्रण, पात्र-पात्राओं के अन् तवाष्य द्वन् द्वों के क्तव क्तश ष् ट रूपाांकन से यिााँ मिाकक्तव जायसी के क्तव लक्षण िचना- कौशल का परि चय क्तम लता िै। इससे कृक्तत की प्रबन्धाम मकता में क्तन खाि औि प्रभावोम पादकता में उम कषष आया िै।

ससिलद्वीप की िाजकुमािी पद्मावती औि क्तचत्तौड़ के िाजा ित्नसेन के लौककक प्रेम की अलौककक व्यांजना इस कृक्तत का

मूल क्तव षय िै। पद्मावती के काक्तय क एवां बौक्तद्ध क सौन् दयष, पद्मावती-ित्नसेन के प्रणय-प्रसांग, िानी नागमती के क्तविि- वणषन, क्तचत्तौड़ पि अलाउद्दीन क्त़िलजी के आक्रमण के समय पद्मावती की बुक्तद्ध मता के साथ-साथ समथषक घटना- प्रसांगों का अनुकूल एवां जीवन् त वणषन प्रशांसनीय िै। मानवीय प्रेम की आदशष अक्तभव्यक्ति िेतु यि कृक्तत क्तिन्दी साक्तिमय की अमूल्य क्तनक्तध िै। घटना-क्रम की क्तव कास-प्रकक्र या में प्रसांगानुकूल क्तव क्तव ध जीवन-प्रसांगों का क्तच त्रण यिााँ अवश् य ुआआ

िै, पि सचाई िै कक समग्रता में पद्मावत के सािे पात्र प्रेमादशष-स् थापना में तम पि कदखते िैं। क्तवजयदेव नािायण सािी

के अनुसाि पद्मावत में क्तच क्तत्र त 'यि स्वि, यि क्तवषाद, यि टीसती ुआई तड़प एक ऐसे कक्तव की िै, क्तजसे मज़ाज औि

िकीकत दोनो चाक्तिए। जो मजाज औि िकीकत के सामने पड़े ुआए पदे की तिि निीं देखना चािता। जो मजाज औि

िकीकत को युगनद्ध देखना चािता िै। क्तजसे बैकुण्ठी प्रेम की तलाश निीं िै, जो ऐसा प्रेम चािता िै, जो प्रेम किने

वाले मनुष्य को िी बैकुण्ठी बना दे (जायसी/पृ. 102-3)।'

क्तव कद त िै कक सूकफयों की दृक्ति में पिमतत्त्व क्तनगुषण औि क्तनिाकाि िै। उनकी िाय में िि जीवधािी को उस पिमतत्त्व में

लीन ििना चाक्ति ए। पिमाम मा औि आम मा, ब्रह्म औि जीव का पािस् परि क सम्बन्ध सूफी सन् त समुद्र औि तिांग, फूल औि सुवास, मृग-कुण् डक्तल औि कस्तूिी के समान मानते िैं। वे इनका अलग अक्तस् त म व निीं मानते। उनका मूल मन्त्र प्रेम

िै; प्रेममागी काव्यधािा के सूफी-दशषन में पिमाममा क्तप्र यतमा िै, क्तज नसे क्तम लन िेतु आममा, अथाषत् साधक प्रेमी बेचैन

ििते िैं। प्रेम के दो रूप िैं —इश्के मजाजी (साांसारिक प्रेम) औि इश्के िकीकी (अलौककक प्रेम)। ईश्विीय प्रेम में

साांसारिक प्रेम की क्रमश: परि णक्तत िी सूकफयों की नज़ि में मानव-जीवन की पूणषता िै। वैयक्त् त क सुख-दुुःख, लाभ-

िाक्तन, यश-अयश, स्वाथष-सांकीणषताकद से क्तन र्लल प् त ुआआ साांसारिक प्रेम ईश्विीय प्रेम की क्तसद्ध अवस्था में पुआाँचता िै।

सूकफयों के जीवन के मुख्य ध्येय ईश-साधना का मूल आधाि प्रेम िोता िै। अपने क्तप्रयतम पिमाममा को प्रेम से रिझाना

सूकफयों के जीवन का पिम लक्ष्य िोता िै। हृदय में प्रेम उपजाने िेतु वे क्तचत्र-दशषन, स्वप्न-दशषन औि साक्षात् दशषन की

पद्धक्तत अपनाते िैं। सूकफ यों का मानना िैं कक लौककक प्रेम मनुष् य को वासना से बााँधता िै, जबकक अलौककक प्रेम मन को शुद्ध किता िै। सूफी कक्तवयों ने अपने िचनाम मक उ्यमम से यिी सन्देश कदया कक िमेशा सृक्ति के िचक्तयता का

क्तचन्तन किते ििना मनुष्य के जीवन का मूल उद्देश् य िोना चाक्तिए।

(3)

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मिाकक्तव जायसी ने अपनी प्रक्तस द्ध कृक्तत ‘पद्मावत’ में सूफी प्रेममागष के इसी क्तव लक्षण दशषन की व यांजना प्रस् तुत की िै।

अक्तन न् ्यम सुन् दिी पद्मावती औि िम नसेन की प्रणय-गाथा के सिािे उन् िोंने ब्रह्म-जीव के इसी क्तम लन को उकेिा िै। पि

इस अलौकक क प्रेम का रूपक स् पष् ट किने में उन् िोंने क्तज स लौकक कता का सिािा क्तल या िै, उसमें स् त्री सम् बन् धी उनके

दृक्तष् ट कोण को िेखाांकक त किते ुआए उस कौशल की क्तव लक्षणता की समीक्षा किना इस पाठ का मूल लक्ष् य िोगा।

3. पद्मावत के प्रमुख स्त्री पात्र

इक्ततिास औि कल्पना के अद्भुत सांयोजन से िक्तच त मिाकाव य पद्मावत क्ति न् दी की श्रेष् ठ कृक्तत िै। इसमें लौककक- अलौककक तत्त् वों के अनूठा सक्तम् म श्रण ुआआ िै। सृजनाम मक भव यता की कसौटी से इस कृक्तत के अवगािन में अक्तध क आनन् द आता िै। वर्लण त प्रसांग ऐक्तत िाक्तस क तथ यों से भले किीं इधि-उधि िो जाएाँ, पि माना जाता िै कक प्रेम औि

सौन् दयष-कथा की इस ऊाँचाई तक क्तिन् दी साक्तिमय में कोई दूसिी कथा निीं पुआाँच सकी। क्तव लक्षण आध्याक्तममक रूपकों की

शृांखला से परि पूणष इस कृक्तत में भावक चािें तो क्तचत्तौड़ को मानव-शिीि, िाजा िम नसेन को मानव-मन, ससिल को

हृदय, पद्मावती को बुक्तद्ध, सुग्गे को गुरु, नागमती को लौककक जीवन, िाघवचेतन को शैतान, औि अलाउद्दीन क्तख लजी

को माया समझकि इस कथा का अवगािन कि सकते िैं।

तन क्तच तउि मन िाजा कीन् िा। िय ससघल बुक्तध पदक्तम क्तन चीन् िा।।

गुरु सुआ जेइ पन् थ देखवा। क्तब नु गुरु जगत को क्तन िगुन पावा?

नागमती यि दुक्तन या धन् धा। बााँचा सोइ न एक्ति क्तच त बन् धा।।

िाघव दूत सोई सैतानू। माया अलाउदीं सुलतानू।।

यिााँ कक्तव का अभीि पिमाम मा से आम मा के क्तम लन की उस पद्धक्तत को िेखाांकक त किना िै, क्तज समें अनेक भव-बाधा, मोि-माया, मन की चांचलता आकद को म याग कि जीव शुद्ध िोता िै, औि एकाग्र मन से ब्रह्म में लीन िोने की चेष् टा

किता िै। लौकक क प्रेम की चमम कृत वणषन-पद्धक्तत की बदौलत जीवन का गूढ़ ििस् य यिााँ बड़ी सिलता से स् पष् ट िो

जाता िै। गौितलब िै कक इस पूिी पद्धक्तत में कक्तव ने स् त्री-चरि त्र को बुआत उज्व ज्व वल स् वरूप में िखा िै; पूिी िचना में

उन् िोंने अपने स् त्री-रूपक को किीं लाांक्ति त निीं िोने कद या। सौन् दयष-चचाष सुनकि प्रेमासक्त् त उपजना औि प्रेम के उस आधाि को प्राप् त किने िेतु पूिे जीवन के समस् त उ्यममों का अपषण इस कृक्तत का पूिा क्तव तान िै। एक िी आसक्त् त कक स तिि दो चरि त्र में क्तव भ् त िो जाती िै, इसे स् पष् ट किने िेतु कक्तव ने यिााँ प्रेम के दो स् वरूप प्रस् तुत कक ए िैं--पद्मावती से

िम नसेन का प्रेम औि पद्मावती से अलाउद्दीन का प्रेम। दोनों िी पुरुषों को एक िी अलौकक क रूपवती स् त्री से प्रेम िोता

िै। दोनों के हृदय में प्रमोद्भव सौन् दयष-वणषन सुनकि िी ुआआ िै। िम नसेन ने पद्मावती का सौन् दयष वणषन िीिामन सुग् गा

से सुना; औि अलाउद्दीन ने िाघवचेतन से। क्तव डम् बना िी िै कक एक पांिी द्वािा कक या गया वणषन कक सी मनुष् य को

ज्ञानी बना देता िै औि एक गुनी पक्तण् ड त द्वािा कक या गया वणषन दूसिे मनुष् य को कामी बना देता िै। वाचकों के ध् येय से ऐसे प्रभाव की पृष् ठभूक्तम स् पष् ट िोती िै। असल में दोनों वाचकों की धािणाओं ने िी उनके वचन को क्तव क्तश ष् ट औि

अक्तश ष् ट कद शा दे दी। सुग् गे का ध् येय पक्तव त्र था, पद्मावती के अपूवष सौन् दयष का वणषन किते ुआए उसकी कोई क्तन धाषरि त कामना निीं थी। पि पक्तण् ड त िाघवचेतन अपने दूक्तष त पाक्तण् ड म य के अिांकाि से जल ििे थे, उनकी मांशा कलांकक त थी। वे

िाजा िम नसेन के प्रक्तत प्रक्तत शोधाक्तग् न से तड़प ििे थे। सूफी प्रेममागी दशषन के अनुसाि अकािण िी सुग्गे को गुरु, औि

िाघवचेतन को शैतान निीं किा गया। भाितीय क्तव धान में अनाकद काल से ज्ञान औि क्तस क्तद्ध को सम य, क्तन ष् ठा औि धमष की स् थापना में क्तल प् त ििने का क्तन देश ििा िै। पि इस गाथा में अपनी क्तस क्तद्ध के अक्तन ष् ट उपयोग के कािण िाजा

िम नसेन ने िाघवचेतन को उक्तच त दण् ड सुनाया; क्तज सका परि माजषन किती ुआई िानी पद्मावती ने िाघवचेतन को सुधि

जाने का एक अवसि भी कद या। वे कफ ि भी निीं सुधिे। अन् तत: दन् िोंने अपनी दुष् ट-वृक्तत्त को िी प्रश्रय कद या। यि िानी

पद्मावती की दूिदर्लश ता का िी सांकेत िै कक िाघवचेतन के पाक्तण् ड म य से परि क्तच त िोने के बावजूद वे उनकी दुजषनता के

प्रक्तत भी आश् वस् त थीं।

(4)

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इस गाथा में पद्मावती-िम नसेन का प्रेम अलौकक क िै, प्रयास किने पि भी

उनके प्रेम में किीं कोई क्तव चलन निीं आता; पावषती-मिेश खण् ड में िम नसेन के प्रेम की पिीक्षा पावषती लेती िैं, लक्ष् मी- समुद्र खण् ड में िम नसेन के प्रेम की पिीक्षा लक्ष् मी औि समुद्र लेते िैं, पि िम नसेन का वि अलौकक क प्रेम, पिमाम म से

आम म के क्तम लन का उ्यमम कल् पना मात्र के क्तल ए भी निीं क्तड गता। यिााँ प्रेम की पूणषता में िि अविोध को क्तम टा देने की

क्तज द िोती िै, प्रेम सवोपरि िै, प्रेम का आलम् बन सवषश्रेष् ठ िै, प्रेम की साथषकता िेतु प्राण भी क्तन िथषक िैं। जबकक अलाउद्दीन का प्रेम लौकक क, कामान् ध, औि दूक्तष त िै। पिस् त्री के प्रक्तत अनुिक्त् त औि भौक्ततक बल से उसे प्राप्त किने की

कामना अनैक्तत क िै। अपने प्रेम के आधाि को पाने की क्तज द दोनो में िै—िम नसेन में भी, अलाउद्दीन में भी। दोनो िी

प्रेमी प्रेमाधाि के गढ़ को घेिते िैं; िम नसेन ससिल गढ़ को, अलाउद्दीन क्तच त्तौड़ गढ़ को। अपने प्रेमाधाि को पाने िेतु

िम नसेन में खुद को क्तम टा देने की प्रेिणा िै, तो अलाउद्दीन में दूसिों को क्तम टा देने की क्तज द। कक्तव जायसी ने कामास् त- प्रेम पि अलौकक क-प्रेम की क्तव जय कदखाकि यिााँ स् पष् ट कि कद या िै कक कामासक्त् त िेय िै, वासना िै, प्रेम निीं िै; प्रेम तो अलौकक क िै, काम-मु् त िै, कदव्य िै। अन् य कई सियोगी स् त्री-पात्रों के बावजूद पद्मावत में दो स् त्री पात्र—

पद्मावती औि नागमती प्रमुख िैं, क्तज न पि क्तव स् ताि से चचाष िोनी चाक्ति ए।

पद्मावती

‘पद्मावत’ मिाकाव य के शीषषक से िी स्पि िै कक नाक्तय का-प्रधान इस मिाकाव य में पद्मावती-चरि त को प्रमुखता दी गई

िै। पूिे मिाकाव य में अक्तनन््यम सुन्दिी पद्मावती के अक्तद्व तीय सौन् दयष एवां क्तव लक्षण बुक्तद्ध का जीवन् त औि प्रभावशाली

वणषन िै। प्रतीत िोता िै कक कक्तव ने भाितीय क्तम थक की दो देक्तव यों—रूप की देवी िक्तत , औि बुक्तद्ध की देवी सिस् वती

का समक्तन् व त रूप पद्मावती में आिोक्तप त कि कद या िै। काव्य नाक्तय का पद्मावती ससिल द्वीप के िाजा गन्धवषसेन की

पक्तद्मनी कन्या थीं। उनकी अनुपक्तस्थक्तत में एक कदन उनका पालतू सुग्गा िीिामन एक क्तबल्ली के आक्रमण से बच क्तनकला, पि वि एक बिेक्तलए के चांगुल में फाँस गया, क्तज सने उसे एक ब्राह्मण को बेच कद या। ब्राह्मण ने आगे उसे

क्तचत्तौड़ के िाजा िम नसेन को बेच कदया। स् वरूपगर्लव ता िानी नागमती से पिले से िी क्तववाक्तित िम नसेन उसी सुग्गे से

पद्मावती के अद्भुत सौन् दयष का वणषन सुनकि उस अपूवष सुन् दिी की खोज में योगी बनकि क्तनकल पड़े। सौन् दयष चचाष मात्र से ऐसा प्रेमोद्भव अलौकक क प्रेम का उदाििण िै।

ऐसे अलौकक क-प्रेम के आधाि अपनी काव्य-नाक्तय का पद्मावती के सौन् दयष-क्तच त्रण में मिाकक्तव जायसी ने उपमान-सांग्रि

के अपूवष कौशल का परि चय कद या िै। क्तज स मानसिोवि के वणषन में कक्तव पिले िी परि पूणष उम कृष् टता भि चुके-- मानसिोदक देक्तख अ कािा। भिा समुाँद अस अक्तत अवगािा।

पाक्तन मोती अस क्तनिमि तासू। अक्तम् ब्र त बाक्तन कपूि सुबासू।

अथाषत् मानसिोवि के सौन् दयष का वणषन ् या कक या जाए! वि तो समुद्र की तिि अगाध जलिाक्तश से भिा ुआआ िै, उसके जल मोती जैसे चमकीले औि क्तन मषल िैं, अमृत जैसे उस जल में कपूषि की काक्तन् त औि सुवास भिे ुआए िैं। उस पि

कक्तव कफ ि किते िैं कक सिोवि का ऐसा सौन् दयष यूाँ िी निीं िै; उसके इस क्तव लक्षण सौन् दयष का आधाि पद्मावती के रूप-

िाक्तश का पािस-तत्त् व िै; सौन् दयष का जो भी पावन रूप आसपास िै, उसका सािा श्रेय पद्मावती के पािस-रूप को िै।

मानसिोवि की स् वीकािोक्त् त में कक्तव यि वणषन किते िैं--

किा मानसि चिा सो पाई। पािस रूप इिााँ लक्तग आई।

भा क्तनिमि तेन्ि पायन पिसें। पावा रूप रूप कें दिसें।

मलै समीि बास तन आई। भा सीतल गै तपक्तन बुझाई।

न जनौ कौनु पौन लै आवा। पुक्तन् न दसा भै पाप गाँवावा।

ततखन िाि बेक्तग उक्तत िाना। पावा सक्तख न् ि चन् द क्तब िाँसाना।

क्तबगसे कुमुद देक्तख सक्तस िेखा। भै तेसि रूप जिााँ जो देखा।

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पाए रूप रूप जस चिे। सक्तस मुख सब दिपन िोई ििे।

नैन जो देखे काँवल भए क्तनमषि नीि सिीि।

िाँसते जो देखे िाँस भए दसन जोक्तत नग िीि।

मानसिोवि किता िै—अिोभाग् य! जैसा चािा था, मुझे तो वैसा िी फल क्तम ला। रूप की पािस-मक्तण यिााँ तक आ गईं।

उनके पााँवों के स् पशष से मैं क्तन मषल ुआआ। उनके रूप-दशषन से मुझे रूप-िाक्तश क्तम ली। उनके तन से क्तन स् सृत मलय-पवन जैसे सुवास से मैं सुवाक्तस त ुआआ। ऐसी शीतलता पाई कक तन का ताप दूि िो गया। न जाने ऐसा पवन-सौिभ कौन ले

आया कक मैं पुण् यमय िो गया, मेिे सािे पाप नष् ट िो गए, मैं पक्तव त्र िो उठा! तम क्षण जल-तल पि ऊपि से िाि उति

आया, सक्तख यों ने उसे उठा क्तल या। चन् द्रमा की रूप-िाक्तश से सुशोक्तभ त नाक्तय का पद्मावती यि कौतुक देखकि क्तब िाँस उठीं। उस चााँद की मुस् कान से क्तन कली कक िणों के प्रभाव में सािी कुमुदक्तन यााँ, अथाषत् सािी सक्तख यााँ क्तख ल उठीं। रूप की

िानी पद्मावती को क्तज स कक सी ने देखा, सब उसी रूप में आ गए। जो जैसा रूप चािते थे, वे वैसा िी पा गए। सािे के

सािे दपषण िो गए, वे क्तज स ओि देख लें, उधि उन् िीं की पििाईं नजि आने लगे, िि कक सी में उस चन् द्ररूप सुन् दिी

पद्मावती का रूप झलकने लगे। क्तज सने उनकी आाँखें देखीं, कमल िो गए; क्तज सने शिीि देखा, क्तन मषल जल िो गए।

क्तज सने िाँसते देखा, िाँसमुख िो गए, दन् तपांक्त् त यों की ज्व योक्तत पाकि चमकीले िीिे के नग िो गए।

पद्मावती की रूप-िाक्तश का यि वणषन स् पष् टत: उनके सौन् दयष को पािस की तिि िेखाांकक त किता िै, सांसाि की सभी

वस्तुओं को सौन्दयष उसी सुन्दिी से प्राप्त िै, सभी उनके सौन्दयष-दशषन को लालाक्तयत ििते िैं। उनके सौन्दयष का सम् पूणष आकलन असम्भव-सा िै। स्नान िेतु आई िानी पद्मावती के स्पशष मात्र से मानसिोवि अह्लाकदत िै। ्योंकक पद्मावती

कोई सामान्य स्त्री निीं, वे पिमाममा की प्रक्तत कृक्तत िैं, उनके दशषन िेतु सबकी आममा व्याकुल ििती िै।

मानसिोवि में स् नान िेतु आने से पूवष बनाई गई योजना को कक्तव क्तव िाट व् यांजना से भि देते िैं; जिााँ एक तिफ सौन् दयष के मोिक दृश् य क्तन खि उठते िैं, दूसिी तिफ प्रेममागी सूफी साधना के सूक्ष् म दशषन का अभास िोता िै।

एक देवस कौक्तन उाँ क्ततक्तथ आई। मानसिोदक चली अन् िाई।

पदुमावक्तत सब सखीं बुलाईं। जनु फुलवारि सबै चक्तल आईं।

कोइ चम् पा कोइ कुन् द सिेलीं। कोई सुकेत किना िस बेलीं।

कोइ सु गुलाल सुदिसन िाती। कोइ सो बकौरि बकचुन क्तब िाँसाती।

कोइ सो बोलसरि पुिपावती। कोइ जािी जूिी सेवती।

कोई सोनजिद जेउाँ केसरि । कोइ ससगाििाि नागेसरि । कोइ कूजा सदबिग चाँवेली। कोई कदम सुिस िस बेली।

चलीं सबै मालक्तत साँग फूले काँवल कमोद।

बेक्तध ििे गन गन् लप बास परि मलामोद।

पिली पांक्त् त का अथष तो यिााँ ऐसा िोगा कक एक कोई ऐसी क्तत क्तथ आई। पि पाठान् ति में कौक्तन उाँ की जगि पूनों या

किीं-किीं पुन् नौ भी िै। पूनों का अथष पूर्लण मा या पुण् य क्तत क्तथ , औि पुन् नौ का अथष क्तन स् सन् देि पुण् य क्तत क्तथ िोगा। तो ऐसा

ुआआ कक एक कद न कक सी पुण् य क्तत क्तथ में पद्मावती ने तय कक या कक वे मानसिोवि में निाने को चलें। उन् िोंने सभी

सक्तख यों को बुलाया, सािी सक्तख यााँ इस तिि िर्लष त िोती आईं, जैसे कक सी फुलवािी में क्तव क्तभ न् न कोरट के सुन् दि-सुन् दि

फूल क्तख ल उठे िों। कोई सिेली चम्पा-सी थीं, कोई कुन्द, कोई केतकी, तो कोई किना-सी; कोई िसबेक्तल -सी थीं, तो

कोई लाल गुलाल (फूल) की तिि सुदशषन लगती थीं। कोई गुल बकावक्तल के गुच िे की तिि क्तब िाँस ििी थीं। कोई मौक्तल श्री से लदी पुष् पवती लग ििी थीं। कोई जूिी औि सेवती, कोई सोनजिद, कोई केसि, कोई ििससगाि, कोई नागकेसि, कोई कूजा के फूल, कोई िजािा गेन् दा, कोई चमेली, कोई कदम् ब, कोई सुिस िसबेक्तल लग ििी थीं; औि ये

सब क्तम लकि सवाषक्तध क सुन् दि मालती फूल, अथाषत् पद्मावती के सांग ऐसे चल पड़ी थीं, जैसे कमल के साथ कोकावक्तल

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HND : हिन्दी P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भक्ति कालीन काव्य) M34 : पद्मावत के स्त्री पात्रों का चरित्राांकन

क्तख ल उठे िों, औि पूिे के पूिे पुष् प-उ्यमान चल पड़े िों। प्रतीत िो ििा था

जैसे इन फूलों के सुवास से कद क्तग् द गन् त सुवाक्तस त िों, औि भौंिों के समूि इस सौिभ से सबध गए िों।

ससिलद्वीप की प्राकृक्तत क सुषमा औि नारि यों का ऐसा सम् मानजनक क्तव विण मिाकक्तव जायसी के श्रेष् ठ काव य-कौशल औि नारि यों के प्रक्तत सम् मान-भाव का ्यमोतक िै। एक उमकृि प्रेक्तमका के रूप में मिाकाव य की नाक्तयका िानी पद्मावती

का क्तच त्राांकन तो औि भी क्तव लक्षण िै। पूिी कथा में पद्मावती के कई क्तच त्र प्रस् तुत ुआए िैं। मानसिोवि तट पि अपना

जूड़ा खोलकि बाल लििा देनेवाली पद्मावती सिोवि की ओि बढ़ जाती िैं-- सिवि तीि पदुक्तम नीं आईं। खौपा िोरि केस मोकिाईं।

सक्तस मुख अांग मलैक्तग रि िानी। नागन् ि झााँक्तप लीन् िअिघानी।।

ओनए मेघ पिी जग िािााँ। सक्तस की सिन लीन् ि जनु िािााँ।

िक्तप गै कद नक्ति भानु कै दासा। लै क्तन क्तस नखत चााँद पिगसा।

भूक्तल चकोि कद क्तस् ट तिाँ लावा। मेघ घटा मिाँ चााँद कद खावा।

दसन दाक्तम नी कोकक ल भाषीं। भौंिें धनुक गगन लै िाखीं।

उनका चन् द्रमा समान मुाँि, मलयक्तग रि समान तन, औि लििाते फैले बाल ऐसे प्रतीत िोते िैं, जैसे तन-चन् दन की

सुगक्तन् ध पाने िेतु उन् िें नागों ने क क्तल या िो; मेघों की घटा िा जाने से जग भि में िााँव िो गया िो। काला िाुआ चन् द्रमा की शिण में आ गया िो। सूयष की कक िणें कद न में िी क्ति प गई िों, औि नक्षत्रों के साथ चन् द्रमा अपने प्रकाश क्तब खेि ििे िों। सांशय में पड़कि चकोि उन् िें मेघों में क्ति पा चााँद समझ कि क्तन िाि ििा िो। क्तब जली जैसी दन् त-पांक्त् त यााँ, कोयल की तान जैसी मीठी, मोिक, सुिीली ध् वक्तन , गगन में िखे धनुष जैसी भौंिें, खांजन की तिि क्रीड़ाित आाँखें, श् यामाग्र पुष् ट स् तन, जैसे नािांगी पि बैठा भौंिा मधुपान कि ििा िो; औि इस अनुपम दृश् य को देखकि मुग् ध सिोवि

क्ति लोिें ले-लेकि उनके पााँव पखािने को लालाक्तय त िों।

पद्मावती के इस कद व य रूप का वणषन कई बाि आता िै। क्तच त्तौि के िाजा िम नसेन से िीिामन सुग् गा पद्मावती की

प्रशांसा किता िै।

सत्त कित िाजा क्तजउ जाऊ। पै मुख असत न भाखौं काऊ।

िौं सत लै क्तनसिा एक्ति पतें। ससिल दीप िाज घि ितें।

पदुमावक्तत िाजा कै बािी। पदुम गन् ध सक्तस क्तबक्तध औतािी।

सक्तस मुख अांग मलैक्तगरि िानी। कनक सुगन् ध दुआदस बानी।

िाँक्ति जो पदुक्तमक्तन ससघल मािााँ। सुगाँध सुरूप सो ओक्ति की िािााँ।

िीिामक्तन िौं तेक्ति क पिेवा। कण् ठा फूट कित तेक्ति सेवा।

औ पाएउाँ मानुस कै भाखा। नासि त किााँ मूरठ भरि पााँखा।

सुग् गा किता िै—िे िाजा, मैं सम य किता ूँाँ। प्राण भी चले जाएाँ, पि असम य निीं कूँाँगा। सम य के सिािे िी घि से

क्तन कला ूँाँ, वनाष ससिलद्वीप के िाजा के घि तो मैं था िी। पद्मावती विााँ की िाजकुमािी िैं। क्तव धाता ने कमल-सुगक्तन् ध औि चन् द्रमा के अांश से उनकी िचना की िै। उनका मुाँि चन् द्रमा औि अांग मलयक्तग रि-सा िै। वे स् वणष-सुगन् ध औि बािि

बाक्तन यों से बनी िैं। ससिलद्वीप में क्तज तनी भी पक्तद्म क्तन यााँ िैं, सब उन् िीं के सुगन् ध औि स् वरूप की िायाएाँ िैं। मैं िीिामन उन् िीं का पांिी ूँाँ, उन् िीं की सेवा किते ुआए मेिे कण् ठ से ध् वक्तन फूटी, मनुष् य की भाषा बोलने लगा, वनाष मुट्ठी भि पांख की क्तब सात िी ् या थी। आगे कफ ि पद्मावती का क्तव स् ताि से नख-क्तश ख वणषन िै, क्तज से सुनकि िम नसेन मूर्लि त िो जाते

िैं, जैसे सूयष की लिि आ गई िो--

सुनतक्ति िाजा गा मुिझाई। जानुआाँ लिरि सुरुज कै आई।

पेम घाव दुख जान न कोई। जेक्ति लागे जानै पै सोई।

वि मूिाष उस अलौकक क सौन् दयष, कद व य रूप का वणषन सुनकि हृदय में उपजे प्रेम-दांश के कािण आई थी। प्रेम की पीड़ा

वस् तुत: िि कोई निीं जान सकता। िम नसेन पद्मावती के प्रेम में इस तिि िांग गए कक वे सब कुि तजकि जोगी बन गए, औि उनसे क्तम लने ससिल द्वीप चल पड़े। प्रेममागी सूफी दशषन की पद्धक्तत से देखें तो पद्मावत मिाकाव य में

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HND : हिन्दी P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भक्ति कालीन काव्य) M34 : पद्मावत के स्त्री पात्रों का चरित्राांकन

पद्मावती का क्तच त्राांकन क्तव श् व यापी मिाज्व योक्तत के रूप में ुआआ िै। यि

मिाज्व योक्तत िम नसेन के हृदय में प्रक्तव ष् ट िोकि उसे प्रकाक्तश त कि देती िै, फलस् वरूप िम नसेन सूयष औि पद्मावती उनकी

िाया चन् द्रमा बन जाती िै। िम नसेन सूयष उष् ण औि अशान् त िैं, पद्मावती चन् द्रमा शीतल औि शान् त िैं; कक न् तु सूयष को

अपनी ओि आकृष् ट किते िैं। यि आकषषण दोनो के क्तव वाक्ति त िोकि समिस िो जाने तक बना ििता िै। िठयोक्तग यों की

साधना में चन् द्र-सूयष, इड़ा-सपगला, वाम-दक्तक्ष ण नाक्तड़ यों पि क्तन ग्रि कि क्तस क्तद्ध प्राप् त किना चिम उद्देश् य िोता िै। पि

लौकक क कथानक से इस गूढ़ ििस् य को समझाने में जायसी ने क्तव लक्षण प्रयोग कक ए िैं। लौकक क जीवन के सािे घात- प्रक्तत घात िोते ििे िैं। वसन् तोम सव मनाने आई पद्मावती के दशषन मात्र से िी िम नसेन मूर्लि त िो गए।

जोगी कदक्तस्ट कदक्तस्ट सौं लीन्िा। नैन िोक्तप नैनसि क्तजउ दीन्िा।

जेक्ति मद च ा पिा तेक्ति पाले। सुक्तध न ििी ओक्ति एक क्तपयाले।

क्तज स अमृत-पान की इच िा क्तल ए वे व यग्र थे, उसका एक भी प् याला पी न सके।

मेलेक्तस चन् दन मकु क्तखन जागा। अक्तधकौ सूत क्तस अि तन लागा।

तब चन् दन आखि क्तियाँ क्तलखे। भीख लेइ तुइाँ जोक्तग न क्तसखे।

बाि आइ तब गा तैं सोई। कैसें भुगुक्तत पिापक्तत िोई ?

अब जौं सि अिै सक्तस िाता। आइक्ति चक सो गाँगन पुक्तन साता।

उनके रूप-स् वरूप पि पद्मावती भी मुग् ध थीं। उन् िोंने िम नसेन के शिीि पि यि सोचकि चन् दन का लेप कक या कक कदाक्तच त इस उपचाि से वे जाग जाएाँ, पि इसके क्तव पिीत शीतलता पाकि वे औि गाढ़ी नीन् द में सो गए। कफ ि पद्मावती ने उनके हृदय पि चन् दन से क्तल ख कद या—िे जोगी, तुमने भीख लेने की युक्त् त निीं सीखी। मैं तुम् िािे पास चलकि आई, पि तुम सो गए। तुम् िें भीख कैसे प्राप् त िोगी। अब तुम सूयष, मुझ चन् द्रमा पि अनुि् त िो तो तुम् िें

सप् तगगन पि चढ़कि मेिे पास आना िोगा। इस बीच पद्मावती अपने प्रेमी के नैक्तत क-नैष् रठ क समस् त पिीक्षण के

उपायों से गुजिती िैं। स् त्री-सुलभ शांका, उम सुकता, स् वाक्तभ मान, क्तव िि, क्तव वशता...सािा कुि अपने क्तव धान के अनुसाि

िोता िै। समस् त क्तच त्रण में पद्मावती एक उज्व ज्व वल आदशष के रूप में उपक्तस् थ त िोती िैं।

उनके चरित्र में सतत आदशष की प्रधानता कद खती िै। क्तचत्तौि आगमन के पूवष भी उनका क्तच त्रण पिम नैक्तष् ठ क प्रेक्तमका

के रूप में ुआआ िै। ित्नसेन को सूली पि चढ़ाने की घोषणा सुनकि वे भी अपने प्राण देने को तैयाि िो गईं। ससिल से

क्तचत्तौि जाते समय यात्रा के दौिान उनमें कुशल गृक्तिणी के सािे वैक्तश ष् ो भिने लगे। िाि की समुद्र-यात्रा में जिाज डूब गया; िम नसेन एवां पद्मावती, दोनों बिकि दो घाट जा लगे; सािे खजाने, िाथी-घोड़े समुद्र में बि गए। समुद्र-िाज के यिााँ से क्तव दा िोते समय लक्ष्मी ने पद्मावती को पान के बीड़े के साथ कुि ित्न औि समुद्र ने ित्नसेन को अमृत,

िांस, शादूषल, सोनिा पांिी का वांशज, शादूषल शावक औि पािस पमथि...पााँच अलभ्य वस्तुएाँ भेंट दीं।

लखक्तम क्तन पुमावक्तत सैं भेंटी। जो साखा उपनी सो मेंटी।

समदन दीन् ि पान कि बीिा। भरि कै ितन पदािथ िीिा।

औि पााँच नग दीन्ि क्तबसेखे। स्रवन जो सुने, नैन नसि देखे।

एक जो अक्तम् ब्र त दोसि िांसू। औ सोनिा पांिी कि बांसू।

औि दीन्ि सावक सादूरू। दीन् ि पिस नग कांचन मूरू।

तरुन तुिांगम दुऔ च ाए। जल मानुष अगुवा साँग लाए।

इन पााँच वस्तुओं के अक्तत रि ् त अन् य कुि भी द्रव्य साथ निीं िोने के कािण जगन्नाथपुिी पुआाँचने पि ित्नसेन मागष-व्यय की क्तचन्ता में पड़ गए। उस क्तव पक्तत्त काल में पद्मावती ने बेचने िेतु वे ित्न क्तनकाले जो उन् िें क्तवदा िोते समय लक्ष्मी ने

क्तिपाकि कदए थे। यि स्वभाव पद्मावती की सांचयबुक्तद्ध औि कुशल गृक्तिणी के भाव को िेखाांकक त किता िै। अन् य पक्तण् ड तों के साथ िल किने के कािण जब िाजा ने क्रोधवश पक्तण् ड त िाघवचेतन को िाज-क्तन ष् कासन दे कद या, उस समय

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HND : हिन्दी P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भक्ति कालीन काव्य) M34 : पद्मावत के स्त्री पात्रों का चरित्राांकन

भी पद्मावती ने अपनी प्रखि दूिदर्लशता औि गिन बुक्तद्धमत्ता का परि चय

कद या। उस समय उन् िें िाघवचेतन के क्तनष् कासन का परिणाम अक्तन ष् टकािी कदखा-- यि िे बात पदुमावक्तत सुनी। चला क्तनसरि कै िाघव गुनी।

कै क्तग यान धक्तन अगम क्तबचािा। भल न कीन्ि अस गुनी क्तनसािा।

जेइाँ जाक्तखनी पूक्तज सक्तस काढ़ी। सुरुज के ठाउाँ किै पुक्तन ठाढ़ी।

कक्तव कै जीभ खडग क्ति िवानी। एक कदक्तस आग दोसि कदक्तस पानी।

जक्तन अजगुत का ै मुख भोिें। जस बुआतें अपजस िोइ थोिें।

िाघौ चेतक्तन बेक्तग िाँकािा। सुरुज गिि भा लेुआ उतािा।

बााँभन जिााँ दक्त् ख ना पावा। सिग जाइ जौं िोइ बोलावा।

उन् िें लगा कक जो मनुष् य इतना गुनी िै कक यक्तक्ष णी पूज कि चन् द्रमा सामने ला सकता िै, वि अगले कद न सूिज को भी

उपक्तस् थ त कि दे सकता िै। कक्तव की जीभ तो क्ति िवानी तलवाि िोती िै, उसकी एक ओि आग तो दूसिी ओि पानी

िोता िै। अयश औि मान-मदषन के िोष में इनके मुाँि से कोई अक्तन ष् ट न क्तन कल जाए—ऐसा सोचकि उन् िोंने

िाघवचेतन को तम काल वापस बुलवाया, यथेष् ट दान-मान देकि प्रसन् न कक या। इस पूिी प्रकक्र या में वे ऐसा अनुभव कि

ििी थीं कक दक्तक्ष णा क्तम लने कक आश् वक्तस् त क्तम ले तो ब्राह्मण स् वगष से भी वापस आ सकते िैं।

पद्मावती की आशांका एकदम क्तन िाधाि भी निीं थी। सािी युक्त् त यों के बावजूद िाघवचेतन अन् तत: कद ल् ली के

तमकालीन सुल्तान अलाउद्दीन क्तख लजी से जा क्तम ले औि क्तचत्तौड़ पि सुल्तान के आक्रमण एवां कपटपूवषक िम नसेन को

बन्दी बनाने के माध्यम बने। िम नसेन के बन्दी िोकि जाने के बाद क्तचत्तौड़ में पद्मावती अमयन्त दु:खी ििने लगीं।

उनकी क्तव लक्षण बुक्तद्धमत्ता का परिचय यिााँ भी क्तम लता िै। वे इस तथ य से परि क्तच त थीं कक िाजा िम नसेन से गोिा

बादल रुष् ट ििते िैं। पि वे यि भी जानती थीं कक वे सच्चे वीि िैं, औि वे िी उनके वास् तक्तव क क्तितैषी िैं। अपने पक्तत को

मुि किाने औि अलाउद्दीन क्तख लजी के प्रपांच का सिी जवाब देने की िणनीक्तत तैयाि किने िेतु वे अपने सामन्त गोिा

बादल के घि गईं। गोिा बादल ने िम नसेन को मुि किाने का दाक्तय म व स् वीकाि कक या। िम नसेन बेक्तड़यों से मुि िोकि

सुिक्तक्षत क्तचत्तौड़ पुआाँचे। िम नसेन के बन् दी िो जाने के दौिान कुम्भलनेि के िाजा देवपाल ने दूती द्वािा पद्मावती को

अपना प्रेम प्रस्ताव भेजा। उस प्रसांग में भी पद्मावती की प्रखि बौक्तद्ध कता का परि चय क्तम लता िै। यि दीगि बात िै कक इतने वैक्तश ष् ो के बावजूद स् त्री-सुलभ प्रेमगवष औि सपत्नी के प्रक्तत सिज ईष् याष से उन् िें मु् त निीं िखा गया। इसी

स् वाभाक्तव क चारि क्तत्र कता के कािण नागमती के साथ क्तववाद सम् भव ुआआ। नागमती के बगीचे में चिल-पिल िोने औि

िाजा के विीं उपक्तस् थ त िोने की सूचना पाते िी पद्मावती तुिन्त विााँ िोषवश जा पुआाँचीं औि क्तववाद िेड़ कद या।

क्तववाद में उन् िोंने िाजा के प्रेम का गवष प्रकट कक या। स् त्रीसुलभ सामान्य स्वभाव िी इस ईष् याष औि प्रेमगवष का उद्गम- स्रोत था। तय िै कक ऐसा न िोता तो िी असिज िोता। इस भाव को कक सी भी तिि से दुवृषक्तत्त निीं किा जा सकता।

अध् याम म में प्रक्तत रूप िी रूप को भाक्तष त किता िै। रूप के भाक्तस त िो जाने के बाद वि रूप, प्रक्तत रूप को जानने का

साधन बन जाता िै। यिी प्रकाश का क्तव मशष िै। पद्मावत मिाकाव य के पूिे क्तव विण में पद्मावती-िम नसेन, सूयष-चन् द्र के

इसी अलौकक क ििस् य को लौकक क पद्धक्तत से जानने की चेष् टा की गई िै। पद्मावती ऐसी कद व य ज्व योक्तत िैं, क्तज नके

साक्तन् न ध् य में िि कोई श्रीित िो जाते िैं, ् योंकक वि ज्व योक्तत धूप िै, सब उनकी िाया िै। क्तव जयदेव नािायण सािी

सिी किते िैं कक 'जायसी की पद्मावती कथा का एक क्तस् थ ि पात्र या एकाथी प्रतीक निीं िै, वि ऊजाष का एक क्तव लक्षण सांपुांज िै। यि ऊजाष स् वयां उसे िी ऊजषक्तस् व त निीं िखती; जिााँ उसकी एक प्रम यक्ष या पिोक्ष क्तच तवन पुआाँचती िै, विीं से

ऊजाष का स्रोत फूट पड़ता िै।'

नागमती

सवषप्रथम नागमती का 'रूपगर्लवता' स् वरूप िमािे समक्ष आता िै। रूपगवष नािी सुलभ सिज स्वभाव िै। सपत्नी के प्रक्तत ईष् याष-भाव (सौक्तत या डाि) भी ऐसी िी सिज वृक्तत्त िै। नागमती के क्तच त्राांकन में ये वृक्तत्त यााँ किीं भी असामान्य निीं

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HND : हिन्दी P 5 : मध्यकालीन काव्य-II (भक्ति कालीन काव्य) M34 : पद्मावत के स्त्री पात्रों का चरित्राांकन

कद खतीं। पद्मावती के साथ नागमती किीं सायास षड्यन्त्र िचती ुआई निीं

कद खतीं। िााँ पक्तत की क्तितकामना में किीं-किीं उनका ईष् याष-भाव क्तमक्तश्रत रूप में कदखता िै। िाजा ित्नसेन के बन्दी िोने

पि नागमती क्तवलाप किती िैं।

पदक्तमक्तन ठक्तगनी भइ ककत साथा। जेक्ति तैं ितन पिा पि िाथा।

इस सिज वृक्तत्त से इति अपने पक्तत के प्रक्तत उनके गूढ़-गम्भीि प्रेम का परि चय उनकी क्तवयोगदशा में व्यि िोता िै।

अमयन्त पारिवारिक, पक्ततपिायणा नागमती का सम् पूणष जीवन प्रेमज्वयोक्तत से आलोककत ििा िै। क्तचत्तौड़ में जब िाजा

िम नसेन की बाट जोिती क्तवयोक्तगनी नागमती ने एक वषष पूिे कि क्तल ए; उनके क्तवलाप से पशु-पक्षी तक क्तवकल िो उठे;

तब उन् िोंने एक पक्षी के माध् यम से ित्नसेन तक अपने क्तव योग का सन् देश भेजा। ससिलद्वीप में क्तशकाि खेलते ित्नसेन ने

उसी पक्षी से नागमती के दु:ख औि क्तचत्तौड़ की िीन दशा का वणषन सुना औि कफ ि स्वदेश की ओि प्रस्थान ककया।

पुरुषों के बुआक्तववाि के कािण प्रेममागष की व्याविारिक जरटलता को जायसी ने दाशषक्तनक ांग से सुलझाया िै। यिााँ

पक्तत पत्नी के पािस्परिक प्रेम-सम्बन्धों की बात बचाकि सेव्य-सेवक भाव पि ज़ोि कदया गया िै। नागमती का क्तवयोग, उनका क्तव िि-वणषन क्तिन्दी साक्तिमय में क्तवप्रलम्भ शृांगाि का उमकृि उदाििण िै। आन् तरि क सांवेगों की तिलता से

परि पूणष पूिा क्तव िि-वणषन बाििमासे की श् ल में िै। िि मिीने की क्तव िि-पीड़ा अलग-अलग तिि से वर्लण त िै।

क्तपउ-क्तबयोग अस बाउि जीऊ। पक्तपिा क्तनक्तत बोलै क्तपउ पीऊ।

अक्तधक काम दगधै सो िामा। िरि क्तज उ लै सो गएउ क्तपउ नामा।

क्तबिि बान तस लाग न डोली। िकत पसीज भीक्तज तन चोली।

सक्तख क्तिय िेरि िाि मैन मािी। ििरि पिान तजै अब नािी।

क्तप य-क्तव योग में नागमती का जी बावला िो गया िै। पपीिे की तिि 'क्तप उ-क्तप उ' की िट लगा िखी िै। कामाक्तग् न अम यक्तध क सताने लगी िै। वि सुग् गा उनके क्तप य को मोक्ति त कि ले गया, उनके साथ नागमती के प्राण िी ले गया। उन् िें

क्तव िि-वाण इस तिि लग गए कक अब वे क्ति ल-डुल तक निीं सकतीं। ि् त के पसीजने से उनकी चोली भीग गई िै।

सक्तख यों ने सोच-क्तव चािकि क्तन ष् कषष क्तन काला कक मदन-पीड़ा से आित यि बाला िाि गई िैं। किीं ये कााँप-कााँपकि

प्राण िी न म याग दें। इसी तिि मास-मास की क्तव िि-वेदना सिती ुआई नागमती समय काटती जाती िैं। कार्लत क आते- आते क्तव िि घनघोि िो जाता िै--

काक्ततक सिद चन् द उक्तजयािी। जग सीतल िौं क्तबििै जािी।

चौदि किा कीन् ि पिगासू। जानुआाँ जिें सब धिक्तत अकासू।

तन मन सेज किै अक्तगडाूँ। सब किाँ चन्द मोसि िोइ िाूँ।

चूँाँ खण् ड लागै अाँक्तधयािा। जौं घि नासिन कन् त क्तपयािा।

अबूँाँ क्तनठुि आव एसि बािा। पिब देवािी िोइ सांसािा।

कार्लत क मिीने के शिद-चन् द्र की उक्तज याली िाई ुआई िै। पूिा जगत शीतल िै पि नागमती क्तव िि में जल ििी िैं।

चन् द्रमा ने चौदिो कलाओं से परि पूणष प्रकाश कक या िै, प्रतीत िोता िै कक धिती से आकाश तक सािा कुि जल ििा िै।

तन औि मन में सेज अक्तग् न दाि उम पन् न कि ििा िै। सबके क्तल ए जो चन् द्रमा िै, वि नागमती के क्तल ए िाुआ िै। घि में

कन् त न िों तो चााँदनी के बावजूद चािो ओि अन् धकाि लगता िै। िे क्तन ष् ठुि क्तप्र य, पवष-म योिाि का समय िै, अब भी तो

आ जाइए।

जेठ जिै जग बिै लुवािा। उठै बवण् डि क्तध कै पिािा।

क्तबिि गाक्तज िक्तन वांत िोइ जागा। लांका डाि किै तन लागा।

चारिुआाँ पवन झाँकोिै आगी। लांका डाक्ति पलांका लागी।

दक्ति भइ स् याम नदी काक्तलन् दी। क्तबिि कक आक्तग करठन अक्तत मन् दी।

जेठ मिीने की तीक्ष् ण धूप में सािा जग जलने लगा िै। लू चलने लगी िै। बवण् डि उठने लगे िैं। पिाड़ दिकने लगे िैं।

िनुमान की तिि पूिे क्रोध से तन में क्तव िि जाग उठा िै औि पूिे शिीि में लांका दिन किने लगा िै। चािो कद शाओं से

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